#Rajputana_Kingdom_of_Kashmir
©Copyright हिन्दू शेरनी मनीषा सिंह जय श्री राम मनीषा सिंह की कलम से आजकल कुछ तथाकथित इतिहासकार मौर्य, नन्द इत्यादि विदेशी कुल को क्षत्रिय कुल बनाने में लगे हैं और मौर्य, नन्द को बौद्ध ग्रंथों में क्षत्रिय बताया गया हैं मनुस्मृति , पुराण , उपनिषदों में मौर्य, नन्द , किराट वंश को क्षत्रिय कुल के नहीं मानते हैं , जब हिन्दू ग्रंथों से इतिहासविदुर पंडित कोटा वेंकटचेलाम, डॉ के.एम.राव , एवं डॉ. कोटा नित्यानंद शास्त्री ने यह सिद्ध कर दिया की राजपूतों को प्राचीनकाल में क्षत्रिय कहा गया हैं , वामपंथियों द्वारा बनाये गये थ्योरी “राजपूत हूणों के वीर्य से उत्पन्न हुए थे” इस झूठी एवं अपमानजनक थ्योरी को ब्राह्मण इतिहासविदुरों ने ग्रन्थ एवं प्राचीन इतिहास की सहयाता लेकर वामपंथ को धराशायी कर दिया, झूठी इतिहास की पोल खोलते देख वामपंथियों ने नया षड्यंत्र रचा राजपूतों को भ्रमित करने के लिए कुछ वामपंथी इतिहासकार राजपूत चोला ओढ़े गैर क्षत्रिय को क्षत्रिय बना रहे हैं जैसे मौर्य साम्राज्य, किराट साम्राज्य , नन्द साम्राज्य कल बोलेंगे यवन भी राजपूत थे ।
राजतरंगिणी एक निष्पक्ष और निर्भय ऐतिहासिक कृति है। स्वयं कल्हण ने राजतरंगिणी में कहा है कि एक सच्चे इतिहास लेखक की वाणी को न्यायाधीश के समान राग-द्वेष-विनिर्मुक्त होना चाहिए, तभी उसकी प्रशंसा हो सकती है-
श्लाध्यः स एव गुणवान् रागद्वेषबहिष्कृता।
भूतार्थकथने यस्य स्थेयस्येव सरस्वती॥ (राजतरंगिणी, १/७)
पाश्चात्य इतिहासकारों ने पुराणों की अवहेलना कर भारतीय इतिहास का भविष्य खतरे में डाल दिया हैं पाश्चात्य इतिहासविदुरों ने बोद्ध ग्रन्थ का अध्यन कर अधिकत्तर गलत एवं भ्रमित इतिहास लिखे हैं कश्मीर के स्वर्णिम इतिहास तो अभी तक किसी को पता ही नही । कश्मीर पर शासन किसका का था / कश्मीर का अस्तित्व ही मिटा दिया गया हैं इतिहास के पन्नो से क्योंकि कश्मीर पर शासन करनेवाले दो वर्ण थे क्षत्रिय एवं ब्राह्मण इसलिए कश्मीर का इतिहास सन १९४७ (1947 A.D) से लिखा गया हैं और वामपंथी आँखों को चुभता हैं कश्मीर का स्वर्णिम इतिहास क्षत्रिय एवं ब्राह्मण राजाओ ने कश्मीर को स्वर्ग बनाया था
गोनन्द वंश कश्मीर के सोमवंशी वंश के राजा थे इस वंश ने कश्मीर पर 3702 वर्ष तक शासन किये थे महाभारत युद्ध से पूर्व एवं महाभारत युद्ध के बाद भी इनका शासनकाल बना रहा इतने वृहत्तम एवं शक्तिशाली साम्राज्य के इतिहास को बड़ी कुशलता से मिटा दिया गया । गोनन्द वंश ने 3702 वर्ष की शासनकाल में अवैदिक मलेच्छ आक्रमणकारियों को कश्मीर से सफलतापूर्वक खदेड़ा एवं कश्मीर की रक्षा शीश अर्पित कर के किया करते थे । कश्मीर स्वर्ग तब हुआ करता था जब अश्शूरों को परास्त कर कश्मीर की स्वर्ग जैसी पावन भूमि पर कदम गिड़ने से पूर्व ही खदेड़ दिया जाता था अवैदिक मलेच्छ आक्रमणकारियों से भीड़ जाते मृत्युंजयी बन कर । राजपूत सेना शीश कट जाते थे पर जब तक धर शांत नही होते थे तब तक तलवारों से अश्शूरों की नरमुंडों का बलि चढाते रहते थे ।
(The whole history of the Gonanda dynasty consisting of 89 kings, covering a period of 3702 years from 3450 B.C., to 252 A. D.)
सोमवंशी राजा धर्माशोक ( Dharma-Asoka ) (अशोक मौर्य के समकालिन राजा थे धर्माशोक) इन्होने 48 वर्ष 1448-1400 ई.पू तक शासन किया श्रीनगर शहर इन्होने ही बसाया था 90 लाख घरों का निर्माण करवाए थे । धर्माशोक यवन आक्रमणकारियों से परास्त होकर जंगल की और चले गये थे।
धर्माशोक की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र जलौका ने प्रण लिया कश्मीर को पुनारह विजय कर वैदिक धर्म की स्थापना करने की जलौका ने राजपाठ खोने के पश्चात स्थानीय साधारण नागरिको को शस्त्र प्रशिक्षण देकर साधारण नागरिक से सैनिक बनाया एवं सन 1400 ईस्वी पूर्व, जलौका ने 9,205,82 हूणों को परास्त कर कश्मीर से खदेड़ा एवं वैदिक धर्म की स्थापना किया कश्मीर की शुद्धिकरण करवाया था यज्ञ , पूजन द्वारा राजतरंगिणी, कल्हण आठवी तरंग में उल्लेख हैं ।
इस युद्ध के बाद विजय सम्राट सोमवंशी राजपूत सम्राट जलौका ने सिंहासन पर आसीन हुए एवं 56 वर्ष तक शासन किया सन १४००-१३४४ ई.पू (1400-1344 B.C) ।
अशुर- अशर-बे-निशेशु मित्तानी साम्राज्य के अश्शूर राज का राजा था असुरोंका संक्षिप्त परिचय इतिहासकार श्रीविश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े के अनुसार “असुर वे हैं जिन्हें यूरोपीय “असीरियन”कहते हैं ! प्राचीन यूनानी उन्हें “असुरियन “कहते थे और स्वयं अपने को “अश्शूर ” कहते थे । प्राचीन आर्य इन्हें “असुर ” और उनके देश को “असूर्या” अथवा “असूर्य”कहते थे , ‘असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः ‘! भारतीय ‘श’ के स्थान पर ‘स’उच्चारण करते थे । बाबिल, मिस्र और यूनान पर गहरा प्रभाव था । इन अश्शूरों को अश्शूर कहना भी उचित नही होगा यह अश्शूरों से भी अधिक क्रूर होते थे इनके कदम जिस राज्य में पड़ते थे उस राज्य शमसान बना देते थे ।
सन १३९७ ई.पू (1397 B.C) अशुर- अशर-बे-निशेशु कश्मीर को स्वर्ग से नर्क बनाने हेतु अपनी अश्शूर सेना के साथ कश्मीर पर आक्रमण किये लाखों से अधिक सैन्यबल थे राजपूतों की अब तक की परंपरा यह थी कि अपने से संख्या में चाहे कितनी बड़ी सेना हो, उस पर टूट पड़ते थे और जब तक एक भी वीर जीवित है, शत्रु को आगे बढ़ने से रोकने का भरपूर प्रयास करता था, महाराज जलौका ने अश्शुरों पर विजय पाकर समूल नाश कर दिया था अश्शुरो का इस युद्ध के पश्चात बाहरी आक्रमण नही हुए इस युद्ध से कश्मीर की धरती का कोना कोना लाल होगया था अश्शुरबल का कोई जीवित नही बचे थे, महाराज जलौका ने अशर-बे-निशेशु को परास्त कर बाबिल, मिस्र और खोरासन पार केसरिया ध्वज लहराये थे।
महाराज जलौका ने अश्शूरों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात भगवान शिव जी का भव्य मंदिर का निर्माण करवाया मंदिर का नाम था ज्येष्ठारूद्र । आज कश्मीर में ज्येष्ठारूद्र मंदिर का अवशेष में सिर्फ मंदिर की दीवारों की ईंटे बचे हैं ।
(A Śiva shrine known as Jyeṣṭharudra had been founded here by DharmaAśoka’s son and successor Jalauka.) SOURCES-: PANDRETHAN SHIVA Inscription
गोनन्द वंशावली की उत्पत्ति के बारे में अन्य पोस्ट पर विस्तार से लिखेंगे यह राजपूत वंश के सबसे गौरवशाली इतिहास के रचयिता रहे इस वंश ने सर्वाधिक स्वर्णिम इतिहास रचे थे। आजकल के मैकोले मानसपुत्र को ऐसी इतिहास इसलिए नहीं पढाया जाता हैं क्योंकि काले अंग्रेजो की प्रोडक्शन हाउस बंद होजायेगी एवं फिरसे छत्रपति महाराज शिवाजी और महाराणा प्रताप बनने लगेंगे ।
संदर्भ-:
1) Short Chronology of Hittites-: Page108-110
2) Neo-Assyrian Chronicle-: Page 38–39
एवं पुराण , अन्य अनेक पुस्तक एवं विश्लेषणात्मक इतिहास शोध पत्र से खोज कर लिखा गया हैं यह पूरा तथ्य ।
Source: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1819502511704923&id=100009355754237
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.