अनिल ज्वाला श्रीधर जी लिखते हैं कि --- "हमारी गलती थी हमने उनको कुंएं से पानी नहीं भरने दिया
हमारी गलती थी हमने उनको अपने तालाब में नहाने नहीं दिया,
हमारी गलती थी हमने उनको अपनी भोजन की पंगत में बैठने नहीं दिया.....
आज हमारा हिंदुत्व उन भाईयों से क्षमा प्रार्थी है।"
परंतु मेरा उत्तर है --- "आप क्षमा प्रार्थी हों केवल उन्हीं से जिन्हें कूट ईसाई (हिंदु भर्त्सना) कीड़ा नहीं काटा है। वरना आधुनिक मशीनों वाली अर्थव्यवस्था पुराने सामाजिक आचार व्यवहार अपने आप बदल देती, परंतु ईसाईयों ने अछूत लोगों की उपस्थिति को हिंदू समाज के पाप के रूप में बड़ा दुष्प्रचारित किया, और यह धारणा सबके मन में फैलायी कि अस्पृश्यता का हिंदू धर्म से गर्भनाल का संबंध है।
कोई इन मिशनरियों से भी पूछे कि औद्योगिक क्रांति से पहले पश्चिमी यूरोप में ईसाई अपने ही समाज के अंग "कागोत" (Cagots) नामक लोगों से जो कि उनके सहधर्मी भी थे, उनसे अस्पृश्यता का व्यवहार क्यों करते थे?और बिना आरक्षण के भी "कागोत" मुख्यधारा के ईसाई समाज में कैसे घुलमिल गये? और यहाँ तक कि आज उनका न तो कोई स्वतंत्रत अस्तित्व है और न ही किसी पश्चिमी यूरोप के ईसाई को यह ज्ञात भी है कि "कागोत" भी कभी कोई समुदाय उनके बीच था। प्रश्न यह भी उठता है कि "कागोत" लोगों के नाम पर पश्चिमी यूरोप के ईसाईयों को यदि ताना मारा जाता रहता, और आत्मग्लानि अनुभव करवायी जाती रहती कि उनके समाज में भी कभी अस्पृश्यता सामाजिक व्यवहार के रूप में रही है, तो क्या वे सामाजिक संबंधों के बदल जाने और अस्पृश्यता के समाप्त हो जाने के बाद भी कभी भूल पाते कागोत को और उन्हें अलग से चिह्नित करने के लिए सरकारी आरक्षण होता तो क्या कागोत आज भी यूरोप में पहचाने नहीं जाते?
साथ ही क्या कभी किसी ने कहा कि विलुप्त हो चुके कागोत लोगों को पुनः अपनी कागोत पहचान को ओड़कर, ईसाई मत की निंदा करनी चाहिए क्योंकि ईसाई मत और अस्पृश्यता दोनों एक ही विचारधारा हैं, और यूरोप के देशों में उनके पूर्वजों के अस्पृश्य होने के कारण आज उन्हें आरक्षण देना होगा? क्या पोपवाद को किसी ने ब्राह्मणवाद की तरह गाली देने का शब्द बनाया? नहीं न, तो हिंदू और ब्राह्मण के बारे में उलटा क्यों हुआ? नासपीटे मिशनरी, हिंदु समाज के सांस्कृतिक प्रहरी ब्राह्मण समाज के प्रति बाकी हिंदुओं को भड़का कर, हिंदु धर्म की सामाजिक भित्ती को, नींव से हिलाकर गिराना चाहते हैं। समय आ गया है कि जानकारी से लैस होकर प्रतिप्रश्न किया जाए एवं आत्मग्लानि के आत्मघाती सम्मोहन में पड़ के स्वयं को धिक्कारना तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाए।
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