Wednesday 12 April 2017

वीर क्षत्रिय राम सिंह राठौड़

As received.
-------------------------------

मुस्लिम बादशाह शाहजहां के दरबार में राठौर वीर अमर सिंह एक ऊंचे पद पर थे। एक दिन शाहजहाँ के साले सलावत खान ने भरे दरबार में अमर सिंह को हिन्दू होने कि वजह से गालियाँ बकी और अपमान कर दिया...
अमर सिंह राठौर के अन्दर हिन्दू वीरों का खून था...
सैकड़ों सैनिको और शाहजहाँ के सामने वहीँ पर दरबार में अमर सिंह राठोड़ ने सलावत खान का सर काट फेंका ... ये कुछ ऐसा था जैसा 'ग़दर' फिल्म में सनी देओल हैंडपंप उखाड़ कर हज़ारों के सामने ही मुस्लिम के जिस्म में ठोंक दिया था...
शाहजहाँ कि सांस थम गयी..और इस शेर के इस कारनामे को देख कर मौजूद सैनिक वहाँ से भागने लगे...अफरा तफरी मच गयी... किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अमर सिंह को रोके या उनसे कुछ कहे। मुसलमान दरबारी जान लेकर इधर-उधर भागने लगे। अमर सिंह अपने घर लौट आये।
अमर सिंह के साले का नाम था अर्जुन गौड़। वह बहुत लोभी और नीच स्वभाव का था। बादशाह ने उसे लालच दिया। उसने अमर सिंह को बहुत समझाया-बुझाया और धोखा देकर बादशाह के महल में ले गया। वहां जब अमर सिंह एक छोटे दरवाजे से होकर भीतर जा रहे थे, अर्जुन गौड़ ने पीछे से वार करके उन्हें मार दिया। ऐसे हिजड़ों जैसी बहादुरी से मार कर शाहजहाँ बहुत प्रसन्न हुआ ..उसने अमर सिंह की लाश को किले की बुर्ज पर डलवा दिया। एक विख्यात वीर की लाश इस प्रकार चील-कौवों को खाने के लिए डाल दी गयी।
अमर सिंह की रानी ने समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पति की लाश के बिना वह सती कैसे होती। रानी ने बचे हुए थोड़े राजपूतों को और फिर बाद में सरदारों से अपने पति कि लाश लाने को प्रार्थना की पर किसी ने हिम्मत नहीं कि और तब अन्त में रानी ने तलवार मंगायी और स्वयं अपने पति का शव लाने को तैयार हो गयी।
इसी समय अमर सिंह का भतीजा राम सिंह नंगी तलवार लिये वहां आया। उसने कहा- 'चाची! तुम अभी रुको। मैं जाता हूं या तो चाचा की लाश लेकर आऊंगा या मेरी लाश भी वहीं गिरेगी।'
पन्द्रह वर्ष का वह राजपूत वीर घोड़े पर सवार हुआ और घोड़ा दौड़ाता सीधे बादशाह के महल में पहुंच गया। महल का फाटक खुला था द्वारपाल राम सिंह को पहचान भी नहीं पाये कि वह भीतर चला गया, लेकिन बुर्ज के नीचे पहुंचते-पहुंचते सैकड़ों मुसलमान सैनिकों ने उसे घेर लिया। राम सिंह को अपने मरने-जीने की चिन्ता नहीं थी। उसने मुख में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी। दोनों हाथों से तलवार चला रहा था। उसका पूरा शरीर खून से लथपथ हो रहा था। सैकड़ों नहीं, हजारों मुसलमान सैनिक थे। उनकी लाशें गिरती थीं और उन लाशों पर से राम सिंह आगे बढ़ता जा रहा था। वह मुर्दों की छाती पर होता बुर्ज पर चढ़ गया। अमर सिंह की लाश उठाकर उसने कंधे पर रखी और एक हाथ से तलवार चलाता नीचे उतर आया। घोड़े पर लाश को रखकर वह बैठ गया। बुर्ज के नीचे मुसलमानों की और सेना आने के पहले ही राम सिंह का घोड़ा किले के फाटक के बाहर पहुंच चुका था।
रानी अपने भतीजे का रास्ता देखती खड़ी थीं। पति की लाश पाकर उन्होंने चिता बनायी। चिता पर बैठी। सती ने राम सिंह को आशीर्वाद दिया- 'बेटा! गो, ब्राह्मण, धर्म और सती स्त्री की रक्षा के लिए जो संकट उठाता है, भगवान उस पर प्रसन्न होते हैं। तूने आज मेरी प्रतिष्ठा रखी है। तेरा यश संसार में सदा अमर रहेगा।'
(क्यों भारतीय इतिहास से ये कथाएं गायब की गईं.. इन्हें पुस्तको में लाना होगा)
#विट्ठलव्यास

साभार:

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1242734959158238&id=100002652365145

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.

विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर

-- #विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर -- -------------------------------------------------------------------- इतिहास में भारतीय इस्पा...