#दरगाह_की_साइकिक_सर्जरी
Nature abhors a vacuum
प्रकृति शून्यता की विरोधी है । अगर कोई जगह खाली हो जाये तो जो हट गया उसकी जगह पर कुछ और लाया जाता है ।
पीर यहाँ क्यों लोकप्रिय हुए यह बात इससे समझ में आती है । मूर्तिभंजन कर के मुसलमानोने श्रद्धा स्थान तो हटा लिए लेकिन लोग शून्योपासना के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे। मूल इस्लाम जो खाली दिमाग मांगता है वह देने की उनकी मानसिक तैयारी नहीं थी। कोई सगुण प्रतीक की आवश्यकता थी।
शातिरता में मुसलमान कभी कम नहीं रहे । वैसे यह केवल अरबों की सोच न रही बल्कि इस्लाम का नाम लेकर हर जगह से हमलावर आए । बदमाशी और क्रूरता में कोई कम न था और हर हमलावर को बांधती समान प्रेरक विचारधारा एक ही निकलती है - इस्लाम । बाकी शांति आप खोजते रहिएगा । शातिरता की वर्तनी बदलकर शांतिरत कर दिया हो किसी ने तो पता नहीं । होते रहता है ।
हाँ, तो हम बात कर रहे थे पीरों की । मुसलमान शासक यह पहचान गए कि यहाँ सिद्ध और संतों का आदर है, और शरीर त्याग लेने के बाद भी वे पूजनीय होते हैं । बस, उन्होने अपने जासूसूफियों के मुर्दे पकड़ा दिये, लो पूजो इन्हें। और एक बार पूजा शुरू हो गई तो अपने आप आदमी की अच्छाइयों का ही बखान होता है, भले सत्य हो ना हो । और जिसको पूजनीय बना दिया उसका चरित्र कैसा भी हो, वह भी सब पूजनीय अनुकरणीय है यह तो मूल शिक्षा ही है इस्लाम की।
नए नए किसी भी तरह से मुसलमान बने थे उनके लिए यह यह मुर्दापूजन आसानी से स्वीकार्य था, कुछ तो साकार पूजने को मिल रहा था। बाकी हिन्दू तो हर चीज में ईश्वर देख लेता है। हर भूत में भगवान ढूँढ लेता है, भूत भूत में फर्क होता है जो सब नहीं समझते, तो इन भूतों को भी पूजना शुरू हुआ। आज ये भूत सिर पर चढ़ बैठे हैं, उनका इलाज जरूरी हो गया है, और हो भी जाएगा।
यही शून्यता का निर्माण तमिल नाडु में द्रमुक ने भी किया। आर्य द्रविड का भूत जगाकर देवताओं को जनमानस में बदनाम किया। नतीजा यह हुआ कि लोग भले रामचंद्रन और रामकृष्णन रहे, राम और कृष्ण को पूजने से रहे। और यह वही जनता है जो बहुतही सश्रद्ध है । श्रद्धा का फोकस चाहिए।
इस खाली जगह में घुसे ईसाई येशु को लेकर । वहाँ मास स्केल में धर्मांतरण हुआ है इसका यह भी पहलू है । आप वहाँ के अगर किसी कम पढे लिखे ईसाई से बात करें तो शायद ऐसी चमत्कारी कहानियाँ सुनाएगा जो बाइबल में नहीं मिलेंगी, हाँ, कहीं पौराणिक कथाओं से साम्य जरूर दिखेगा।
भारतीयता की पुनर्स्थापना इतनी आसान नहीं है, काफी काम कर रखा है इस देश के शत्रुओने । और सब से बड़ी बात है कि अपने किए सब नुकसान को कुछ ही सालों में भारतीयता का मूल हिस्सा बताना शुरू करते हैं और उसका विरोध देशद्रोह । जैसे कुरआन में एक अक्षर न बदलनेपर गर्व करनेवाले लोग गंगा जमुनी "तहजीब" (इससे बड़ा सांस्कृतिक फ़्रौड कोई नहीं) को विशुद्ध भारतीय परंपरा बताते नहीं थकते !
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#आनंद_राज्याध्यक्षजी
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