कुछ लोगों को गलतफहमी है कि इतिहास् को तोड़ मरोड़कर पेश करने वाले, हजारों साल से विश्व के सबसे मेहनती, कारकुशीलव तकनीकी और आत्मनिर्भर वर्ग रहे लोगो के वंशजो को गोरे ईसाइयों द्वारा विनष्ट कर, उनको बेघर बेरोजगार किये लोगो की दुर्दशा का कारण वेदों और स्मृतियों में खोजने वाले , पिछले 70 साल से महिमामण्डित बाबा साहब को, और ज्यादा जोरशोर से महिमामंडित कर समाज को जोड़ लेंगे, वे बहुत बड़ी गलतफहमी के शिकार हैं।
सडे गले मांस को खुशबू में पकाकर यदि परोस भी दोगे तो फ़ूड पॉइज़निंग तो होकर ही रहेगी।
उस वर्ग को आरक्षण देकर पिछले 70 वर्ष से काफी मरहम लगाया गया है, आज उसका एक वर्ग बहुत सक्षम भी हो गया है, लेकिन डॉ आंबेडकर का हेट और एट्रोसिटी लिटरेचर पढ़कर वो कुंठा हीनता और घृणा में जीने को बाध्य है।
यदि उस वर्ग का आत्म सम्मान वापस दिलाना है तो फर्जी इतिहास नही, सच्चा इतिहास् लिखिए।
उसको ये समझ मे आने दीजिये कि उसके साथ हुए अन्याय का मूल कारण क्या है ?
ये बताना होगा कि कौटिल्य की नीतिशास्त्र का पहला और दूसरा मंत्र क्या है -
"सुखस्य मूलं धर्मह"
सुख का मूल धर्म है।
और
"धर्मश्य मूलं अर्थः"
धर्म का मूल अर्थ है ।
और उस अर्थ का निर्माता वो वर्ग था जिसको बाबा साहेब ने लिखा - "shoodras were alloted menial jobs".
जबकि सच्चाई ये है कि सुख और धर्म के मूल - अर्थ का निर्माता भारत में पिछले 2000 साल से उनके पूर्वज थे।
#उदाहरण_स्वरूप : MA Shering के 1872 की पुस्तक के अनुसार "कोली या कोरी सम्मानित वैश राजपूत है, जो जीवन यापन के लिए बुनकरी करते थे"।
और रोमेश दत्त के अनुसार 1809 के हैमिल्टन बुचनन के एकत्रित डेटा के अनुसार भारत के प्रत्येक गावँ में एक से ज्यादा हैंडलूम थे। और एक हैंडलूम चलाने वाले बुनकर परिवार की सालाना आय 20 से 50 रुपये की बीच थी।
आज कोली और कोरी #अनुसूचित_जाति में चिन्हित हैं।
शारीरिक बलात्कार नंग्रेजों ने किया।
मानसिक बलात्कार बाबा साहेब ने किया।
लेकिन जिसने रोजी नष्ट किया उन्ही को फर्जी इतिहासकार और लेखकों ने उनका पूज्य करार दिया।
साभार - Tribhuwan Singh जी
Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10212730835322864&id=1146345539
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