Saturday 27 May 2017

इस बार हमारी शाखें नहीं जड़ें खतरें में हैं

इस बार हमारी शाखें नहीं जड़ें खतरें में हैं

एक बार कहीं एक जगह उलेमाओं की वैश्विक बैठक चल रही थी, इस्लामिक जगत की जानी-मानी, नाम चीन हस्तियों ने शिरकत की, सऊदी अरब, पाकिस्तान, बांग्लादेश से भी उलेमा आये हुए थे, हिन्दुस्थान के कोने-कोने यूपी, बंगाल, महाराष्ट्र, केरल तक के उलेमा तशरीफ़ लाये थे....... मामला गंभीर था इसलिए इतने बड़े स्तर पर मीटिंग आयोजित की गयी थी....... एक उलेमा माइक पे कह रहे थे... अल्लाह की तौफीक और तासीद से हमने करीब चौदह सौ साल से हिन्दुस्थान पर हमले पर हमले किये लेकिन हिन्दू मिट नहीं पाये....... हमने धीरे धीरे ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान को हिन्दुस्थान से अलग कर दिया लेकिन हिन्दू टूट नहीं पाये...... हमने इन पर रूह कंपाने वाले अत्याचार किये,  इनको मारा काटा, ज़िंदा गाड़ा, आँखे फुड़वा दी, इनकी औरतों को गुलाम बनाया, बच्चों को दीवार में चुनवा दिया, जान बचाने का लालच दिया लेकिन ये हिन्दू ख़त्म न हो पाये, तलवार चलाने वाले भी एक दिन थक हार गए, आखिर कितनी तलवार चलाएं...... कितनों के सर काटे, कितनो की अंतड़ियों को पेट फाड़ निकालें, कितनों की खाल उतारें हर चीज की एक हद होती है, लहू पीने वाला कितना लहू पी सकता है, एक दिन के लिए तो वो भी उकता जाता है...... फिर भी ये कौम झुकती नहीं, टूटती नहीं, ख़त्म नहीं होती..... हमारे ना जाने कितने गौरी, ख़िलजी, तुगलक, मुग़ल मर-खप गए इस कौम को मिटाने में, इनका मजहब बदलवाने में पर कुछ मुट्ठी भर कायरों को छोड़कर हिंदुओं की बड़ी तादात को इस्लामियत की ओर मोड़ कर नहीं लाया जा सका...... क्या वजह है, आखिर क्या वजह है की अल्लाह के लड़ाकों के आगे ये कौम झुकी नहीं, बर्बर अत्याचार सहने के बावजूद भी टूटी नहीं और हज़ार साल के हमलों के बाद भी मिटी नहीं...... इसका राज़ क्या है, क्या है इसकी वजह, इसका पता तो लगाया जाए।

सभी उलेमा अपने अपने तरीकों से जुट गए, कुछ ने किताबों में सर घुसा लिया, कुछ एक दूसरे से चर्चा करने लग गए, कुछ गूगल पर छान बीन कर रहे थे..... कुछ ने लपक के हिन्दुस्थान के शहरों में अपने चेले-चपाटों को फ़ोन लगा हिंदुओं की बस्तियों में दौड़ाया..... कुछ दिनों की दौड़-धुप के बाद सभी ने अपनी अपनी रिपोर्टें अध्यक्ष को सौंप दी.... उक्त रिपोर्टों के आधार पर निष्कर्ष निकला जिसे अध्यक्ष महोदय ने ऊँची आवाज़ में पढ़कर सुनाया.... वजह निकल कर सामने आयी है वो ये है कि ये कौम अपनी सनातनी धर्म परम्पराओं और संस्कृति से बहुत गहरे से जुडी है...... ये परम्पराएं और संस्कृति ही हिंदुत्व की जड़ें हैं, हम गलत जगह हमले करते रहे...... हम शाखों को काटने की कोशिश करते रहे, एक काटते तो दूसरी फूट पड़ती, दूसरी काटते तो तीसरी फूट पड़ती जबकि हमें जड़ों को काटना था...... सीधा जड़ काट देते तो ये पेड़ भरभरा के गिर जाना था.....  इसलिए अब तक जो न हुआ वो अब होगा....... हमें इन्हें मिटाना है तो हमे इनकी जड़ों पर हमले करने होंगे......... बोलिये अल्लाह हु अकबर...... सभी जोर से चिल्लाये अल्लाह हु अकबर...... और इसी गगनभेदी नारे के साथ बैठक समाप्त हो गयी..... और सभी बढ़ चले नए जिहाद पर अपने राज्यों में हिंदुत्व की जड़ें काटने, बदले हुए तरीकों और तेवरों के साथ।

इस वाकये को एक मजाकिया कल्पना समझिये लेकिन अपने आस-पास नजरें दौड़ाइए, मुस्लिम धर्म गुरूओं की कही बातों को ध्यान से सुनिए, सोसिएल जगत पर निगाह बनाये रखिये, इस्लामिक पत्र-पत्रिकाओं पर नजर गढ़ा कर रखिये....... मुस्लिम लेखकों की किताबों और लेखों को गहराई से पढ़िए तो आपको यह कल्पना सच लगने लगेगी...... वे आपकी जड़ें खोदने का ही तो काम कर रहे हैं....... इस्लामिक विचारकों का मानना है कि इस्लाम महज 1400 साल पुराना नहीं बल्कि दुनिया का पहला धर्म है  इसलिए आप पर भारी पड़ने की गरज से आपको कई लेखक यह अफवाह फैलाते मिल जाएंगे कि इस्लाम, सनातन से भी पुराना धर्म है, पैगम्बर मुहम्मद तो आखिरी नबी है, उनसे पहले 1 लाख 24 हज़ार नबी आये थे, आपके राम, कृष्ण भी तो उन्ही में से एक थे.......... वेद अल्लाह की भेजी किताब ही तो थीं, पुराणों को सैय्यद मुसलामानों ने लिखा था..... मुहम्मद साहब का जिक्र वेदों में है....... भविष्य पुराण में पैगम्बर के आने की भविष्यवाणी हुयी है, कल्कि अवतार और कोई नहीं पैगम्बर मुहम्मद ही हैं, जाकिर नायक समेत कई मुस्लिम विद्वानों ने "मुहम्मद सल्ल और कल्कि अवतार" नाम से कई किताबें तक लिख दीं हैं......... कई इस्लामिक लेखक प्रचारित करते रहते हैं कि वेदों में अल्लाह की इबादत की बात लिखी है, वैदिक काल में गाय का मांस खाना पुण्य कार्य था, कई लेखक लिखते रहते हैं कि दीवाली राम के अयोध्या लौटने के उपलक्ष में नहीं बल्कि पैगम्बर मुहम्मद के हिन्दुस्थान आने पर मनाई गयी थी.. कुछ कहते हैं कि आपके सनातन का अरबी में मायने इस्लाम ही तो होता है... स्वस्तिक अल्लाह का चिन्ह है। क़ुरान और गीता का एक ही अर्थ है........ वेद, पुराण, गीता ये पहले की किताबें थी जिनकी उपयोगिता खत्म हो गयी तो अल्लाह ने कुरान भेजी....... इसके बाद कोई किताब नहीं आएगी, कोई पैगम्बर या ऋषि नहीं आएगा.......

जो लोग ये विचार कर रहे हैं कि ऐसा दुष्प्रचार करने से कुछ नहीं होना जाना तो वे भूल रहे हैं कि यह दुष्प्रचार ऐसा विष है जो पानी के साथ मिला कर हिंदुत्वा की जड़ों में छोड़ा जा रहा है जिसका परिणाम आज कल या परसों में नहीं बल्कि बरसों में देखने को मिलेगा..... आज से 4-5 सौ साल पहले मुगलों ने अल्लोपनिषद नामक फ़र्ज़ी उपनिषद बना कर तैयार किया जिसमे अल्लाह, मुहम्मद और इस्लाम का परोक्ष रूप से गुणगान किया हुआ है, उस समय इसे किसी ने गंभीरता से नहीं लिया, यही सोच कि कुछ नहीं होगा...... आज ये स्थिति है कि अल्लोपनिषद् उपनिषदों में गिना जाता हैं या नहीं इस पर विवाद खड़ा हो जाता है, गूगल भी 108 उपनिषदों की सूची में आपको अल्लोपनिषद दिखा देता है।

पचास साल पहले साईं एक संत फ़कीर के रूप में पूजे जाते थे, कुछ ही दस-एक साल पहले से लोगों ने साईं को सनातन परम्परा में सम्मिलित कर दिया, तब भी यही कहा गया कुछ नहीं होता... पर आज साईं गले में सांप लटकाये शिव की वेश भूषा में देवी पार्वती से सट कर विराज रहे हैं, देवी लक्ष्मी विष्णु के नहीं साईं के पैर दबा रही हैं, मुरली वाले की मुरली छीन साईं को पकड़ा दी है, साईं को सनातन धर्म पर काबिज करने का जो प्रोपेगेंडा चल रहा है जल्द ही साईं ब्रह्मा, विष्णु, महेश का स्थान ले लेंगे, शिव के अवतार तो पहले ही घोषित किये जा चुके है। ईसाई धर्म प्रचारक भी पीछे नहीं है, भगवा पहन के प्रचार कर रहे हैं, क्रॉस पर हनुमान जी लटक रहे हैं और ईसा राम बने खड़े हैं, वे भी सनातन धर्म परम्पराओं में ईसा को जबरन फिट कर रहे हैं।

हमारी तुष्टिकरण भी हमारे धर्म की हानि के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। योग से ॐ निकाल बाहर किया, अल्लाह को घुसेड़ दिया गया, योग के मूल स्वरुप को ही नष्ट कर दिया गया, सूर्य नमस्कार को भी हटा दिया गया, बिना ॐ और सूर्य के योग निष्प्राण है। होना तो यह चाहिए था कि जिसे नहीं करना वो ना करे, लेकिन योग तो अपने मूल स्वरुप में ही होना चाहिए था वरना मत बनाइये योग को वर्ल्ड ब्रांड। अभी ॐ और सूर्य हटाकर अल्लाह को घुसाया है आने वाले समय में आपको कहीं योग में अजान सुनाई पड़ने लग जाए तो आश्चर्य मत कीजियेगा।

अभी हालिया दो उदाहरण लें इनके बिना बात पूरी नहीं हो सकती... पहला, पाकिस्तान के कोई योगी हैदर साहब हैं, कह रहे हैं कि योग तो हमारे पाकिस्तान की देन है क्योंकि ऋषि पतंजलि हमारे मुल्तान में पैदा हुए थे... भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी तो पाकिस्तानियों के हो ही चुके अब हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों का नम्बर है.... दूसरा देखिये योग प्राचीन सनातन परम्परा की देन है और जब यह लगा की यह विश्व पटल पर छा रहा है तो किसी ने ताज़ी ताज़ी एक किताब लिख दी "इस्लाम और योग"....... जिसमें लेखक लिखता है की योग तो इस्लाम की देन है....... अल्लाह की इबादात का जो तरीका जो है उसमे योग ही तो है, जो पैगम्बर अब्राहिम के समय से चला आ रहा है...... यानी कि अब योग को हड़पने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं।

सनातन धर्म संस्कृति को हाईजेक किया जा रहा है, वैदिक परम्पराओं पर धीरे-धीरे कब्जा किया जा रहा है। हिंदुत्व की जड़ों को काटने गलाने का काम हो रहा, झूठ, दुष्प्रचार और तमाम हथकंडे अपना कर सांस्कृतिक अतिक्रमण जोर शोर से जारी है और हमारे सनातनी धर्म रक्षक (प्रचारक नहीं क्यूंकि हम प्रचारक कभी बने ही नहीं) जिन्हें इनका मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए वे मंदिर और मठाधिपति की गद्दी हासिल करने के लिए लड़ रहे हैं या दूर हिमालय की तन्हाइयों में मस्त हैं। और जो ये कहते हैं कि कुछ नहीं होगा उन्हें पता नहीं होगा कि हिटलर का प्रचार मंत्री गोबेल्स एक बात कहता था कि झूठ को लगातार सौ बार आत्मविश्वास के साथ बोला जाता रहे तो एक सौ एकवीं बार लोग उस झूठ को सच मान लेते हैं।

यह एक गेम है गेम....... माइंड सेट-अप गेम जिसके रिजल्ट आज कल में नहीं सौ-दो सौ साल बाद देखने को मिलते हैं,  जागो मूर्ख हिंदुओ जागो....इस बार हमारी शाखें नहीं जड़ें खतरें में हैं।

Courtesy:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10155349345839680&id=671199679

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