Wednesday, 29 March 2017

मूर्ति पूजा और अवतारवाद के विरोध में गलत इतिहास का प्रचार

मूर्ति पूजा और अवतारवाद के विरोध में इतिहास गलत पढाया जाता है! श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित अवतारवाद को लेकर आरोप लगाते हैं कि हिन्दुओं की हार का कारण मूर्तिपूजा और अवतारवाद था ! विदेशी लुटेरा महमूद गजनवी ने सोमनाथ मन्दिर लूटा तो राजा भीम देव प्रथम (१०२२-१०६४ ई) ने युद्ध किया था इस बात का इंतज़ार नहीं कर रहे थे शिव धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेंगे और म्लेच्छ को मार देंगे । जब महमूद ने मन्दिर लूटा तव ३२००० भक्त शिव के आगे रक्षा के लिए प्रार्थना कर रहे थे और किसी ने भी महमूद का प्रतिकार नहीं किया जिसका परिणाम स्वरूप महमूद ने मूर्ति तोड़ कर मन्दिर लूटा और ३२००० का कत्ल कर दिया । अब तत्कालीन परिस्थितियों पर भी विचार करना चाहिये । भारतीय सदैव ही धर्म युद्ध करते थे , वे विद्यालयों , खेतों,कुआँ ,तालाब आदि , मन्दिरों-यज्ञस्थलों  और सार्वजनिक स्थलों पर आक्रमण नहीं करते थे । सूर्यास्त के बाद , निहत्थे शत्रु पर, पीठ पीछे से और शरण में आये हुए पर बार नहीं करते थे। युगों-युगों से चली आयी यह परम्परा महमूद के समय तक बनी रही क्योंकि उससे पहले तब हुए अरब के 16 आक्रमणों में 15 अरबों को भारतमें प्रवेश ही नहीं हुआ था (712 ई के मीर कासिम के हमले को छोड़कर) तब कोई भारतीय इस अधर्म युद्धकी  कल्पना भी नहीं कर सकता था । भारतीय संस्कृतिके अनुसार यज्ञस्थल और मन्दिर पवित्रस्थान हैं , यहाँ रक्तपात नहीं होना चाहिये क्योंकि इससे यज्ञ-पूजा पाठ भङ्ग हो जाते हैं । ब्रह्मर्षि विश्वामित्र भी यज्ञ रक्षा कर सकते थे , राक्षसों (ताड़का , सुबाहु-मारिचादि )को मार सकते थे , किन्तु इससे यज्ञस्थलकी पवित्रता नष्ट हो जाती और यज्ञभङ्ग हो जाता , राक्षस भी रक्त-हाड-माँस डालकर यज्ञ भङ्ग करते थे । इसीलिए  ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने भगवान् श्रीराम-लक्ष्मणको यज्ञकी रक्षाका भार सौंपा था । यह परम्परा सोमनाथ मन्दिर लूटे जाने तक बनी रही , मन्दिर में कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं रखते थे यही भारतीय परम्परा थी । अब ऐसे में महमूद गज़नवी ने मन्दिर पर आक्रमण किया तो मन्दिरके अन्दर पुजारियों-ब्राह्मणोंने बिना अस्त्र-शस्त्रके ही प्रतिकार किया और मन्दिर की पवित्रता बनाये रखने के लिये स्वयंका बलिदान दिया ।

इस प्रकार एक झूठा इतिहास लिख दिया गया जबकि सत्य कुछ और ही है
प्रथम तो भगवान् ने कहीं भी कायरता की बात नहीं कही

श्रीभगवान् उवाच
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग जित्वा वा मोक्ष्य से महीम
तस्मादु त्तिष्ठ कोन्तेय युद्धाय कृत निश्चियः!

अर्थात् --हे अर्जुन यदि तू युद्ध में मारा गया तो तुझे स्वर्ग मिलेगा और यदि तू जीत गया तो पृथ्वी का भोग भोगेगा इस लिये उठ और युद्ध कर
भगवान् ने कर्म करने को ही प्रधानता दी है कायरता की नहीं जहां तक सोमनाथ मन्दिर का प्रश्न है तो चालुक्य नरेश भीमदेव १ ने युद्ध किया था जिसमें महमूद बुरी तरह घायल हुआ था और प्रॉण बचा कर भागा था! भीमदेव का साथ: जाटों ने दिया था जिसके परिणाम स्वरूप महमूद का अन्तिम आक्रमण १०२७ में जाटों के विरूद्ध प्रतिशोध लेने के लिये हुआ था!
मूर्ति पूजा सदैव विजय और शौर्य के रूप में होती थी इसके लिए मैं ज्यादा पीछे नहीं जाऊंगा! २००० वर्षों का ही इतिहास देखते हैं!
पहली शताब्दी के उत्तरार्ध में कुषाणों का साम्राज्य वंग से अफग़ानिस्तान चीन से लेकर गुजरात विदिशा तक विस्तृत हो चुका था इन कुषाणों का अंत १७५-१८० में करके वीरसेन ने दशअश्वमेध यज्ञ किये और भूमरा शिव मन्दिर का निर्माण कराया! ध्यान देने की बात है उसी शिवलिंग को अपने कंधे पर धारण कर के युद्ध किया जिसके कारण यह वंश भारशिव कहलाया!: वाकाटक सम्राट प्रवरसेन प्रथम ने भी शकों पर विजय के बाद ३०२ ई मे भैरव स्वरूप का मन्दिर का निर्माण कराया था!
गुप्त वंशीय सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने शक , यवन विजय के बाद ३८० ई में मथुरा में २ शिव मन्दिरों का निर्मान कराया थी! सन् ७३८ में अरबों पर विजय के बाद सम्राट नागभट ने सोमनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया तो वप्पा रावल ने एकलिंगनाथ. मन्दिर का निर्माण कराया था! मूलराज प्रथम ने भी विजय के रूद्रमाल शिव मन्दिर का निर्माण कराया था! चोल राजा राजराज प्रथम ने भी लंका विजय के बाद तंजौर शिव मन्दिर का निर्माण कराया था !ये सभी घटना १०२५ में सोमनाथ मन्दिर लुटने से पूर्व की है उस समय तक वीरता का परिचय दिया था ये इस बात का प्रमाण है कि हिन्दू न पहले कायर थे न बाद में , सोमनाथ मन्दिर लूटे जाने से पूर्व (1025 ई से पूर्व) और सोमनाथ मन्दिर लूटे जाने के बाद ऐसी घटना क्यों नहीं हुईं ? क्या मूर्तिपूजा और अवतारवाद केवल सोमनाथ मन्दिरके समय ही थी ? 712 ई में सिन्ध पर हुए मीर कासिम के आक्रमण से पूर्व 12 बार अरबों को पराजित करने वाले भारतीय क्या अवतार लेने की ही प्रतीक्षा कर रहे थे ? 738 में अरबों को पराजित करके एकलिंगनाथ मन्दिर की स्थापना करने वाले वप्पा रावल क्या शिवजीसे अवतार लेने की ही प्रार्थना कर रहे थे ? अथवा 755 ई में अरबोंको पराजित करके सोमनाथ मन्दिरका जीर्णोद्धार करने  वाले नागभट्ट प्रथम शिवजी से अवतार लेने की प्रार्थना कर रहे थे ???

जय सोमनाथ 🙏🙏🙏

साभार:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1810228339299007&id=100009355754237

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