Sunday, 26 March 2017

मेरठ की काली नदी, मानव कृत विषाक्तता का पर्याय

''काली नदी''

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मांस निर्यात की राजधानी बन चुके मेरठ के कत्लगाहों से पशुओं का खून निरन्तर यहां की काली नदी में गिर रहा है।गंगा की सहायक नदी के रूप में जानी जाने वाली लगभग 300 किलोमीटर लम्बी काली नदी (पूर्व) मुजफ्फरनगर जनपद की जानसठ तहसील के अंतवाड़ा गांव से प्रारम्भ होकर मेरठ, गाजियाबाद, बुलन्दशहर, अलीगढ़, एटा व फर्रूखाबाद के बीच से होते हुए अन्त में कन्नौज में जाकर गंगा में मिल जाती है।

कभी शुद्ध व निर्मल जल लेकर बहने वाली यह नदी आज उद्योगों (शुगर मिलों, पेपर मिल, रासायनिक उद्योग), घरेलू बहिस्राव, मृत पशुओं का नदी में बहिस्राव, शहरों, कस्बों, बूचड़-खानों व कृषि का गैर-शोधित कचरा ढोने का साधन मात्र बनकर रह गई है।पशुओं का खून व अवशेष सीधे काली नदी में डाले जा रहे हैं।

मेरठ जिले के लगभग डेढ़ दर्जन मीट व पैकेजिंग प्लांट हैं। अवैध प्लांट तो अनगिनत हैं। ये सभी सरकारी तंत्र के संरक्षण में गोहत्या अथवा गैरकानूनी पशुवध द्वारा प्राप्त मांस के व्यापार में लगे हैं। पशु वधगृहों में कहीं भी ईटीपी (रक्त आदि बहिस्राव को प्रदूषणरहित करने का संयंत्र) नहीं लगा है। सर्वत्र क्षमता से ज्यादा पशु कटते हैं। गोवध प्रतिबंधित है, पर वह भी बड़ी संख्या में होता है। मेरठ नगर निगम का कत्लगाह शहर से स्थानांतरित कर घोसीपुर में लगाया गया है जिसकी क्षमता 350 पशु प्रतिदिन है, पर कटान 5 हजार से ज्यादा का है। तमाम सीसीटीवी कैमरे खराब रखे गये हैं, ताकि कोई प्रमाण ही न मिले।

यदि अवैध कटान के लिए ले जाए जा रहे गोवंश से भरे ट्रकों को गोभक्तों की कोई टोली रोकती तो उनके खिलाफ साम्प्रदायिकता फैलाने, दंगा करने, लूट, मारपीट आदि धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाता। यह एक बड़ा परिवर्तन हुआ है ''तुष्टिकरण के सरताज'' अखिलेश की सरकार के काल में ।
साभार - Kunwar Amit Singh जी


बूचड़खाने का अपशिष्ट गिराने से नहीं सुधर रहे मेरठ से होकर बहने वाली काली नदी के हालात काली नदी की चपेट में आए दर्जनों गांवों में आज भी मौत का साया मंडरा रहा है। नदी में बढ़ते प्रदूषण के कारण इसके आसपास का भूजल भी प्रदूषित हो रहा है। हालात ये हो गए हैं कि मेरठ जिले के देदवा, पनवाड़ी, इकलौता, भराला, समौली, जलालपुर, उलखपुर, खेड़ी और सैनी समेत दर्जनों गांव का भूजल प्रदूषित हो गया है। ऐसे में यहां के ग्रामीण कैंसर, पीलिया, फंगस, चर्म रोग और अस्थमा जैसी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।

हाईकोर्ट में भी पहुंच चुका है मामला स्थानीय लोग काली नदी से निजात पाने के लिए कई सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं। यह मामला शासन से लेकर हाईकोर्ट तक भी पहुंच चुका है। कई बार विधानसभा में भी काली नदी का मुद्दा उठ चुका है, लेकिन हालत अभी तक सुधरे नहीं हैं। सामाजिक संस्था जनहित फाउंडेशन की निदेशक अनीता राणा का कहना है कि प्रशासन को इस मामले में सख्त कदम उठाना होगा। जब तक इस नदी में गिर रहे प्रदूषित पानी को रोका नहीं जाएगा, तब तक यह नदी स्वच्छ नहीं होगी।   अब तक हो चुकी है दर्जनों मौत देदवा निवासी राजकुमार का कहना है कि पिछले कुछ सालों में गांव में कैंसर, टीबी, पीलिया जैसी बीमारी से चार दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। पनवाड़ी गांव में भी काली नदी के प्रदूषण से करीब 30 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, मोहम्मदपुर गांव में करीब एक दर्जन मौत का जिम्मेदार नदी के प्रदूषण से होने का दावा किया जा रहा है। काली नदी संघर्ष समिति के अध्यक्ष गुलचंद का कहना है कि जब तक काली नदी में साफ पानी नहीं छोड़ा जाएगा, उसका प्रदूषण कम नहीं होगा। वहीं, प्रशासन ने इसे लेकर जो वादा किया था वह भी पूरा नहीं हुआ।

बूचड़-खाना का कचरा सीधे नाले में बहाये जाने से पशुओं के अवशेष नदी में चले जाते हैं। इन अवशेषों को कुत्ते गांवों में खींच कर ले आते हैं जिससे कि गांव में संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है। मेरठ का विकास जवाहरलाल नेहरू अर्बन रिन्यूवल मिशन कार्यक्रम के तहत किया जाना है जिसमें व्यवस्था है कि पानी का शोधन संयंत्र लगाया जाए जिससे शोधित होकर ही शहर का तमाम कचरा नदी में जाए। लेकिन यह योजना कब और कैसे लागू होगी इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्त में है।  काली नदी (पूर्व) के काले सफर के लिए कहीं न कहीं हम कसूरवार हैं क्योंकि आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमने अपने मूल्यों व कर्तव्यों की बलि दे दी है। मनु संहिता के अनुसार अगर कोई मनुष्य नदी के पानी को किसी भी प्रकार से गंदा करता है तो उसे कडी सजा दी जानी चाहिए। आखिर कहां गईं हमारी आस्थाएं जो कि नदियों के प्रति हुआ करती थीं? आखिर किस ओर जा रहा है हमारा समाज और हम ? यह गंभीर चिन्तन का विषय है। 

मानव के साथ-साथ इसके प्रदूषण से पशु भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। वर्ष 1999-2001 केंद्रीय भू-जल बोर्ड की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, नदी की कुल लम्बाई में से एकत्र किए गए सैंकड़ों जलीय नमूनों (नदी जल व हैण्डपम्प) के परीक्षण से बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य निकलकर सामने आए थे। इन नमूनों में सीसा, क्रोमियम, लोहा, कॉपर व जिंक आदि तत्व पाए गए थे। रिपोर्ट के अनुसार मुजफ्फरनगर जनपद के चिढोड़ा, याहियापुर व जामड, मेरठ जनपद के धन्जु, देदवा, उलासपुर, बिचौला, मैंथना, रसूलपुर, गेसूपुर, कुढ़ला, मुरादपुर बढ़ौला, कौल, जयभीमनगर व यादनगर, गाजियाबाद में अजराड़ा व हापुड़, बुलन्दशहर जनपद के अकबरपुर, साधारनपुर व उत्सरा, अजीतपुर, लौगहरा, मनखेरा, बकनौरा व आंचरूकला, अलीगढ़ के मैनपुर, सिकन्दरपुर व रसूली तथा कन्नौज के राजपुरा, बालीपुरा व नवीनगंज आदि गांव नदी के प्रदूषण से बुरी तरह से ग्रस्त हैं। इन गांवों का जीवन शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता के चलते मुश्किलों भरा हो चुका है। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ व गाजियाबाद क्षेत्र के आस-पास 30-35 मीटर नीचे तक की गहराई में भारी तत्व तय सीमा से अत्यधिक मात्रा में पाए गए हैं।   काली नदी प्रदूषित नाला बन चुकी प्रदूषित नाला बन चुकी इस नदी के सुधार के लिए मानवाधिकार आयोग के दबाव में उत्तर प्रदेश सरकार के नियोजन विभाग द्वारा नदी को प्रदूषण मुक्त करने हेतु 88 करोड़ रुपयों की योजना बनाई गई है। इस कार्य हेतु राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय, भारत सरकार व जापान बैंक ऑफ इंटरनेशनल को-ऑपरेशन से इस कार्य हेतु राशि उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया है। लेकिन बैंक द्वारा पूर्व की योजनाओं को सही ढंग से लागू ने कर पाने की स्थिति में यह राशि उपलब्ध कराने से मना कर दिया गया है।  प्रदूषण नियंत्रण विभाग तो जैसे गहरी नींद में है। उसकी नाक के नीचे किनारे लगे उद्योगों द्वारा नदी में खुलेआम गैर-शोधित कचरा उड़ेला जा रहा है लेकिन उनके खिलाफ किसी भी कार्यवाही का न होना समझ से परे है। हां, संगम मेले के दौरान जब साधु-संतों ने ऐलान किया था कि वे मैली गंगा में स्नान नहीं करेंगे तो दबाव स्वरूप विभाग द्वारा कुछ उद्योगों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, इसमें मेरठ के भी तीन पेपर मिल शामिल थे। लेकिन आज ये सभी उद्योग पुनः धड़ल्ले से अपना कचरा नदी में डाल रहे हैं। मेरठ के छोटे-बड़े दर्जन-भर नाले शहर का गैर-शोधित कचरा इस नदी में उड़ेलते हैं, यहीं नहीं यहां मौजूद बूचड़-खाना का कचरा भी नदी में बहाया जाता है।

 - साभार Samant Tanwar Bannaजी

Source:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10212117348306072&id=1146345539

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