Wednesday 29 March 2017

क्या हैं कोरेगांव युद्ध की कहानी

कोरेगांव की लड़ाई गद्दारों की गाथा हैं मैं हतप्रभ रह गयी जिनलोगो ने हमारे भारत माता के साथ गद्दारी किया उनके नाम पर शौर्य स्तंभ बनवाया गया आइये जानते हैं क्या हैं कोरेगांव युद्ध की कहानी । 
भिमा कोरेगांव की लड़ाई १ जनवरी १८१८ इसवी (1 January 1818 ) में पुणा (पुणे) स्थित कोरेगाव गांव में भिमा नदी के पास उत्तरी पू्र्वी में हुई थी । यह लड़ाई ब्रिटिश कंपनी और मराठा सैनिकों के बिच लड़ी गई थी, 450 महारों ने ब्रिटिश कंपनी के पक्ष में लड़े थे और पेशवा भारत माता की रक्षा के लिए लड़े थे । अंग्रेजों की तरफ ५०० लड़ाके थे , जिनमें ४५० महार सैनिक थे और पेशवा बाजीराव द्वितीय के २८,००० मराठा सैनिक थे, पेशवा की शक्तिशाली २८ हजार मराठा फौज हार गया इतिहास में यह तो लिखा हैं परन्तु हार की वजह छुपा दिया गया ब्रिटिश कंपनी के साथ 24 आधुनिक तोप थी वोह भी ऐसी वैसी नही जिसे आज हम आर्टिलरी कहते हैं वोह तोपे थी अंग्रेज़ सेना के पास और 6 से अधिक मसकट राकेट था और मराठा सेना के पास ना रॉकेट (rocket) था ना तोप केवल २०,००० (20,000) घुड़सवार सैन्यदल था एवं ८,००० (8,000) पैदल सैन्यदल आधुनिक हथियार की कमी बनी पेशवा की हार की वजह । ब्रिटिश कंपनी के ज़नरल General Theophilus Pritzler ने युद्ध के बाद महार सैनिकों को ब्रिटिश कंपनी का होकर लड़ने के लिए एवं मराठा को परास्त कर भारत को गुलाम बनाने में अंग्रेजो की साहयता किया इसलिए उन 450 सैनिको को सम्मानित किया गया और उनके सम्मान में भीमा कोरेगांव में स्मारक भी बनवाया जिनपर महारों के नाम लिखे गए । ब्रिटिश रेजिडेंट की अधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार इसे नायकत्व वाला कर्त्य कहा गया और महार सैनिकों के द्वारा भारत माता के साथ की गयी गद्दारी की तारीफ की गई ।

जनवरी का पूरा महिना आंबेडकरवादी , बोद्ध सभी इस दिन का उत्सव मानते हैं की मुट्ठीभर महार ने भारत माता के लिए लड़ रहे पेशवा को परास्त किया था पर यह कहा तक उचित हैं ???? वामपंथी इतिहासकारों ने कहा हैं “ महारों दलित के साथ पेशवा अत्याचार करता था अस्पृश्यता चरमसिमा पर पहुच गया था इसलिए इन लोगो ने ब्रिटिश के साथ मिलकर विद्रोह किया” और साथ में यह भी कहा जाता हैं इस युद्ध के बाद पेशवाई ख़तम हो गयी ।

यहाँ मेरा खण्डन हैं 28,000 मराठा दल में ४००० (4000) गोसाईं (वैरागी , सन्यासी) , 1700 मछुआरे , २००० (2000) महार और १५०० (1500) आदिवासी भी थे तो पेशवा ने इनसब के साथ अस्पृश्यता नहीं किया । परन्तु ब्रिटिश सेना के साथ देनेवाले सिर्फ उन 500 महार के साथ ही अन्याय किया ??? एवं रही बात अस्पृश्यता की तो अगर अस्पृश्यता करते तो , जब सुखा (अकाल) पड़ा था जो किसान और पिछड़े वर्ग के साथ , शुद्रो और मजदूर वर्गों को रोजगार दिलाने के लिए पुराना किला तोड़ कर नया किला बनवाया था जिससे सभी को रोज़गार मिले और किसी को भूखा नही मरने दिया इसलिए यह अछूता एवं अत्याचार वाली बात बिलकुल असत्य हैं । यह क्यों नही कहते हैं की गद्दारी करना हमारा अधिकार हैं तभी तो संविधान भी ऐसा लिखा गया हैं गद्दार भारत में रहकर भारत के साथ कितना भी गद्दारी कर ले सजा हमेसा देशभक्तों को मिलेगी ।
दूसरा खण्डन एंग्लो-मराठा तृतीय युद्ध 1818 में लड़ा गया था अगर इस युद्ध के बाद पेशवाई ख़तम हो गयी थी ???? तो १८५७ (1857) की स्वतंत्रता संग्राम में पेशवा नेतृत्व कैसे किया और कानपूर में भी पेशवा का शासन था ।
    
अस्पृश्यता का बहाना देकर गद्दारी करनेवालों ये बताये संथाली , आदिवासी हर पिछड़े हुए जाती ने युद्ध किया अंग्रेजो से स्वतंत्रता संग्राम में बिरसा-मुंडा का नाम सुने होंगे इन्होने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध घोषणा किये थे ऐसे लाखों आदिवासी होंगे जिन्होंने गद्दारी करने का बहाना ना ढूंडकर भारत माता का कर्ज चुकाया और प्राणों की आहुति दे दिए उन 450 गद्दारों का स्मारक बनानेवाले उत्तर दीजिये क्या कभी बिरसा मुंडा जैसे वीरो के स्मारक बनाने का सोचा हैं याँ उनके मूर्तियों पर हार चढ़ाया हैं बस कोरेगांव की युद्ध की याद में बनाये गये स्मारक इसलिए पूज्य हैं क्योंकि वामपंथी की नज़र में वोह युद्ध ब्राह्मणों के विरुद्ध लड़ा गया था जब की उस युद्ध में केवल ब्राह्मण नही थे हर जाती थी और वोह सब मराठा ब्राह्मण का साथ इसलिए दिए क्योंकि वोह केवल भारतीय थे और उनके लिए जाती से ज्यादा देश की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण था । अंतत येही कहूँगी 450 गद्दारों की स्मारक की जगह उन वीरो का स्मारक बने जिन्होंने देश के लिए प्राण त्यागे हैं ।

साभार: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1809648932690281&id=100009355754237

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