उत्तराखंड की विशिष्ट "जौंया मुरुली"- (आलेख साभार बड़े भाई श्री पंकज सिंह महर , merapahadforum Web Portal)
जौंया कुमाऊनी में जुड़वा को कहा जाता है और जौंया मुरुली का अर्थ भी जुड़वा मुरुली ही है। इसमें एक मुरुली से एक स्वर निरन्तर निकलता है और दूसरी से वह स्वर निकलता है, जिसे वादक बजाना चाहता है।
इस मुरुली को बजाना सामान्य मुरुली से कहीं ज्यादा कठिन है साथ ही इसे बनाना भी कठिन है। रिंगाल के दो तनों को ऎसे स्वच्छ तालाब में डाला जाता है, जिसमें भंवर हो, यह दोनों तने इस भंवर में घूमते रहते हैं और कुछ दिनों बाद आपस में चिपक जाते हैं, फिर जौंया मुरुली का निर्माण किया जाता है। बांई ओर के रिंगाल के डंके को प्रकृति का प्रतीक माना जाता है और इसमें तीन छेद किये जाते हैं, यह छेद सत, रज और तम के प्रतीक माने जाते हैं। दांयी ओर के डंके में पांच छेद किये जाते हैं, और पुराने जानकार मानते हैं कि पांच छेद वाला डंक पंचतत्व से बनी देह का प्रतीक है।
इसमें मुरुली की तरह लोकगीत नहीं बजते इसमे मात्र चार धुनें ही बजाई जा सकती हैं-
१- रंगीली धुन- यह एक रसिक धुन होती है, कहा जाता है कि गंगनाथ जी इसे बजाया करते थे।
२- वैरागी धुन- यह वैरागी धुन है, कहा जाता है कि इस धुन को सुनने के बाद आम आदमी में भी वैराग की भावना आ जाती है।
३- उदासी धुन
४- जंगली धुन- इसे ग्वालों द्वारा बजाया जाता है, इसे भैंसिया धुन भी कहा जाता है। कहते हैं कि इस धुन से जानवर सम्मोहित हो जाते हैं और ग्वाला अपनी धुनों से ही उन्हें निर्देश देता था।
अब इन धुनों और इस वाद्य को बजाने वाले काफी कम लोग रह गये हैं, वैसे भी बुजुर्गों द्वारा इसे बजाये जाने से मना किया जाता है, कहा जाता है कि इस मुरुली की धुन परियो को अच्छी लगती है, जिनके प्रभाव में बजाने वाला व्यक्ति भी आ जाता है।
दुर्लभ "जौंया मुरुली/अलगोजा" बजाने वाले उत्तराखंड के एक कलाकार से आपका परिचय करवाते हैं -
श्री लाल सिंह रावल
LAL SINGH RAWAL
Village: Thag
Post office: Kanari Chhinna (Vaya Barechhina)
District: Almora, Uttarakhand, India
Ph: 91-9410564029 (son)
One of the few artistes of this unique and fascinating instrument which is somewhere a fusion of flute and a bagpipe, Lal Singh at the age of eighty plus still enthralls with his Jaunya Muruli /Algoza.
उनकी कुछ धुनें आप इस पोस्ट के पहले कमेंट पर दिए लिंक पर भी सुन सकते हैं। :-)
श्री लाल सिंह रावल जी की जौंया मुरूली की कुछ धुनें आप निम्न लिंक पर भी सुन सकते हैं।
http://www.beatofindia.com/arists/ls.htm
Courtesy:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10212415657283610&id=1146345539
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