#वीर_शिरोमणि_महाराणा_प्रताप_ओर_घांस_की_रोटी
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महाराणा प्रताप ---- जिनकी प्रेरणादायक कहानियां सुन सुन कर आज भी हिन्दू धर्म जीवंत हो उठता है, भुजाएं फड़कने लगती है । जिनके पदचिन्हों पर शिवाजी भी चले थे, विदेशी सेनाओं के प्रेरणास्त्रोत पात्र बनने वाले राणा प्रताप का प्रताप एक दिन जवाब दे देता है, जब वो बड़ी जंगल मे कुछ और खाने को उपलब्ध ना होने के कारण एक घांस की रोटी अपने नन्हे से बालक अमरसिंह के लिए बनाते है, किन्तु दुर्भाग्य से वह रोटी भी जंगली जानवर लेकर भाग जाता है, जब भूख से तड़पता अमरसिंह चिंघाड मार मार कर रोने लगता है, तो राणा का भी मनोबल जवाब दे जाता है ।
" मै यह कैसी लड़ाई लड़ रहा हूँ, की अपने बच्चे को 2 समय की रोटी भी नही दे पा रहा, यह मेरा कौनसा क्षत्रिय धर्म मे निभा रहा हूँ,???
मेने कभी धर्म का त्याग नही किया, मेने जीवन भर युद्ध किये है, ओर क्या यह युद्ध मेरा निजी स्वार्थ है ?? सब कुछ समाज और अपने राष्ट्र के लिए करते करते भी समाज इतना जाग्रत नही है, की मेरे बच्चे भूख मर रहे है, तो ऐसे क्षत्रिय धर्म को निभाकर मुझे करना क्या है ?? अकबर आज में हार गया !! में अपने समाज से ही हार गया, मुगलो की इतनी शक्ति नही की राणा का शीश वो झुका सके, पर यह समाज ??? अकबर में तेरी अधीनता स्वीकार करता हूँ "
ऐसा सोच राणा ने स्वम् से संधिपत्र अकबर के दरबार मे पहुंचा दिया !! अकबर खत देखकर कुछ समय तो स्तब्ध रह गया, की यह क्या चमत्कार हो गया । अपनी खुशियों को अकबर समेत नही ला रहा था, की अब वह ख़ुशी , इतनी बड़ी खुसी व्यक्त करें तो कैसे करें । अकबर सोचता है, क्या आज कहीं हिमालय तो नही पिघल गया, या फिर सूरज तो आज आग की जगह बर्फ नही उगलने लगा, ऐसा तो नही, कहीं आज सचमुच धरती डोल गयी हो, ऐसा क्या हो गया कि महाराणा ने .... जब अकबर को अपनी आंखों पर विश्वाश नही हुआ ......... तो उसने एक हिबदु यौद्धा को दरबार मे हाजिर होने का संदेश भेजा ....
इन मुसलमानो को हिन्दुओ को अपमानित करने में बड़ा आंनद आता था । अकबर के दरबार मे ही एक हिन्दू पराजित योद्धा बंदी के रूप में रहता था, जो बीकानेर से था । वो हर समय राणा प्रताप के गुणगान करते अकबर ओर दरबारियों के बीच घूमता था । अकबर ओर सभी मुसलमानी लुटेरों के आंख का कांटा वह " पीथळ " जब अकबर के सामने लाया गया, तो अकबर ने उसे अपमानित कर कहा ।
" सुन पीथळ ----- आज हमने जंगली शेर को पकड़ पी पिंजरे में डाल दिया है । यह देख खुद राणा के हाथ का यह गुलामी पत्र खुद भी पढ़, ओर हमे भी पढ़ा । क्या तुम्हारी हिन्दुओ की माँ के दूध में इतना ही जोर था, की आज हिन्दुओ की पगड़ी मुसलमान के पांव में है । आज पूरा भारत हम मुसलमानो का है, आज हिन्दू की कोई औकात नही है ।
जब पीथळ ने कागज हाथ मे लिया, तो उसके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक गई, यह तो वास्तव में राणा प्रताप के द्वारा लिखा गया पत्र ही था, पीथळ की आंखों में आंसू भर आये, किन्तु तत्काल खुद को संभालते हुए कहा " यह कागज झूठ है, ओर राणा प्रताप का नही है, अगर इसकी सत्यता की जांच करनी है, तो में राणा को एक पत्र लिखना चाहता हूं, और उनसे पूछना चाहता हूं, क्या यह सत्य है ??
अकबर आत्मविश्वाश से पूर्ण था ही, " एक बार नही, 1000 बार पूछ पीथळ !! अब हिंदुओ का सामर्थ्य मुसलमानो के पांवों की जूती बन चुका है ।
पीथळ खत में लिखता है ---
मेने आज सुना है शेर, किसी सियार के साथ रात व्यतीत करेगा
राणा जे हमने सुना है, की हाथी भी अव कुत्ते की जिंदगी जियेगा, मेने आज सुना है, आपके हाथ मे तलवार होने के बाद भी राजपूत औरते हिन्दू औरते, "रंडी " कहलाई जाएगी । क्या यह सच है कि चातक आज धरती का पानी पियेगा । आज मेरा ह्रदय कांप रहा है, मै यहां अपनी मुछो के ताव आपके भरोशे ही देकर घूमता था । लगता है, कि अब नही दे पाऊंगा, मुझे अपनी मुचे कटवानी होगी । मुझे इस खत पर विश्वाश नही की यह आपने ही लिखा है । इसकी सत्यता के विषय मे आपसे जानता चाहता हूं ।
पीथळ का पत्र जैसे ही राणा के पास पहुंचा, उसे पढ़कर राणा की आंखे लाल हो उठी , आंखों में रक्त उत्तरकर आ गया । धिक्कार है मुजे, कायर हूँ मै ------/ राणा प्रताप की भीषण हुंकार के साथ पूरा जंगल कांप उठा ।
जवाबी खत में राणा लिखते है ---- पीथळ इतनी शक्ति इन इस्लामी बादलो में नही है, की वह सूर्य राणा प्रताप को रोक सके, ओर एक सिंह के साथ सोने कोख इन कायर गीदड़ों के पास नही है। और आपने किस दिन देख लिया, कि एक हांथी कुत्ते की जिंदगी जिया है ? राणा प्रताप को जहां प्यास लगती है, वहां ठोकर मार वह पानी निकाल दे । आप अपनी मुछो को घी लगाकर ताव दिनिये, उसे पहके से ओर अधिक बढाइये, में इन मुसलमानो के खून की नदी बहा दूँगा, में अकबर से तब तक लड़ूंगा, जब तक अपनी मातृभूमि के उद्धार ना कर दूं । राणा प्रताप एक धड़कता हुआ अंगारा है, जो आंधियो में भी नही बुझ सकता । और मेरे देश का इतिहास यह मुगल नही !!
एकलिंगभक्त राणा प्रताप लिखेगा ।। में भुख मरूँ, या मेरी औलाद भूखी रहे, फर्क नही पड़ता, पर मेरी तलवार जब तक मेरे हाथ मे है, हिन्दू नारी को कोई आंख उठाकर नही देख सकता । और मेरी मातृभूमि गुलाम नही राह सकती ।
अकबर के पास जब जवाब आया, जब उसका मुंह ऐसा था जैसे , उसका बाप हिमायूँ दुबारा मर गया, ओर पीथळ फिर राणा प्रताप के गुणगान करते वहां से मुछो पर ताव देते निकल गया ।।
Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=284374675344648&id=100013163531113
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