Friday 28 April 2017

विश्व विजेता शालिवाहन परमार भाग-१

©Copyright इतिहासकार मनिषा सिंह की कलम से मेरे द्वारा लिखे गए किताब विश्व विजयता शालिवाहन परमार का कुछ अंश मैं पोस्ट कर रही हूं ।
एक अनुरोध हैं इस पोस्ट को पढने के बाद कृपया कुतर्क ना दे मैं प्रमाण सहित लिखी हूँ और कुतर्क देना हैं तो राष्ट्रीय इतिहास मंच पर मुझसे बहस कर लीजियेगा बहस के लिए सादर आमंत्रित हैं ।

पश्चिमी इतिहासकारों की मुर्खता रचा गया झूठा इतिहास परमार वंशीय राजपूत सम्राट शालिवाहन को इतिहास में जानबुझकर शक घोषित किया । परमारवंशी राजा विक्रमादित्य ने ८२ ई.पू. -१९ ई (82 B.C - 19 A.D) तक शासन किया एवं उन के परपौत्र शालिवाहन ७८-१३८ ई. (78 - 138 A.D) को शक से जोड़ कर परमार वंश का नाम उड़ा दिया मुर्ख इतिहासकारों ने शक बना तो दिया परन्तु इतिहास में दर्ज किये ऐतिहासिक अभिलेखों को पढना भूल गये शालिवाहन ने शको की हत्या कर अपने परदादा विक्रमादित्य की तरह "शकारि" कहलाये थे और ये बात उन पश्चिमी इतिहासकारों ने भी मानी हैं,जो ये मानते हैं एवं इतिहास में शालिवाहन को शक वंशीय कहा हैं, उन्होंने यह भी कहा हैं शालिवाहन शक अश्शूरों का नाश करके "शकारि" कहलाये थे (शकारी का अर्थ होता हैं शक को हरानेवाला) यह है पश्चिमी इतिहासकार का लिखा हुआ इतिहास जिन्हें खुद ही नही पता आखिर शालिवाहन थे कौन । अब प्रश्न ये हैं अगर शालिवाहन शक होता तो क्या वो अपने ही वंश का नाश कर देता ???? कई पश्चिमी इतिहासकार सताकरनी एवं सातवाहन को सम्मिलित कर खिचड़ी इतिहास बनाते हुए सम्राट शालिवाहन परमार को शातकर्णी राजा बना दिए थे जब की ईसवी सन ७८ (78) मे परपोत्र सम्राट शालिवाहन ने शको को हराया एवं शालिवाहन शक की सुरूवात की। इन्होने अश्वमेध यज्ञ भी किया ओर पर्शीया तक सभी देशोको जीत लिया | पर आंध्र सातवाहन के राजा मगध के शासक थे जिन्होने ईसा.पुर्व ८३३ से ईसा.पुर्व ३२७ तक शासन किया ओर उनकी राजधानी थी गिरीव्रज । ओर इनका हिमालय से तो सेतु तक (रामेश्वरम) बोलबाला था लिखने को कुछ भी लिख दिए पर तथ्यहीन , प्रमाण के बिना और इसी झूठ को वामपंथियों ने प्रमाण बना लिया अज्ञान , मुंड पश्चिमी इतिहासकारों ने ऐसे इतिहास का निर्माण किया जिन्हें सत्य को स्वीकार ने की हिम्मत नही थी । इतिहास का विरूपण कर भारत के महान राजा विक्रमादित्य एवं शालिवाहन को उपेक्षित कर काल्पनिक घोषित कर दिया,युग निर्माताओं के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिये।  ये तो असंभव है की पश्चिमी मुर्खविद्वानों ने सम्राट विक्रमादित्य ओर शालीवाहन के विषय में भविष्य-महा-पुराण मे किये गए उल्लेख से अनजान थे । उन्होने जानबुझकर अग्निवंश के उन चार राजवंशो को नजर अंदाज किया जिन्होने ईसा.पुर्व (101 B.C) १०१ ईसा.पुर्व से (1193 A.D) ११९३ ईस्वी तक पुरे १३०० वर्ष शासन किया यानी सम्राट विक्रमादित्य से सम्राट पृथ्वीराज चौहान तक, परमार(पंवार) राजवंश की सुची से सिर्फ भोजराज को इतिहास मे लिया गया ओर इस युग (संवत का आरंभ करनेवाले) कि सुरुवात करने वाले सम्राट विक्रमादित्य ओर सम्राट शालिवाहन को मध्यवर्ती अवधी मे इतिहास के पन्नो हटा दिया गया। यहा तक की सम्राट विक्रमादित्य से पहले वी अग्निवंश के चार राजवंशो ने कलि २७१० (2710) (ईसा.पुर्व ३९२) (392 B.C) से कलि ३००१ (3001) (ईसा.पुर्व १०१) (101 B.C) तक यानी २९१ (291Years) वर्ष शासन किया । ये जानबुझकर कीया गया घपला जरूरी था, सिकंदर को चद्रंगुप्त मौर्य के समाकालीन बनाने के लिए । चंद्रगुप्त मौर्य ओर सिकंदर की समकालिनता अनुरूप हो सके इसलिए प्राचीन भारतीय इतिहास का कालक्रम महाभारत युद्ध (ईसा.पुर्व ३१३८) (3138 B.C) से तो गुप्त (चंद्रवशी क्षत्रिय) राजवंश (ईसा.पुर्व ३२७) (327 B.C) कि सुरूवात तक का समय १२०७ साल (1207 Year) से संकुचित कर दिया गया,यानी १३०० (1300) साल मे सिर्फ ९७ (97) साल हमे पढाया जाता है वो भी झुठा । चार अग्निवंश के राजवंशो को इतिहास के पन्नो से गायब कर दिया गया। शामिल कर लिया यह आश्चर्य की बात है कि उन्होंने 'चार राजवंशों के राजाओं की सूची भी नहीं दिया हैं यहां तक कि विक्रमादित्य एवं शालिवाहन दोनों का उल्लेख भी नहीं किया है इसके अलावा इन पश्चिमी मुर्खविद्वानों ने अपने इतिहास में विक्रमादित्य और शालिवाहन को पौराणिक गप्प का दर्जा दिया गया हैं , यह एक दया है कि काले अंग्रेजों ने अपने नमक का कर्ज अदा करते हुए अपने गोरे अंग्रेज़ स्वामी के प्रति वफादारी दिखाई एवं स्वर्णिम इतिहास को कभी सामने नहीं आने दिया। अब वक़्त आगया हैं की इतिहास का पुनर्लेखन किया जाए पुराणों में लिखा गया सच सबके समक्ष प्रस्तुत कर झूठ की पट्टी बांधे लोगो के आँखों से पट्टी उतारकर सत्य की उजालेमयी किरणों को उनतक पहुंचने दिया जाये ।

सम्राट शालिवाहन परमार कौन थे ?
परमार सम्राट विक्रमादित्य के ५९ वर्ष बाद सम्राट शालिवाहन परमार का राज्याभिषेक ७८ (इ.) (78 A.D) हुआ था एवं वे सम्राट विक्रमादित्य परमार के परपौत्र थे । अम्बावती (वर्त्तमान उज्जैन) के राजा सम्राट शालिवाहन परमार ने ७८ ईस्वी (78 A.D) में राजगद्दी पर आसीन हुए युग प्रतिष्ठापक शालिवाहन : राजधानी-धार सेलरा मोलेरा पहाडीयों पर एवं भारतवर्ष के सम्पूर्ण भूमंडल पर अपना आधिपत्य स्थापित किया हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक अपने परदादा सम्राट विक्रमादित्य जैसे शूरवीर द्वितीय विश्व विजयेता शालिवाहन परमार बने।
(The Panwar dynasty in which Vikramaditya and Salivahana were born in the most important of the four Agnivamsis. Vikramaditya and Salivahana conquered the whole bharat from Himalayas to Cape Comorin, became emperors and established their eras. Salivahana performed the Ashwamedha sacrifice. Prof. Dr.Radha Krishnan)

सम्राट शालिवाहन परमार ने राजगद्दी पर आसीन होते ही कलि वर्ष ३१७९ (3179 of the Kali era ) अर्थात ७८ ईस्वी (78A.D) विशाल सेना के साथ अश्शूरों पर आक्रमण कर आर्यावर्त के टुकड़े कर बनाये गये अवैदिक, मलेच्छास्थान को ध्वस्त कर आर्यावर्त को मलेच्छ मुक्त करके शुद्ध करने के लिए शक, चीन, तार्तर ( तार्तर अश्शूरों का वृहत्तम भूभाग राज्य था जहा शक अश्शूरों का कब्ज़ा था इस भूभाग का टुकड़े होकर वर्त्तमान में कई देश बने रूस, उज़्बेकिस्तान, युक्रेन, क़ज़ाख़स्तान यूरेशिया , तुर्क, तुर्कमेनिस्तान ,किर्ग़िज़स्तान, बुल्गारिया, रोमानिया, इत्यादि अन्य १८ (18) देश मिलाकर तार्तर राज्य बना था), रोम, खोरासन, बाह्लीक इन सब देश एवं राज्य पर आक्रमण कर दिया ९२ (92) करोड़ से अधिक शक एवं अश्शूरों का संहार किया एवं अश्शूरों शको को ना केवल दण्डित कर सम्पूर्ण आर्यावर्त से खदेड़ा अश्शूरों द्वारा लुटे गये प्रजा धन भी वापस लाये एवं खण्डित किये गये आर्यावर्त को फिर से अखंड किया राज्य की सीमाओं पर करोड़ो सैन्यबल से घेड़ा गया जिससे मलेच्छ आर्यावर्त की सीमा लांघ कर आक्रमण ना कर पायें । (Reference-: Bhavishya Mahapurana 3-3-2-17,21 verses.)
दिग्विजय के पश्चात सम्राट शालिवाहन परमार ने भी सम्पूर्ण प्रजा का ऋण मुक्त कर के उन्होंने कलियुग में सतयुग की स्थापना की विक्रम संवत के बाद शालिवंहन संवत का आरंभ होगा ।

परमार राजवंश की सूचि देखते हैं परमार राजाओ के शासनकाल सहित ।
Name Of The Kings Regnals B.C.E Years

1) परमार 392-386 ईस्वी पूर्व

2) महामारा 386-383 ईस्वी पूर्व

3). देवापी 383-380 ईस्वी पूर्व

4). देवदत्ता 380-377 ईस्वी पूर्व

5). DEFEATED BY SAKAS. LEFT UJJAIN AND HAD GONE TO SRISAILAM. INEFFICIENT AND NAMELESS KINGS. THEIR NAMES ARE NOT MENTIONED IN THE PURANAS 195 377-182 ईस्वी पूर्व

6). गंधर्वसेन (1ST TIME) ने शको को पराजित कर अम्बावती (उज्जैन) को मुक्त करवाया एवं ५० वर्ष तक शासन किया; 182-132 ईस्वी पूर्व

7). सम्राट गंधर्वसेन अपने ज्येष्ठ पुत्र शंखराज को राजपाठ सौंप कर सन्यास लेकर तप करने चले गये थे शंखराज ने ३० (30) वर्ष तक शासन किया १३२-१०२ (132-102 B.C) ईस्वी पूर्व तक शंखराज की अकाल मृत्यु होने के पश्चात महाराज गंधर्वसेन को राज्य की सुरक्षा के लिए तप छोड़कर फिरसे राजपाठ संभालना पड़ा १०२-८२ (102-82 B.C) ईस्वी पूर्व तक शासन किये गंधर्वसेन परमार ने अपने पुत्र विक्रमादित्य को ८२ (82 B.C) ईस्वीपूर्व में राजपाठ सौंपकर सन्यास ले लिए एवं तपस्या करने चले गये ।

8). सम्राट विक्रमादित्य ने १०० (100) वर्ष तक शासन किये थे सम्पूर्ण विश्व पर; ८२ (82) ईस्वी पूर्व से लेकर १९ (19) ईस्वी तक

9). देवभक्त १९-२९ ईस्वी मात्र १० वर्ष तक शासन किये थे

10) NAMELESS KING OR KINGS (NAME NOTGIVEN IN THE PURANAS) 49 29-78

11). सालिवाहन 60 वर्ष तक शासन किये थे ७८-१३८ (78-138 B.C) ईस्वी तक ।

12-20). सलीहोत्र, सालिवर्धन, सुहोत्र, हावीहोत्र, इन्द्रपाल, मलायावन, सम्भुदत्ता, भौमाराज,वत्सराज इन सभी राजाओ ने कुल मिलाकर ५० (50) वर्ष १३८-६३८ ईस्वी (138-638 A.D) तक शासन किये थे ।

21). भोजराज ५६ (56) वर्ष तक शासन किये थे ६३८-६९३-९४ (638-693-94) ईस्वी ।

22-28). सम्भुदत्ता, बिन्दुपल, राजापाल माहिनारा, सोमवर्मा, कामवर्मा, भूमिपाल अथवा (वीरसिंह) ३००(300) वर्ष तक शासन किये थे ६९३-९९३-९४ (693-993-94) तक ।

29-30).रंगापाल,कल्पसिंह २०० (200) वर्ष तक शासन किये थे ९९३-११९३-९४ (993-1193-94) ईस्वी तक ।

31) गंगासिंह (King Ganga Simha reigned from 1113 to 1193 A.D. In the battle of Kurukshetra, the 90 year-aged Ganga Simha died on the field along with Prithviraja etc. (see Agni Kings Bhavishya Puranam) परमार राजवंश का अंतिम राजा थे गंगा सिंह परमार थे

शालिवाहन परमार द्वारा किये गए युद्ध अभियानों की के विषय में अगले भाग में बताऊंगी ।

जय क्षात्र धर्म 🚩🚩
जय एकलिंग जी 🙏🙏🚩🚩

साभार:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1829229587398882&id=100009355754237

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.

विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर

-- #विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर -- -------------------------------------------------------------------- इतिहास में भारतीय इस्पा...