Tuesday 25 April 2017

हिन्दू वीर_कान्हा_रावत

#हिन्दूवीर_कान्हा_रावत

धर्म बलिदानी कान्हा रावत का जन्म वैदिक धरती  #हरियाणा के #पलवल जिले के #बहीन गाँव में
1640 में हुआ।
कट्टर हिन्दू #जाट परिवार में पैदा होने के कारण कान्हा ने जन्म से ही मुग़लों के अत्याचारों के खिलाफ प्रतिशोध की भावना थी।
यही कारण था कि कान्हा को छोटी अवस्था से ही लाठी, भाला, तलवार, ढाल चलाने की शिक्षा दी गई।
➡युवा अवस्था में ही उनका विवाह अलवर की कर्पूरी देवी के साथ कर दिया गया।
पर दो पुत्रों को जन्म देने के बाद उनकी पत्नी का देहांत हो गया।

➡औरंगजेब ने उस समय हिन्दुओ पर #जजिया कर लगा रखा था।हिन्दू मंदिरो और मठो को #तोड़े जाने का फरमान जारी हो चूका था।

➡औरंगजेब ने हिन्दुओ को दबाने के लिए कट्टर #मुसलमान #अब्दुन्नवी को #मथुरा का फौजदार नियुक्त कर दिया।
मुगल सेना हिन्दुओ पर चील गिद्ध की तरह मंडरा रही थी।वीर #गौकुला ने इस धर्म विरोधी नीति का विरोध शुरू कर दिया।

➡हिंदुवीर कान्हा के पिता चौधरी बलबीर सिंह ने गौकुला को कहा कि हम आपके साथ है अपने #वैदिक धर्म के लिए प्राण भी न्यौछावर है और इस #अधर्मी राजा के सामने कभी नही #झुकेंगे।

➡कई बार हिन्दू क्रांतिकारियों की बैठक कान्हा जी के घर होती थी। एक दिन पंचायत की खबर औरंगजेब तक पहुंची तो उसने सेनापति शेरखान को भेजा।

➡रात की इस धर्म पंचायत में शेरखान आ धमका और सभी को धमकी भरे स्वर में कहा कि हम बादशाह औरंगजेब का फरमान लेकर आए है. यहां के लोग सीधे-सीधे ढंग से इस्लाम धर्म स्वीकार करते हैं, तो तुम्हारे मुखिया को नवाब की उपाधि से सम्मानित करेंगे. खास चेतावनी यह है कि यदि तुम लोगों ने गोकला जाट का साथ दिया तो अंजाम बुरा होगा।

कान्हा ने भाला उठाकर शेरखान पर हमला कर दिया।और कान्हा के कुछ साथी उसके सैनिकों पर टूट पड़े।
अब्दुन्नवी वहां से भाग गया।

➡फिर एक दिन कान्हा ने 5 गाँवो की #महापंचायत की और फैसला किया-➡
👉हम अपना वैदिक #हिन्दू धर्म नहीं बदलेंगे।🚩
👉#मुसलमानों के साथ #खाना नहीं खायेंगे।🚫
👉#कृषि कर अदा नहीं करेंगे।🚫

रावत के इस निर्णय की खबर औरंगजेब को मिली तो वो आग #बबूला हो गया।
➡इसी बीच कान्हा का दूसरा विवाह गुड़गांव के #घरोंट में #तारावती से तय हो गया।जब कान्हा विवाह करके वापिस अपने गांव आया तो इसी का फायदा उठाकर उनके समेत पूरे गांव को औरंगजेब और उसका सेनापति अब्दुल नवी ने विशाल 10000 मुगल सेना के साथ घेर लिया।

➡गांव के लोगो और मुगलो के बीच भीषण #युद्ध हुआ।कान्हा और अन्य हिन्दू वीरो ने मुसलो के छक्के छुड़ा दिए।
पर तभी एक और मुगल सेना की टुकड़ी वहां पहुंच गई जिससे मुगल मजबूत हो गए और गांव वाले भी लाठी फरसे भालो से शाही हथियारों का मुकाबला कब तक करते।
➡अंत में उस युद्ध में 2000 जाट शहीद हुए और 7000 मूसल मरे।

➡सात फुट लंबे तगड़े कान्हा रावत को मुगलो ने बड़ी मुश्किल से #बंदी बनाया और उसके पैरों में बेड़ी, हाथों में हथकड़ी और गले में #चक्की के पाट डालकर अत्याचारी उन्हें दिल्ली लेके गए।

➡वहां उनको अजमेरी गेट की जेल में बंद कर दिया गया। उसी जेल के आगे #गढा खोदा गया। कान्हा को #प्रतिदिन उस गढे में गाडा जाता था तथा अमानवीय यातनाएं दी जाती थी लेकिन वह हिंदुवीर इन #अत्याचारों से भी टस से मस नहीं हुआ।

#शेर पिंजरे में बंद होकर भी दहाड़ रहा था -
'जिन्दा रहा तो फिर #क्रांति की आग सुलगाऊंगा'

➡कान्हा की वीरता और यातनाओं को देखकर औरंगजेब भी पसीज गया।
उसने कान्हा को कहा कि मैं तेरी वीरता का कायल हु और क्यों तंग होते हो कम से कम घर बैठी नई नवेली दुल्हन का तो ख्याल कर।
अरे पगले ! अपने ऊपर और अपनों पर रहम कर।यदि तू मेरी बात मानले तो तुझे मैं जागीर दे सकता हूँ। सेनापति बना सकता हूँ। तेरी मांगी मुराद पूरी हो सकती है।
मेरे साथ चल. बाल कटवा, नहा धो और अच्छे कपडे पहन. दोनों साथ मिलकर खाना खयेंगे. अब बहुत हो चूका. तेरी हिम्मत ने मुझे हरा दिया है. अब तो दोस्ती का हाथ बढा दे."
➡तब इस हिन्दू वीर ने जवाब दिया
"बादशाह तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ है. खाना ही खाना होता, जागीर ही लेनी होती तो यहाँ इस तरह नहीं आता, इतना जान माल का नुकसान नहीं होता. मैंने सुब कुछ सोच विचार कर यह करने का निश्चय किया है. तुम ज्यादा से ज्यादा मुझे फांसी लगवा सकते हो, गोली से मरवा सकते हो या जमीन में दफ़न करवा सकते हो लेकिन मेरे अन्दर विद्यमान 👍स्वाभिमान तथा देश एवं धर्म के प्रति प्रेम को तुम मार नहीं सकते.

➡इससे ओरंगजेब झल्लाकर रह गया और उसने यातनाएं और बढा दी।

➡एक दिन बड़ी मुश्किल से मिलने की इजाज़त लेकर कान्हा का छोटा भाई दलशाह उसे मिलने के लिए आया. उस समय कान्हा के पैर जांघों तक जमीन में दबाए हुए थे। दलशाह से यह दृश्य देखा नहीं गया तो उसने कान्हा से कहा भाई अब यह छोड़ दे. तब कान्हा तिलमिला उठा और बोला:
"अरे दलशाह यह तू कह रहा है. क्या तू मेरा भाई है. क्या तू जाटो की शान में कायरता का कलंक लगाना चाहता है. मैंने तो सोचा था कि मेरा भाई अब्दुन नबी की मौत की सूचना देने आया है. ताकि मैं शांति से मर सकूं. मैंने तो सोचा था कि मेरे भाई ने मेरा प्रतोशोध ले लिया है. मैंने सोचा था कि तू रौताई (रावत पाल के बहिन समेत पांच गांव) का कोई हाल सुनाने आया है ।लेकिन तुझे धिकार है। तू यहाँ आने से पहले मर क्यों नहीं गया। तूने मेरी आत्मा को छलनी कर दिया है।"
➡कान्हा का छोटा भाई दलशाह कान्हा को प्रणाम कर माफ़ी मांग कर वापिस गया। कान्हा रावत के छोटे भाई दलशाह ने अब्दुल नवी पर हमला बोल दिया। यह खबर कान्हा को उसकी मृत्यु से एक दिन पहले मिली. इस खबर से कान्हा को बड़ी आत्मिक शांति मिली.
इस घटना के बाद औरंगजेब ने कान्हा रावत पर जुल्म बढा दिए. अंत में चैत्र अमावस 1684 में 44 की उम्र में वीरवर कान्हा रावत को क्रूर औरंगजेब ने जिन्दा ही जमीन में गाडवा दिया. वह देशभक्त हिन्दू धर्म की खातिर शहीद होकर अमरत्व को प्राप्त किया।उनके बलिदान के कुछ दिन बाद उनके भाई दलशाह ने क्रूर अब्दुल नवी को मार दिया।

➡कान्हा रावत के बलिदान ने दिल्ली के चारों तरफ बसे हिन्दुओ को जगा दिया। चारों और बगावत की ध्वनि गूंजने लगी।यह घटना मुग़ल सल्तनत के हरास का कारण बनी।
उनकी समाधि अब भी #अजमेरी गेट के सामने उपस्थित है।

💪नमन है ऐसे हिन्दू वीर को जो जीते जी धरती में दफना दिया गया पर हमारा सिर नही झुकने दिया।

👥आज क्रूर अत्याचारी विदेशी औरंगजेब तो स्कूली किताबो में सम्मानीय है और इस हिन्दू वीर यौद्धा का कोई नाम ही नही है।

जय हो हिन्दू वीर कान्हा रावत की।जय जय श्री कृष्ण।

सचिन राणा
मुख्य मार्गदर्शक (जाट देवताः तख्त)

हरियाणा प्रदेश

साभार :- चौधरी जयदीप सिंह नैन
      #जाट_देवता_तख्त

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