#युद्धस्व_कौन्तेय
नक्सलवाद को समझने के लिए हमें रॉकेट साइंस नहीं चाहिए।
बहुत मामूली से उपेक्षित तथ्य हैं जिन पर हिंदू संगठन और हिंदू लोग दोनों ही तवज्जो नहीं देते हैं।
नक्सली एक विषाक्त विचारधारा का हथियार है जिसे वामपंथी विचारधारा कहते हैं। वामपंथी विचारधारा बहुत ही शातिर और बला की कमीनगी से ओतप्रोत है।
इसके फंक्शन को समझें....
१- #मीडिया, अखबार और चैनल दोनों जगह इनकी तगड़ी घुसपैठ है। वहां से ये तय कर रहे हैं कि देश को क्या देखना चाहिए और कैसे।
तथ्यों को विकृत करने की अपनी अनुवांशिक कला से ये तमिलनाडु के खाए-पिए किराए के टट्टुओं को भूख से मर रहे बेचारे किसान साबित कर देते हैं।
कश्मीर में सेना को कार्य नहीं करने देने के लिए बार बार पैलेट गन से अंधे हुए लोग दिखाते हैं।
आधुनिकता के नाम पर व्यभिचार के समर्थन में खुलकर खड़े हो जाते हैं और विरोधी को हिंदू आतंकवादी घोषित करते हैं।
देवी देवताओं और सनातन धर्म के स्थापित पीठों पर मनमाने आक्षेप लगा कर आपको दिग्भ्रमित करते हैं।
इनका इलाज मात्र ये है कि जैसे ही आपको लगे कि कोई अखबार या चैनल हरामीपन पर आ रहा है, तो सामुहिक रूप से उसे बहिष्कृत कीजिए। एक दो अखबार और चैनल बंद हुए तो इनको औकात पता चल जाएगी। इसके लिए आपको फेसबुक से बाहर आ कर मैदान में काम करने की आवश्यकता है। नेट से संपर्क मात्र रखिए। काम धरातल पर ही हो सकता है।
२- #शिक्षा, शिक्षा के क्षेत्र में आरंभ से ही वामपंथी विचारधारा का लगभग एकाधिकार सा है। आपके इतिहास का संपूर्ण विकृतिकरण करने में इनका योगदान अतुलनीय है। और फिर जबरदस्ती ये कि आप उसमें सुधार करने जाएंगे तो ये अपने सहयोगी मीडिया के मार्फत हल्ला मचा देंगे कि शिक्षा का भगवाकरण हो रहा है। सरकार डर कर पीछे हट जाती है और ये विजयी हो जाते हैं। प्रोफेसर स्तर के वामपंथी सबसे घातक लोग हैं। नक्सलियों के लिए वैचारिक भूमि ये ही तैयार करते हैं। आज इनको एक से डेढ़ लाख रुपए मासिक वेतन मिलता है जिससे ये बड़े आराम से विषवमन करते हैं और फ्रंट पर लड़ रहे नक्सली के परिवार की सहायता करते हैं।
इनके लिए आपको इनके ही ढंग से कार्य करना उचित है। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले संगठन और संत मिलकर विश्वविद्यालयों की स्थापना करें। संघ या किसी भी प्रकार से हिंदू समर्थक विचारकों को अध्यापन कार्य में नियुक्त करें। धन की कमी नहीं है इच्छाशक्ति की है।
ये लंबी दूरी की मिसाइल है। त्वरित में आप वामपंथी विचारधारा से प्रभावित प्रोफेसर या शिक्षक को नोटिस कीजिए और मानसिक रूप से प्रताड़ित कीजिए। आपके बीच में वो रह रहा है। उसको निर्ममता पूर्वक नष्ट कीजिए बेहिचक। उसके परिवार को असुरक्षित महसूस करवाइए। उसे हर कदम पर धमकी और लात घूंसे दीजिए।
अपने समाज के गुंडों को इनके पीछे लगा दीजिए।
केरल बंगाल में ये यही कर रहे हैं।
३- #कला_साहित्य, यहां भी वामपंथी विचारधारा का लगभग एकाधिकार सा है। इनके बनाए संगठन पुरस्कार बांट रहे हैं। ये लोग फिल्म जैसे सशक्त माध्यम से आपके इतिहास का संपूर्ण विकृतिकरण करने में लगे हैं।
उपाय वही है। भंसाली को राहत नहीं दी जाए। फिल्म बन गई तो आर्काइव में दर्ज दस्तावेज हो गया।
४- #संगठन, संगठन स्तर पर हिंदू चीमड़पने के कारण पिछड़ रहे हैं।
जबरन की सात्विकता और सादगी गले नहीं उतरती है। हालत ऐसी है कि बजरंगदल जैसे उग्र संगठन के कार्यकर्ताओं को उनके अपने ही वरिष्ठ नेता दबा देते हैं। किसी कार्यकर्ता ने गुस्से में किसी मिंये को कूट दिया तो भाई साहब पहले ही हाथ ऊंचे कर चुके होते हैं कि, "हमसे पूछ कर किया क्या??? अब निपटिए खुद ही।"
ये व्यक्ति को तोड़ने का काम हुआ जोड़ने का नहीं। नक्सली के हर हत्याकांड के साथ उसका पूरा संगठन खड़ा हो जाता है और हर स्तर पर मदद करता है। हमारे संगठन बड़े घर की बेटी जैसे नखरों से हिंदू एकता कर रहे हैं।
५- #आक्रामकता, सामान्य हिंदू अहिंसा के नपुंसक उपदेश से सम्मोहित है। उग्र व्यक्ति को हम गुंडा कहते हैं। शस्त्र अपने घरों में रखते नहीं। आप हर बार सरकार को कोसकर सो जाते हैं कुछ करते तो हैं नहीं। नक्सली या जिहादी आपसे क्यों डरे ????
एक नक्सली हमला होता है तो बिना लोकल सपोर्ट के नहीं हो सकता है। यदि एक गांव में कुछ घरों ने सपोर्ट किया था तो शेष गांव को उन लोगों को अनुभव कराना चाहिए था कि मौत कितनी मासूम हो सकती है। यदि एक गांव से सपोर्ट हो रहा था तो आसपास हजारों दूसरे गांव, कस्बे और शहर हैं। एक बार बजा डाला तो दो लाभ होंगे। गृहयुद्ध की आशंका से सरकार को जबरन एक्टिव होना होगा और नक्सलियों के लोकल सपोर्ट में मौत का भय व्याप्त होगा।
अंत में #ट्रॉटस्की को याद करते हुए मात्र इतना ही निवेदन करना चाहूंगा कि, "हे शुभ्र कपोत !!! तेरी युद्ध में रुचि हो न हो; युद्ध तुझमें रुचि ले चुका है।"
#अज्ञेय
Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=450949248579427&id=100009930676208
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