Friday 24 February 2017

वीर योद्धा मिहिरकुल

#इतिहास_का_परमवीर_योद्धा

मिहिरकुल

मिहिरकुल इतना कट्टर था कि जिसके बारे में बौद्ध और जैन धर्मग्रंथों में विस्तार से जिक्र मिलता है। वह भगवान शिव के अलावा किसी के सामने अपना सिर नहीं झुकाता था। यहां तक कि कोई सेक्युलर हिन्दू  उसके विचारों के विपरीत चलता तो उसका भी अंजाम वही होता, जो शाक्य दैत्यों  का हुआ। मिहिरकुल के सिक्कों पर 'जयतु वृष' लिखा है जिसका अर्थ है- जय नंदी। इन्दिकप्लेस्तेस नामक एक यूनानी ने मिहिरकुल के समय भारत की यात्रा की थी। उसने 'क्रिश्‍चियन टोपोग्राफी' नामक अपने ग्रंथ में लिखा है कि हूण भारत के उत्तरी पहाड़ी इलाकों में रहते हैं, उनका राजा मिहिरकुल एक विशाल घुड़सवार सेना और कम से कम 2 हजार हाथियों के साथ चलता है, वह भारत का स्वामी है।

स्कंदगुप्त के काल में ही हूणों ने कंबोज और गांधार अर्थात बौद्धों के गढ़ संपूर्ण अफगानिस्तान पर अधिकार करके फिर से हिन्दू राज्य को स्थापित कर दिया था। लगभग 450 ईस्वीं में उन्होंने सिन्धु घाटी क्षेत्र को जीत लिया। कुछ समय बाद ही उन्होंने मारवाड़ और पश्चिमी राजस्थान के इलाके भी जीत लिए। 495 ईस्वीं के लगभग हूणों ने तोरमाण के नेतृत्व में गुप्तों से पूर्वी मालवा छीन लिया। एरण, सागर जिले में वराह मूर्ति पर मिले तोरमाण के अभिलेख से इस बात की पुष्टि होती है। जैन ग्रंथ 'कुवयमाल' के अनुसार तोरमाण चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित पवैय्या नगरी से भारत पर शासन करता था।

इतिहासकारों के अनुसार पवैय्या नगरी ग्वालियर के पास स्थित थी। तोरमाण के बाद उसका पुत्र मिहिरकुल हूणों का राजा बना। (मिहिरकुल भारत में एक ऐतिहासिक श्वेत क्षत्रिय शासक था। ये तोरामन का पुत्र था।  मिहिरकुल 510 ई। में गद्दी पर बैठा। संस्कृत में

मिहिरकुल का अर्थ है - 'सूर्य के वंश से', अर्थात सूर्यवंशी।मिहिरकुल का प्रबल विरोधी नायक था यशोधर्मन। कुछ काल के लिए अर्थात् 510 ई। में एरण (तत्कालीन मालवा की एक प्रधान नगरी) के युद्ध के बाद से लेकर लगभग 527 ई। तक, जब उसने मिहिरकुल को गंगा के कछार में भटका कर क़ैद कर लिया था, उसे तोरमाण के बेटे मिहिरकुल को अपना अधिपति मानना ​​पड़ा था। क़ैद करके भी अपनी माँ के कहने पर उसने हूण-सम्राट को छोड़ दिया था।).......... मिहिरकुल तोरमाण के सभी विजय अभियानों में हमेशा उसके साथ रहता था। उसने उत्तर भारत की विजय को पूर्ण किया और बौद्ध धर्मावलंबी गुप्तों से भी कर वसूल करना शुरू कर दिया।

तोरमाण के बाद मिहिरकुल ने पंजाब स्थित स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया। मिहिरकुल हूण एक कट्टर हिन्दू  था। उसने अपने शासनकाल में हजारों शिव मंदिर बनवाए और बौद्धों के शासन को उखाड़ फेंका। उसने संपूर्ण भारतवर्ष में अपने विजय अभियान चलाए और वह बौद्ध, जैन और शाक्यों के लिए आतंक का पर्याय बन गया था, वहीं विक्रमादित्य और अशोक के बाद मिहिरकुल ही ऐसा शासन था जिसके अधीन संपूर्ण अखंड भारत आ गया था। उसने ढूंढ-ढूंढकर शाक्य मुनियों को भारत से बाहर खदेड़ दिया।

मिहिरकुल ने हिमालय से लेकर लंका तक के इलाके जीत लिए थे। उसने कश्मीर में मिहिरपुर नामक नगर बसाया। कल्हण के अनुसार मिहिरकुल ने कश्मीर में श्रीनगर के पास मिहिरेश्वर नामक भव्य शिव मंदिर बनवाया था। उसने फिर से भारत में सनातन हिन्दू धर्म की स्थापना की थी। यदि शंकराचार्य, गुरुगोरक्षनाथ और मिहिरकुल नहीं होते तो भारत का प्रमुख धर्म बौद्ध ही होता और हिन्दुओं की हालत आज के बौद्धों जैसी होती। सवाल यह उठता है कि लेकिन क्या यह सही हुआ? ऐसा नहीं हुआ होता यदि बौद्ध भिक्षु देश गद्दारी नहीं करते। उस दौर में मिहिरकुल को कल्कि का अवतार ही मान लिया गया था, क्योंकि पुराणों में लिखा था कि कल्कि आएंगे और फिर से सनातन धर्म की स्थापना करेंगे। मिहिरकुल ने यही तो किया?

जैन व बौद्ध ग्रंथो ने मिहिरको कल्की अवतार माना है कल्की अवतार के बारे मै लिखा है वो तलवार ले कर बौद्ध जैन मलेच्छ को खत्म करेगे लेकिन मलेच्छ तो उस समय थे नही लेकिन मिहिर ने बौद्ध जैन को खत्म कर के कल्की अवतार का काम जरुर किया था ।।

जय जय श्रीमन्न नारायण

Copied from https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=226976534432238&id=100013596791837

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.

विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर

-- #विश्वगुरु_भारत_से_विकासशील_भारत_का_सफर -- -------------------------------------------------------------------- इतिहास में भारतीय इस्पा...