Friday, 24 February 2017

आतंकवाद, आप और मैं

कक्षा 9 में पढ़नेवाली एक बालिका के पिता ने उसके भाषण का यह ड्राफ्ट मुझे भेजा था कि मैं इसमें कुछ सुधार कर दूँ । आप भी पढ़िये, मैंने तो जस का तस लौटाया, मन: पूर्वक आशीर्वाद के साथ, बच्चियाँ अगर इतना स्पष्ट समझ रही हैं परिस्थिति को तो हालात इतने भी बुरे नहीं है

आतंकवाद, आप और मैं ।

सभी आचार्यगण तथा बड़ों को सादर प्रणाम और मेरे भाइयों और बहनों को नमस्ते। आप लोग शायद आश्चर्य कर रहे होंगे कि मेरे जैसी युवा लड़की आतंकवाद जैसे विषय पर क्यूँ बोलना चाहती है । मेरा उत्तर स्पष्ट है - आतंकवाद हम सब का नुकसान करता है और मैं हम सब से अलग नहीं हूँ । एक प्रसिद्ध मुहावरा है कि आप को युद्ध में रुचि हो न हो, युद्ध को आप में रुचि हो सकती है । आतंकवाद भी युद्ध है । वो एक कायरों से लड़ा जानेवाला युद्ध है जो खुले मैदान में आने से डरते हैं, उनका शौर्य निहत्थों पर ही प्रकट होता है ।

आतंकवाद, कायरों का युद्ध है ।

आज आप से उन बातों के बारे में कहूँगी जो आतंकवादी इस्तेमाल कराते हैं और साथ में यह भी कहूँगी कि हम अपने बचाव के लिए क्या कर सकते हैं । उन आतंकियों को सफर कर के पहुंचना पड़ता है, टीवी सिरियल जैसे बटन दबाकर "मटेरियालाइज" नहीं होते वांछित जगह पर। याने स्थानीय  सहायता की आवश्यकता होती है । स्थानीय सहायता के बिना यह अशक्य है।  हमें उनके स्थानीय सहायक कौन है यह समझना चाहिए, उनसे बचना चाहिए । 

भाइयों और बहनो,  आतंकवादी तो मारने और मरने चला आता है । वो सोचता है कि वो ऐसे निर्दोष लोगों को, जिनहोने उसका कुछ भी बिगाड़ा नहीं है, उनको मारकर स्वर्ग जाएगा । क्या आप को एक बात पता है ? वो हमेशा एक बाहरी आदमी होता है, स्थानीय व्यक्ति कभी भी नहीं होता। क्या आप इस बात को समझ सकते हैं कि उसके स्थानीय सहायक सुरक्शित रहना चाहते हैं जब वो मारा जाएगा। वे मरना नहीं चाहते । वे एक ऐसे आदमी की मदद करना चाहते हैं जो हमें जान से मारना चाहता है । याने आतंकी हमारा असली शत्रु नहीं है । वो हमें नहीं जानता । हमें मारने के लिए उसके पास कोई ठोस कारण नहीं है । वो बस एक रोबो है जिसे दूसरे धर्म के लोगों की हत्या करने के लिए प्रोग्राम किया है केवल इसके लिए कि वे दूसरे धर्म के हैं । वे उसके लिए बेनाम बिना चेहरे के हैं । वे कोई भी और सब कोई हो सकते हैं ।

लेकिन उसके स्थानिक सहायकों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता । वे हमें जानते हैं । हम कौन हैं उन्हें पता है । हमारा नाम उन्हें पता है। हमारा घर कहाँ है वे जानते हैं । वे हम से दोस्ती भी करते हैं ।

और वे ही, आतंकी को हमारे द्वार ले आते हैं, हमें जान से मार डालने के लिए ।

तो मेरे प्यारे भाइयो और बहनों, आप मुझे बताएं हमारा असली दुश्मन कौन है: क्या हमारा असली दुश्मन वो बाहरी व्यक्ति है जो हमें मारने और खुद मरने चला आया है ? हाँ, वो हमे मार डाले उसके पहले हमें उसे ढूंढकर खत्म करना ही चाहिए, लेकिन आप मुझसे सहमत होंगे कि हमें उससे पहले उनको भी खोज कर निपटना होगा जो उसे हमारे घर लाना चाहते हैं । ताकि वे दुबारा ऐसे सोचने की कभी भी हिम्मत न करें ।

मुझे नहीं लगता हम में से किसी को हिंसा अच्छी लगती है,  इसलिए हमें शांतिपूर्वक इस से निपटना होगा। आर्थिक बहिष्कार एक प्रभावी पद्धति है । जो आतंकियों की मदद कराते हैं ऐसा आप को लगता है तो उनसे कुछ खरीदना बंद करें । यह तो हमारे ही पैसे से हम अपने हत्यारों की मदद कर रहे होते हैं । क्या हम ऐसा होने दें ? जब आप उनसे खरीदते हैं, वे आप की रुचि जानते हैं, आप की पसंद जानते हैं...... और .... आप का नाम और घर भी जान लेते हैं ।  जब आप उनसे होम डिलिवरी लेते हैं, वे आप का घर देख लेते हैं, वहाँ कितने लोग हैं, कैसे हैं,  आप के परिवार की हैसियत क्या है....सब कुछ जान लेते हैं । क्या आप को इस खतरे का पता है और क्या आप सोचते हैं कि आप इस से बच सकते हैं ?

यहाँ आप से कुछ कहना चाहूंगी। आप दीमक जानते हैं ना ? जानते हैं, राइट ? ओके, तो आप ये भी जानते हैं कि दीमक कितनी छोटी होती है और आप तो उसे एक उंगली से भी मार सकते हैं, कोई ज़ोर देने की भी जरूरत नहीं .... तो आप पेस्ट कंट्रोल नहीं कराते क्योंकि आप जानते हैं कि किसी भी दीमक को आप यूं मसल सकते हैं । लेकिन आप को पता है उनकी तादाद कैसे बढ़ती है और आप के घर को वे कैसे खोखला कर देते हैं जो एक दिन बस ऐसे ही गिर जाएगा ....धड़ाम ..... शायद आप उस वक्त गहरी नींद में सो रहे होंगे और ऐसा कुछ होगा आप को ख्याल भी नहीं होगा ....समझ गए ना आप, सही है ? धन्यवाद आप का ।

नजर रखना भी जरूरी है । पुलिस को खबर दीजिये, लेकिन हो सके तो इंटरनेट पर दीजिये क्योंकि कई दफा लोकल पुलिस थाना .... दुख होता है कहते, लेकिन ...बिका हुआ होता है । इसलिए अपनी खुद की सुरक्षा के लिए गुप्तता बरतें ।

अपने छोटे स्तर पर बिना कोई हिंसा किए हम इतना ही कर सकते हैं, तो अवश्य करें । आज हम जो भी हैं वह रहें इसके लिए हमारे पूर्वजोने रक्त बहाया है । हमारी हैसियत बिरयानी पर बिक जाये इतनी सस्ती नहीं। खून की कीमत बिरयानी में नहीं चुकाई जा सकती ।

आप सब का आभार मुझे सुनने के लिए आप ने समय दिया । जय हिन्द, वंदे मातरम !
साभार: Anand Rajadhyaksha जी

Copied from Facebook

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.

मानव_का_आदि_देश_भारत, पुरानी_दुनिया_का_केंद्र – भारत

#आरम्भम - #मानव_का_आदि_देश_भारत - ------------------------------------------------------------------              #पुरानी_दुनिया_का_केंद्र...