#_Official_सप्तर्षि_Saptarshi
!! घृतस्य नाम गुह्यं !! (ऋग्वेद, 4.58.1)
!! Ghṛtasya Nāma Guhyaṃ (Rgvēda, 4.58.1)
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छोटे छोटे किंतु तीखे अवलोकन इतिहास बद्ल सकते हैं, जब समस्त दुनिया के विद्वान वैदिक संस्कृति को खानाबदोश घुमंतू कबीलों की संस्कृति बताने में लगे है, ऋग्वेद के किसी भी भाग के २५-५० पृष्ठ् उस आधार-हीन इतिहास को उखाड फ़ेकने की क्षमता अध्येता को दे देते हैं
ऋग्वेद के इंद्र गोपति एवं नृपति दोनों हैं, दोनों ही तथ्य अपने आप में बडे महत्वपूर्ण हैं, खानाबदोश गांव नहीं बसाते एवं गायें नहीं पालते, क्योंकि गायों को चारा एवं पानी का स्थायी स्रोत चाहिये, वे उंट, घोडे एवं भेडों की तरह लगातार दूर तक नहीं चल सकती हैं,गाय, गांव, गाय का दूध एवं घी खानबदोश होने की कहानी को झूठा सिद्ध कर देते हैं.
आज के कथानक में घी प्रमुख विषय है
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घी का अविष्कार भारत के ऋषियों ने ऋग्वेद काल में ही कर लिया था, शतपथ ब्राह्मण में गाय के घी को "वज्र" कहा गया है, क्योंकि घी से वज्र जैसा स्वस्थ एवं पुष्ट शरीर निर्मित होता है. ऋग्वेद में घी के महत्व पर अनेक मंत्र मिलते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण मंत्र यहां उद्धृत है
!! घृ॒तस्य॒ नाम॒ गुह्यं॒ यदस्ति॑ जि॒ह्वा दे॒वाना॑म॒मृत॑स्य॒ नाभि॑ !!
(ऋग्वेद, 4.58.1)
:
!! ghṛtasya nāma guhyaṁ yad asti jihvā
devānām amṛtasya nābhiḥ !! (Rgvēda, 4.58.1)
Meaning :
"Ghee is a material to be kept as safe and secretive as the tongue, It's the elixir found in God's belly"
अर्थात् :
"घी गोपनीय पदार्थ है, जैसे मुख मे जिह्वा, यह देवों की नाभि मे स्थित अमृत है"
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ऎतिहासिक एवं भाषाई विशेषता
"घी" का ऐतिहासिक एवं भाषाई महत्व अत्यधिक है, इतना अधिक कि ऋषियों ने घी बनाने की विधि भारत से बाहर जाने नहीं दी, भारत तक ही गुप्त रखा, जिसके कारण यूरोप एवं विश्व की अन्य भाषाओ तथा बोलियों में "घी" के समानार्थी शब्द नहीं मिलते हैं क्योंकि अन्य किसी भी देश या संस्कृति को घी बनाने का ज्ञान नहीं हुआ
Source: https://www.facebook.com/groups/241741922903017/permalink/266562363754306/?comment_id=266699983740544&reply_comment_id=266712893739253¬if_t=group_comment¬if_id=1492841245029848
!! घृतस्य नाम गुह्यं !! (ऋग्वेद, 4.58.1)
!! Ghṛtasya Nāma Guhyaṃ (Rgvēda, 4.58.1)
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छोटे छोटे किंतु तीखे अवलोकन इतिहास बद्ल सकते हैं, जब समस्त दुनिया के विद्वान वैदिक संस्कृति को खानाबदोश घुमंतू कबीलों की संस्कृति बताने में लगे है, ऋग्वेद के किसी भी भाग के २५-५० पृष्ठ् उस आधार-हीन इतिहास को उखाड फ़ेकने की क्षमता अध्येता को दे देते हैं
ऋग्वेद के इंद्र गोपति एवं नृपति दोनों हैं, दोनों ही तथ्य अपने आप में बडे महत्वपूर्ण हैं, खानाबदोश गांव नहीं बसाते एवं गायें नहीं पालते, क्योंकि गायों को चारा एवं पानी का स्थायी स्रोत चाहिये, वे उंट, घोडे एवं भेडों की तरह लगातार दूर तक नहीं चल सकती हैं,गाय, गांव, गाय का दूध एवं घी खानबदोश होने की कहानी को झूठा सिद्ध कर देते हैं.
आज के कथानक में घी प्रमुख विषय है
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घी का अविष्कार भारत के ऋषियों ने ऋग्वेद काल में ही कर लिया था, शतपथ ब्राह्मण में गाय के घी को "वज्र" कहा गया है, क्योंकि घी से वज्र जैसा स्वस्थ एवं पुष्ट शरीर निर्मित होता है. ऋग्वेद में घी के महत्व पर अनेक मंत्र मिलते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण मंत्र यहां उद्धृत है
!! घृ॒तस्य॒ नाम॒ गुह्यं॒ यदस्ति॑ जि॒ह्वा दे॒वाना॑म॒मृत॑स्य॒ नाभि॑ !!
(ऋग्वेद, 4.58.1)
:
!! ghṛtasya nāma guhyaṁ yad asti jihvā
devānām amṛtasya nābhiḥ !! (Rgvēda, 4.58.1)
Meaning :
"Ghee is a material to be kept as safe and secretive as the tongue, It's the elixir found in God's belly"
अर्थात् :
"घी गोपनीय पदार्थ है, जैसे मुख मे जिह्वा, यह देवों की नाभि मे स्थित अमृत है"
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ऎतिहासिक एवं भाषाई विशेषता
"घी" का ऐतिहासिक एवं भाषाई महत्व अत्यधिक है, इतना अधिक कि ऋषियों ने घी बनाने की विधि भारत से बाहर जाने नहीं दी, भारत तक ही गुप्त रखा, जिसके कारण यूरोप एवं विश्व की अन्य भाषाओ तथा बोलियों में "घी" के समानार्थी शब्द नहीं मिलते हैं क्योंकि अन्य किसी भी देश या संस्कृति को घी बनाने का ज्ञान नहीं हुआ
Source: https://www.facebook.com/groups/241741922903017/permalink/266562363754306/?comment_id=266699983740544&reply_comment_id=266712893739253¬if_t=group_comment¬if_id=1492841245029848
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