Saturday 22 April 2017

श्रीराम जन्मभूमि विवाद को राजनीतिक दांव-पेंच का अखाड़ा कब तक बनाकर रखा जाएगा?

श्री राम जन्मभूमि को तोड़कर कर आक्रांता बाबर द्वारा बनाए गये ढांचे को ढहाना कोई राष्ट्रीय अपराध नहीं अपितु राष्ट्रीय स्वाभिमान का जागरण था। इस आन्दोलन के नायकों पर 16 साल के अन्तराल के बाद जब उक्त स्थान को हाई कोर्ट के द्वारा भी श्रीराम लला का जन्म स्थान भी मान लिया गया है सीबीआई द्वारा आपराधिक केस चलाने की मांग करना हिन्दू भावनाओं को आहत करनेवाला है।
लखनऊ कोर्ट ने 16 साल पहले तकनीकी आधार पर इन नेताओं से आपराधिक साजिश के आरोपों को हटा लिया था। सीबीआई ने अशोक जी सिंहल, आचार्य गिरिराज किशोर जी, आडवाणी जी और जोशी जी सहित 19 लोगों के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने [आइपीसी धारा 120बी] का मुकदमा चलाने की मांग की थी। हाई कोर्ट ने सीबीआइ की याचिका खारिज कर दी थी और आरोपी नेताओं को आपराधिक साजिश के आरोप से मुक्त करने के निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया ।
16 साल बाद सीबीआई को इसके राष्ट्रीय अपराध होने का बोध कैसे हो गया? सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान जब सीबीआइ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीपी राव ने कहा था कि यह मामला बहुत महत्वपूर्ण है। आरोपियों ने राष्ट्रीय अपराध (नेशनल क्राइम ) किया है। इस पर मामले की सुनवाई कर रही पीठ ने गहरी आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा कि वह नेशनल क्राइम जैसे शब्द का प्रयोग न करें। अभी अदालत को मामले पर निर्णय लेना है। जब तक अदालत इस बारे में फैसला नहीं करती, वह इस तरह के शब्दों का प्रयोग न करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि सीबीआइ मामले को बहुत महत्वपूर्ण बता रही है तो क्या वह ये बता सकती है कि उसे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करने में इतनी देर क्यों हुई। कोर्ट रिकार्ड का अनुवाद दाखिल करने में विलंब क्यों हुआ।
आज यह प्रश्न खड़ा होता है कि सरकार की संस्थाओं को राम जन्मभूमि का ढहाना राष्ट्रीय अपराध तो दिखता है, परन्तु सरकार को इस विवाद का राष्ट्रीय महत्व दिखाई नहीं देता । संसद में कानून बनाने की बात तो दूर दिन- प्रतिदिन की सुनवाई के लिए भी सरकार द्वारा पहल क्यों नहीं की जा रही है ? श्रीराम जन्मभूमि विवाद को राजनीतिक दांव-पेंच का अखाड़ा कब तक बनाकर रखा जाएगा?
यह प्रश्न बार-बार पूछा जाएगा कि16 साल बाद सीबीआई को इसे राष्ट्रीय अपराध बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय जाने की सुध अभी क्यों आई?

Courtesy: Hindu Jaagran



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