चित्रकूट का जानकीकुंड, जहां १६० - १७० करोड वर्ष पहले बहुकोशिकीय प्राणीयों (Cambrian Era Paleoproterozoic) का जीवन शुरू हुआ
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भारत माता की स्नेह वत्सला गोद, मे जीवन की सर्वप्रथम पूर्ण संरचना, बहुकोशीय प्राणियों की उत्पत्ति के प्रमाण चित्रकूट के जानकी कुंड से मिले हैं, जिन्हे निर्विवाद रूप से समस्त विश्व मे मान लिया गया है.
इन बहुकोशीय प्राणियो के जीवाश्म मिलने से अब तक स्वीकृत जीवन प्रवाह की समय सारणी (geochronology) बदल गयी है और अफ़्रीका मे जीवन की प्रथम शुरुआत का भ्रम भी समाप्ति की ओर बढ रहा है.
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भारत माता की स्नेह वत्सला गोद, मे जीवन की सर्वप्रथम पूर्ण संरचना, बहुकोशीय प्राणियों की उत्पत्ति के प्रमाण चित्रकूट के जानकी कुंड से मिले हैं, जिन्हे निर्विवाद रूप से समस्त विश्व मे मान लिया गया है.
इन बहुकोशीय प्राणियो के जीवाश्म मिलने से अब तक स्वीकृत जीवन प्रवाह की समय सारणी (geochronology) बदल गयी है और अफ़्रीका मे जीवन की प्रथम शुरुआत का भ्रम भी समाप्ति की ओर बढ रहा है.
चित्रकूट से चोपन तक ये जीवाश्म मिल रहे हैं, चित्रकूट से पहले कनाडा की
पहाडियों मे स्थित ब्रिटिश कोलंबिया के अंतर्गत ( Burgess Shale ) नामक
स्थल को वैज्ञानिकों ने बहुत महत्व दिया था, जहां कुछ इसी तरह के जीवाश्म
पाये गये थे जो कि (Geochronology) को ५० करोड वर्ष पूर्व तक ले जाते थे.
चित्रकूट वह क्षेत्र सिद्ध हुआ जहां एक कोशीय जीवन से बहुकोशीय जीवन की कडी जुडती है, किंतु यह गौरव आसानी से सीधे सीधे नही मिला, पहले विदेशी वैज्ञानिको ने इस खोज को "विवादित घोषित किया उनके दबाव मे आकर संबंधित भारतीय वैज्ञानिक संस्थाओ ( Geological Society of India, National Academy of Sciences) ने पूरी की पूरी खोज को संदेहास्पद घोषित कर दिया था, लेकिन जब ओक्स्फ़ॉर्ड के Martin Brasier, मार्टिन ब्रेसर ने इस खोज को सही साबित कर दिया तो भारतीय वैज्ञानिक संस्थाओ ने भी अपनी गलती मान ली.
इसे देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट आफ़ हिमालयन ज्योलाजी के रफ़त अलो ने १९९८ मे खोज निकाला था, और ११ वर्ष तक अपमानित होते रहे
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10209375576450146&set=a.10203748562618317.1073741825.1346060061&type=3&permPage=1
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चित्रकूट वह क्षेत्र सिद्ध हुआ जहां एक कोशीय जीवन से बहुकोशीय जीवन की कडी जुडती है, किंतु यह गौरव आसानी से सीधे सीधे नही मिला, पहले विदेशी वैज्ञानिको ने इस खोज को "विवादित घोषित किया उनके दबाव मे आकर संबंधित भारतीय वैज्ञानिक संस्थाओ ( Geological Society of India, National Academy of Sciences) ने पूरी की पूरी खोज को संदेहास्पद घोषित कर दिया था, लेकिन जब ओक्स्फ़ॉर्ड के Martin Brasier, मार्टिन ब्रेसर ने इस खोज को सही साबित कर दिया तो भारतीय वैज्ञानिक संस्थाओ ने भी अपनी गलती मान ली.
इसे देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट आफ़ हिमालयन ज्योलाजी के रफ़त अलो ने १९९८ मे खोज निकाला था, और ११ वर्ष तक अपमानित होते रहे
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