Saturday, 22 April 2017

राजा की स्वेच्छाचारिता और निरंकुश शासन के विरुद्ध धर्म गुरुओं के आंदोलन

राष्ट्रधर्म के पालन करने में जब शासनतंत्र निष्फल हूआ तब व्यास पीठ ने आंदोलन किये और पुन: राष्ट्रधर्म की स्थापना की । राजा की स्वेच्छाचारिता और निरंकुश शासन के विरुद्ध धर्म गुरुओं का आंदोलन हुए। इस का प्रारम्भ देवर्षि भगवान् नारद ने किया और इस परम्परा में समर्थ गुरुरामदास जी अंतिम हैं । आदि सत्ययुग में जब हिरण्यकश्यप के निरंकुश शासन और आर्यों परअत्याचार किये उस समय देवर्षि नारद ने हिरण्यकश्यप के विरुद्ध उसी के पुत्र प्रह्लार्द को निमित्त बना कर आंदोलन किया और पुन: राष्ट्रधर्म की स्थापना की । जब राजा वेन के स्वेच्छाचारी और निरंकुश शासन से आर्य संस्कृति प्रभावित हुई तब वालखिल्यादि ऋषियों ने जिसमेंभार्गव शुक्राचार्य प्रमुख थ। सम्राट वेन के विरुद्ध उसी के पुत्र वैन्यू पृथु को निमित्त बना कर आंदोलन किया और राष्ट्रधर्म की स्थापना की । जब शक यवनों पल्लवों दर्द काम्बोज किम्पिरियन कुषाण हूण हैहय शशविन्दु तालजन्घ आदि क्षत्रिय निरंकुश हो कर आर्य संस्कृति को नष्ट करने लगे तब महर्षि और्व ने सगर को निमित्त बना कर इन समस्त जातियों शक यवन दर्द काम्बोज पल्लव कुषाण हूण किम्पिरियन हैहय शशविन्दु तालजन्घ को सीखा रहित कर के आनार्य जातियों में परिणित कर दिया और पुन: राष्ट्रधर्म की स्थापना की । जब हैयह क्षत्रिय निरंकुश हो कर अनार्य कर्म कर के वैदिक संस्कृति को नष्ट कर ने लगे तब भगवान् भार्गव परशुराम ने हैयह अर्जुन के विरुद्ध उसी के पुत्र जयध्वज को निमित्त बना कर हैयहो का संहार कर के पुन: राष्ट्र धर्म की स्थापना की जब रावण ने बल के अभिमान में आ कर समूची मानव जाती को कष्ट दिये तब भगवान् वशिष्ठ ने विश्वामित्र जी को साथ लेकर भगवान् श्री राम को निमित्त बना कर रावण के विरुद्ध आंदोलन किया और राष्ट्रधर्म की स्थापना की और जो उपदेश श्री राम को दिया वह योग वशिष्ठ में संकलित है । जब धरती मनुष्य राजा रूपी असुरों से त्रस्त हो गयीं निरंकुश राजा धृतराष्ट्र के विरुद्ध भगवान् वेदव्यास ने धृतराष्ट्र के ही अनुजात्मज युधिष्ठिर को निमित्त बना कर आंदोलन किया और पुन:धर्म की स्थापना की । कलियुग के हजार वर्ष व्यतीत होने पर जब समूची पृथ्वी पर नये नये धर्म विकसित हो गये और आर्य संस्कृति को नष्ट करने लगे तब कश्यप ऋषि के पुत्र कण्व ने मिश्र देश (आधुनिक अफ्रीका अरब ईराक तुर्क आदि )जा कर धर्म का प्रचार किया और आर्यपृथु को निमित्त बना कर आंदोलन किया और राष्ट्रधर्म की स्थापना की । जब असुरों ने वेदों का गलत अर्थ कर के अपनी हिंसा को वेदप्रतिपादित कर के हर घर में हिंसा कर ने लगे तब भगवान् बुद्ध ने बिम्बिसार को निमित्त बना कर असुरों के विरुद्ध आंदोलन किया और पुन: राष्ट्रधर्म की स्थापना की । जब नन्दों के स्वेच्चाचारी और निरंकुश शासन से राष्ट्र संस्कृति जर्जर हो रही थी तब महर्षि चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को निमित्त बना कर नन्दों के विरुद्ध आंदोलन किया और राष्ट्रधर्म की स्थापना की । जब यवनों के आक्रमणों से और मोर्यो के निष्कृय और अहिंसात्मक शासन से राष्ट्रसंकट में था धर्म पर झन्झावतों की अति हो रही थी तब स्वयं े पुष्यमित्र ने अपने आप को निमित्त बना कर आंदोलन किया और राष्ट्रधर्म की स्थापना की । जब बौद्धों के अत्याचार और उच्छृंखल प्रवृत्ति के कारण राष्ट्रकमजोर हो गया और असुरों के आक्रमण होने लगे तब वशिष्ठ मुनि ने असुरों के विरुद्ध चार राजपुतो को निमित्त बना कर आंदोलन किया और राष्ट्रधर्म की स्थापना की । अनेक पंथ अनेक सम्प्रदाय अपनी मौलिकता खो कर सिर्फ आडम्बर बन कर रह गये और वैदिक संस्कृति लुप्त हो गयीं तब भगवान् आद्य शंकराचार्य जी ने राजा सुधन्वा के विरुद्ध स्वयं सुधन्वा को निमित्त बना कर आंदोलन किया और पुन: वैदिक धर्म की स्थापना की । जब शक पल्लव हूण जातियाँ भारत पर निरन्तर आक्रमण कर रहीं थीं और आर्य संस्कृति नष्ट हो रही थी तब भगवान् रेणुकाचार्य ने विक्रमादित्य को निमित्त बना कर आंदोलन किया और राष्ट्रधर्म की पुन: स्थापना की । जब अरबों के आक्रमणों से आर्य संस्कृति नष्ट होने लगी तब ऋषि हरितराशि ने अपने शिष्य वप्पा रावल को निमित्त बना कर अरबों के विरुद्ध आंदोलन किया और आर्य संस्कृति की रक्षा की । जब तुर्कों के अत्याचारों से पीड़ित सम्पूर्ण भारत वर्ष में आर्य धर्म विलुप्ति के कगार पर पहुँच गया तब आचार्य माधव ने हरीहर बुक्का नाम के भाईयो को निमित्त बना कर तुर्कों के विरुद्ध आंदोलन किया और दक्षिण में पुन राष्ट्रधर्म की स्थापना विजयनगर के रूप में की । जब मुग़लों के अत्याचारों से हिंदू धर्म अंतिम सांसे ले रहा था तब समर्थगुरु रामदास जी ने शिवाजी महाराज को निमित्त बना कर मुग़लों के विरुद्ध आंदोलन किया और राष्ट्रधर्म की स्थापना की ।

Courtesy: Manisha Singh

 

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