Wednesday, 14 June 2017

लोकषड़यंत्र -१

किसान आंदोलन, गौभक्षण, नक्सली आंदोलन, जिहादी आतंकवाद, असहिष्णुता इत्यादि की पृष्ठभूमि को समझिए।
पोस्ट लंबी है। निवेदन है कि समय निकाल कर इस श्रृंखला को पढ़ें।
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#लोकषड़यंत्र  - १

हम एक लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था में रह रहे हैं। हमारे सामुहिक सम्मोहन की स्थिति ये है कि अभी इससे इतर विचार हमें वैश्विक पापबोध से भर देता है।
किंतु मैं ये पाप करूँगा क्योंकि प्रश्न मानव जाति के अस्तित्व का है। वर्तमान वैश्विक राजनैतिक व्यवस्था हमने अपने होश में चुनी है या ये किसी गहन षड़यंत्र की आहट है ????? पिछले २०० वर्ष से हम एक गहन वैश्विक षड़यंत्र में आँख मूंदे जी रहे हैं। पर अब समय आ गया है जागने का।

"सत्ता स्वभाव से ही स्वभक्षी होती है।"
१७वीं सदी के उत्तरार्ध तक सारी दुनिया में राजसत्ता कायम थी। राजाओं का राज था।
राजवंशों के उदय व अस्त का खेल न जाने कब से चला आ रहा था। एक जनप्रिय राजा अपनी शक्ति से एक साम्राज्य का स्थापन पालन करता और कालांतर में जब उसी के वंशज साम्राज्य का शोषण करने लगते तो कोई अन्य वीर उनको अपदस्थ कर नए साम्राज्य की नींव रखता।
ये खेल इतना दुहर चुका था कि जनसामान्य में एक अनुभवगम्य विश्वास बैठ गया था कि "शासक परमात्मा के द्वारा भेजा जाता है।"
इस भरोसे के चलते जनता सदा एक आदर्श राजा की प्रतीक्षा करती और अक्सर सही समय पर वह आता भी।

मगर १७८९ के आसपास फ्रांस में कुछ अलग घटित हो गया।

तब का राजा लुइस १६ वाँ एक अय्याश , बुद्धू , कायर और आत्ममुग्ध व्यक्ति था। जनता पर उसके दरबारियों का शासन था।
आमजन करों से पिस रहा था और दरबारी खून चूसे जा रहे थे।
शासन में दो वर्गों का एकाधिकार था, Noble  और Clergy .... ।
नोबल या विशिष्ट लोगों में बड़े ज़मींदार या Duke आते थे और Clergy में पादरी वर्ग।

तब का फ्रांस सारे यूरोप से कोई बहुत अलग नहीं था। सब जगह राजसत्ता कायम थी। जनता शोषित थी। धनी ज़मींदार और मठाधीशों का शिकंजा सत्ता पर कसा हुआ था। पर लोग आश्वस्त थे कि ईश्वर जल्द ही अच्छे राजाओं को भेजेगा ।
मगर १७८९ में फ्रांस के लिए ईश्वर ने कुछ और ही तय किया था।

........ कुछ ऐसा जो सारे विश्व की राजनैतिक व्यवस्था को बदलने वाला था।

*सत्ता स्वभाव से ही स्वभक्षी होती है ।*
लुइस १४वें का शासन एक सशक्त सम्राट का शासन था। उसके पहले के राजा भी सत्ता पर पकड़ रखते थे। किंतु लुइस १५ के साथ पतन आरंभ हुआ।
लुइस १५ वां युद्धखोर मानसिकता का व्यक्ति था। ऑस्ट्रिया पर कब्जे के चक्कर में इसने पूरे ७ वर्ष फ्रांस की सेना को युद्ध में झोंके रखा।
फलतः देश की आर्थिक हालत पतली हो गई।
सम्राट को देश की दुर्दशा से कोई मतलब नहीं था। उसके अनाप शनाप खर्चे और युद्ध पिपासा की पूर्ति हेतु फ्रांस की जनता थी ही सही।
उसके बाद उसका पुत्र लुइस १६ वाँ सिंहासन पर बैठा। ये अपने बाप से बढ़कर बुद्धिहीन साबित हुआ। इसे लगता था कि "कानून अर्थात् मैं।"
इसके दरबार में चापलूस बुद्धिजीवियों का जमावड़ा था जो इसे तरह तरह के सनकी ideas पकड़ाते और जेबें भरते थे।
Duke of Orleans, Mirabaeu इत्यादि कुछ ऐसे नाम थे जो इसे अपनी बुद्धि से चरा रहे थे।
Duke of Orleans एक घाघ राजनेता के साथ यूरोप के कुछ गुप्त संगठनों में उच्चतर पद पर भी था।
वहीं मिरॉबो एक अतिमहत्वाकांक्षी व्यक्ति था। उसकी निष्ठाएँ वैश्याओं की तरह थीं।

तत्कालीन फ्रांस का समाज तीन मोटे विभाजनों से समझा जा सकता है। हालाँकि उनमें भी आंतरिक विभाजन थे।
१- Clergy या पुरोहित वर्ग। ये चर्च से जुड़े धर्माचार्यों का वर्ग था। इसमें उच्चतर पद पर आसीन मठाधीशों का जीवन ऐशो आराम तथा विलासिता से भरपूर था। सम्राट से निकटता और सत्ता में दखल की वजह से जनसामान्य में इनका कोई सम्मान नहीं था। पर इससे इनको कोई फर्क नहीं पड़ता था।
दूसरे तल पर सामान्य पादरी आते थे जो जनता के बीच रहते थे।इन लोगों ने क्रांति के आरंभिक दौर में उसे सहयोग दिया था। क्योंकि मूर्ख राजा और उसके कुटिल चमचों के कारण भावी सर्वनाश की गंध इन्हें मिल रही थी।

२- Nobles या विशिष्ट जन। ये धनी ज़मींदार और मंत्री वगैरह थे। Dukes , Counts जैसे प्रभावशाली लोग इस वर्ग में थे।

Clergy और Nobles ने स्वयं को विशेषाधिकार संपन्न कर रखा था। अर्थात् ये कर नहीं देते थे। इनपर कोई नियम लागू नहीं था। सिवाय सम्राट के ये किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं थे।
३- Peasants आम नागरिक।
इनमें डॉक्टर, वकील जैसे प्रभावशाली लोग भी थे, तो बड़े छोटे व्यापारी भी, और किसान मजदूर भी।
सिर्फ यही वर्ग कर चुकाता था पर अधिकार और सुविधा के नाम पर इसे शून्य ही हाथ लग रहा था।
लगातार राज परिवार की फिजूलखर्ची ने फ्रांस को दिवाले की हालत में ला दिया था।

इसी समय जर्मनी के सुदूर प्रांत "बवेरिया" से JJC Bode और उनके साथी फ्रांस के ग्रामीण अंचलों में दौरे कर रहे थे।
Baveria से विस्थापित होकर फ्रांस के ग्रामीण अंचलों में प्रवेश कर रहा था यूरोप का एक प्रेत तुल्य गुप्त संगठन ....*Illuminati*
पहले समझ लें कि *Illuminati* क्या है।

लैटिन शब्द Illuminatus का बहुवचन है Illuminati शब्द।
इसका अर्थ है *प्रबुद्ध*।

Illuminati का Bavarian version १८ वी  सदी में प्रकाश में आया।
Dr. Adam Weishaupt ने इस संगठन की नींव डाली थी। राजनैतिक षड़यंत्र रचना के अभियोग में तब के बवेरियन शासक ने इस संगठन को प्रतिबंधित किया था। फलतः उर्वर वैचारिक भूमि की खोज में ये फ्रांस की ओर बढ़ गए। ये सन् १७८५ की बात है। इसी समय फ्रांस की सत्ता लुइस १६ वें के हाथ आई थी।

अब विषयांतर की अनुमति सहित और पीछे ले जाना चाहूँगा ताकि विषय खुद को खोल दे।

जीसस क्राइस्ट ब्रह्मचारी नहीं थे जैसा कि चर्च दावा करता है। न व्यभिचारी थे, जैसा कि तत्कालीन यहूदी दावा करते थे।

मैरी मैग्डालिन , जिसे ईसाई वैश्या कहते हैं, जीसस की पत्नी थी और Old Testament के King Solomon के खानदान से थी। राजनैतिक षड़यंत्र और जान बचाने की जद्दोजहद ने उसके परिवार को निर्धन खानाबदोश बना दिया था। स्वयं जीसस भी ऐसे ही परिवार के पुरुष थे। परिस्थितियाँ ऐसी हुईं कि जीसस को अपने परिवार की रक्षा हेतु मैरी मैग्डालिन से संबंध छुपाना पड़ा।

सूली लगने के बाद बचे हुए कुछ अनुयायियों के साथ मैरी मैग्डालिन आल्प्स पर्वत की ओर बढ़ गई। इन्हीं पहाड़ों में उसने जीसस से प्राप्त शक्ति उपासना की दीक्षा कुछ शिष्यों को दी। और एक मत ये भी है कि यहीं उसने जीसस की बेटी को जन्म भी दिया।

परम ज्ञान को सीधे किसी उच्चतर स्रोत से आह्वान करने की यह शक्तिपात परंपरा वहाँ
*Illumination* कहलाई। जीसस लद्दाख में इसकी साधना कर चुके थे (भविष्य पुराण देखें)।
मैरी मैग्डालिन ने अपना प्रतीक सनातन धर्म का स्वास्तिक रखा किंतु उसकी टेढ़ी भुजाएँ हटाकर ताकि संदेह से बचा जा सके।
+ चिन्ह चर्च ने आड़ी रेखा को जरा ऊपर खींचकर क्रॉस बना दिया।
मैरी मैग्डालिन के संप्रदाय में गुलाब का फूल Rose आध्यात्मिक प्रतीक था। इसके उपासक होने के कारण ये लोग Rosicrucian भी कहलाए।

मैरी मैग्डालिन को वैश्या घोषित करने के बाद चर्च ने उसके संप्रदाय को शैतान का पंथ घोषित कर दिया और Crusade के बहाने जिंदा जला दिया गया।
इसलिए Rosicrucians ने मैरी मैग्डालिन का गुप्त प्रतीक गुलाब का फूल माना और चर्च से अपमानजनक समझौता किया ताकि समूल नाश न हो।
१५ वीं सदी के आसपास ये लोग स्पेन सहित यूरोप के कई इलाकों में Illuminati अर्थात् प्रबुद्ध के रूप में विख्यात हो गए।

किंतु बवेरिया में Dr Adam Weishaupt डॉ. एडम वेइज़हाउप्त का बवेरियन प्रबुद्ध संघ एक अलग ही घटना थी।
स्पेन में वेइज़हाउप्त को Jesuit संप्रदाय से कुछ प्रशिक्षण मिला था। *Jesuit* (Jesuit = जीसस के लोग) मैरी मैग्डालिन के संप्रदाय का ही नामांतरण था। संभवतः  Crusaders की क्रूरता से बचने के लिए ये सही आवरण था।

किंतु साधना तप इत्यादि के प्रति नकारात्मक रुख की वजह से वेइज़हाउप्त सिर्फ बौद्धिक ज्ञान लेकर बवेरिया भाग आए।
उनका उद्देश्य राजनैतिक व्यवस्था परिवर्तन था। बवेरियन शासक ने जब इसे समझा तो निर्ममता से इनका दमन किया।
फ्रांस के ग्रामीण अंचलों में Rosicrucians छुपकर साधना कर रहे थे, ये वेइज़हाउप्त को पता था।
इसलिए सुरक्षित और वैचारिक भूमि फ्रांस ही हो सकती थी।
भले ही उसके लिए Rosicrucians को इस्तेमाल करके फेंकना पड़े।

*Edom is in  modern Jewry.*
एक यहूदी कहावत। इसका अर्थ है "आधुनिक यहूदियों में ईदोम का रक्त है।"
पर हम इसे कहेंगे अब यहूदी का न्याय 'लाल' होगा।

यहूदी माता पिता से जन्मे Adam Weishaupt एडम वेइज़हाउप्त १ मई १७७६ को एक संगठन की नींव रखते हैं। नाम दिया जाता है *The Perfectiblists* पर जल्दी ही Illuminati नाम से विख्यात हो जाते हैं।

Illuminati का मातृ संगठन है *Free Masons*.... एक ऐसा गुप्त संगठन जो वास्तुविद तांत्रिकों को तैयार करता रहा है। विश्व की तमाम बड़ी ऐतिहासिक इमारतों में मेसन्स ने गुप्त रहस्य छुपा रखे हैं जिनको वे सही समय आने के पहले जान देकर या लेकर भी छुपाकर रखते आए हैं।
किंतु अमेरिकी गृहयुद्ध में Free Masons ने बहुत खूबी से षड़यंत्रों को अंजाम दिया और लिंकन से आजतक अपनी कठपुतली सत्ता स्थापन में सफल रहे।

एडम वेइज़हाउप्त ने इस संगठन में दाखिला लिया ताकि अमेरिकी गृहयुद्ध की सफलता बवेरिया और फिर समस्त यूरोप में दोहराई जा सके।

पर जल्दी ही वेइज़हाउप्त ने समझ लिया कि अपनी दूकान हट के लगाने में फायदे ज्यादा हैं।
Illuminati ने Free Masons के आंतरिक संगठन के रूप में जन्म लिया था पर शीघ्र ही वेइज़हाउप्त की चतुराई ने उसे मुख्य संस्था बना दिया।

१७८५ में एक घुड़सवार संदेशवाहक पर बिजली गिरी। घोड़ा और सवार दोनो राख हो गए पर जाने कैसे उसका चमड़े का बैग बच गया। बवेरियन सुरक्षाबलों ने बैग से एडम वेइज़हाउप्त के हस्तलिखित कुछ दस्तावेज प्राप्त किए जिनमें भविष्य में यूरोप से चर्च और राजवंशों को उखाड़ फेंकने की योजना लिखी थी।

त्वरित प्रभाव से वेइज़हाउप्त के संगठन सहित सभी गुप्त संगठन प्रतिबंधित किए गए। वेइज़हाउप्त को पकड़ पाते उसके पहले ही वह भाग निकला और फिर कभी नहीं दिखा। किंतु फ्रांस में एक मजबूत व्यवस्था उसने जमा दी थी।
#क्रमशः ....
#अज्ञेय
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Courtesy:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=473002873040731&id=100009930676208

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