#वेद_vs_विज्ञान भाग - 13
#वर्ण-मापन-विज्ञान
(SPECTROSCOPY)
#परिचय -
स्पेक्ट्रमिकी, भौतिकी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस शाखा में मुख्य रूप से वर्णक्रम का ही अध्ययन होता है अत: इसे स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रमविज्ञान (Spectroscopy) कहते हैं।
#वर्ण-मापन-विज्ञान
(SPECTROSCOPY)
#परिचय -
स्पेक्ट्रमिकी, भौतिकी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस शाखा में मुख्य रूप से वर्णक्रम का ही अध्ययन होता है अत: इसे स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रमविज्ञान (Spectroscopy) कहते हैं।
#आधुनिक विज्ञान का मत -
विकिरण एवं पदार्थ के बीच अन्तरक्रिया (interaction) के अध्ययन को स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) कहा जाता था। वस्तुत: ऐतिहासिक रूप से दृष्य प्रकाश का किसी प्रिज्म से गुजरने पर अलग-अलग आवृत्तियों का अलग-अलग रास्ते पर जाना ही स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाता था।
बाद में 'स्पेक्ट्रोस्कोपी' शबद के अर्थ का विस्तार हुआ। अब तरंगदैर्ध्य (या आवृत्ति) के फलन के रूप में किसी भी राशि का मापन स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाती है। इसकी परिभाषा का और विस्तार तब मिला जब उर्जा (E) को चर राशि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया (क्योंकि पता चला कि उर्जा और आवृत्ति में सीधा सम्बन्ध है : E = hν)
किसी राशि का आवृत्ति के फलन के रूप में आलेख (प्लॉट) वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) कहलाता है। किसी पदार्थ के किसी द्रव्यमान में आयनों, परमाणुओं या अणुओं की उपस्थिति की सघनता (concentration) का मापन स्पेक्ट्रोमेट्री कहलाता है। जो उपकरण स्पेक्ट्रोमेट्री में सहायक होते हैं वे स्पेक्ट्रोमीटर, स्पेक्ट्रोफोटोमीटर या स्पेक्ट्रोग्राफ आदि नामों से जाने जाते हैं। स्पेक्ट्र्स्कोपी/स्पेक्ट्रोमेट्री का उपयोग भौतिक एवं वैश्लेषिक रसायन विज्ञान में बहुधा किया जाता है।
बाद में 'स्पेक्ट्रोस्कोपी' शबद के अर्थ का विस्तार हुआ। अब तरंगदैर्ध्य (या आवृत्ति) के फलन के रूप में किसी भी राशि का मापन स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाती है। इसकी परिभाषा का और विस्तार तब मिला जब उर्जा (E) को चर राशि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया (क्योंकि पता चला कि उर्जा और आवृत्ति में सीधा सम्बन्ध है : E = hν)
किसी राशि का आवृत्ति के फलन के रूप में आलेख (प्लॉट) वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) कहलाता है। किसी पदार्थ के किसी द्रव्यमान में आयनों, परमाणुओं या अणुओं की उपस्थिति की सघनता (concentration) का मापन स्पेक्ट्रोमेट्री कहलाता है। जो उपकरण स्पेक्ट्रोमेट्री में सहायक होते हैं वे स्पेक्ट्रोमीटर, स्पेक्ट्रोफोटोमीटर या स्पेक्ट्रोग्राफ आदि नामों से जाने जाते हैं। स्पेक्ट्र्स्कोपी/स्पेक्ट्रोमेट्री का उपयोग भौतिक एवं वैश्लेषिक रसायन विज्ञान में बहुधा किया जाता है।
#वैदिक साहित्यो में इसका प्रचुर ज्ञान -
चितिचैत्यस्पन्दनेन सृष्टयाद्यतेकमेवहि।
तम: प्रादुरभूद्वेगात्तम स्पृष्टवैवकेवलम्।।
तमेवमूलप्रकृतिरित्यार्हुज्ञानवित्तमा:।
तम आसीदितिप्राहतमेवहिसनातनी।।
पश्चात्तस्मिन्चितप्रकाशस्स्वभावात्प्रतिबिंबित :।
तत्सानिध्यबलातन्मूलप्रकृत्यामतिवेगत:।।
अन्धंतमोगूढंतमस्तमश्चेतियथाक्रमम्।
तमांसित्रीण्यजायन्तचित्प्रभामिश्रितानिहि।।
त्रिगुणाइतितान्येवप्रवदन्तिमनीषिण:।
सत्वंरजस्तमइतिगुणा: प्रकृतिसंभव:।।
पृष्ठ ८५, अंशुबोधिनी
तम: प्रादुरभूद्वेगात्तम स्पृष्टवैवकेवलम्।।
तमेवमूलप्रकृतिरित्यार्हुज्ञानवित्तमा:।
तम आसीदितिप्राहतमेवहिसनातनी।।
पश्चात्तस्मिन्चितप्रकाशस्स्वभावात्प्रतिबिंबित :।
तत्सानिध्यबलातन्मूलप्रकृत्यामतिवेगत:।।
अन्धंतमोगूढंतमस्तमश्चेतियथाक्रमम्।
तमांसित्रीण्यजायन्तचित्प्रभामिश्रितानिहि।।
त्रिगुणाइतितान्येवप्रवदन्तिमनीषिण:।
सत्वंरजस्तमइतिगुणा: प्रकृतिसंभव:।।
पृष्ठ ८५, अंशुबोधिनी
अर्थात् तम/विकीरण (radiation) के लिये ध्वान्त कारण (instrumental reason) है। व्यापक अर्थ में तम आवरण (संभवत: positron) 'कंचुक-आवरण' (electron) की चित् (दनबसमंत बवतम) की उपस्थिति के कारण अत्यंत वेग (force) से भ्रमण करने लगती है, जिससे तीन प्रकार के 'तम व कंचुक-आवरण के मिश्रण से त्रिगुण (तम, सत्त्व, रज) उत्त्पन्न होते हैं। जिन्हें हम क्रमश: अंधतम, गूढ़तम एवं तम (Ultraviolet, Visible, infrared) कहते हैं।
तेषुशारिकनाथोक्तध्वान्तविज्ञानभास्करे।
तमप्रमापकविधौसन्ति शास्त्राणिपंचधा।।
तदेवात्रसमासेनयथाशास्त्रंनिरूप्यते।
तमप्रमापकविधिर्यथोक्तंस्वानुभूतित:।।
ध्वान्तप्रमापकंयन्त्रंनवोत्तरशतात्मकम्।
तमप्रमापकविधौसन्ति शास्त्राणिपंचधा।।
तदेवात्रसमासेनयथाशास्त्रंनिरूप्यते।
तमप्रमापकविधिर्यथोक्तंस्वानुभूतित:।।
ध्वान्तप्रमापकंयन्त्रंनवोत्तरशतात्मकम्।
शारिकानाथ: -
उक्तंहियन्त्रसर्वस्वेभरद्वाजेनधीमता।
द्वात्रिंशदंगसंयुक्तंतमोभेदप्रदर्शकम्।।
तस्मादत्रसमासेन तदंगंप्रविविच्यते।
तस्यत्रयोदशांगेनप्रमातुंतमसोभवेत्।।
उक्तंहियन्त्रसर्वस्वेभरद्वाजेनधीमता।
द्वात्रिंशदंगसंयुक्तंतमोभेदप्रदर्शकम्।।
तस्मादत्रसमासेन तदंगंप्रविविच्यते।
तस्यत्रयोदशांगेनप्रमातुंतमसोभवेत्।।
शारिकनाथ के "ध्वान्त विज्ञान भास्कर" नामक ग्रन्थ में उल्लेख है कि भरद्वाज के ग्रंथ "यंत्र सर्वस्य" में १०९ वे यंत्र के रूप में "ध्वान्त प्रमापक यंत्र", जो कि ३२ यंत्रांगो (ancillary components) से बना है, व्यापक रूप से 'ध्वांत' का विवेचन करने में समर्थ है। तथापि शारिकनाथ के अनुसार 'तम' (radiation) विवेचन के लिये १३ यंत्रांग ही पर्याप्त हैं, अत: हम उन्हीं पर विचार करेंगे।
#विशेष--
वैदिक काल में 'वर्णक्रम मापक' जैसे जटिल (Sophisticated) यंत्र रहे हैं
उनका उपयोग सूर्य के प्रकाश में अवस्थित वर्णों के विक्षेपण (dispersion) मापन में तथा 'ज्योतिष-भौतिकी' (Astrophysics) में जिस प्रकार आज नक्षत्रों (
) का वार्णिक वर्गीकरण (spectral classification) करते हैं, उसी रूप में करते रहे हैं।
यंत्र में प्रयुक्त होने वाले मणियों एवं गवाक्षों (lenses: prisms and windows) के निमित्त उपयुक्त लौहों (materials) को बनाने की विधियों एवं गुणों को भी जानते रहे हैं।
महर्षि भरद्वाज द्वारा प्रणीत 'अंशुबोधिनी' 1 की प्राप्त पांडुलिपि (manuscript) के 'विषय वस्तु' (Text) में 'घ्वान्त-प्रमापकऱ्यंत्र के नाम से संबोधित 'वर्णक्रम मापक' (Spectrometer / monochromator) का वर्णन है। तदुपरांत सूर्य के प्रकाश का मणि (prism) द्वारा विक्षेपित (dispersed) विभिन्न तम-किरणों (rays of various radiation) के विभिन्न 'सांकतों' (symbols) के संगत प्राचीन कोण की इकाई कक्ष्य (१ कक्ष्य = १०.४ रेडियन) में अभिव्यक्त कोण परिमाणों (सांकेत संख्या) को क्रम से गिनाते हुए वर्णित किया गया है।
उनका उपयोग सूर्य के प्रकाश में अवस्थित वर्णों के विक्षेपण (dispersion) मापन में तथा 'ज्योतिष-भौतिकी' (Astrophysics) में जिस प्रकार आज नक्षत्रों (
) का वार्णिक वर्गीकरण (spectral classification) करते हैं, उसी रूप में करते रहे हैं।
यंत्र में प्रयुक्त होने वाले मणियों एवं गवाक्षों (lenses: prisms and windows) के निमित्त उपयुक्त लौहों (materials) को बनाने की विधियों एवं गुणों को भी जानते रहे हैं।
महर्षि भरद्वाज द्वारा प्रणीत 'अंशुबोधिनी' 1 की प्राप्त पांडुलिपि (manuscript) के 'विषय वस्तु' (Text) में 'घ्वान्त-प्रमापकऱ्यंत्र के नाम से संबोधित 'वर्णक्रम मापक' (Spectrometer / monochromator) का वर्णन है। तदुपरांत सूर्य के प्रकाश का मणि (prism) द्वारा विक्षेपित (dispersed) विभिन्न तम-किरणों (rays of various radiation) के विभिन्न 'सांकतों' (symbols) के संगत प्राचीन कोण की इकाई कक्ष्य (१ कक्ष्य = १०.४ रेडियन) में अभिव्यक्त कोण परिमाणों (सांकेत संख्या) को क्रम से गिनाते हुए वर्णित किया गया है।
ये विषय काफी विस्तृत है और इन्हें इतने कम में समझाना काफी मुश्किल काम है ।
Courtesy: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=271968733269539&id=100013692425716
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