Wednesday, 14 June 2017

आक्रोश_की_आड़_में

#आक्रोश_की_आड़_में - १

जितना अभिजात्य लेखनी वणिकों ने पिपलिया मंडी के किसान आंदोलन को घी पिलाया है उससे साबित होता है कि पूरा कार्यक्रम प्रायोजित था।

पूरी स्थिति फ्रांस की महान क्रांति की तर्ज पर निर्मित की गई है।
ज्ञातव्य है कि महान फ्रांसीसी क्रांति की पटकथा लिखी गई थी इलूमिनाटी के वरदहस्त में। वो कोई जनांदोलन नहीं था, बहुत सूक्ष्म ढंग से बुना गया घातक षड़यंत्र था, जो सफल हो गया है और परिणाम में हमें कम्यूनिस्ट रूपी उपहार दे चुका है।

मैं पिछले १५ दिन से इसी क्षेत्र में था और चाहे आप मुझे मूर्ख कहें या ज्यादा होशियार लेकिन इस कथित आंदोलन में मुझे इलूमिनाटी और फ्री मेसन्स के कार्यक्रम #NWO की आहट सुनाई दी है। जुड़े रहें खेल बहुत खतरनाक हो सकता है।

पटेल और पाटीदार लोग विशेष ध्यान रखें। हार्दिक पटेल और केजरीवाल जैसे धूर्त एजेंटों से सावधान रहें। आपको भविष्य के देशद्रोही खलनायक बनाने का घृणित षड़यंत्र रचा जा रहा है।

#अज्ञेय

Source: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=472930016381350&id=100009930676208

#आक्रोश_की_आड़_में -२

किसी प्रसिद्ध इतिहासकार से सुना था कि #मालवप्रदेश की कीर्ति और पतन के चार आधार स्तंभ हैं।
१ #वीर, २ #विद्या, ३ #वरांगनाएँ और ४ #व्यंजन।

प्राचीन काल से ही मालव भूमि अपने वीरों के लिए प्रसिद्ध​ रहा है। राजा भोज, मुंज, विक्रमादित्य, भर्तृहरि और भी अनेक वीरों ने इस भूमि को रक्षित किया गौरवांवित किया।
कालिदास और भर्तृहरि सहित अनेक विद्वानों पर मालव आजतक गर्व अनुभव करते हैं।
वरांगनाओं के बारे में बात करना व्यर्थ है क्योंकि सुंदर स्त्रियों की आज भी मालवा में कमी नहीं है। और व्यंजन की स्थिति ये है कि मालवा के गांव के हलवाई की दुकान पर भी जो व्यंजन मिलते हैं वे गुणवत्ता में अन्य प्रांतों के नगरों को पीछे छोड़ते हैं।

आज मालवा धधक रहा है। इसे भी ऐतिहासिक पतन के साथ ही देख लीजिए। मालवा के वीर अपने ही लोगों से उलझे हुए हैं।

पाटीदार समाज मालवा की कृषि व्यवस्था की रीढ़ है। जहां तक मुझे ज्ञात हुआ है ये पाटीदार लोग प्राचीन काल में राजाओं के साथ युद्ध में भाग लेने वाले सैनिक होते थे और शांतिकाल में ये लोग कृषि में लगे रहते थे। उग्रता और व्यवसायिकता का विचित्र किंतु दुर्लभ संयोजन पाटीदारों में दिखाई देता है तो कारण यही है कि ये आनुवांशिक रूप से सैनिक भी हैं। इनकी गणना कुर्मी पटेल के रूप में पृथक जाति के तौर पर होती है।

राजशाही के अंत के साथ ही अंशकालिक सैनिकों की आवश्यकता समाप्त हो गई और लोकतांत्रिक व्यवस्था में इनका कार्य मात्र कृषि रह गया।

ये​ स्मरण दिलवाने की आवश्यकता है क्या कि देश में लोकतंत्र की स्थापना के साथ किन लोगों ने शासन किया और कृषि क्षेत्र की क्या हालत की ???
समय के साथ कृषि क्षेत्र में रोता धोता सुधार हुआ और कृषि क्षेत्र आधुनिकीकरण की ओर बढ़ा। कृषि पर पूर्णतया अवलंबित पाटीदार समाज ने अपनी व्यवसायिक चतुराई का परिचय देते हुए सबसे पहले आधुनिकीकरण को अपनाया। मालवा के गांवों में पूछिए तो पता चलता है कि ठाकुर साहब से पहले ट्रैक्टर से जुताई पाटीदार ने आरंभ कर दी थी।

इसका लाभ हुआ और ग्रामीण परिवेश में पाटीदार समाज समृद्धि के आयाम स्थापित करने लगा।
किंतु ये लोग यहीं नहीं रुके। धीरे धीरे पाटीदारों ने कृषि उपकरण निर्माण के लघु उद्योग गांवों में स्थापित किए और ग्रामीण क्षेत्रों में सशक्त आर्थिक स्थिति के साथ अन्य लोगों के लिए रोजगार के स्रोत बनकर उभरे। आज ट्रैक्टर ट्रॉली, हल इत्यादि से लगाकर खाद-बीज तक हर व्यवसाय में पाटीदार बैठा है और ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन किसानों के लिए रोजगार व व्यवसाय का केंद्र है।आज इस समाज के बच्चों में उच्च शिक्षित युवाओं का प्रतिशत बढ़ा है।

आज जो विध्वंस हुआ है उसे भी पाटीदार समाज से जोड़ कर देखा जा रहा है जो किसी मात्रा में सही भी है क्योंकि उपद्रव में पाटीदार समाज की भागीदारी ९५% से अधिक है।

जेटली की बुद्धिहीन नीतियों के चलते कृषि क्षेत्र की आर्थिक स्थिति चरमरा गई थी जिसका सबसे बुरा प्रभाव मालवा में पाटीदार समाज पर पड़ा। औद्योगिक क्षेत्र को लगातार नुकसान और पर्यावरण की हत्या के बावजूद बैंकों ने करीब ९ लाख करोड़ रुपए का ऋण डूबत में डाल कर सहायता दी है और सरकार मौन है। जबकि कृषि क्षेत्र का सारा कर्ज़ा ३ लाख करोड़ रुपए से अधिक नहीं है। सांसद विधायकों को लगातार वेतन-वृद्धि और पेंशन तक दी जा रही है और किसान के हिस्से सिर्फ झाँसा ???

मोटा-मोटी किसान के भीतर के आक्रोश को गलत नहीं कहा जा सकता है। किंतु इसका भयावह पक्ष ये है कि भारत के विध्वंस के लिए लगी शक्तियों ने इस आक्रोश का दोहन कर लिया है और पाटीदारों के कंधे पर बंदूक रखकर गेम खेला है।

फिर से बता दूं पूरी घटना योजनाबद्ध है। पिछले साल डेढ़ साल में हार्दिक पटेल ने रतलाम सहित मालवा के गांवों में पाटीदार समाज से ३/४ बार मुलाकात की थी जिसका परिणाम दिखाई दे रहा है। अफीम तस्करों और प्रशिक्षित गुंडों की सहायता से सारा खेल रचा गया है।

कॉन्ग्रेस की भूमिका इसमें घृणित और मूर्खतापूर्ण है। एक राष्ट्रीय स्तर का दल यदि इस आक्रोश को स्वर देता तो आंदोलन इस बुरी तरह अराजक नहीं होता। किंतु कॉन्ग्रेस ने अराजकता को फैलने दिया और लोगों के मरने तक पीछे से भावनाओं के भड़काने में लगी रही।

संघ अपने बड़े घर की बेटी के ठसके सहित नकचढ़े भाव से दूर बैठा देखता रहा और गांव जलते रहे।

इस विध्वंस का दायित्व सामुहिक है। अकेले पाटीदार समाज को खलनायक बनाने से कुछ नहीं होगा। नाराजगी है तो बात कीजिए कोसने की आवश्यकता नहीं है।

#अज्ञेय

Source: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=473317613009257&id=100009930676208

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