Wednesday 14 June 2017

वेद_vs_विज्ञान भाग-11, धातु_कर्म (Metallurgy)

#वेद_vs_विज्ञान भाग - 11
                            #धातु_कर्म
                         (Metallurgy)
#आधुनिक परिचय -
अयस्कोँ से शुद्ध धातु प्राप्त करने की क्रिया को धातुकर्म कहा जाता है अयस्को से शुद्ध धातु की प्राप्ती हेतू कुछ भौतिक (physicaly) और रसायनिक विधियोँ (method) का प्रयोग किया जाता है ।
जिन खनिजोँ से किसी धातु को प्रचुर मात्रा मेँ तथा कम खर्चे पर प्राप्त किया जा सके ,उस खनिज को उस धातु का अयस्क कहते हैँ ।
#उदाहरण- एल्युमिनियम को बाँक्साइट से प्राप्त किया जा सकता है । अत: बाँक्साइट को एल्युमिनियम का अयस्क कहते है ,किसी भी धातु के बहुत से अयस्क हो सकते हैँ ,परन्तु जिससे वह धातु आसानी से कम खर्चे पर प्राप्त किया जा सके वह उस धातु का मुख्य अयस्क कहलाता है
#वैदिक साहित्यों में इसका ज्ञान आज के आधुनिक विज्ञान से कही अधिक और ज्यादा स्पष्ट था आइये देखते है -
क्रमेण कृत्वाम्बुधरेण रंजित:।
करोति शुल्वं त्रिपुटेन काञ्चनम्‌॥
सुवर्ण रजतं ताम्रं तीक्ष्णवंग भुजङ्गमा:।
लोहकं षडि्वधं तच्च यथापूर्व तदक्षयम्‌॥ – (रसरत्नाकार-३-७-८९-१०)
अर्थात्‌ – धातुओं के अक्षय रहने का क्रम निम्न प्रकार से है- सुवर्ण, चांदी, ताम्र, वंग, सीसा, तथा लोहा। इसमें सोना सबसे ज्यादा अक्षय है।
कॉपर सल्फेट बनाना-
ताम्रदाह जलैर्योगे जायते तुत्यकं शुभम्‌।
अर्थात्‌
तांबे के साथ तेजाब का मिश्रण होता है तो कॉपर सल्फेट प्राप्त होता है।
बज्रसंघात (जिससे जंग और अन्य नुकसान से बचाया जा सके) का बनाना-
अष्टो सीसक भागा: कांसस्य द्वौ तु रीतिकाभाग:।
मया कथितो योगोऽयं विज्ञेयो वज्रसड्घात:॥
अर्थात्‌ एक यौगिक जिसमें आठ भाग शीशा, दो भाग कांसा और एक भाग लोहा हो उसे मय द्वारा बताई विधि का प्रयोग करने पर वह वज्रसङ्घात बन जाएगा।
इति सम्पादितो मार्गो द्रुतीनां पातने स्फुट:
साक्षादनुभवैर्दृष्टों न श्रुतो गुरुदर्शित:
लोकानामुपकाराएतत्‌ सर्वें निवेदितम्‌
सर्वेषां चैव लोहानां द्रावणं परिकीर्तितम्‌-
(रसकल्प अ.३)
संक्षारण एवं अन्य प्राकृतिक आक्रमणों से वस्तुओं को दस हजार वर्षों तक सुरक्षित रखने के लिए वराहमिहिर की वृहत संहिता में वज्र लेप एवं वज्र संघट्ट के प्रयोग की अनुशंसा है।
शुक्र नीति में कोयला, गंधक, शोरा, लाल आर्सेनिक, पीत आर्सेनिक, आक्सीकृत सीसा, सिंदूर, इस्पात का चूरा, कपूर, लाख, तारपीन एवं गोंद के भिन्न-भिन्न अनुपातों में मिश्रण को गर्म कर अनेक प्रकार के विस्फोटकों के निर्माण की चर्चा की गई है।
#विशेष -
उत्खनन से उजागर हुए नालंदा, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल एवं तक्षशिला आदि स्थलों से प्राप्त लोहा, तांबा, रजत, सीसा आदि धातुओं की शुद्धता ९५ से ९९ प्रतिशत तक पाई गई है। इन्हीं स्थलों से पीतल और कांसा, मिश्र धातुएं भी प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुई है। इनकी शुद्धता इस बात की परिचायक है कि भारत में उच्चकोटि के धातुकर्म की प्राचीन परंपरा रही है। पुरातात्विक स्थलों से धातुकर्म में प्रयुक्त होने वाली जिन भट्ठियों आदि का पता चला है वे सभी संस्कृत पुस्तकों के विवरणों से मेल खाती है। हट्टी की स्वर्ण खदान में ६०० फुट की गहराई पर पाया गया उर्ध्वाधर शाफ्ट तकनीकी के क्षेत्र में भारतीय कौशल का जीता जागता उदाहरण है।
#नोट - भारतीय धातु कर्म का जीता जागता उदाहरण मेहरौली का लौह स्तंभ भी है जिसे आप आसानी से देख सकते है कि खुले वातावरण में रखे जाने के बाद भी आज उसपे जंग का कोई असर नही है
Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=270951356704610&id=100013692425716

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