#वेद_vs_विज्ञान भाग - 5
#वायुयान (aircrafts)
#वायुयान (aircrafts)
#वैज्ञानिक दावा -
आधुनिक वायुयान को सबसे पहले राइट बंधुओं ने बनाया था जिनके नाम क्रमशः विल्वर और ओरविल दोनो में चार साल का अंतर था।
1903 में 17 दिसम्बर को उन्होंने अपने वायुयान का परीक्षण किया। पहली उड़ान ओरविल ने की। उसने अपना वायुयान 36 मीटर की ऊंचाई तक उड़ाया। इसी यान से दूसरी उड़ान विल्वर ने की। उसने हवा में लगभग 200 फुट की दूरी तय की। तीसरी उड़ान फिर ओरविल ने और चौथी और अन्तिम उड़ान फिर विल्वर ने की। उसने 850 फुट की दूरी लगभग 1 मिनट में तय की। यह इंजन वाले जहाज की पहली उड़ान थी। उसके बाद नये-नये किस्म के वायुयान बनने लगे। पर सबके उड़ने का सिद्धांत एक ही है।
आधुनिक वायुयानों को मुख्य रूप से को दो वर्गों में बांटा जा सकता है:
हवा से हल्के (एरोस्टैट्स)
हवा से भारी (एरोडाइन्स)
आधुनिक वायुयान को सबसे पहले राइट बंधुओं ने बनाया था जिनके नाम क्रमशः विल्वर और ओरविल दोनो में चार साल का अंतर था।
1903 में 17 दिसम्बर को उन्होंने अपने वायुयान का परीक्षण किया। पहली उड़ान ओरविल ने की। उसने अपना वायुयान 36 मीटर की ऊंचाई तक उड़ाया। इसी यान से दूसरी उड़ान विल्वर ने की। उसने हवा में लगभग 200 फुट की दूरी तय की। तीसरी उड़ान फिर ओरविल ने और चौथी और अन्तिम उड़ान फिर विल्वर ने की। उसने 850 फुट की दूरी लगभग 1 मिनट में तय की। यह इंजन वाले जहाज की पहली उड़ान थी। उसके बाद नये-नये किस्म के वायुयान बनने लगे। पर सबके उड़ने का सिद्धांत एक ही है।
आधुनिक वायुयानों को मुख्य रूप से को दो वर्गों में बांटा जा सकता है:
हवा से हल्के (एरोस्टैट्स)
हवा से भारी (एरोडाइन्स)
#वैदिक ज्ञान से चोरी -
महर्षि भारद्वाज को विमान शास्त्र का रचयिता और प्रथम वायुयान के आविष्कारक के रूप में देखा जाता है ।
महर्षि भारद्वाज को विमान शास्त्र का रचयिता और प्रथम वायुयान के आविष्कारक के रूप में देखा जाता है ।
श्लोक -
मेघोत्पत्तिप्रकरणोक्तशरन्मेधावरणषट्केषु द्वितीया वरणपथे विमानमन्तर्धाय विमानस्थ शक्त्याकर्षणदर्पणमुखात्तन्मेधशक्तिमाहत्य पच्श्राद्विमानपरिवेषचक्रमुखे नियोजयेत् । तेनस्तंभनशक्तिप्रसारणम् भवति, पच्श्रात्तद्दवा रा लोकस्तम्भनक्रियारहस्यम् ॥
मेघोत्पत्ति प्रकरण में कहे शरद ऋतु संबंधी छ: मेघावरणों के द्वितीय आवरण मार्ग में विमान छिपकर विमानस्थ शक्ति का आकर्षण करने वाले दर्पण के मुख से उस मेघशक्ति को लेकर पश्चात् विमान के घेरे वाले चक्रमुख में नियुक्त करे , उससे स्तम्भनशक्ति का विस्तार अर्थात प्रसार हो जाता है ,एवं स्तम्भन क्रिया रहस्य हो जाता है ....
मेघोत्पत्तिप्रकरणोक्तशरन्मेधावरणषट्केषु द्वितीया वरणपथे विमानमन्तर्धाय विमानस्थ शक्त्याकर्षणदर्पणमुखात्तन्मेधशक्तिमाहत्य पच्श्राद्विमानपरिवेषचक्रमुखे नियोजयेत् । तेनस्तंभनशक्तिप्रसारणम् भवति, पच्श्रात्तद्दवा रा लोकस्तम्भनक्रियारहस्यम् ॥
मेघोत्पत्ति प्रकरण में कहे शरद ऋतु संबंधी छ: मेघावरणों के द्वितीय आवरण मार्ग में विमान छिपकर विमानस्थ शक्ति का आकर्षण करने वाले दर्पण के मुख से उस मेघशक्ति को लेकर पश्चात् विमान के घेरे वाले चक्रमुख में नियुक्त करे , उससे स्तम्भनशक्ति का विस्तार अर्थात प्रसार हो जाता है ,एवं स्तम्भन क्रिया रहस्य हो जाता है ....
"विव्श्रक्रिया दर्पण का उल्लेख भी आता है , जिसे हम आज #रडार_सिस्टम कहते है ..... एक अध्याय मे इसका थोड़ा विस्तृत रूप मे भी उल्लेख है ... पर यहा संक्षेप मे उद्गृत करता हू - इसके अंतर्गत आकाश में विद्युत किरण और वात किरण मतलब रेडियो वेव्स , के परस्पर सम्मेलन से उत्पन्न होने वाली बिंबकारक शक्ति अर्थात इमेज मेकिंग पावर वेव्स का प्रयोग करके , रडार के पर्दो पर छाया चित्र बनाकर आकाश मे उड़ने वाले अदृश्य विमानो का पता लगाया जा सकता है ...
ऋग्वेद के छत्तीसवें सूक्त प्रथम मंत्र का अर्थ लिखते हुए कहते हैं कि ऋभुओं ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ बनाया था जो अंतरिक्ष में उड़ सकता था ।
विमान शास्त्र में कुल बत्तीस रहस्य बातये गए है इन बत्तीस रहस्यों में कृतक रहस्य तीसरा रहस्य है , जिसके अनुसार विश्वकर्मा , छायापुरुष , मनु तथा मयदानव आदि के विमान शास्त्र के आधार पर आवश्यक धातुओं द्वारा इच्छित विमान बनाना , इसमें हम कह सकते हैं कि यह हार्डवेयर का वर्णन है।
वेदों में वायुयान के प्रकार-
1. शक्त्युद्गम - बिजली से चलने वाला।
2. भूतवाह - अग्नि, जल और वायु से चलने वाला।
3. धूमयान - गैस से चलने वाला।
4. शिखोद्गम - तेल से चलने वाला।
5. अंशुवाह - सूर्यरश्मियों से चलने वाला।
6. तारामुख - चुम्बक से चलने वाला।
7. मणिवाह - चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियों से चलने वाला।
8. मरुत्सखा - केवल वायु से चलने वाला।
वेदों में वायुयान के प्रकार-
1. शक्त्युद्गम - बिजली से चलने वाला।
2. भूतवाह - अग्नि, जल और वायु से चलने वाला।
3. धूमयान - गैस से चलने वाला।
4. शिखोद्गम - तेल से चलने वाला।
5. अंशुवाह - सूर्यरश्मियों से चलने वाला।
6. तारामुख - चुम्बक से चलने वाला।
7. मणिवाह - चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियों से चलने वाला।
8. मरुत्सखा - केवल वायु से चलने वाला।
#विशेष - इस प्रकार हम कह सकते है कि महर्षि भरद्वाज प्रणीत ग्रंथ के विभिन्न अध्यायों में से एक अध्याय पर कुछ प्रयोंगों की सत्यता यह विश्वास दिलाती है कि यदि एक ग्रंथ का एक अध्याय सही है तो अन्य अध्याय भी सही होंगे और प्राचीन काल में विमान विद्या कपोल कल्पना न होकर एक यथार्थ था इस का विश्वास दिलाती है । यह विश्वास सार्थक करने हेतु इस पुस्तक के अन्य अध्याय अपनी सत्यता की सिद्धी हेतु साहसी संशोधकों की राह देख रहे हैं।
साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=268348523631560&id=100013692425716
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