Saturday, 17 June 2017

हिन्दुस्तान के लोगो की असली औकात

हिन्दुस्तान के लोगो की असली औकात !

वियतनाम जैसे छोटे से देश ने अमेरिका को पराजित कर दिया था। यदि सामरिक उद्देश्यो की दृष्टि से देखे तो सही भी है। इस युद्ध मे अमेरिका ने लगभग अपने 58,315 ( अठ्ठावन हजार तीन सौ पन्द्रह ) सैनिको की आहुति दी, लगभग 3,03000 (तीन लाख अमेरिकी सैनिक जख्मी हुए थे। दूसरी और दक्षिणी वियतनाम ने अपने 65,000 सिविलियन और 445,000 ( चार लाख पैंतालीस हजार सैनिको की आहुति दी उत्तरी वियतनाम ने अपने लगभग पाँच लाख सैनिक और असैनिक खोये थे।

इतने बडे स्तर पर जान - माल के नुकसान के बाद भी वियतनाम पीछे नही हटा .....

19 साल पाँच महीनो तक युद्ध चला , बाद मे अमेरिका पीछे हटा, मगर वियतनाम ने घुटने नही टेके, अब जरा सोचिये कि अगर वियतनाम की जगह भारत होता , तो क्या हम इतनी बडी, और इतने लम्बे समय तक कुर्बानी दे सकते थे ???

ज्यादा झाड पर चढने की जरूरत नही , ज्यादा सूरमाई , और वीरता की डींगे मारने की भी जरूरत नही , वैसे भी युद्ध के मैदान मे हम हिंदुओ का पराक्रम तो पूरे विश्व इतिहास मे जाना जाता है किंतु पिछले एक हजार वर्षो के इतिहास मे कई लडाई ऐसी नही जिसमे हम हारे नही चोर, डाकु, लुटेरे, गुलाम, और ना जाने कौन कौन आतताई मुठ्ठी भर घुडसवारो के साथ आते रहे ...हमे हराते रहे , और अपनी दासता के लिए मजबूर होते रहे। आज जब इतिहास पढते है , तो अंतिम विश्लेषण के रूप मे पढाया जाता है, कि हम संगठित नही थे , आपस मे ईर्ष्या और द्वेष के कारण आपस मे लडते रहते थे। हमारे अंदर फूट थी। हम विदेशियो का प्रतिकार नही कर पाये , आदि आदि आदि .....

यदि देखा जाऐ , तो भारतीय इतिहास मे जितने , स्वार्थी , गद्दार , और देशद्रोही मिलेंगें , शायद पूरे विश्व मे मिलने मुश्किल है ......ये वर्तमान के हिन्दू दस सालो तक युद्ध लडना तो दूर , कुछ ही घंटो के युद्ध मे हाँफ जायेगी। जो लोग आलू, प्याज , टमाटर के दामो मे पाँच दस रूपयो की बढोत्तरी बर्दाश्त नही कर सकते , वो दस साल लंबा युद्ध झेलना तो दूर , सोच भी नही सकते ....

आईये कुछ युद्धो एवं उनमे हुई कैजुल्टियो का विवरण भी देख , साथ ही साथ समायवधि को भी जान लें।

1947 मे आजादी मिलते ही , हम कश्मीर मे पाकिस्तान के साथ युद्ध मैदान मे खडे थे , लगभग एक साल और एक महीने मे ही,1500 सैनिक खोकर , हम समझौते पर उतर आये और मामला संयुक्त राष्ट्र संघ मे ले गये , क्योकि बकौल नेहरू देश युद्ध का खर्च नही उठा पा रहा था। जबकि हमसे खराब अर्थवयवस्था होने के बावजूद पाकिस्तान पीछे नही हटा , और आज तक पाक - अधिकृत कश्मीर पर उसका कब्जा बरकरार है।

1962 मे चीन के साथ युद्ध मैदान मे थे , हमने लाखो वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र और लगभग 1383 सैनिक खोये , जबकि 1696 लापता और उतने ही घायल हुए , मात्र एक महीने के युद्ध मे हम कंगाली के मुहाने पर खडे थे , क्योकि कोई भी युद्ध सैनिक लडते है , मगर वास्तविक अवलंब देश की आर्थिक शक्ति होती है जो देश को युद्ध मैदान मे खडा रखती है।

सितम्बर 1965 मे हम पाकिस्तान के साथ दूसरे युद्ध मे उतरे , मात्र 17 दिनो की लडाई मे ही, हमे दस्त लग गये, और तत्परता से सीज-फायर का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, युद्ध में हमने अपने , लगभग 3800 सैनिक खोये , मगर हमारे देशप्रेम की पोल दो हफ्तो मे ही खुल गई।

सन् 1971 मे हम एक बार फिर पाकिस्तान के साथ 13 दिनो के लिए युद्ध मे उतरे , निसंदेह हमने विजयश्री प्राप्त की , और पाकिस्तान के दो टुकडे कर दिये ,लगभग 4000 जवान शहीद हुए , मगर जल्द ही शिमला समझौते के तहत हमने खुद को छला , और युद्ध के कारण बढी मँहगाई की वजह से "आपातकाल" के दुष्प्रभावो को झेला, फलस्वरूप इंदिरा गाँधी को सत्ता गँवानी पडी।

इसके बाद श्रीलंका मे अनावश्यक हस्तक्षेप करके , ऑपरेशन "पवन" के तहत हमने श्रीलंका मे अपनी सेना भेजी, और 1200 सैनिको की जान के साथ साथ, राजीव गाँधी ने सत्ता से भी हाथ धोया।

वर्ष 1999 पाकिस्तान के साथ कारगिल मे लडे गये चौथे युद्ध मे हमने 527 जवान खोये , जिसके बाद कई देशो द्वारा इंबार्गो लगने के बाद , हमींने वाजपेयी जी को पानी पी पी के कोसा और जवानो की मौतो का जिम्मेदार तक बताया।

देखा जाए तो 1947 मे आजादी मिलने के बाद आज तक सैन्य अभियानो मे हमने लगभग 12,000 सैनिको की कुर्बानी दी है , ( कश्मीर के छद्म युद्ध के आँकडे शामिल नही है ) जबकि इससे ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक तो केवल 1971 मे ही पाकिस्तान ने गँवाये थे। अपनी आजादी को अक्षुण्य रखने के लिए ये कीमत कोई ज्यादा भी नही है , 125 करोड लोगो का देश है हम, शायद इसीलिए आजादी और स्वाधीनता की कीमत जान ही नही पाये हम लोग , क्योकि इसके लिए हमने कभी कोई बडी कीमत नही चुकाई ....शायद इसीलिए हम स्वशासन और राष्ट्रहित ,की कीमत अभी तक नही जानते , क्योकि हमने कभी कोई बडा मूल्य चुकाया ही नही।

आगरा शिखर वार्ता मे, हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी मुशर्रफ की चरण वंदना मे मशगूल दिखे , मानो वो कोई ईश्वरीय दूत हो ...अब ऐसे देश के लोगो से क्या अपेक्षा भी की जा सकती है , कि वो राष्ट्रवाद की बात करे ???

6 पुलिस वालों की शहादत पर पूरा देश , पाकिस्तानी सरकार के बजाय उनकी सेना से संवाद करने को लेकर गाल बजाने लगता है, ये है हमारा यौद्धाओ के रूप मे प्रदर्शन। कभी उनके दस लोग मुंबई को तीन दिनो तक दहलाये रखते है , तो कभी चार लोग पाँच दिनो तक पठानकोट जैसी घटनाओ को अंजाम देते है , और हम बजाय प्रतिक्रियात्मक रूख अपनाये , अपनी सरकारो को कोसने लगते है , मानो हमारी सरकार ने ही निमंत्रण भेजकर बुलाया हो।

दोस्तो राष्ट्रवाद , बहुत बडी चीज है, और दुर्भाग्य से हमारी संकुचित मूढ दिमाग से बहुत परे की चीज , दूध , घी , प्याज , टमाटर ,पेट्रोल की कीमतो , और आरक्षण के नाम पर विलाप करने वाले देश के नागरिक , शायद कौमी सम्मान , और अपनी पहचान के लिए मिट जाने का हुनर नही जानते , सीख भी नही सकते , ये केवल टुच्ची राजनीति , और स्वार्थ के गुलाम है ....एक कमजोर , कायर ,और बेगैरत कौम की तरह , जो आसानी से विदेशी प्रभुत्व के समक्ष , केवल अपने स्वार्थ के निमित्त नतमस्तक होने की कला मे पारंगत होकर, अपनी बुजदिली को , अहिंसा के झूठे लाबादे मे लपेटे हुए है।

वियतनाम , इजराइल , जैसे देशो से शायद हमे , राष्ट्रवाद , राष्ट्रभक्ति , और कौमी सम्मान के लिए सब कुछ न्योछावर कर देने के जज्बे सहित , बहुत कुछ सीखना बाकी है। 19 साल विश्व की महाशक्ति के सामने टिके रहने वाले छोटे छोटे देशो मे यदि आलू, प्याज , टमाटर , पैट्रोल की कीमतो वाले लोग होते , तो शायद उन देशो को भी भारत की तरह , विदेशी दासता 1000 सालो तक ढोना पडता।

Courtesy: Hindu Jaagran, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=487943438214235&substory_index=0&id=436564770018769

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