Wednesday 14 June 2017

लोकषड़यंत्र -४

आज की परिस्थितियों के नैपथ्य में छुपे इस भयावह षड़यंत्र को समझिए। इस अंतिम भाग के साथ आपको चिंतन के लिए छोड़ रहा हूं।
इस षड़यंत्र को अनावृत कीजिए।
चिंतन से सहमत हों तो प्रसारित करने के अनुरोध सहित.....
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#लोकषड़यंत्र - ४

*The Reign of Terror*
आतंक का राज...

पूरी व्यवस्था पर अपना खूनी शिकंजा कसने के बाद क्रांति का नाटक आरंभ हुआ।

ये समझना जरूरी है कि *"जब भी किसी देश का नाश होता है तो नैतिक पतन उसमें बड़ी भूमिका रखता है।"*

फ्रांस का जन सामान्य इन छुपे हुए षड़यंत्र रचयिताओं के भाड़े के दुष्प्रचारकों और अपराधियों के दुष्चक्र में फँस कर तेजी से अपने नैतिक पतन की नई नई परिभाषाएँ प्रस्तुत कर रहा था। उधर, चर्च और विशिष्ट वर्ग सुप्त पड़े थे, जैसे उन्हें कोई मतलब ही न था। सम्राट के आसपास Illuminati के लोग ही रह गए थे। वे लोग ही अब उसके मार्गदर्शक थे।

*Why don't they eat Cake ...?*
तो वे लोग केक क्यों नहीं खा लेते ???
ये विश्वप्रसिद्ध जुमला हर सामान्य ज्ञान रखने वाला जानता है।
पेरिस के एक थियेटर में कोई नाटक देखकर बाहर आती हुई महारानी *मैरी एंटोइनेट* ने देखा कि नीचे गरीब लोगों की भीड़ लगी है जो चिल्ला चिल्ला कर कुछ माँग रही है।
मैरी ने पूछा, "ये लोग कौन हैं??? ये क्यों चिल्ला रहे हैं???"
साथ खड़े व्यक्ति ने बताया, "महारानी, ये आपकी प्रजा है। इनके पास खाने को रोटी नहीं है।"
महारानी ने प्रतिप्रश्न किया, "तो ये केक क्यों नहीं खा लेते ???"

सत्ता पक्ष का अपनी जनता के प्रति उपेक्षा और हृदयहीनता का ये अपने आप में एक बेजोड़ उदाहरण है। वामपंथी इसे बिलकुल ऐसे सुनाते हैं मानो तब वहीं खड़े थे।

ये किस्सा एक गहन विश्लेषण माँगता है।
#Marie_Antoinette* ऑस्ट्रिया की राजकुमारी थी। जब सम्राट लुइस १६ वें के साथ उसका विवाह हुआ था तब वह मात्र १७ वर्ष की आयु की एक भोली सी किशोरी थी।
अपनी इस गुड़िया सी महारानी को फ्रांस के ग्रामीण से लगाकर अभिजात्य वर्ग तक सब बेहद प्यार करते थे। ये महारानी भी जानती थी।
फिर १५/२० सालों में ऐसा क्या हुआ कि ये गुड़िया सी महारानी एक हृदयहीन महारानी बन गई???

ये हुआ कि जनता और सम्राट के बीच की संवाद की कड़ियाँ विषाक्त हो चुकी थीं।

थियेटर में जब महारानी ने ये सवाल किया कि "ये लोग कौन हैं ?? क्या चाहते हैं ??"
तब रोटी नहीं होने पर उसने कहा था, *"तो इनके लिए रोटी का इंतज़ाम किया जाए।*

ये बात बाहर बिलकुल ही उलटकर कही गई।
Illuminati का जो स्लीपर सेल महारानी के आसपास था उसने बाहर अपने लोगों को विकृत तथ्य दे दिया और पेशेवर दुष्प्रचारकों के दल इस विकृत तथ्य के प्रचार में जुट गए।
*(मोदीजी का चुनाव और भारतीय मीडिया की भूमिका याद आई ???)*
एक सहृदय पर लापरवाह महारानी वैश्विक इतिहास की दुष्ट और अय्याश महिला प्रमाणित कर दी गई। *ये है Illuminati का वामपंथी स्लीपर सेल यानी #COMMUNIST.*

९ जुलाई १७८९ को कड़ा फैसला लेते हुए सम्राट ने अर्थ व्यवस्था का भट्ठा बैठाकर £17 करोड़ का कर्ज़ लाद देने वाले Rothschield के गुप्त एजेंट M Necker को वित्तमन्त्री पद से हटा दिया।

प्रशिक्षित दुष्प्रचारकों ने तत्काल इस घटना को जनता के लोकप्रिय मंत्री को हटाने के तानाशाही रवैये के रूप में हवा देना आरंभ कर दिया।
अफवाहों का बाजार गर्म था। रोज कुछ नया सुनने को मिल रहा था।इसी समय #Jacobian_Convent* में प्रशिक्षित दुष्प्रचारकों और उनके बाहरी मालिकों की एक गुप्त मीटिंग हुई। जिसमें एक भयानक निर्णय लिया गया।

उस मीटिंग के २/३ दिन बाद एक अफवाह बहुत तेजी से फैलने लगी कि M Necker को हटाने के तानाशाही फैसले के खिलाफ जनता को कुचलने के लिए सम्राट ने *बास्तील के किले* में भारी मात्रा में हथियार जमा किए हैं।लोगों ने हवा पकड़ ली और तूफान आकार लेने लगा।

Illuminati के प्रशिक्षित अपराधी और हत्यारे भीड़ में घुलमिल गए और *१४ जुलाई १७८९* को भारी भीड़ ने बास्तील के किले में आगजनी कर दी। वहाँ की जेल में बंद कैदियों को क्रांति के नारे के साथ मुक्ति दिला दी गई।बास्तील का किला दरअसल बहुत ही खूंखार अपराधियों की जेल थी। योजना यही थी कि भीड़ को भड़का कर हमला किया जाए और उन कैदियों को छुड़वा दिया जाए।अगले ही दिन से बास्तील के आसपास से पेरिस की ओर पेशेवर अपराधियों, विक्षिप्त हत्यारों, लुटेरों और बलात्कारियों की भीड़ सड़कों पर लूटपाट,हत्याएँ और घरों में घुसकर बलात्कार करते हुए बढ़ने लगी।इतिहास के सबसे रक्त रंजित पृष्ठ का पहला अक्षर लिखा जा चुका था।

*Yes, we are anarchists.*
हाँ हम अराजकतावादी हैं।
भारत में ये नारा गुंजित होते ही इसका मसीहा नंगा हो गया था। जी हाँ , धूर्तशिरोमणि केजरीवाल। किंतु फ्रांस में १४ जुलाई १७८९ के बाद से ये जुमला क्रांति का *Ignition switch* हो गया था। आज भी फ्रांस का स्वतंत्रता दिवस १४ जुलाई ही है। बास्तील पतन की घटना को इतना महिमामंडित किया गया कि अब सब जानते हुए भी फ्रांस उससे पीछा छुड़ाने का साहस नहीं कर सकता। ठीक वैसे ही जैसे हम नोट पर से गाँधी को नहीं हटा सकते।

बास्तील पतन से उत्साहित ग्रामीण जनता ने अपने अपने गाँवों में सामंतों के अभिलेखागारों पर हमले कर दिए और सारे दस्तावेज जला दिए। यहाँ भी लोगों के पीछे से हिंसा का प्रबंधन Illuminati के पेशेवर दुष्प्रचारकों, हत्यारों, लुटेरों और बलात्कारियों द्वारा किया जा रहा था।सामंतों के न सिर्फ घर और धन लूटे गए बल्कि क्रूरतम व्यवहार उनकी बहन ,बेटियों के साथ हुआ। सामुहिक बलात्कार से हजारों बच्चियाँ सड़कों पर मर गईं जिनकी लाशें बाद में गिद्ध, कुत्ते और सियार झिंझोड़ते मिले।

एक बार फिर तत्कालीन फ्रांसिसी परिवेश समझ लें।
तत्कालीन फ्रांसिसी समाज तीन मोटे विभाजनों में बँटा था।
१- पादरी वर्ग या *Clergy*
२- विशिष्ट वर्ग या *Nobles*
और
३- सामान्य वर्ग या *Commons*

पादरी वर्ग और विशिष्ट वर्ग विशेषाधिकार संपन्न होते थे।
कर देना उनके सम्मान के विपरीत था। कर केवल सामान्य वर्ग ही चुकाता था। पर फिर भी सुविधा के नाम पर इसे शून्य ही हाथ लग रहा था। इस असंतोष को Illuminati ने भुनाया।

Clergy या पुरोहित वर्ग में भी २ विभाजन थे।
१ उच्चतर पद पर आसीन मठाधीशों का।
२ जनसामान्य में रहकर धर्म प्रचार करने वाले निर्धन पादरियों का।
इस निर्धन पादरियों के वर्ग में भी असंतोष तो था। इसे Illuminati ने Templars के साथ मिलकर भुनाया।

जनसामान्य में गरीब मजदूर तो थे ही, उच्च शिक्षित डॉक्टर, वकील जैसे प्रभावशाली लोग भी थे। पर इनकी कोई कीमत नहीं थी सत्ता और धर्म के सामने।प्रतिभाशाली होकर भी भोंदू मठाधीशों और अय्याश सत्ता पक्ष के सामने बार बार अपमानित होना पड़ता था। फ्रांस में इस वर्ग को *बुर्जुआ* कहा जाता था। हमारे आज के मध्यम वर्ग का इसे पूर्वज कह सकते हैं। असंतोष इस वर्ग में भी था, जिसे Illuminati ने मिराबो, तुर्गों, वॉल्तेयर ,दिदरो, रूसो जैसे प्रभावशाली विद्वान लोगों विचारकों के माध्यम से भुनाया।

इस प्रकार समग्र समाज में व्याप्त असंतोष को Illuminati ने अपने प्रशिक्षित दुष्प्रचारकों और उनके एजेंटों के माध्यम से अपनी ओर खींचने का काम किया।ये सब इतनी सफाई से किया गया कि आज आप यदि संबंधित इतिहास के रिकॉर्ड खंगालें तो यही हाथ आता है कि *"असंतोष जुड़ते गए कारवाँ बनता गया और क्रांति हो गई।"*

इतिहास के रिकॉर्ड में कहीं Illuminati का नाम नहीं आता। Sir Walter Scott ने अपने महाग्रंथ *Life of Napoleon* में इसकी चर्चा की तो इनके प्रकाशक सहयोगियों ने उसके सारे भाग गायब करवा दिए बाजार से। आज पुरातत्व संग्रहालयों में Scott का कार्य सजाकर रखा है किंतु विश्वविद्यालयों तथा सार्वजनिक पुस्तकालयों से Walter Scott गायब हैं। भला हो तकनीक का जो अब संभव है नेट पर कुछ अंश मिल जाएं। पर वे भी साजिश से अछूते नहीं रहे होंगे।
ये किया है Illuminati के बौद्धिक गुंडों के गिरोह ने। जिनको आज आप कहते हैं *Leftists, Communists या वामपंथी।*
जब बालसामो और उसके कुटिल चमचों ने चर्च और साम्राज्य के उच्चतर पद कलंकित करने की साज़िश सफल कर ली तब Illuminati ने उन लोगों को आगे किया जिनको अब क्रांति का नेतृत्व करना था, आतंक का राज कायम करने में।
इनमें Robespierre, Danton और Marat प्रमुख थे।

जब बास्तील के खूनी दरिंदे सड़कों पर हत्या, लूटपाट और बलात्कार का वीभत्स खेल खेल रहे थे तब भविष्य की महान क्रांति के ये पुरोधा अपने अड्डे *Jacobian Convent* में उन लोगों की लिस्ट बना रहे थे जिनको इस अराजकता की आड़ में शीघ्रातिशीघ्र समाप्त करना क्रांति के लिए अति आवश्यक हो गया था। क्योंकि ये लोग प्रतिक्रिया दे रहे थे जिससे जनता का ध्यान आकृष्ट हो सकता था।

उधर सड़कों पर मिराबो और राजमहल में वामपंथी सम्राट के सामने चिल्ला रहे थे, *" Yes, we are anarchists !!! हाँ, हम अराजकतावादी हैं।

*मुक्ति*
क्रांति की लपटें पूरा फ्रांस झुलसा रही थीं।  *Robespierre* एक नायक बनकर या बनाकर सामने लाया जा रहा था। चुन चुनकर ऐसे विचारकों को मौत के घाट उतारा जा रहा था जो क्रांति के इस स्वरूप से असहमत थे और प्रभावशाली ढंग से समाज में बात रख सकते थे। हर राजनैतिक हत्या के बाद उसे साम्राज्य का छुपा हुआ व्यक्ति घोषित कर दिया जाता और लोगों को विकृत तथ्य के प्रचार में उलझा दिया जाता था। बालसामो और उसके कुटिल दुष्प्रचारकों की सिद्धहस्तता इसमें सतत निखार पर थी। ये लोग अब अपने संपूर्ण विषाक्त चरित्र को प्रकट करने का मन बना चुके थे।

सम्राट लुइस १६ वें के दरबार में अफरातफरी मची रहती थी। सम्राट इस योग्य नहीं था कि इनसे निपट पाता , यही उसका सबसे बड़ा अपराध था। ४ अगस्त १७८९ को पूर्व में गठित राष्ट्रीय सभा *National Assembly* ने रात भर अधिवेशन बुलवाया और तमाम विशेषाधिकार समाप्त कर दिए। बाहर इसे जनता की पहली जीत बता कर  जश्न मने। जीत तो थी पर सेहरा Robespierre के सर बँध रहा था ये खतरनाक संकेत था।
सामंती सत्ता को फ्रांस से उखाड़ फेंकने के बाद राष्ट्रीय सभा ने फ्रांस को समाजवादी देश घोषित किया। अब इसके लिए एक व्यवस्थित संविधान की रचना अनिवार्य थी। इसलिए राष्ट्रीय सभा ने अपने आपको संविधान सभा *Legislative Assembly* घोषित कर दिया। देश में २६ जुलाई १७८९ को  मानवाधिकार कानून घोषित कर दिए गए। समानता के आधार पर देश में सब लोग संपत्ति रखने के अधिकारी हो गए।

तत्कालीन फ्रांसिसी समाज में धनी किसान एक ऐसा वर्ग था जिसकी ज्यादा से ज्यादा जमीन रखने की भूख बढ़ती जा रही थी पर सामंतों के कारण वे तय सीमा से बाहर जमीन रखने के अधिकारी नहीं थे। इस वर्ग ने अपने हित देखते हुए क्रांति का ध्वज उठाया और Counts को मारकाट कर सब जमीन हथिया ली।

आरंभिक दौर में क्रांति का सहयोग निम्न स्तर के पादरी वर्ग ने भी किया था। किंतु संविधान सभा ने कानून बनाते हुए वैटिकन के पोप के अधिकार छीन लिए और पादरी वर्ग को फ्रांस के शासन के प्रति निष्ठा की शपथ लेना अनिवार्य कर दिया।
अबतक दुनिया में कोई भी चर्च हो उसकी समस्त उच्चतर व निम्नतर व्यवस्था  रोमन कैथोलिक चर्च वैटिकन के पोप के प्रति निष्ठा की शपथ लेती थी। फ्रांस के शासन के प्रति निष्ठा की शपथ लेने वाले पादरी ज्यूरर और न लेने वाले नॉन ज्यूरर घोषित किए गए।

संविधान सभा के इस कदम ने अब तक क्रांति का समर्थन कर रहे निम्न स्तर के पादरी वर्ग को भड़का दिया। वे लोग क्रांति के विरुद्ध हो गए।
सदा की तरह Robespierre के हत्यारे गिरोहों ने अब इन पादरियों पर निशाना साध लिया।हजारों पादरी और उनके परिवार लूटपाट और बलात्कार के बाद सड़कों पर हत्याकांड में मार दिए गए। बालसामो और उसके कुटिल दुष्प्रचारकों की ओर से सब मारे गए लोगों को सम्राट और चर्च के जासूस घोषित कर दिया गया। बचने के लिए शेष पादरी निकटवर्ती क्षेत्रों में भागे जिनमें प्रमुख देश था ऑस्ट्रिया। *Marie Antoinette* यानी फ्रांस की महारानी का पीहर।

इधर Robespierre आतंक के राज का पर्याय बन चुका था। १७९२ तक सारी शासन व्यवस्था बुर्जुआ वर्ग के हाथों में आ गई और इसका प्रतिनिधि बना Robespierre एक क्रूर हत्यारा।फ्रांस से भागे हुए पादरियों ने दूसरे देशों में जाकर क्रांति के विरुद्ध प्रचार आरंभ कर दिया जिससे माहौल गरमा गया और सब देश फ्रांस के विरुद्ध हो गए।ऑस्ट्रिया ने फ्रांस के मना करने पर भी क्रांति के विरोधियों को  अपने यहाँ शरण दी इससे चिढ़कर फ्रांस ने अप्रैल १७९२ में  ऑस्ट्रिया पर चढ़ाई कर दी। इस युद्ध में फ्रांस की बुरी तरह पिटाई हो गई। इस पराजय से बौखलाए Illuminati के बौद्धिक गुंडों के गिरोह इस दुष्प्रचार में लग गए कि ये पराजय इसलिए हुई है कि महारानी के कहने पर सम्राट ने ऑस्ट्रिया को पहले ही सावधान कर दिया था। सारी जनता सम्राट और महारानी के रक्त की प्यासी हो गई। स्थिति इतनी विस्फोटक हो गई कि सम्राट को भाग कर संविधान सभा से रक्षा माँगनी पड़ गई। संविधान सभा ने बीच बचाव करते हुए इस शर्त पर भीड़ को शांत किया कि अब से सम्राट की हैसियत इंग्लैंड के सम्राट जैसी होगी। काम सब सभा करेगी।

लोकतंत्र रूपी लोकषड़यंत्र को किस तरह हम पर थोपा गया इसे समझने के लिए हम इसके उद्गम फ्रांसिसी क्रांति को बारीकी से समझ रहे हैं ताकि ये समझ आ सके कि हम जिस स्वतंत्रता के गीत गा रहे हैं वो दरअसल कितना घातक षड़यंत्र है।

फ्रांस की क्रांति और लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना की इस प्रक्रिया को चार चरणों में बाँट कर देखें।
१- १७८९ से १७९२ संवैधानिक अधिकारों की स्थापना।
२- १७९२ से १७९४ उग्र गणतंत्र।
३-  १७९४ से १७९९ उदार गणतंत्र
४- १७९९ से १८१४ तानाशाही

१७८९ के जुलाई से बास्तील पतन से जो रक्तपात और षड़यंत्रों का दौर चला वो बढ़ता ही गया और १७९२ में राष्ट्रीय सभा ने फ्रांस के शासन को अपने हाथ में लेते हुए सम्राट को औपचारिक कर दिया। ब्रिटेन के राजवंश की तरह इनका कोई दखल राजनैतिक व्यवस्था में नहीं रह गया।
२१ सितंबर १७९२ को संविधान सभा को रद्द करके *National Convention* की स्थापना हुई और *Robespierre* तथा उसके साथी प्रमुखता से उभरे। कहने की आवश्यकता नहीं है कि इनको उभारने वाली शक्ति कौन थी।

अबतक अध्यक्ष के बाँई ओर बैठनेवाले *Leftists* भी दो भागों में बँट चुके थे।
*Jacobians* और *Zirondists*...।
*जैकोबियन* Robespierre, Danton, Marat इत्यादि चरमपंथी क्रांतिकारी लोगों का गुट था जो फ्रांस की भीड़ के प्रबंधन का माहिर तो था ही शासन में भी दबदबा रखता था।

दूसरी ओर, ज़िरोंदिस्त गुट में बुद्धिजीवियों और नरमपंथियों का जमघट था। ये लोग बौद्धिक वर्ग में पैठ रखते थे पर व्यवहारिक तल पर इतने मुखर और सक्रिय नहीं थे।
इस्नार, ब्रिसो व मैडम रोलाँ जैसे कुछ नाम इनके प्रतिनिधि थे।

जैकोबियन का कहना था कि क्रांति एक अवसर है इसे अब फ्रांस के बाहर ले जाना चाहिए। ताकि अधिकाधिक देश राजतंत्र से मुक्त हों और नई वैश्विक व्यवस्था बन सके।
ज़िरोंदिस्त गुट मानता था कि क्रांति का उद्देश्य पूरा हो गया है। फ्रांस में प्रजातंत्र स्थापित है ही। अब इस उथल पुथल से हुए नुकसान की भरपाई पर ध्यान देने की तीव्र आवश्यकता है। यदि हम एक आदर्श समृद्ध लोकतांत्रिक देश बनकर उभरे तो संसार स्वतः ही हमारी विचारधारा को अपना लेगा।
किंतु इन समझदारी की बातों को जैकोबियन गुट ने हवा में उड़ा दिया और अपने आकाओं के निर्देश पर आगे बढ़ गए।
सितंबर १७९२ में ही फ्रांस की सेना ने हमला करके बेल्जियम पर कब्जा कर लिया। और फिर तत्काल ही दक्षिण में नीस और सेवॉय भी हथिया लिए। इसी के साथ National Convention ने ऐलान कर दिया कि फ्रांस सारी दुनिया में प्रजातंत्र स्थापित करेगा और जो इसमें बाधा डालेगा उसे भयानक परिणाम भोगने होंगे। इन हरकतों से यूरोप में हड़कंप मच गया और ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया इत्यादि ने अपना एक सामरिक संगठन बना लिया।

ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, हॉलैंड आदि के इस सामरिक संगठन ने आने वाले कई युद्धों में फ्रांस को धूल चटा दी। लगातार हार से बौखलाए Robespierre और साथियों ने National Convention पर दबाव डालकर  फ्रांस को पूर्ण गणतंत्र घोषित करवाया।
लुइस १६ वें और महारानी मैरी एंटोइनेट के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा लाया गया और उनके लिए मृत्युदंड का प्रस्ताव रखा गया।

राजतंत्र समर्थक दक्षिणपंथी गुट अब परिदृश्य से लुप्त हो चुका था।  अधिकांश लोकतंत्र के लिए खतरा बता कर मार दिए गए थे। किंतु जिरोदिस्तों ने इस पर जनमत संग्रह की बात की। मतलब, वे स्पष्ट नहीं थे कि सम्राट और महारानी के प्राण न लिए जाएँ। या, वे स्पष्ट नहीं होना चाह रहे थे। जनमत संग्रह की बात को सिरे से खारिज करते हुए जैकोबियनों ने सम्राट को मृत्युदंड ही देना तय किया।

अंततः , २१ जनवरी १७९३ को फ्रांस के सम्राट लुइस १६ वें और महारानी मैरी एंटोइनेट को *गिलोटिन* पर चढ़ा दिया गया।

मारने से पहले मैरी एंटोइनेट को ऑफर दिया गया था कि यदि वो Robespierre के साथ विवाह को तैयार हो जाए तो उसके प्राण बच सकते हैं। किंतु उस खानदानी महिला ने एक हत्यारे , गुंडे और घटिया दर्जे के व्यक्ति की कृपा पर जीने की अपेक्षा मृत्यु को वरीयता दी।

पति के पीछे ही पूरी गरिमा और स्वाभिमान से उसने गिलोटिन की वेदी पर सिर रखा, जो एक क्षण बाद कटकर धरती पर लुढ़क रहा था।

इस प्रकार महान क्रांति के पथ में अवरोध एक अत्याचारी सम्राट और एक अय्याश महारानी से फ्रांस को *मुक्ति* मिल गई।

इसके बाद लोकतंत्र का पूरा मजा लेने के लिए Robespierre ने फ्रांस की सत्ता पर कब्जा कर लिया। अब जैकोबियनों के परम शत्रु थे उनके ही पुराने साथी ज़िरोंदिस्त।चुन चुनकर जिरोदिस्तों को मौत के घाट उतारा गया। मौत के इस तांडव की परिणति अंततः जुलाई १७९४ में Robespierre को गिलोटिन प्राप्त होने के साथ ही हुई। और फ्रांस को *Reign of Terror* यानी *आतंकराज* से *मुक्ति* मिल गई।
दरअसल Robespierre अपनी औकात से आगे बढ़ कर खेल खेल रहा था। Illuminati के जिन आकाओं के निर्देश पर उसने सत्ता हथियाई थी अब वह उनसे ही टेढ़ा चल रहा था।

Illuminati का हिसाब ही है कि अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए राक्षस पैदा करो और फिर बोझ बनने लगें तो terminate कर दो। जैसे बिगड़ी हुई बंदूक को नष्ट कर दिया जाता है ठीक वैसे ही ये संगठन अपने अनुशासन के बाहर जा रहे राक्षस को मिटा देता है।Robespierre पहला नहीं था, पर लिखने में लिख सकते हैं क्योंकि उसके बाद नैपोलियन, हिटलर, चे ग्वेरा जैसे कई बहुत होशियारी से मिटाए गए।

*नया समाज*
जुलाई १७९४ में *Robespierre* की मौत के साथ ही *आतंकराज* का अंत हुआ। फ्रांस ने कुछ राहत की साँस ली। अब शासन *National Convention* के हाथ में था। National Convention ने आते ही *Jacobians* को अवैध घोषित किया और उसी तरह से उनका खात्मा किया जैसे वे अपने शत्रुओं का करते थे। पूरी व्यवस्था को प्रजातंत्र का नाम दिया गया। इस समय में कुछ लोकप्रिय निर्णय लिए गए जिनको जनता ने काफी पसंद किया था। दरबार को खारिज करते हुए *Commune* की स्थापना की गई। कम्यून यानी *संघ* और *Communist* यानी *संघवादी* (विचित्र विरोधाभास) राष्ट्र के नवनिर्माता बनकर उभर रहे थे।पर *Walter Scott* के शब्द नहीं भूलने चाहिए, "अंततः पेरिस के Commune का लक्ष्य *रक्त* ही था।"
एक उम्मीद की सुबह क्षितिज पर अंगड़ाई ले रही थी। यूरोप के अन्य देश अब साम्राज्यवाद को ढोने के लिए तैयार नहीं थे। सब फ्रांस की क्रांति के आदर्श को अपने यहाँ दोहराने को लालायित हो रहे थे बिना ये समझे कि क्रांति हुई नहीं थी प्रायोजित की गई थी।Illuminati का नेटवर्क पूरे पश्चिमी जगत में फैल चुका था। अब पूरा विश्व मंच बनने जा रहा था।

१७९४ से १७९५ तक उदारवादी *thermidorians* की सत्ता रही पर इसे *Directory* शासन में बदल दिया गया १७९५ में। डायरेक्टरी में ५ प्रमुख थे जिनको बराबर अधिकार प्राप्त थे। इनमें से हरेक एक वर्ष के लिए सत्ता का शीर्ष पद संभालता और ५ साल बाद चुनाव हो जाते। आज भी हम यही लकीर पीट रहे हैं किंचित् परिवर्तनों के साथ। Directory व्यवस्था बदतर साबित हुई। सबके सब प्रमुख व सदस्य अनुभवहीन भ्रष्ट व मूर्ख निकले। आपसी कलह और भ्रष्टाचार के साथ लगातार अविवेकपूर्ण निर्णयों से ये फ्रांस को फिर रसातल में ले जाने लगे। देश बरबाद हो गया। अव्यवस्था और अराजकता की वजह से व्यवसाय ठप हो गए। अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। वही मध्यम वर्गीय *बुर्जुआ* जिसने कभी अन्याय के विरुद्ध क्रांति के सपने देखे दिखाए थे, आज  देश का रक्त चूस रहा था और स्वयं पुष्ट हो रहा था।

इस समय दो बड़े परिवर्तन चुपचाप अपनी बारी की प्रतीक्षा में समय के साथ सरक रहे थे।
१- Illuminati समझ गए थे कि यूरोप बारूद के ढेर पर बैठा बीड़ी पी रहा है। कभी भी धमाके हो जाएंगे। ऐसे में एक अराजकता के बीच अपने एजेंडा को आगे बढ़ाना ज्यादा समझदारी का काम नहीं होगा। यदि धमाकों से लाभ लेना है तो उनसे निश्चित दूरी चाहिए।
उनकी ये खोज नए नए स्वतंत्रता प्राप्त *अमेरिका* पर थम गई और *Rothschield* के प्रतिभाशाली पुत्र *Nathan* के नेतृत्व में बैंकरों का समूह अमेरिका की ओर बढ़ गया, बहुत ही धीरे धीरे।

२- एक गरम खून का मध्यम कद काठी का युवक फ्रांस की क्रांति और उसके बाद की दुर्दशा से आहत होकर अब आगे बढ़ने का मन बना चुका था। ये युवक था *Napoleon Bonaparte*!!!! १५ अगस्त १७६९ को फ्रांस के कुलीनों में जन्मा *नैपोलियन बोनापार्ट*  विश्व इतिहास का धूमकेतु कहा जा सकता है।

हमारी विषयवस्तु है लोकतंत्र का वैश्विक व्यवस्था पर आरोपण; जिसके अच्छे बुरे परिणामों की समालोचना करते हुए हम ये समझने का प्रयास करेंगे कि किस प्रकार एक विश्व एक प्रशासन का स्वप्न लेकर चल रहा एक प्रेत संगठन पूरी दुनिया को तबाही की आँधी में झोंकता हुआ आगे बढ़ रहा है, एक एक कदम।

नैपोलियन बोनापार्ट से पहले भी और बाद में भी कई मोहरे इन्होने पैदा किए और काम पूरा हो जाने पर मिटा भी दिए, निर्ममता से। याद कीजिए पिछले अंकों में *Duke of Orleans* और *Mearabau*, जिनको *Illuminati* ने अपने हित में उपयोग किया और जब सम्राट लुइस १६ वें और महारानी मैरी एंटोइनेट को गिलोटिन पर चढ़ा दिया तो इन लोगों को भी नहीं छोड़ा। ड्यूक ऑफ ऑर्लियन्स को बताया गया था कि सम्राट के बाद उसे साम्राज्य का अधिपति घोषित किया जाएगा। किंतु विजय प्राप्त होते ही *Robespierre* की घेरबंदी कसने लगी और जल्दी ही ड्यूक ऑफ ऑर्लियन्स गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया।
मिराबो को जब ये पता चला तो उसके पैर तले से ज़मीन खिसक गई। मिराबो को कहा गया था कि सम्राट को मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा बल्कि उसे मिराबो की कठपुतली बना दिया जाएगा। सम्राट को मृत्युदंड की पूर्व सूचना मिराबो को हो गई थी। अपनी तरफ से उसने सम्राट को ऑस्ट्रिया भगाने की असफल कोशिश भी की। इस बात से कम्यूनिस्ट सत्ता के गुप्त मालिकों की नाराजगी का पात्र उसे होना पड़ गया।
किंतु ड्यूक की तरह मिराबो के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा लाना कठिन था। उसके लिए अलग रास्ता चुना गया। एक सुबह मिराबो अपने घर में मृत पाया गया। कारण बताया गया, ज़हर खाकर आत्महत्या।

नैपोलियन बोनापार्ट ये सब देखता हुआ बड़ा हुआ था। उसके भीतर कठोरता और निर्ममता का प्राबल्य चरम पर था। Robespierre के समय २३ वर्ष की आयु में नैपोलियन ने सेना में अधिकारी की हैसियत प्राप्त की और अपने कुशल नेतृत्व से न सिर्फ कम्यूनिस्ट सत्ता का बल्कि उनके गुप्त मालिकों का भी ध्यान आकृष्ट किया।जल्दी ही उसे *Jacobians* में शामिल कर लिया गया। Robespierre के समय सत्ता की नज़दीकी उसे Robespierre की मौत के बाद बहुत भारी पड़ी। तमाम Jacobians पकड़ पकड़ कर मार दिए गए। नैपोलियन भी गिरफ्तार हुआ और गिलोटिन तक पहुँच गया था। परंतु उसके पिता और उसके कुछ निजी संबंधी तत्कालीन फ्रांसिसी डायरेक्टरी में थे जिन्होने अपनी निजी जवाबदेही पर उसे छुड़वा दिया।

नैपोलियन के सैन्य रिकॉर्ड को देखते हुए उसे फिर से बहाल तो कर दिया गया किंतु डायरेक्टरी को उससे सदा खतरा लगता था इसलिए तत्काल उसे इटली विजय के अभियान पर भेजा गया। ऑस्ट्रिया से इटली को आज़ादी दिलाने के नाम पर भारी खून खराबे के बाद वहाँ इटैलियन प्रांतों के एकीकरण कर एक स्वतंत्र किंतु फ्रांस के उपनिवेश देश का निर्माण कर नैपोलियन वापस फ्रांस आया। यहाँ से *Mayer Amschel Rothschield* और उसके मित्रों का खेल आरंभ होता है। रॉथशील्ड ने अपने सबसे होनहार पुत्र *Nathan Rothschield* को ब्रिटेन भेजा। Nathan ने वहाँ बैंक स्थापित किया और अल्प समय में ही बाप को तिगुनी संपत्ति का उपहार दिया।
अब फ्रांस में बैठे गुप्त मालिकों ने अपने प्रशिक्षित गुंडों, कम्यूनिस्ट सत्ता को आदेशित किया कि रशिया स्पेन सहित यूरोप के अन्य देश अब साम्राज्यवाद को ढोने के लिए तैयार नहीं हैं पर इसमें ब्रिटेन बड़ी समस्या बन रहा है। अतः ब्रिटेन से युद्ध अनिवार्य हो गया है।

ब्रिटेन से सीधे न उलझकर नैपोलियन ने कुछ और ही योजना बनाई। मिस्र पर आक्रमण कर ब्रिटेन को कोने में धकेलने के उद्देश्य से नैपोलियन मिस्र की ओर बढ़ गया।  डायरेक्टरी को इससे खास दिलचस्पी नहीं थी। वे इस मुसीबत को जहाँ तक हो फ्रांस से दूर रखना चाहते थे। १७९८ तक नैपोलियन ने मिस्र विजय किया और  १७९९ में डायरेक्टरी को भंग कर स्वयं अपने हाथ में सत्ता की बागडोर ले ली। इसके बाद Illuminati के गुप्त मालिकों का पूरा सहयोग नैपोलियन बोनापार्ट के तमाम सैनिक अभियानों को रहा।

किंतु ये *अर्धसत्य* है। आपने शेक्सपीयर की प्रसिद्ध पंक्ति सुनी ही होगी। "दुनिया एक रंगमंच है।" Illuminati के संदर्भ में इस पंक्ति का बहुत ही विचित्र अर्थ प्रकट होता है। एक हाथ से वे नैपोलियन को धन दे रहे थे और दूसरे हाथ से उसके शत्रुओं को। नैपोलियन इनके हाथ का खिलौना बन खेलता गया और उसे पता ही नहीं चला कि उसकी राष्ट्रनिष्ठा कब अंधी रक्तपिपासु महत्वाकांक्षा बन गई।१८०४ तक नैपोलियन बोनापार्ट ब्रिटेन के अतिरिक्त करीब करीब पूरा यूरोप हथिया चुका था। अब उसने स्वयं को सम्राट नैपोलियन बोनापार्ट प्रथम घोषित कर दिया था।

१८०४ में स्वयं को फ्रांस का सम्राट घोषित करने के बाद नैपोलियन बोनापार्ट ने अपने भाइयों को भी आसपास के तीन देशों का राजा घोषित कर दिया। जोसेफ को नेपल्स, लुइस को हॉलैंड और जेरोम को वेस्टफेलिया की सत्ता सौंपकर नैपोलियन ने यूरोप की राजनीति को अपने हाथ में ले लिया। नैपोलियन के युद्ध अभियान को खाद पानी दे रहे बैंकरों के समूह को अब भरोसा हो चला था कि नैपोलियन से लड़ने के चक्कर में यूरोप के अधिकांश साम्राज्य उनके ऋण के बोझ से लदे पड़े हैं अतः अपनी योजना समझाने का बेहतर अवसर समझ कर उन्होने अपने पिट्ठुओं के द्वारा Vienna में एक बैठक बुलवाई जिसे #Vienna_Congress* कहा जाता है। किंतु #Russian_Tzar* (रशिया में सम्राट को ज़ार कहते हैं) ने इस बैठक में इनकी पोल खोल दी और इनकी योजना पर वज्रपात कर दिया। इस आघात से तिलमिलाए *Illuminati* ने कसम खाई कि एक दिन वो रशिया से ज़ार का नामोनिशान मिटा देंगे।

अब जरा Illuminati के मनोविज्ञान को समझ कर आगे बढ़ते हैं। एक सामान्य व्यक्ति या संगठन अपने किसी लक्ष्य की पूर्ति हेतु एक समय सीमा तय करता है। व्यक्ति अपने जीवनकाल में और संगठन अपने केंद्र पर बैठे व्यक्ति के जीवनकाल में उस लक्ष्य की पूर्ति हेतु प्रयत्न करते रहते हैं और इस प्रक्रिया के तनाव से अधिकतर अभियान असफल हो जाते हैं। Illuminati किसी व्यक्ति को केंद्र पर रखकर नहीं सोचते। एकबार वे यदि लक्ष्य तय करते हैं तो दशकों नहीं सदियों तक धैर्य रखकर धीरे धीरे अपनी योजना को आगे बढ़ाते हैं। इनके उत्तराधिकारी भी पूरी तरह समर्पित और ज़बर्दस्त मानसिक प्रशिक्षण प्राप्त होते हैं। #Nathan_Rothschield*  और उसके मित्रों ने सौगंध ली कि ज़ार और रशिया को बरबाद करके छोड़ेंगे। इस सौगंध को पूर्ण करने के लिए नैपोलियन को मोहरा बनाकर मैदान में छोड़ा गया। यूरोप को फतह करता हुआ नैपोलियन रशिया पहुँच गया। १८०७ में उसने रशिया को हराकर संधि पर मजबूर कर दिया।

इधर Nathan Rothschield ने अपने ४ भाइयों को यूरोप से अमेरिका तक आर्थिक साम्राज्य स्थापित करवा दिया था। जिस समय नैपोलियन अपनी युद्ध की अमर्यादित भूख का पीछा करता फिर रहा था, ये लोग तब विश्व को एक नई व्यवस्था में ढालने के आधार रख रहे थे, धीरे धीरे,पर मजबूत। मात्र बैंकिंग संस्था के सीमित व्यवसाय से बाहर आकर इन लोगों ने प्रमुख व्यवसाय हस्तगत करने आरंभ कर दिए। जहाज निर्माण, खनन उद्योग, रासायनिक अनुसंधान और निर्माण, युद्धक सामग्री निर्माण, यातायात इत्यादि कुल जमा हर वो व्यवसाय इन्होने हथिया लिया था जिससे किसी भी राष्ट्र की साँस ये जब चाहते बंद कर सकते थे।
इन  लोगों को नैपोलियन से बहुत आशा थी किंतु लगातार युद्ध की थकान तथा सम्राट होने की ठसक ने नैपोलियन का दिमाग खराब कर दिया था। नैपोलियन जानता था कि ये कौन लोग हैं अतः इनसे मुक्त होने के लिए उसने फ्रांस के Illuminati समूह में अपने लोग प्रविष्ट करा दिए। छोटे स्तर पर कामयाब होकर नैपोलियन समझा उसने Illuminati को खत्म कर दिया पर असल में उसने अपने ही खात्मे की पटकथा लिख ली थी। मामूली स्तर के गुर्गों को समाप्त करवा कर Illuminati ने फ्रांस को अपने बौद्धिक गुंडों कम्यूनिस्टों के हाथ सौंप दिया और जर्मनी में बैठकर Nathan Rothschield ने नैपोलियन बोनापार्ट का अंजाम रचा।
रशिया को हराने के बाद रशिया में नैपोलियन फंस गया था। वामी खलकामी इतिहासकारों के अनुसार भौगोलिक परिस्थिती  और जनता का विरोध कारण था। किंतु कुछ सूत्र  इशारे करते हैं कि Nathan Rothschield और उसके कुटिल साथियों ने फ्रांस और यूरोप के अन्य देशों से नैपोलियन को मदद नहीं पहुंचाने दी। जहाज रोक लिए गए। हथियार कारखानों में कम्यूनिस्टों ने हड़तालें करवा दीं। जैसे तैसे रशिया से निकला तो जर्मनी, इंग्लैंड, हॉलैंड, ऑस्ट्रिया आदि मित्र राष्ट्रों ने *वॉटरलू* में घेर लिया। १८१५ में #Waterloo* के युद्ध में मित्र राष्ट्रों से बुरी तरह पराजित होकर नैपोलियन बोनापार्ट को #St_Helen's* की जेल में डाल दिया गया जहाँ १८२१ में रहस्यमयी परिस्थितियों में उसकी मौत हो गई। अभी कुछ वर्षों पहले एक शोध में पता चला कि नैपोलियन बोनापार्ट के शरीर में *आर्सेनिक* नामक विष पाया गया है।

रशिया को बरबाद करने की शपथ Nathan Rothschield अपने जीते जी पूरी नहीं कर पाया किंतु *१९१७ की रशियन_क्रांति के रूप में वो शपथ पूरी कर ली गई।*

१२ वीं सदी से ईसाइयों से प्रतिशोध की अग्नि ने आज ईसाई धर्म को भीतर से फूंक डाला है। आज यदि #Vatican का #Pope* भी Illuminati का पिट्ठू बनता है तो ईसाई धर्म रहा कहाँ ???इस्लाम को #वहाबी_सपना* दिखाकर आत्महत्या के द्वार पर ला दिया गया है क्योंकि इस्लामी अत्याचारों ने भी Illuminati को क्रोध दिलाया। सारे विश्व में कम्यूनिस्ट और राजनैतिक व्यवस्था में लोकतंत्र के रूप में *लोकषड़यंत्र* को रचा गया है ताकि विश्व के अधिकांश देश और समाज लोकतंत्र के नाम पर मक्कार, धूर्त और डरपोक लोगों को सत्ता पर बैठा दें जिससे अंततः ये व्यवस्था स्वतः ही विनाश को प्राप्त हो जाए।

मैं ये नहीं कह रहा कि हम फिर राजसत्ता कायम करें किंतु गणतंत्र के बजाय *गुणतंत्र* को वरीयता देने का मैं हिमायती हूँ। सोचिए मोदी जैसे बेहतरीन राजनेता को घटिया चुनावी उठा पटक से परे २५/३० साल मिले अपने हिसाब से कार्य करने के लिए। खतरे भी हैं, मगर लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था असफल और आत्मघाती सिद्ध हुई है।

*संभव_से_परे*

*"क्या मैं स्वतंत्र हूँ ?"*

जब पहले खुद से पूछता था तो उत्तर आसान था। इन दिनों नहीं रहा। मैं कोई आध्यात्मिक उलझन नहीं डाल रहा , बल्कि एक दम खालिस सांसारिक सत्य बता रहा हूँ। आज़ादी, स्वतंत्रता, freedom, liberation, अगैरा वगैरा बहुत सुंदर शब्दों के अर्थ इतने विकृत कर दिए गए हैं कि जब कोई इनके उपयोग करता है तो वो अर्थ दिमाग में घूम रहा होता है जो डाला गया है। वो नहीं, जो है।

पूरी कहानी के अंत से आरंभ करते हैं। *Illuminati* ने नैपोलियन का पर्दा गिराकर यूरोप से अमेरिका तक आर्थिक साम्राज्य स्थापित कर लिया। सारे विश्व में कम्यूनिस्ट आंदोलन आग की तरह फैल गया। अब सुरक्षित ऑफिस के रूप में अमेरिका को चुना गया। गौर करने की  आवश्यकता है कि सारे पश्चिमी विश्व में कम्यूनिस्ट सत्ता में सीधे बैठ पाए, अमेरिका और इंग्लैंड में कभी नहीं। दो विश्व युद्ध लड़े गए पर जीता कौन ???? दूसरे विश्व युद्ध में भयानक तांडव किया हिटलर के जर्मनी ने और परमाणु बम पाए जापान ने ???? क्यों???? क्योंकि वहाँ यहूदी नहीं थे ??? या वो लाल झंडे तले आने को तैयार नहीं था ??? या दोनो ही बात सच हैं ???

अमेरिका में बैठकर विश्व को एक सपना बेचा गया। हर बेवकूफ को समझा दिया गया कि तू भी बुद्धि रखता है। तू भी राजा। एक ऐसा साम्राज्य जहाँ *९९ राजा और एक सेवक !!!!*
*मामू बन गए कि नहीं ???*

बुद्धिजीवियों के गिरोह टूट पड़े। रशिया, चीन सहित पूरा यूरोप लालमलाल हो गया। और फिर .... गोर्बाच्येव ने फुग्गे को पिन लगा दी। #पैरेस्त्राइका और #ग्लास्नोस्त* पर बलैयाँ लेते हुए रशिया भंग हो गया। पूरा विश्व राजवंश व्यवस्था से बाहर आकर साम्यवाद से होते हुए *पूंजीवाद "शरणं गच्छामि"*।
इधर #Illuminati ने अपने को मृत प्रचारित करवा दिया। अमेरिका में #Free_Masons* वही हैं पर त्रिकोणीय प्रतीक के सिवाय आप कुछ भी नहीं साबित कर सकते।  अमेरिकी दबदबा बना रहे इसके लिए एक व्यवस्थित योजना से सारी दुनिया से प्रतिभाशाली लोगों को निरंतर आकर्षित किया गया, आजतक।
ये लोग इस विश्व को एक रंगमंच मानते हैं। अब तक के इतिहास में परस्पर विरोधियों को दोनो तरफ से मदद देकर युद्ध में समाप्त करवाना इनकी प्रिय सफल नीति है। रूस-अमेरिका, चीन-अमेरिका, भारत-पाकिस्तान, इस्लामी जगत- समस्त जगत के पीछे दोनो तरफ से ये ही लड़ रहे हैं। अंत में मरेंगे भावुक मूर्ख और जीतेंगे ये।
इसके अलावा रासायनिक अनुसंधान और जेनेटिक क्रांति पर इनका पूरा कब्जा है। इनका उद्देश्य है पूरे विश्व की आबादी को ६८% तक समाप्त करना। ताकि बचे हुए विश्व में ये "एक धर्म, एक सरकार, एक विश्व" का सपना साकार कर सकें।
सब तरह के सर्वश्रेष्ठ प्रजाति के लोग या तो इनके साथ हों या समाप्त हों। बचे हुए दूसरे तीसरे दर्जे के लोग प्रतिभाशाली लोगों के गुलाम बनकर जीवन निकाल सकते हैं।
आप यदि हॉलीवुड की फिल्में देखते हैं तो #X_Men और  #Resident_Evil* जैसी फिल्में इनकी झलक दे रही हैं। हर वर्ष दो वर्ष में एक नया वायरस फैलता है जो काबू में ही नहीं आता। और अचानक आसमान से फरिश्ते उसकी दवा भेज देते हैं। पर तबतक भारी जनहानि हो गई होती है। आपको शक नहीं होता ?????
ये मानकर चलिए कि इनका उद्देश्य पूरा होगा ही। पर इसमें अपनी भूमिका क्या ????
मैं लोकतंत्र के विरुद्ध बोलता हूँ तो विचारशील लोगों का कोपभाजन होता हूँ। किंतु अमेरिकी लोकतांत्रिक मॉडल पूरी वैश्विक आबादी को दो तिहाई तक मिटाने का सूक्ष्म षड़यंत्र है। आप बुद्धिजीवियों को विकल्प ही नहीं दिया है। आप भावुक होकर तर्क पर आ जाते हैं मगर ये सोचते नहीं कि ७० बरसों में यदि एक शास्त्री, इंदिरा और मोदी ये व्यवस्था आपको देती है तो इसे सफल कैसे माना जाए ???? धूर्तों की तो संख्या ही अनंत है।
सैनिक तानाशाही बदतर विकल्प है। राजवंश बचे नहीं। तब क्यों न इस प्रचारित शत्रु को फिर से देखा जाए। ये लोग भी *गुणतंत्र* के हिमायती हैं। आप पहले दर्जे के श्रेष्ठ मानव होना क्यों नहीं चुनते ????? ये भूखे नंगों की भीड़ बनकर रहने की वामी खलकामी जिद क्यों ???? *आने वाले विश्व को यदि सिर्फ Best चाहिए तो मैं पहला व्यक्ति हूँ जिसे चुना जाना चाहिए।*
लोकतंत्र रहे न रहे कोई फर्क नहीं पड़ता। #गुणतंत्र आना चाहिए। आ ही रहा है।
*Democracy is mobocracy. We need Meritocracy.*
#जय_महाकाल*
#अज्ञेय*

Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=474563189551366&id=100009930676208

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