Monday, 12 June 2017

वेद_vs_विज्ञान भाग-8, विद्युत चुंबकीय विकिरण ( electro magnetic radiation )

#वेद_vs_विज्ञान भाग - 8
                             #विद्युत चुंबकीय विकिरण        
                        ( electro magnetic radiation )
#आधुनिक विज्ञान के अनुसार -
विद्युत चुंबकीय विकिरण शून्य (स्पेस) एवं अन्य माध्यमों से स्वयं-प्रसारित तरंग होती है। इसे प्रकाश भी कहा जाता है किन्तु वास्तव में प्रकाश, विद्युतचुंबकीय विकिरण का एक छोटा सा भाग है। दृष्य प्रकाश, एक्स-किरण, गामा-किरण, रेडियो तरंगे आदि सभी विद्युतचुंबकीय तरंगे हैं।
मानव की आँखें, विद्युतचुंबकीय विकिरण के जिस भाग के प्रति संवेदनशील होती हैं उसे दृष्य प्रकाश (visible light) कहा जाता है। दृष्य प्रकाश की तरंगदैर्ध्य (वेवलेंथ) ४००० एंगस्ट्राम से ८००० एंगस्ट्राम तक होती है।
विद्युत और चुंबकत्व दोनो ही विद्युतचुंबकीय प्रभाव हैं।
विद्युतचुंबकीय विकिरण में ऊर्जा एवं संवेग (मोमेन्टम्) भी होते हैं। जब ये तरंगे किसी पदार्थ से अनुक्रिया (इन्टरैक्शन) करती हैं तो पदार्थ के अणुओं (परमाणुओं या एलेक्ट्रान) को यह उर्जा और संवेग प्रदान करती हैं।
विद्युत्चुंबकीय विकिरण के दृष्य प्रकाश के अतिरिक्त अन्य विकिरणों का उपयोग कुछ ही दशकों से आरम्भ हुआ है। मानव जब भी किसी नये विकिरण का पता लगाता है, सभ्यता में एक क्रान्ति आ जाती है।
#वेदों में इसका प्रचुर ज्ञान -
इसका विवरण वेदों में प्राप्त होता है. वेदों के अनेक श्लोकों मेंमित्र वरुण वशिष्ठ अर्थात प्रोटोन इलेक्ट्रान न्यूट्रान की संकल्पना का प्रमाण प्राप्त होता है.ऋग्वेद 7.33.10 में कहा गया है –
विद्युतो ज्योतिः परी संहिजान, मित्रावरुणा यद्पश्यतान त्वा.तत ते जन्मोतैकं वशिष्ठ–अगस्त्यो यात तव आज्भार
अर्थात -
जब मित्र (proton) और वरुण (electron) के कण समान मात्रा में विद्युत् का परित्याग करते हैं, तब वशिष्ठ (neutron) बनता है. यह वशिष्ठ का प्रथम जन्म है. यह अस्थायी होता है इसमें अगस्त्य (neutrino) मिलने से स्थायी हो जाता है.ऋग्वेद की ऋचाओं में मित्र–वरुण चुम्बकीय विकिरण (Electro-Magnetic-Radiation) तथाआकाशीय विद्युत् का प्रयोग सम्बन्धी वर्णन प्राप्त होता है. (देखें- ऋग्वेद 7.33.13,   8.101.1-2,   8.101.3,  1.2-7, 1.23.5, 1.2.9 यजुर्वेद 2.16, 3.33, 4.30 आदि) जिसका वर्णनअन्य लेख में किया जाएगा.वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के प्रथम बार लंका यात्रा का विवरण दिया गया है. लंका की शोभा का वर्णन करते हुए बताया गया गया है कि वहां हर मार्ग पर विद्युत् से जलने वाले दीप लगे हुए थे. रावण के महल में हनुमान जी ने विद्युत् से जलने वाले दीप देखे.ताम् सविद्युत् घन आकीर्णाम् ज्योतिः मार्ग निषेविताम् || (वाल. रा. सुन्दरकाण्ड पंचम सर्ग 3-5)
#विशेष -
यूरोपीयन वैज्ञानिकों ने मिस्र के पिरामिडों के अध्ययन में पाया कि पिरामिडोंके कमरों व सुरंगों के सीलिंग पर सूथ (धुएं जमने का कालापन) नहीं है.अर्थात पिरामिडों के निर्माण के समय अँधेरेकमरों व सुरंगों में दीपक, मशालें, मोमबत्तीआदि का प्रयोग नहीं किया गया था. फिर उनको प्रकाश कहाँ से प्राप्त हुआ?पिरामिडो के अन्दर दीवालों पर की गयी चित्रकारी का अवलोकन करने पर पाया गया कि उसकाल में हाई–वोल्टेज संयत्रों का प्रयोग होता था जिनमें इंसुलेटर लगे थे और फिलामेंट द्वारा ट्यूब लाईट समान प्रकाशीय स्त्रोत से प्रकाश उत्पन्न किया जाता था. इनसे पता चलता है कि पिरामिडों के निर्माण काल (2500 BC)  में भी बिजली का प्रयोग किया जाता था.
साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी, https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=269588960174183&id=100013692425716

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