Monday 6 March 2017

क्या भारत के दलित आत्मनिरीक्षण करेंगें???

क्या भारत के दलित आत्मनिरीक्षण करेंगें???

दलित नाम की विशेष प्रजाति बुरी तरह भड़की रहती है हिन्दू धर्म के खिलाफ | इसके अंतर्गत आने वाले लोग कहते हैं कि हिन्दू धर्म में उनके साथ भेदभाव और शोषण होता है |  हाँ भईया होता होगा ! तुम भला झूठ क्यों बोलोगे ?? किसी को क्या दलित बनना अच्छा लगता है (आरक्षण न मिले तो) ??

लेकिन  एक बात तो बता दो  .... हिन्दुओं का शासन तो पृथ्वीराज चौहान के बाद ही  ख़तम हो गया था ,  उस के बाद लगभग 1000 सालों  तक मुसलमानों ने , 200 साल तक अंग्रेजो यानि क्रिश्चियनों ने हिंदुस्तान पर राज़ किया ... उन्होंने कितना ऊँचा दर्ज़ा दिया दलितों को  ?? उन्होंने कितने दलितों को राजा , अफसर , जागीरदार , ज़मींदार बनाया था ?? कितनों को सम्मानित किया ?? ..नहीं याद आया ?? आएगा भी नहीं ! क्योंकि होने वाली घटना याद आएगी , जो हुआ ही नहीं वो कैसे याद आएगा ! क्या जानिए दो-चार दलित अपवाद स्वरुप मिल जाएँ इतिहास में ..जिनका स्तर सवर्णों के समान ऊँचा रहा हो| उनका जिक्र करना औचित्यहीन इसलिए होगा क्योंकि अपवादों के आधार पर पूरे समाज का  आंकलन  नहीं किया जा सकता|

खैर .. छोड़ो इसे ; एक दूसरी बात बतलाओ |  1200 साल का समय ( इसमें बौद्ध काल शामिल नहीं है , उसकी चर्चा नीचे करूँगा ) बहुत होता है किसी भी व्यवस्था - कुप्रथा को बदलने या समाप्त करने के लिए... फिर इतने बड़े अंतराल में भी दलितों को समानता का हक़ क्यों नहीं मिला ?? इन्हीं मुस्लिम और अंग्रेज शासकों ने दूसरों के राज्य जीतने और हड़पने में , जबरन धर्म परिवर्तन कराने में  , लूटपाट करने , मंदिरों का विध्वंस , हिन्दू महिलाओं से विवाह - बलात्कार, लोगों को गुलाम बनाकर उन्हें बेचने ..और न जाने ऐसे कितने क्रूर,घृणित और संघर्षपूर्ण कामों में अपनी शक्ति और प्रभाव का भरपूर इस्तेमाल किया | फिर दलितों के साथ हो रहे अन्याय को खत्म कराने के लिए कुछ नहीं किया ...क्यों ???

अधिकांश हिन्दू उनकी ताक़त के कारण हर जायज़-नाजायज़ माँग को चाहे-अनचाहे स्वीकार करने को बाध्य थे... उस वक़्त तो आसानी से दलितों का उत्थान कर सकते थे.. फ़रमान जारी करके दलितों के साथ हो रहे भेदभाव पर अंकुश लगवा सकते थे , उन्हें उनका हक़ दिला सकते थे ...पर उन्होंने ऐसा नहीं किया और दलित ज्यों के त्यों अछूत के अछूत बने रहे | क्यों...??

जो दलित हिन्दू धर्म को गालियाँ देकर मुस्लिमों और ईसाईयों का गुणगान करते हैं उन्हें पता ही नहीं कि वास्तविक शोषण तो उन्होंने ही किया दलितों का| अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए खूब बेवकूफ बनाया इनको, सिर्फ साम्राज्य का विस्तार करने और अपने धर्मावलम्बियों की गिनती बढ़ाने के लिए उन्होंने दलितों को हिन्दू धर्म के खिलाफ़ भड़काया | आखिरकार वे तो विदेशी थे और शासन करने यहाँ आये थे ..ऐसे में यहाँ शासन करते भी तो किस पर?? उनका वैचारिक समर्थन करने वाले भी तो होने चाहिए न .. सो उन्होंने दलितों से झूठी हमदर्दी दिखाकर उन्हें अपना झंडा थमा  दिया .. और ये भी किसी न किसी प्रलोभन या भय के चलते उनकी जय –जयकार करने लगे |

सच तो यह है कि  धोबी के कुत्ते टाइप इन दलितों ने धर्म बदलकर भी समाज में बराबरी का दर्ज़ा हासिल नहीं कर पाया | मुगलों और अंग्रेजों ने भी  इनसे काम दलितों वाले ही करवाए| उन सभी को सेवक या गुलाम बनाकर ही रखा| .. इससे इनकार नहीं है कि शोषण  धर्म परिवर्तन करने वाले दूसरे हिन्दुओं का भी हुआ ... मसलन सवर्ण भी इससे अछूते नहीं रहे , लेकिन फिर भी उनका दर्ज़ा वहां भी ऊँचा ही रहा | किसी कारणवश अगर मुस्लिम और अंग्रेज शासकों ने धर्मान्तरित हिन्दुओं में किसी वर्ग को महत्व अथवा मान-सम्मान देने की जरुरत महसूस की ..तो उन्होंने  सवर्णों को ही इसके योग्य समझा ..दलितों को नहीं | बहुतों को पता होगा कि  राजपूतों ने पठान और ब्राह्मणों ने सैय्यद बनकर मुस्लिम धर्म को क़ुबूल किया | इस प्रकार वे वहां भी अभिजात्य वर्ग में बने रहे जबकि  दलित धर्म बदलकर भी  लेबर क्लास में ही अपनी 'सेवाएँ' देते रहे .... जिसका सिलसिला आज भी जारी है| यानि केवल धर्म बदला लोगों का , उनका सामाजिक और आर्थिक स्तर नहीं |

सही मायनों में दलितों की समानता के लिए हिन्दुओं ने और विशेष रूप से सवर्णों ने ही अभियान चलाए | बाकी धर्मो के शासकों ने तो अपना उल्लू सीधा करने के लिए उन्हें मूर्ख बनाया| महात्मा बुद्ध हों, गुरु नानक हों , महावीर स्वामी हों या दयानंद सरस्वती ...सभी हिन्दू थे ... और सवर्ण थे | उन्होंने दलितों के सामजिक उत्थान के लिए उन्हें अपने पंथ में प्रवेश की खुली छूट दी .. और उनका उद्देश्य भी केवल और केवल...मानवता का पोषण ,संरक्षण करना था ..स्वार्थसिद्धि नहीं| ज्यादा पीछे जाने की जरुरत नहीं है..  एक अछूत को रामजी सकपाल से बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर बनाने वाला व्यक्ति भी ब्राह्मण ही था|

अब इतने के बाद भी दलितों को या किसी अन्य हिन्दू बिरादरी के व्यक्ति को मुस्लिम -ईसाईं बनना है , तो उन्हें जल्द से जल्द ऐसा करना चाहिए क्योंकि ऐसे  कुकुरमुत्तों के रहते परम पवित्र सनातन धर्म में गन्दगी ही  फ़ैल रही है | उन्हें तत्काल मौलानाओं और पादरियों की शरण लेना चाहिए | और हाँ ...इन कुकुरमुत्तों को जब हिन्दू धर्म में इतनी बुराइयाँ दिखती हैं तो सबसे पहले अपने बाप-दादाओं समेत सारे पुरखों को गरियाना-जुतियाना चाहिए जो अब तक हिन्दू धर्म को अपनाए रहे | इन धर्मद्रोही कुकुरमुत्तों की भावनाओं को समझें तो उसके अनुसार उनके पुरखे बेवकूफ थे | अगर वे पहले ही धर्म बदल लेते तो इन दागी और बागी कुकुरमुत्तों को हिन्दू होने की पीड़ा नहीं झेलनी पड़ती !

लेकिन मुझे तो एक बात समझ नहीं आती ... तुम्हारे पुरखे बेवकूफ़ थे सो थे ..पर तुम क्यों अक्लमंदी नहीं दिखाते ?? जब सनातन हिन्दू धर्म इतना ही बुरा है .. और उसमें तुम्हें शोषण –पीड़ा भी झेलनी पड़ती है ... तो उसे  छोड़ते क्यों नहीं ?? जिस सनातन धर्म को गालियाँ देते हो ... उसमें घुसे रहकर अपने दोगलेपन को क्यों प्रमाणित क्यों कर रहे हो ?? अरे... क्या दिक्कत इसे छोड़ने में ??  जब तुम्हारे आराध्य भगवान् भीमराव ने संविधान में  धार्मिक स्वतंत्रता के तहत धर्म परिवर्तन करने की पूरी छूट दे रखी है | जल्दी  जाओ  .. और जाकर इस छूट का लाभ उठाओ ! तुम्हारे आदर्श  रोहित बेमुला और उसके परिवार ने तो बाजी मार ली | कन्हैया कुमार को भी वक़्त रहते अक्ल आ गई | अब बारी तुम्हारी है |  बिना देरी किए अक्लमंद बन जाओ | हिन्दू धर्म में अपनी ऐसी – तैसी मत मरवाओ |

आखिर में तीसरे मोर्चे वाले यानि ... बौद्ध धर्म अपनाकर ‘ऊँचा’ बनने का ख्वाब देखने वालों से भी कुछ पूछना चाहूँगा | जवाब न भी दें तब भी मेरी बात पर विचार तो कर ही सकते हैं | जरा बताएं... क्या उन्हें या उनके पुरुखों को बौद्ध बनकर अपेक्षित और कथित सामाजिक न्याय मिला ?? एक लम्बे काल तक भारतवर्ष में बौद्ध धर्म का भी व्यापक प्रभाव रहा ... उसका खूब डंका बजा | उस दौरान कितने ही  देशों में बौद्ध धर्म फैला ! न जाने कितने राजे-महाराजे बौद्ध हो गए ! दलितों को लगा कि यही सही मौका है अपनी नस्ल बदलने का ...सो वे भी महज़ बराबरी का दर्ज़ा पाने के लिए (क्योंकि आध्यात्मिक..आत्मिक उन्नति से उनके बाप को भी मतलब नहीं था ) बौद्ध बन बैठे | ...पर नतीज़ा ?? वही ढाक के तीन पात ! वहां भी गिनती बढ़ाने के बदले मिलने वाले ‘छद्म समानता’  के अलावा वो कुछ खास हासिल नहीं कर सके | जरा सनातन धर्म के विरोधी हिसाब जोड़े कि  बौद्ध काल समेत मुस्लिमों और  अंग्रेजों के शासनकाल की अवधि कितनी लम्बी थी | इस अत्यधिक लम्बे अंतराल में भी दलितों की दुर्दशा यथावत  क्यों बनी रही ?? सनातन धर्म पर भेदभाव का आरोप लगाने वाले अपने प्रिय मज़हबो और उनके शासकों के रुख पर क्या सफाई  देंगे ?? अगर ये शासक और मज़हब वास्तव में सामाजिक समानता स्थापित करने के प्रयास करते  तो सबको जन्मजात जाति व्यवस्था से इतर योग्यता के अनुसार उनका हक़ मिल गया होता और जातिगत दलित जीव भारत में नहीं पाए जा रहे होते |

इतना सब कहने के बाद मैं एक बात स्पष्ट करता चलूँ - मेरे निशाने पर सिर्फ वो  धर्मद्रोही हिन्दू हैं ( जिनमें तथाकथित सेक्युलर भी शामिल हैं ) ...जो हिंदुत्व को बदनाम करते हुए दूसरे धर्मों को आदर्श बताते हैं | दलित इनमें बहुतायत में हैं इसलिए उनको संबोधित करते हुए ही सवाल और सुझाव सामने रखे हैं | इन कुकुरमुत्तों के अलावा मैं उन सभी हिन्दुओं को अपना स्वजन –प्रियजन मानता हूँ जो धर्मप्रेमी, श्रृद्धालु और आस्तिक हैं ...चाहे वे किसी भी जाति से क्यों न हों |  साथ में आपको यह भी बता दूँ   ... भगवान् बुद्ध मेरे पूज्य हैं ..आदर्श हैं | मेरा आक्रोश सिर्फ छद्म बौद्धों के प्रति है | इसके अलावा एक खास बात और ... अन्य धर्मों के उन लोगों के प्रति भी मेरे दिल में खास इज्ज़त है जो अपने धर्म से प्रेम करते हैं ,उसमें श्रद्धा रखते हैं , उसका सम्मान करते हुए कट्टरता से पालन करते हैं | बेशक सैद्धांतिक या व्यवहारिक रूप से वे मेरे विरोधी और यहाँ तक कि किन्हीं परिस्थितियों में दुश्मन भी हो सकते हैं लेकिन बावजूद इसके  मैं उनके धार्मिक ज़ज्बे की क़द्र करता हूँ | आखिर उसूलमंद और बहादुर  दुश्मन भी तारीफ़ के काबिल होता है | अपने धर्म पर अडिग रहने वाला व्यक्ति कोई उसूलमंद और  बहादुर ही हो सकता है |

साभार https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1229548290473694&substory_index=0&id=897780156983844

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