ब्रिटिशों के शासनकाल में कैसे कुछ सनातन विरोधी शक्तियों ने सनातन को मिटाने के लिए सनातन के अंदर से ही लोगों को सेलेक्ट कर एवं ट्रेंड कर उन्हें प्लांट करना शुरू किया था इसका कारण था कि, भारतवर्ष और सनातन को कभी प्रत्यक्ष युद्ध में दुनिया की कोई शक्ति नहीं हरा सकती थी जिस कारण उन दानवों ने अंदर से छेद करना शुरू किया,
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ब्रिटिश शासनकाल के समय दयानंद, राजा राम मोहन राय, पेरियार, अंबेडकर जैसे जितने भी ये तथाकथित समाज सुधारक आये दरअसल सभी वही दल्ले थे जिन्हें दानव समाज ने भारतीय समाज को विकृत करने और कई भागों में विभक्त करने के लिए बनाया था, दयानंद भी एक FREEMASON ही था,
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‘MASONIC शैतान’ माने जाने वाले हेनरी स्टील ओल्काट और मैडम हेलेना ब्लाव्स्की ने 1875 में दयानंद और अपने कई प्लांटेड चेले चपाटों के साथ मिलकर ‘आर्य समाज’ की स्थापना की, आर्य समाज की स्थापना भारत के किसी धार्मिक केंद्र के बजाय मुंबई में हुयी, जो कि FREEMASONS का केंद्र भी हुआ करता था,
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ज्यादातर लोग जानते होंगे 1870 के दशक में मुंबई से थोड़ी दूर पर स्थित ‘कार्ला की रहस्यमय गुफायें’ जिसे आजकल ‘KARLA CAVES’ कहा जाता है, तांत्रिक शैतानों का अड्डा हुआ करती थीं, कार्ला गुफाओं के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह तंत्र मंत्र और सिद्धियों के लिए बेहतरीन जगह है जहाँ ऐसे कार्य जल्दी सिद्ध होते हैं,
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कार्ला गुफाओं में MASONS ने ऐसे कई ‘टेलिपैथी मास्टर्स’ INSTALL किये थे जिनके जरिये भारत के कई राजाओं और जानी मानी टॉप की हस्तियों को कंट्रोल किया गया था (सबूत के लिए कपूरथला रियासत के दीवान जरमनी दास की राजों महाराजाओं की ‘प्राइवेट लाईफ’ के बारे में लिखी गयी किताबें देख सकते हैं जिसमें उन्होंने विदेशियों के साथ मिलकर किये जाने वाली राजाओं के तांत्रिक कार्यों के बारे में बताया है)
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यही कारण था कि जो भारतीय राजा भारत और सनातन धर्म के लिए जान देते थे वो बड़ी आसानी से बिना किसी युद्ध के ब्रिटिशों के पालतू बन गये, आर्य समाज की स्थापना की तरह ही कांग्रेस की स्थापना भी MASONS ने ही की थी, यह बात कई लोग जानते हैं कि, कांग्रेस की स्थापना भी MASONIC RITUALS के बाद ही हुयी थी,
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कांग्रेस स्थापक ए. ओ. ह्यूम अक्सर कहा करता था कि उसके मित्र ‘अलौकिक शक्तियों’ वाले हैं, दरअसल वो कोई और नहीं बल्कि ‘MASONIC शैतान’ ही थे, जिस तरह दयानंद सहित कई सारे टॉप के आर्य समाजी FREEMASON थे ऐसे ही शुरुआत के समय कांग्रेस की टॉप लीडरशिप भी FREEMSONS ही थे, जिन्होंने भारत के पूरे माहौल पर जबर्दस्त प्रभाव स्थापित किया,
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दयानंद के अलावा आर्य समाज के अन्य जो FREEMSONS से जुड़े टॉप नेता थे वह थे हरिचंद चिंतामन, मूलजी ठाकर्शी और अन्ना मोरेश्वर कुंटे, अगर आर्य समाजियों को अपना FREEMASON CONNECTION देखना है तो वह मुंबई की ‘FREEMASON GRANDE LODGE’ में आज भी जाकर सारे सबूत देख सकते हैं,
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FREEMASO N या फिर THEOSOPHISTS के भारतीयों के साथ संगम को उस समय पश्चिमी और भारतीय विचाधारा को एक मंच पर लाकर इकट्ठा करना बताया गया, उसी का परिणाम हैं भारत में खुले ईसाईयों के स्कूल कालेज, उसी का ही परिणाम था आर्य समाजियों के खोले गये दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल कालेज (D.A.V. SCHOOL & COLLEGE),
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अब यह सोचो आर्य समाज को मुंबई में स्थापित करने के लिए फंड कहाँ से आया होगा, आर्य समाज बनाने के लिए लोग कैसे इकट्ठा किये गये होंगे, आर्य समाज के DAV स्कूल कालेज खोलने के लिए फंड कहाँ से आया होगा, इसी तरह के आर्य समाज के कई मिशनों के लिए धन कहाँ से जुटाया गया होगा,
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अगर उस समय आर्य समाज वास्तव में ब्रिटिशों के खिलाफ काम कर रहा था तो क्या ब्रिटिश लोग भला ऐसे संगठन को या फिर उसके अभियानों को या फिर उसकी फंडिंग को आगे बढने देते ???
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दरअसल मुंबई में आर्य समाज की शुरुआती फंडिंग ‘ब्रिटिशों के अब्बा’ एवं ‘बैंकर्स माफिया ROTHSCHILD’ ने ही कराई थी, ऐसे कामों के लिए ही ROTHSCHILD के BLOOD RELATIVE ‘SASSOON FAMILY’ वाले मुंबई में बने हुए थे जो अंग्रेजों के जाने के बाद ही भारत से गये,
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FREEMASONS की GRAND LODGE से संबंधित कागजों और Weblinks में आपको अन्य टॉप के आर्य समाजियों के नाम मिलेंगे लेकिन दयानंद के नहीं मिलेंगे, उसका कारण यह है कि दयानंद अपने अंतिम दिनों में FREEMASONS के चंगुल से छूटकर ‘विद्रोही’ बन चुका था, जिस कारण उसका FREEMASON से बहिष्कार हो गया,
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1882 में दयानंद ने कभी अपने सहयोगी रहे हेनरी स्टील ओल्काट की बखिया उधेड़ कर रख दी, दयानंद FREEMASONS, THEOSOPHISTS और हेनरी ओल्काट के रहस्य समझ चुका था, 26 मार्च 1882 को अपने एक संबोधन में दयानंद ने FREEMASONS के पालतू THEOSOPHISTS को ‘पाखंडी बताया और ‘HUMBUGGERY OF THE THEOSOPHISTS’ नामक विषय उठाकर थियोसोफिस्ट शैतानों की पोल खोल कर डाली,
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दयानंद के इस विद्रोही व्यवहार से FREEMASONS और THEOSOPHISTS की हालत खराब हो गयी, इस नुकसान की भरपाई के लिए खुद हेनरी स्टील ओल्काट ने THEOSOPHICAL SOCIETY के मुखपत्र ‘THE THEOSOPHIST’ में दयानंद के खिलाफ एक तगड़ा लेख लिखा जिसमें ओल्काट ने उल्टा दयानंद पर ही कई आरोप मढ डाले, ओल्काट ने दयानंद को ‘पाखंडी’ और धूर्त’ बताया,
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दयानंद द्वारा FREEMASON शैतान मंडली से विद्रोह किये जाने का कारण ही था जो दयानंद को FREEMASON के इतिहास से गायब कर दिया गया,
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अब आते हैं ‘THE THEOSOPHIST’ पर, यह ‘मुखपत्र’ FREEMASON द्वारा ही संचालित था, जिसकी मुख्य संपादक ‘TOP MASONIC शैतान’ मैडम हेलेना ब्लाव्स्की खुद थीं, मैडम ब्लाव्स्की ‘THE THEOSOPHIST’ भारत में छापती थीं और अमेरिका ब्रिटेन में यही ‘लूसिफर मैगजीन’ (LUCIFER MAGAZINE) नाम से छापा जाता था, अब ‘लूसिफर’ नामक शैतान कौन था ये आप सब अच्छे से जानते ही होंगे, लूसिफर मैगजीन की मुख्य संपादक मैडम ब्लाव्स्की तो थीं ही, लेकिन इस ‘शैतानी पत्रिका’ के ‘उप-संपादक’ के बारे में आप जानेंगे तो चौंक जायेंगे, वह कोई और नहीं बल्कि भारत में ‘महान समाज सुधारक’ के रूप में प्रसिद्ध ‘मैडम एनी बेसेंट’ थी, एनी बेसेंट भी लुसिफर उपासक MASON ही थी, जो तथाकथित समाज सुधारक के वेश में भारत में घुसाई गयी थी,
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बताया जाता है कि FREEMASONS से विद्रोह के बाद दयानंद के उसकी पुरानी MASONIC मंडली से संबंध बिगड़ते चले गये थे, दयानंद की मृत्यु का कई लोग तरह तरह का कारण बताते हैं कि, काफी लोग बताते है कि, उसे एक रजवाड़े (कुछ कारणों से उस रजवाड़े का नाम नहीं लिख रहा हूँ) के महाराजा की एक रखैल ने दूध में कांच पीसकर दे दिया था जिससे उसकी मृत्यु हुयी थी, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि संभवतः MASONS से विद्रोह के कारण ही दयानंद मारा गया था, MASONS का लंबा इतिहास रहा है वह अपने विद्रोहियों को कभी जीवित नहीं छोड़ते,
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इस कालम में बताया गया कैसे कुछ विदेशी शक्तियों ने सनातन धर्म में फूट डालकर एक अलग ही संप्रदाय खड़ा करने के लिए दयानंद नामक मोहरा और आर्य समाज तैयार किया था
अगले भाग में बताया जायेगा कैसे आर्य समाजियों ने ब्रिटिशकाल में गद्दारी की और समाज को बांटकर रख दिया था ! हर हर महादेव !
Source:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=425892644423866&id=100010094027252
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