Thursday, 9 March 2017

होली सामाजिक समरसता का त्यौहार

🎊 *आज का विषय :-*
*होली सामाजिक समरसता का* *🎉त्यौहार🎉*

🌻 *होली का एक नाम "बसंतोत्सव" भी है। बसंत के आगमन का उत्सव। मीठी, मदमस्त बयार के झखोरे मन में तरंग उठाते हैं, कदम खुदबखुद लहराते हैं, उमंगों के बादल घुमड़-घुमड़ जाते हैं। तिस पर फाल्गुन महीने की खुनक मानो सोने पे सुहागा।*

💐 ब्रज के देहातों में फाल्गुन पूर्णिमा से करीब महीना भर पहले होली की मुनादी करता डांडा गढ़ने के साथ ही रंगोत्सव शुरू हो जाता है। डांडा उस जगह गाढ़ा जाता है जहां होलिका दहन होना होता है। गांव-मोहल्ले वाले उसी दिन से उस जगह जलावन के ढेर लगाने शुरू कर देते हैं। नन्दगाँव, बरसाना, गोकुल, बल्देव, माँट, फालैन, शेरगढ़, महावन, मथुरा, वृन्दावन और दाऊजी में तो होली की खास तैयारियाँ होने लगती हैं।

🎉 *बरसाने की लठामार होली तो जगप्रसिद्ध है ही। माना जाता है कि कोई ४५० साल पहले ब्रज चौरासी कोस की यात्रा के पुनर्संस्थापक श्री नारायण भट्ट ने लठामार होली की शुरुआत की थी। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन खेली जाने वाली लठामार होली का नजारा ऐसा भावविभोर करने वाला, ऐसा रंग से सराबोर करने वाला होता है कि शब्दों में बता पाना संभव ही नहीं है।*

🎊 बरसाने की रंगीली गली कान्हा के सखा नन्दगांव के हुरियारों और राधा रानी की सखियों के रूप में बरसाने की महिलाओं से ऐसी पटी होती है कि ओर-छोर नहीं दिखता। बरसाने की सखियों से जानबूझकर ठिठोली करते नन्दगाँव के छैलाओं पर लाठियों की मीठी और स्नेह पगी धमाधम होती है।

⚜ *लाठियों के वार से बचने को हुरियारे अपने सर पर चमड़ा मढ़ी ढाल ढक लेते हैं और बड़े आनन्द से लाठियों के वार सहते हैं, बीच-बीच में छेड़छाड़ भरे पद गाते हैं, ब्रजबालाएँ लाठियाँ और तेजी से भाँजने लगती हैं, गली के चारों ओर छतों-मुंढेरों पर चढ़े संगी- साथी और इस लोकरंजक होली का आनंद लेने वाले हुरियारों पर भर भर बाल्टी टेसू का रंग उड़ेलते हैं, गुलाल-अबीर के बादल छा जाते हैं।*

🥀 गली में रसिया और होली के सवैया गूँज उठते हैं :-
*आज बिरज में होरी रे रसिया*,
*होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया।*
*अपने अपने भवन तें निकसी,*
*कोई सांवरि कोई गोरी रे रसिया।*

💃 *कौन गाम के कुंवर कन्हैया*
*कौन गाम की गोरी रे रसिया।*
*नंदगाम के कुंवर कन्हैया लाला,*
*बरसाने की गोरी रे रसिया।*

👨‍🎤 *वृन्दावन में टेढ़ी टाँग वाले ठाकुर बाँके बिहारी की अदा तो और बाँकी हो जाती है होली की मस्ती में। धुलैड़ी या रंग खेले जाने से पाँच दिन पहले, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को बिहारी जी के मंदिर की छटा निराली ही हो जाती है, मस्ती की ऐसी बयार बहनी शुरू होती है जो अगले पाँच दिन तक अटूट रहती है।*

🍁 टेसू के फूलों से बने खुशबूदार रंग की बौछार और इत्र की महक वाले अबीर-गुलाल के गुबार के बीच से ठाकुर की छवि को निहार कर आनंद आ जाता है। मंदिर में गुलाल और टेसू के रंग के मेल से इतनी कीच हो जाती है कि कुछ देर दर्शन करके बाहर आने पर तलवे ऐसे रंग जाते हैं जैसे पैरों पर महावर रचा दी हो।

🌺 *पाँचों दिन सुबह और शाम के दर्शन अद्भुत अनुभूति कराते हैं। मंदिर के अंदर से गोस्वामीजन पीतल की लंबी पिचकारियों से गुनगुने पीले रंग की ऐसी बौछार करते हैं कि २०० फुट दूर खड़ा भक्त भी सराबोर हो जाता है। रोजाना ठंडाई का भोग लगता है, लड्डू-पेड़ों की तो गिनती ही क्या।*

🌸 वृन्दावन में होली की मस्ती का वर्णन करते हुए लाल बलबीर ने कहा है :-
*मोर के पखौआ सीस*
*गुंजन की माला गरैं,*
*मुख में तमाल बैन बोलैं बरजोरी के*
*गावत धमार लाल पिचकी अपार परैं,*

*नीरज फुहार अंग भीजत किशोरी के*
*लाल बलबीर लाल छांड़त गुलाल लाल,*
*अवनि अकाश द्रुम लाल चहुँ ओरी के*
*धाई सहजोरी गोरी लोक*
*लाज तोरी कहैं*,
*दौरि घेर लेऔ*
*ये खिलारी आये होरी के।

साभार:

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1649727535324176&id=100008608351394

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