Tuesday 7 March 2017

एक अद्भुत वीर गाथा ब्राह्मण_बाजीराव_पेशवा

एक अद्भुत वीर गाथा  -  ब्राह्मण जब शस्त्र धारण करता है।

जब मुस्लमान  भारत के  हिन्दुओ को निगलने ही वाले थे , ब्राह्मणों का जिन दुश्वार था , समाज के सभी लोग मुगलो से आतंकित थे , चाहे वो किसी भी जाति  का क्यू ना हो  , चारो तरफ भय  का  वातावरण  व्याप्त था , तब  एक ब्राहमण  ने सशत्र उठाये , और राक्षसों के विरुद्ध क्रूरता की  ऐसी मिशाल दी , जिससे  मल्लेछ काँप उठे , दिल्ली  का  मुग़ल दरबार त्राहिमाम त्राहिमाम कर चूका था , इस ब्राह्मण का ऐसा भय मुसलमानो में था , की किसी सुल्तान ने बाजीराव पेशवा से सीधे मिलने की भी हिम्मत नहीं की , ना कभी युद्ध के मैदान में स्वइच्छा  से आगे आया  .  इतिहास में आज तक युद्ध एक धारी  तलवार से लड़ा गया , किन्तु  इस बार तलवार दुधारी थी , और वह ब्राह्मण के हाथ में थी , ऐसी यह तलवार चली , की सारा भारत भगवा हो गया , मुग़ल भारत से सिमटकर दिल्ली तक रह गए।   लेखको को साहित्य लिखने का खजाना मिल गया। 

राजपूत मराठा शिवाजी महाराज  ने हिन्दू शाशन को बहुत सुव्यवथित कर दिया था , इसे आगे बढ़ाया पेशवा श्रीमन्त  बाजीराव बल्लाड ने ,   अगस्त १६९९ को  पेशवाबालाजी  विश्वनाथ ब्राम्हण के घर में जन्मे बाजीराब बचपन से ही युद्ध की सभी विधाओ में पारंगत थे ,   घुड़सवारी और तलवारबाजी उनके बचपन के सोख थे , खतरों से खलने में उन्हें आनंद आता था ,

६ फुट से भी ऊँचा और लंबा कद , बलिष्ठ और मुँह  पर ईश्वर सा तेज ,  उनका ताँबे जैसा  रंग उनके चरित्र में चार चाँद लगाता था , न्याय के प्रिय बाजीराव को सफ़ेद वस्त्र बहुत पसंद थे , उनके पास चार घोड़े थे , जिनकी देखरेख वो किसी और से नहीं करवाते , बल्कि स्वम् करते थे , पूरी सेना में सख्त अनुशाशन था ,  और इतिहास के सफलतम वक्ताओं में से एक , जिनके एक आह्वाहन पर जनता मरने  मारने को तयार हो जाती थी।   बाजीराव पेशवा का युद्ध मॉडल ही अमेरिका की सेना भी फॉलो करती है।   अटक से कटक तक हिन्दुओ का राज लाने का सपना सबसे पहले शिवाजी महाराज ने देखा था ,, जिसे स्वम् एक ब्राह्मण ने पूरा किया , १९ साल की उम्र में ही बाजीराव् पेशवा ने पूरी दिल्ली को बंधक बना दिया , यहाँ तक की औरेंजेब दिल्ली से भागने वाला ही था , की बाजीराव उसे डराकर  वापस लौट गए , जितने दिन बाजीराव जिए , मुसलमानो  पतलून उनके नाम से गीली हो जाती थी , वो चाहे किसी गद्दी पर बैठा मुस्लमान सुल्तान ही  क्यू ना हो। 

बाजीराव की युद्ध की गति बिजली से भी तेज़ थी

बाजीराव की सफलता मुख्य रूप से उनकी अचानक आक्रमण करने की योजना पर आश्रित थी। इसके लिए वे प्रमुख रूप से अपनी अश्वारोही सेना का प्रयोग करते थे।

दो अश्वारोहियों के बीच में तीन अश्व होते थे, और जब एक अश्व आराम करता था तब बाकी दो से काम लिया जाता था। इसके परिणाम स्वरूप उनकी सेना चालीस मील की दूरी एक दिन में तय करती थी और इस गति को वे कई दिनों तक बनाए रखते थे। यह उस समय की किसी भी सेना की सबसे अधिक गति थी। तभी वह अपने बारे में शत्रु को बिना कोई संकेत दिए उस पर आक्रमण कर बैठते थे।

यह कहा जाता है कि १७२७ के अक्टूबर महीने में पुणे छोड़ने से लेकर १७२८ के मार्च में पालखेड के युद्ध की समाप्ति तक उनकी सेना छह महीनों में दो हजार मील आगे तक बढ़ गई थी।

बाजीराव का कहना था कि "रात सोने के लिए नहीं होती अपितु अपने से संख्या में अधिक शत्रु को व्यस्त रखने के लिए होती है।" एकबार बाजीराव ने अपने भाई चिमाजी अप्पा से कहा था, "यह हमेशा याद रखो कि रात का निद्रा के साथ कोई संबंध नहीं है। यह तो भगवान द्वारा अपने शत्रु के आधिपत्य क्षेत्र में हमला करने के लिए बनाया गया है। रात, तुम्हारा कवच है, तोपों से बचाने के लिए ओट है और बहुत बड़ी शत्रु सेना के लिए तलवार है।"

पेशवा बाजीराव की सफलता का एक प्रमुख कारण उनका मजबूत गुप्तचर विभाग भी था। उनका गुप्तचर विभाग इतना मजबूत था कि वह किसी भी क्षण अपने शत्रु के ठिकाने के बारे में सभी जानकारी प्राप्त कर लेते थे।
उनके व्यक्तिगत उदाहरण के द्वारा ही बलिदान के भाव को द्योतित करता हुआ भगवा ध्वज, युद्धभूमि में हर-हर महादेव के घोष के साथ हमेशा उँचा फहराता रहता था, और जो उनकी सेना को भयमुक्त होकर लड़ने के लिए प्रेरित करता था।

हिन्दुओ के रक्त पर नाचति दिल्ली और मुसलमान, एक ब्राह्मण आया तो उन्हें दिल्ली तक ही समेत गया, उनके बाद कभी मुसलमान मजबूत नही हुए ।।

यह एक ब्राह्मण का क्रोध था ।।

जय जय श्रीमन्ननारायण

#ब्राह्मण_बाजीराव_पेशवा

कहा जाता है कि सनातनी साम्राज्य का दुश्मन हैदराबाद का निजाम महान बाजीराव जी की प्रसिद्धि,पराक्रम,तीव्रता,

नेतृत्व आदि गुणों से इतना प्रभावित और डर गया कि उसे उन्हें देखने की इच्छा जागृत हो गई क्योंकि उसने उन्हें देखा नहीं था,तो उसने उनका चित्र बनाने के लिये चित्रकार भेजा तो चित्रकार गया और चोरी से चित्र बनाने का मौका खोजने लगा,मौका मिलता नहीं था क्योंकि वो ब्राह्मण शिरोमणि जमीन पर बहुत कम समय व्यतीत करते थे और अधिकांश समय घोड़े पर ही व्यतीत करते थे,

एक दिन उसे समय मिला जब वो घोड़े पर सवार होकर खेत मे जौ की बालियां हाथों से मसल मसल कर खा रहे थे और उनका उदंड अश्व भी अपने स्वामी की तरह कूद कूद कर जौ की बालियां खा रहा था,उस समय उनकी विकराल देहयष्टि और उनके विशाल और चंचल अश्व की छवि बड़ी भयंकर प्रतीत होती थी,वही चित्र चित्रकार ने निजाम को दिखाया था जिसे देखकर निजाम चीख उठा और चिल्लाकर बोल उठा ये तो देव है! देव है
अर्थात राक्षस)

इससे हम युद्ध नह़ी कर सकते और उसने युद्ध हार मानकर बंद कर दिया,कर देना स्वीकार किया,अपनी परम स़ुंदरी बेटी मस्तानी को बाजीराव महाराज को भेंट कर दी दया प्राप्त करने के लिये और उनके मनोरंजन के लिये जिसे आजकल के सेकुलर और वामपंथी लेखक महाराज क्षत्रसाल की बेटी बताते हैं जो कि महाझूठ है,जय जय श्रीमन्नारायण!!!

साभार https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=254741814974601&id=100013163531113

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