Thursday 9 March 2017

भारत के मूल आधार पर हमले

मूलाधार पर हमले

‘द डविंसी कोड, जब वह 2006 मे रिलीज हूई तो हंगामा मच गया था।भारत समेत दुनियाँ के सारे दुनियाँ के सभी ईसाई मुल्को ने फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया था।इसे रोमन कैथोलिक चर्च पर हमले के रूप में देखा गया।सभी ईसाई संप्रदायों-देशो ने बड़े पैमाने पर निंदा की।ईसाई-मिशनरिया सड़क पर उतर आई थी।बाद मे रूस ने 18 मई 2006 को रिलीज हुई फिर जून मे अमेरिका-और यूरोप मे कोर्ट आर्डर से रिलीज हूई।शासको ने लंबी जद्दोजहद के बाद भारत मे भी अनुमति दी गई।डान-ब्राउन का लिखा नावेल तो 2003 मे ही आ गया था।यह उपन्यास दुनिया भर में बेस्टसेलर बन गया।खूब हिट हुआ था।इसका 44 भाषाओं में अनुवाद किया गया है। 2006 में, सोनी के कोलंबिया पिक्चर्स द्वारा बनाई गई फिल्म हममे से बहुतों ने ‘द डविंसी कोड,जरूर देखी होगी।रान हावर्ड गज़ब के निर्देशन शैली का प्रमाण है यह हालीवुड फिल्म।1994 मे’फारेस्ट गंप, फिर ‘यू हैव गाट मेल, देखने के बाद टाम हैंक्स मेरे मनपसंद अभिनेताओ मे से है।
उपन्यास के उतार-चढ़ाव की तरह ही फिल्म भी जासूसी,सस्पेंस,थ्रिल और रोमांच से भरी हुई है।मर्डर मिस्ट्री से शुरू हुई घटनाए एक दूसरे से जुड़ी है।हर बार एक कोड पर रुकता है।हीरो-हीरोइन उसे पजल की तरह सुलझाते जाते है।प्रस्तुति ऐसी है की लगे मिशनरियों का एक गोपनीय संगठन हत्याए करवा रहा है।फिल्म मे तीन-तीन क्लाइमेक्स है।बहुत सारी घटनाओ के बाद अंत मे फिल्म इस क्लाइमेक्स वाली बात पर खत्म होती है की हीरो-हीरोइन ईसा की पत्नी मैरी मगदलीनी के वंशज है।हत्याए एक इतिहास-वादी अंग्रेज़ करवा रहा था।जरा यह आखिरी बाते देखिये की फिल्म मे हीरो कहता है।यह बाते हमे दुनियाँ को नही बतानी चाहिए क्योकि पूरा मिशनरी नेटवर्क ‘प्रभु ईसा के रास्ते पर चल रहा है।फिल्म खत्म।सोचिए जरा उनके समझ पर जिस फिल्म को लेकर वे इतना विरोध कर रहे थे वह भी उन्हे ही सपोर्ट कर रही थी।कई गधे इसे फिल्म प्रमोशन वाली मार्केटिंग स्ट्रेटजी भी समझ सकते है।पर ऐसा नही है हालीवुड कभी भी ईसा को लेकर कोई मार्केटिंग स्ट्रेटजी नही बनाता,यह उनके प्रोफेशनल इथिक्स के खिलाफ माना जाता है।मेरे पास ऐसी हजारो फिल्मों की सूची है जिसमे केवल मिशनरियों और वेटिकन को हीरो दर्शाया गया है।वे धार्मिक फिल्मे नही हिट रही साधारण विषयो की फिल्मे है लेकिन उनमे उनकी जबर्दस्त प्रशंशा की है जो एक तरह से उनके धार्मिक कैरेक्टर को दर्शाता है।वेम्पायर सीरीज की फिल्मे हो,एक्सटार्शन फिल्म की सीरीज हो या जासूसी वे मिशनरियों के महिमामंडन का कोई न कोई तरीका निकाल ही लेते है।
  उस फिल्म का इतना विरोध क्यो हुआ था?मिशनरियो के खिलाफ कुछ क्ल्पनाए भी वे बर्दाश्त नही करते।हालीवुड फिल्मे चाहे जैसी बनाए,उनके द्वारा स्थापित मानदंडो-प्रतिष्ठाओ को नही भंग करता।वे अपने संतो को लेकर सदैव सचेत रहते है।अपने पाठ्यक्रमों मे,कहानियो मे,उपन्यासों,फिल्मों और दृश्य-श्रव्य माधमों मे कहीं भी अपने मूला-धार पर हमले बर्दाश्त नही करते।सारे ईसाई देशो के रास्ट्र-प्रधान ‘पोप, के पद-ग्रहण समारोह मे शामिल होते हैं। हाँ अमेरिका का राष्ट्रपति भी मिशनरियों के समारोहो मे शामिल होता है।मिशनरिया यानी भव्यता और भौतिक-सुख संपदा के चरम की प्रतीक।

पूरा का पूरा यूरोपियन समाज अमेरिकन, आस्ट्रेलियन ,अफ्रीकन, जहां तक ईसाईयत का प्रभाव फैला हुआ है।उनके बुद्दिजीवी भी मिशनरी धारणाओं से बाहर निकल कर नही सोच पाते। इतिहास,भूगोल, फिल्म, साहित्य ,कला,साइंस,टेक्नालजी, गणित ,तक में विज्ञान,तक में मिशनरियों द्वारा फैलाई गई दार्शनिक अवधारणाओं से बाहर सोच ही नहीं पाते। हर चीज को वह वह उसी पारे में ,उसी ढांचे में ,ढालने की कोशिश करते हैं। उनका आखिरी पैरामीटर मिशनरी और बाइबिल होगी।या फिर चर्च और फादर।जीवन के हरेक विभाग में उनकी दखल है।उससे बाहर निकलकर सोचने के बारे में भी कल्पना नहीं कर पाते हैं ।यह ईसाई मिशनरियों के 2 हजार साल तक लगातार किए गए कार्यों का परिणाम है।दुनिया का एक बड़ा हिस्सा जो उनके द्वारा संस्कारित है।ऐसे ही सोचता है।समस्या यह है। कि विज्ञान टेक्नॉलॉजी मीडिया, उद्योग,व्यापार सारी चीजों पर इनके समुदायों का कब्जा हैं । सूचना क्रांति पर उनका पूरा नियंत्रण है।कम्युनिकेशन सिस्टम का ज्यादातर हिस्सा उनके कंट्रोल में है। सभी जैसा चाहते हैं। दुनिया को अपनी दिमागी रचना में पचा लेते हैं।
अब जरा अपने घर लौटते है।
‘अध्यात्म का सीधा सा अर्थ है अहंकार को सम्पूर्णता में विलीन करना।अधि+आत्म में अधि का तात्पर्य है अध्याय से,जो अहंकार के नाश का क्रम है।आत्म के अहंकार का अध्ययन और फिर समापन।परमात्मा का अविनाशी अंश आत्मा भला अहंकारी हो सकती है?हम क्रम से अहंकार बोध चढ़ा लेते हैं उस निष्पाप और पवित्र अंश पर देह,मन,बुद्धि,चिति,और बोध पर भी,।यह समुच्चय ही ”मैं,का प्रबल भाव बना देता है।इसी मैं की ही कामना,धारणा,वासना होती है।अहं का नाश!कभी एक साथ सम्भव नही है।वह एक-एक कर समष्टि में विलीन करना पड़ता है।जैसे ही हम समझते है नष्ट हो गया वह नया रूप ले कर जम जाता है।इसी लिए अध्याय के क्रम में देखते हैं।जो भी नया शब्द चाहे लगा लें।उसके नष्ट होने का क्रम है।जब वह समाप्त होगा तो फिर एक नया अहंकार घेर लेगा। देह-सौष्ठव,सुन्दरता,धन,वैभव,सम्पन्नता,पद-प्रतिष्ठा, ताकत,कुल,जाति,सम्प्रदाय सम्पर्क आदि का अहंकार तो होता ही है,क्षमता,दक्षता,विद्या,ज्ञान,विधाओं,व्यवस्था इत्यादि निहायत नाशवान चीजों का अहंकार शरीर छूट जाने के बाद भी मोहरूप में सालो तक बना रहता है।सेवा-दया-क्षमाँ का अहं,शौर्य का अहं,श्रेष्ठ कर्मो का अहं घेर लेगा,त्याग का अहं जकड़ लेता है,तप,पूजा,पाठ,साधना करते हैं और उसका अहंकार घेर लेता है।उसे भी अनवरत नष्ट करना अध्यात्म होता है।एक दिन सब छूट जाता है परमात्मा ही शेष रहता है।सभी संतो,सन्यासियों के चिन्तन का तरीका यही है।यही मूल बिंदु है।

सनातन धर्म मे सन्यासी पर स्वत:विधान लगता है।किसी तरह का कोई आरोप लगता है तो फिर समाज ही उसे छोड़ देता है।समाज ही उसे दंडित करने लगता है।उसका सारा सम्मान चला जाता है। यही उसकी सबसे बड़ी सजा है। उसने कहीं बालात्कार चोरी या कोई असंयम कर दिया तो फिर वह स्वत्: सन्यासी ना रह जाता है।सनातन समाज की खूबसूरती है कि वह आपको आधार बनाता है।उसकी सोच में त्याग बड़ा है।टाटा-बिरला या कोई बड़ा बलशाली भी दरवाजे पर आकर खड़े हैं तो हिन्दू उनसे भी ज्यादा सम्मान किसी अघोरी,सन्यासी,योगी को देता है।क्योंकि सामने जो खड़ा है ना उसने सारा सारी दुनिया छोड़ दी है,सब छोड़ने के बाद अपने अहंकार को छोड़ दिया है उस के चरणों में सिर झुकाता है।किसी संसारी के चरणों में सिर नहीं झुकाता।जो किसी के भी चरणो में शीश नही झुकाता वह त्यागी के चरणों में सिर झुकाता है।किसी के दबाव में नहीं करता है उसकी चेतना में ही यह संस्कार व्याप्त है।वह हमेशा त्याग को सभी चीजों से बड़ा समझता है।संसार के प्रति आकर्षण ना रखने वाले को बड़ा समझता है।वह संसारी लोगों को उतना सम्मान नहीं देता जितना उन पारलोकिक लोगों को देता है जो इन सारी चीजों को छोड़ने की क्षमता रखता है।इधर के साहित्य-कलाओ-दृश्य-श्रव्य माध्यमों ने उस त्याग वाद की धारणाओ पर प्रहार शुरू किए है।वे समाज की सोच से उन आदर्शो,संस्कारो,आचारों से मिटा कर अपनी भौतिकवादी-भोगवादी प्रवृत्ति को भर देना चाहते है।

‘आध्यात्मिक राष्ट्र का कवच, के तहत पिछ्ले लेख में आपने पढ़ा कैसे महान संतो ने अपने त्याग से,आस्था से, बलिदान से और तपस्या से इस राष्ट्र को सनातन संस्कृति से लगातार जोड़े और जगाए रखा।परवर्ती काल में दुश्मन समाज यह समझ गया कि सनातन धर्म के ऊर्जा स्रोत किधर है।  जब तक यह संतों के प्रति गहन आस्था इस भगवा वस्त्र धारी व संतो के प्रति गहन श्रद्धा हिंदू समाज में मौजूद है तब तक हमारी दाल न गलेगी।इस समाज का हम कुछ बिगाड़ नहीं सकते।उनके आक्रमण के तरीके बदल गए।उन्होंने हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए। वामी-सामी-कांमी आक्रमणकारियों ने आस्था के मान बिंदुओं पर वार करना शुरू किया। उनकी छवि करानी खराब करनी शुरू कर दी। उनके बारे में तरह-तरह से गंदी घटिया बातें फैलानी शुरू की।उसने समाज में ठगी,लूट के संदर्भ में सन्यासियों को दर्शाना शुरू कर दिया।साधु शब्द का अर्थ बिगाड़ना शुरू कर दिया।

क्रमश: इसका असर होना शुरू हुआ।उनके लेखों से,उनके पत्रकारिता से,उनके शिक्षण पद्धति से,सरकारी व्यवहार से इन त्यागी सन्यासियों के प्रति एक गहन वितृष्णा,आक्रोश का भाव समाज में जागृत करने/भरने की चेष्टा की जाने लगी।(आप खुद लिस्टिंग करिये कैसे?)वह एक तरह का सामाजिक आक्रमण था, लेकिन स्वभावत: हिंदू समाज आक्रमणों को पहचानने में हमेशा देरी करता है।उसे पता नहीं होता है कि इसके दुष्परिणाम क्या होंगे।उन्होंने इसकी कोई रणनीति नहीं बनाई।क्योकि असंगठित राष्ट्र की प्रतिक्रिया जल्दी सामने नही आती।सामाजिक स्तर से वह भूल गए कि समाज की आधारभूत संरचना में इन संतों का उतना ही योगदान है जितना राष्ट्र के तत्व।भारत राष्ट्र की संरचना,उसकी सोच, उसके संस्कृति,उसका प्रभाव,उसका विराट दर्शन,उसकी विविधता, आस्था का प्रदर्शन डिफरेंट है एकदम अलग। दुनिया के अन्य राष्ट्र तत्व एक किताब,एक पवित्र स्थान, एक पैगंबर की आस्था से बिल्कुल अलग।सनातनी समाज को तत्काल सामने दिखता है कि यह अवतारी है,चमत्कारी संत।वह उनमें से ऊर्जा ग्रहण करता है।वामियो- कांग्रेसियों ने उन आस्थाओं पर वार करना शुरू किया।आस्थाओं पर प्रहार करना शुरू किया।पहला उन्होंने कोर्स की किताबों से ऐसे तथ्य हटा दिये, दूसरा उन्होंने अखबारों के माध्यम से उन पर आक्षेप करने शुरू कर दिए,तीसरा उन्होंने उन्हें उन संतो को हतोत्साहित और डैमेज करना शुरु कर दिया।

उनके बारे में घटिया प्रचार करना शुरु कर दिया।उनके चरित्र के बारे में निम्नस्तरीय बातें शुरु कर दी।हिन्दू समाज उनकी प्रतिस्ठा को मानबिंदू के रूप में रखता था।तो भी समाज का रिएक्शन सामने नहीं आया।शत्रुओं का मन बढ़ता गया।फिर तो जो मन में आए सो बातें लिखने/कहने/बोलने लगे।धीरे-धीरे आधुनिक बनने/दिखने के चक्कर में खुद ही बुराई शुरू कर दी। कभी उनकी बुराई करना,उन की चुगली करना पाप समझा जाता था।श्राप का डर था,नर्क का डर था लोग त्याग को प्रतिस्ठा के चरम पर रखते थे।कुछ बोलते समय सोचते थे।धीरे-धीरे बुराई करने की आदत डाल दी गई।उनके साथ खुद ही बोलने लगे।खुद ही बुराई देखने-सुनने-कहने लगे।ऐब निकालने लगे। जब सकारात्मकता ऊर्जा समाज से खत्म होती है नकारात्मक उर्जा खुद ही जगह बना लेती है।

आज अपने घर में ही देखते हैं छोटे बच्चे को डराया जाता है ‘बाबा आ जायेगा,।यानी कितना बड़ा डाकू आ जाएगा।उन्ही त्यागियो का डर बैठ गया।जिनके लिए पलक-पावड़े बैठे इन्तजार करते थे।घर-बार हीन ईश्वरीय आभा से सम्पन्न।और भी  बहुत सारी बातें।  अब् संतो को देख कर मन में सम्मान नहीं आता।उनकी प्रतिष्ठा भंग हो गई।कुछ तो भिखमंगो और ठगों की भी करनी थी।आपने तथा-कथित आधुनिक और पढ़े-लिखो के मुंह से यह वाक्य जरूर सुना होगा,मठ का कुक्कुर,’जाइए घंटा-बजाइये,कर्मकांडी,तिलकी।अपनी पूजन पद्धति के लिए इतना हेय दृष्टिकोण खुद नही पैदा हुआ है।बाकायदे सुल्तानों और नबाबों की मजलिस से यह पैदा किया गया।बाबा जी का घंटा,बाबा जी का टुल्लू,घाघ सन्यासी,पंडी,पंडा आप लिस्टिंग करिए तो कुत्सित मंशा समझ मे आएगी।किसी सेखुलर की हिम्मत हो तो नमाज या प्रार्थना के लिए इस तरह का एक शब्द गढ़ के दिखा दे। आपने ‘गोरख-धंधा,शब्द सुना होगा।गोरखनाथ जी जैसे महान योगी,जिनहोने योग को घर-घर पहुंचा दिया जिनके प्रति पूरा देश आस्था रखता था,उनके लिए मध्य काल मे यह शब्द रचा गया।क्योकि जोगी जहां भी जाते इस्लाम चमत्कारो से रुका जाता।’सरदार जी बारह बज गए, पर मेरा एक लेख है,पढे मजा आएगा।घाघ इसे शुरू मे ही भाँप गए।गिद्ध दृष्टि जो ठहरी।नेटवर्क भी तोड़ना था।गज़ब तरह से प्लानिंग किया।ज्यादातर ऐसी छवि बनाने के पीछे एक धीरे-धीरे 100 सालों में की गई साजिश रही है।

यह केवल जानकारी के लिए बता रहा हूं पूरी दुनिया में जितना पादरी,फादर,ब्रदर,नन,मुल्ले-मौलवी और दूसरे धर्मों के पुजारी हैं उस से 20 गुना संख्या में भारत में अविवाहित जोगी,पंडित,शास्त्री,भगवा-धारी,कांपालिक,नागा, जोगडे,बाबा,साधू,साधक,अघोरी,तांत्रिक,मांत्रिक,भिक्षुक,सन्यासी,पण्डे-पुजारी-महंत,गिरि-गोस्वामी-गुरु-अवधूत,इकतारे,निरंकारी,धर्म-प्रचारक, आदि भरे पड़े हैं। देश के कोने-कोने में निष्काम भाव से घूम रहे यह संत सनातन समाज के स्वत: रक्षक सैनिक हैं इनकी ऊर्जा का प्रवाह अनंत है।हजारो साल से यह समाज के मूल-संगठक हैं उन-पर प्रहार का मतलब ईश्वरीय ऊर्जा श्रोत पर आघात है। वे जान गए की सामाजिक संरचना और बनावट में ही संतों का बड़ा योगदान है।इन्हें खत्म करो।नही तो कभी सनातन समाज को तोड़ नही पाओगे। दुष्परिणाम भी सामने है पूर्वी भारत से जब खत्म हुआ तो वहां इस्लाम बढ़ता चला गया।पूरे बंगाल में पहले सन्त खत्म हुए फिर हिंदू।काश्मीर मे पहले साधु-संत खत्म हुये फिर हिन्दू।नार्थ ईस्ट में जब इन संतों का प्रभाव खत्म हुआ तो वहां ईसाई मिशनरियों ने कब्जा कर लिया।आज 90 प्रतिशत धर्मान्तरण हो चुका है।पश्चिमी भारत से बड़े संतों का नाम गायब होना शुरू हुआ।200 साल के भीतर पूरा इस्लाम भर गया।पहले वहां संतों का प्रभाव घटाना शुरू किया गया।पाकिस्तान के उन हिस्सों में 1850 से 1950 के बीच में संतों को उठने जी नहीं नहीं दिया गया।वह इधर अमृतसर की तरफ आकर रहने लगे या फिर गढ़वाल-हिमांचल की पहाड़ियों में। लाहौर केंद्र जरूर था लेकिन अमृतसर और शिमला की तरफ हिमांचल प्रदेश के पहाड़ियों के तरफ संतों को ढकेल दिया जाता था।वे रहने ही नही देते थे।पाकिस्तान- अफगानिस्तान की तरफ इस्लाम ने सूफीवाद खड़ा किया।यह दिमाग बदलने का अदभुत षड्यंत्र था।कुरान में गीत-संगीत पर प्रतिबंध है।भारत तो संगीत से अध्यात्मकी शक्ति लेता है।सूफीज्म रचकर गायन-वादन में इस्लामिक फ्यूजन का सहारा लिया जाने लगा।सनातन प्रेरणास्रोत,ऊर्जास्रोत गायब किये जाने लगे।प्रभाव तत्काल दिखता है,आप के सामने पूरा पश्चिमी हिस्सा छिन गया।अब् पाकिस्तान-अफगानिस्तान के हिंसक रूप में खड़ा है।यह सूफीवाद भी अद्भुत है यह ईश्वर को स्त्री बनाकर पूजने लगता है,उसे भी भोग लेना चाहता है,पूरा मेटेरियल और जब आप भौतिक चीजों में खोजते हैं उस सुख को। वह स्वयं को द्वन्द में बदल लेता है,संघर्षों में बदल लेता है और यह खूनी जंग में बदल जाता है।क्योंकि भौतिक चीजें आपसी संघर्ष कराने की साजिश है और मौत ही चुनती हैं। तो वह लड़ रहे हैं,आपस में मर रहे हैं, छोटे-छोटे बच्चों को मरवा दे रहे हैं।यह सनातनी अध्यात्म में नही है अगर सनातन से जुड़े होते,कोशिश करते अंत में से उर्जा खोज रहे होते, ईश्वरीय ऊर्जा निकली होती वह शांति की तरफ ले जाती।वह उस पारलौकिक सुख से जोड़ देती जो इस संपूर्ण जगत के उस पार तक चला जाता है। उन्हें ना यहां मिलेगा ना वहां कुछ मिलेगा।हम जानते हैं जन्नत की हकीकत लेकिन ग़ालिब ख्याल अच्छा है।

अब इधर के बीस सालो की हरकतों को आप खुद लिस्टिंग करिए।आप टीवी पर चर्चा में देखते होंगे, कहीं से फटीचर सा साधु पकड़ लाते हैं और बैठा देते हैं।जिसको ना तो हिंदू धर्म के बारे में जानकारी है ना सनातन संस्कृति के बारे में।वह बकवास किये जाता है यह जम कर समाज की खिल्ली उड़ाते है।वह जानबूझकर ऐसा करते हैं।आपने ऐसे कई कांग्रेसी साधुओं के बारे में देखा होगा।जिन्हें बड़े मठो पर जबर्दस्ती काबिज करवाया गया है।आपने उन्हें केवल हिंदू समाज पर बुराई करते देखा होगा।संत के रुप में बन-ठन कर आते हैं लेकिन सन्त नही होते। कोई किसी शो में चला आ रहा है,कोई किसी कार्यक्रम में इंटरव्यू दे रहा है, कोई कहीं मठ बना कर कार्यक्रम कर रहा है।यह सब एक योजना से होता है।आपको लगता है कि यह अपने आप हो रहा है यह अपने आप नहीं होता।यह एक कुत्सित मंशा से किया जाता है।धर्म बदनाम होता है।

अगर सफेद कपड़ा पहने हैं उस पर लगी हुई दाग दिखती है।काली-गंदी कमीज पहने घूम रहे हैं तो उस पर चाहे जितना धूल-गन्दगी लपेटो-पोतो कोई फर्क नही पड़ता है।उस पर दाग नही दिखेगा।हिंदू सन्यासी,योगी,साधक, ब्राह्मण अध्यात्म को आंतरिक उन्नति का साधन मानता है।वहां त्याग,तपस्या,साधना, संयम,ब्रम्हचर्य पैरामीटर है।अगर वह इस खांचे में नही दिखता तो फिर तपस्वी न कहा जायेगा। लेकिन जिन संप्रदायों में ‘भोगना, ही पैरामीटर है हलाला का सुख मिल रहा है,मुताह मिल रहा है,ऊपर भी यही सब मिलने वाला है।72 हूरे टाइप।’संयम,अहिंसा,अपरिग्रह,अस्टांग,तपस्या जैसी कोई धारणा ही नहीं है।स्त्री वस्तु है वहां बालात्कार अपराध नहीं होता।जहां इस तरह के सेक्सुअल रिलेशन कोई गंदी और गलत बात नहीं है।सब चलता है। जब हुजूरे आला यह ऐसे थे तो उनके अनुयाई कैसे होंगे सोच लीजिए।उनके यहां यह अपराध नहीं है,दाग नहीं है,एक कलंक जैसा नहीं है।इस लिए उनके मुल्लो पर दाग नहीं लगता नही दिखता।अंतर होने की वजह से जब वामी-कांग्रेसी सेकुलर कम्यूनिकेटर मुल्ले-और पुजारियों को एक ही तराजू से तौलते हैं तो उनकी सोच समझी जा सकती है।वे यह करके सफेद कमीज को गंदा दिखाने की कोशिश करते है।किसी मुल्ले के बारे में सुना है,कभी मस्जिदों के नेटवर्क के बारे में सुना है उनसे?कभी पादरियो और चर्च की असलियत उनके मुंह से देखा।मिशनरी स्कूलों की कारस्तानियो पर कोई फिल्म,स्टोरी,गुजरा है आपकी निगाह से?टीवी पर सुना कभी? क्योंकि उनकी लिखने की हिम्मत नहीं है।क्योकि उनसे संगठित प्रतिक्रिया मिलने का डर होता है।उनही की साजिश भी होती है। उसके खिलाफ कैसे लिख सकते हैं। इस तरफ की साजिश से हथियार के रूप में दूसरे धर्मों पर इस्तेमाल की जाती हैं।दूसरे समाज के सम्मान बिंदुओं को सम्मानित प्रतिष्ठित व्यक्तियों को अपमानित करने से धीरे-धीरे वहां असंगठित वातावरण तैयार हो जाता है। यह टारगेट है वह मानबिंदू पर हमला करके नष्ट कर देना चाहते हैं।सनातन की धारा को सनातन प्रवाह पर उनका हमला सोची-समझी मंशा से उपजा है।

वे मठो पर ऊपर लिखने हैं।,आश्रमो को बदनाम करने के लिए घटिया बाते लिखते हैं।वह शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती को नीचा दिखाते रहे।उनके जेल भेजने के लिए साजिश किया।वह निरपराध छूट कर बाहर आये।लेकिन उस बीच हिन्दू संस्थाओं पर जाने कितने छींटे उछाले।कौन नही जानता कि उनको फँसाने के पीछे किसका हाथ था। आसाराम बापू के खिलाफ षड्यंत्र करते हैं।मैं यहां यह नहीं कह रहा कि आसाराम बापू सही है या गलत।लेकिन यह जानता हूँ कि कुछ ही दिन पूर्व किसके लिए वह खुलकर बोलते थे।जिस दिन बोले थे उसी दिन यह तय हो गया था कि जेल ही जाना है।वह रमण जी,सत्य साईं के बारे में घिनौनी बाते बोलते/लिखते/प्रचारित करते हैं।वह श्री श्री रवि शंकर के बारे में गलत लिखते हैं।,ओशो रजनीश के अध्यात्म के बारे में घटिया बाते फैलाते रहे।उन सभी के सेवा-कार्यो,मेडकल-सिंचाई-स्कूल्स-कालेजो के बारे मे मीडिया से कुछ सुना आपने?वह तमाम साधुओं,पुजारियों,ब्राह्मणों के बारे में नेगेटिव-गन्दी बातें करते हैं।हजारो साल से स्थापित इमेज खराब करते हैं।जब धर्म बदनाम होता है तो समाप्त भी हो जाता है।उपन्यास,फिल्मे,कहानियां,पाठयक्रम और मीडियाटिक वार हमारे मान बिंदुओं को खलनायक साबित करने में लगा दी गई।आप सोच रहे हैं यह सब निरुद्देश्य हो रहा था तो आप मूर्ख है।वे असल योद्धाओ को टारगेट कर रहे हैं।सनातन राष्ट्र का हजारों साला कवच को तोड़ रहे हैं।हम आप भी अनजाने मे सहभागी बनते जा रहे।धीरे-धीरे संत-परंपरा ही समाप्त होने लगेगी।इसलिए हमेशा सावधान रहिए।

हिन्दू सहज दान-देने का आदी होता है।दान उसकी प्रवृत्ति मे होता है।आज भी सीधा-छूना सभी घरो मे अनिवार्य कर्म होता है।संतो,साधुओ,गुरुओ ने मठ प्रारम्भ किए थे।शुरुआत चेलो ने की,फिर आश्रम बनते गए,मदिरो,मठो मे युगो से भिक्षाटन कर-करके इकट्ठा होता गया।उनका जीवन रोमन-एम्पायर जैसा भव्यता भरा भोगी तो था नही कि खर्च होता।प्रभु-धुन मे मस्त,भौतिक से क्या काम। सोने-चांदी के टुकड़े भला उनके किस काम के।वे एक लंगोटी पहने,भभूत लगाए घूमते थे।इकट्ठा होता गया।फिर लोग तीर्थाटन करने,दर्शन करने जाते तरह-तरह का चढ़ावा करते थे।देश भर के सभी मठ और मंदिरो-आश्रमो की संपत्ति जोड़ ली जाये तो 8 लाख करोड़ से ऊपर की परिसंपत्तिया है।लोगो द्वारा ईश्वर को दिया गया वह धन-दौलत दैवीय -संपदा के रूप मे इकट्ठी है।ठोस और नकद लेकिन डंप अर्थ-व्यवस्था की तरह पड़ा है।वह खा-पी-उड़ा रहे है जिनका धर्म-राष्ट्र-या सनातन चेतना मे समर्पण नही दिखता।प्रकृति,पर्यावरण,धर्म और महाचेतना के लिये कुछ नही करते तो वे एक बोझ जैसे है।ईश्वरीय धन का इस्तेमाल सेवा-दया-प्रकृति-सनातन-चेतना के लिए होना चाहिए।सनातन के प्रचार-प्रसार के अलावा धर्मांतरण से रोकना उनमे से एक कार्य है।जीवो के रक्षा के लिए,नदियो,तालाबो,कुओ के जल पर वह धन खर्च होना चाहिए था।पुरोहितो-पुजारियों-देव-पूजाओ के हजारो पद्धतियो के संरक्षण पर वह धन खर्चना चाहिए।

प्राचीन काल से ही शंकराचार्य का चयन “उत्तराधिकार प्रणाली, से होता था।कोई जरुरी नही की मठों के शिष्यों में से ही उत्तराधिकारी चुने जाय।उसके लिए दूर-दूर तक के निर्विकार,निष्कामी,अध्यात्मिक तपस्वियों पर नजर रखते थे।दूर-दराज के पहाडियों की गुफाओं में तपस्यारत सन्यासियों से बुजुर्ग शंकराचार्य प्रतिनिधियों द्वारा सम्पर्क रखते थे।रास्तो के तमाम तरह के कष्ट उठाकर वह खुद भी मिलने जाते थे। उनमे से गंभीर,सुयोग्य,समाज प्रदर्शक,श्रेष्ठ,ज्ञानी,उत्तराधिकारी शंकराचार्य मिलते थे।राग-द्वेष से ऊपर उठकर केवल हिन्दू समाज हित को ध्यान में रखकर शंकाराचार्य बनाये जाते थे।कई भी उदाहरण ऐसे भी हैं कि “निर्विकार सन्यासी, ने इस गुरु-गम्भीर पद के लिए मना कर दिया।क्योकि उसे पद लालसा से अधिक जिम्मेदारियों के सुचारू निर्वहन न कर पाने का बोध होता था।इन सत्तर सालो मे एक विचित्र बात संज्ञान मे आई है।बजाय आध्यात्मिक-उन्नतियों के अब बाकायदा मुकदमा लड़ कर शंकराचार्य पद हथियाया जाता है।स्थितिप्रज्ञ होना,निष्कामी होना,तपस्वी,ज्ञानी तो छोड़िये बाकायदे पद-लोलुपता से भरे राजसी ठाठ-बाट के साथ मान-सम्मान प्रचार,छपास से ग्रसित,भोग लालसाओ से भरे छल प्रपंचना का हर खेल करते हैं।टीवी पर दिखने के लिए तरह तरह के बयान देते है।उन्हें धर्म,अध्यात्म और संस्कृति को छोडकर हर चीज से मतलब है।एक तो बाकायदा घोषित कांग्रेसी है।जो कांग्रेस,मुगलों,इसाइयो, अंग्रेजो तथा अन्य आक्रामक विदेशियों की भांति सदा से हिन्दुओ के लिए खतरा रही है,उसके सदस्य ही नही युवक कांग्रेस के प्रदेश पदाधिकारी से सीधे शंकराचार्य बन बैठे।बाकायदे मुकदमा लड़ कर।उसका दुष्परिणाम क्या रहा।अपने शासन मे तो वे हिन्दू-हितो का विरोध कराते रहे।कभी भी इंच भर काम हिन्दू या सनातन हितो के अनुरूप नही किया।जबकि शंकराचार्य संस्था की स्थापना हिन्दुओ की सांस्कृतिक अध्यात्मिक सुरक्षा-कवच के लिए की गयी थी।

आजादी के बाद पहला काम किया कि उनमे धीरे-धीरे घुसपैठ किया।उन्हे मठो का धन दिख रहा था।सीधे -सरल संत महात्मा भला इनको क्या जाने?उनकी योजनाए क्या समझे।तो देश के अधिकांश मठो मे वही कब्जेदार है।जैसे ही कुछ धर्म-समाज के लिए करने को कहा जाता है।गाली-गलौज अपर उतर आते है।जो ठीक या राष्ट-वादी दिखे उन्हे आइसोलेट करना शुरू कर देते है।बदनाम करना शुरू कर देते है।इन वर्षों मे हजारो साल से इकट्ठी की गई मठ-आश्रम-अखाड़ो की शक्तिकेन्द्रो पर कब्जा कर लेने की होड सी मच गई।आन्तरिक साजिशों से,गठजोडो धोखा-धडियो से,अपराधियो के चेले-चपड़ी बनकर घुसपैठ करके,तरह-तरह के कानूनी पैंतरो से,राजनीतिक दबाओ से उन मठ-मंदिरो की संपत्तियो पर कब्जा करते दिखते है।मर्डर,चोरी-अपराध और बालात्कार के आरोपी भी महंत और मठपति बने बैठे है।आप देश भर से पता करके बता दीजिए किसी मस्जिद या चर्च को अधिग्रहण किया गया हो?सरकार ने अन्य धर्मियो को नियंत्रण में रखा हो! लेकिन मैं आपको 100 से अधिक मंदिर बता सकता हूं जो सरकार के अधिग्रहण में है। तो क्या देश का कानून सरकार केवल हिंदुओं पर ही लागू है?हिंदुओं को ही नियंत्रित करना है? सनातनियों को कंट्रोल करना, सनातनियों को ही सताना है?देश के कई हिस्से मे मठ-मंदिरो के चढ़ावे पर सरकार का कब्जा भी है।।केरल मे तो हमारे दान के पैसे क्म्युनिष्ट लिटरेचर का बढ़ावा किया जा रहा।हज की व्यवस्था की जाती है।यह सब आक्रमण की तरह ही है।सनातन श्रद्धा के धन से केवन सनातन का विकास होना चाहिए नही तो कोशिश करके हमे उनके खिलाफ अभियान चलाना चाहिए।सारे मठ-मंदिर-आश्रम एक सनातन संगठन मे मिलकर रचनात्मक कार्य करे।हमने 2002 मे एक बार श्रद्धालु महासभा बनाकर ऐसा प्रयास शुरू किया था पर गृहस्थ के लिए आसान है क्या।

साभार https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10155000533476768&id=705621767

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