Thursday, 9 March 2017

सबूत के लिए करिये

""सबूत के लिए करिये,,
अब प्रस्तुत है इसकी अगली कड़ी ।

Making History और Manufacturing History में बहुत बडा फर्क होता है लेकिन दोनों भविष्य को प्रभावित करते हैं ।

महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोबिन्द सिंह, लछित बरफुकन जैसे लोगों ने जो किया उसे making history कहा जाएगा । बिलकुल निष्पक्षता से कहें तो मोहम्मद कासिम, घोरी, गजनवी, खिलजी, बाबर, अकबर, औरंगजेब, क्लाइव, माउंटबैटन आदि लोगों के कारनामे भी making history ही हैं। गोखले, गांधी, नेहरू, इन्दिरा आदि लोगों का भी making history में स्थान है । सम्मान की बात नहीं कर रहा, बस स्थान की बात कर रहा हूँ, इतिहास में इनका योगदान है जिसे नकारा नहीं जा सकता । बनाया या बिगाड़ा यह बात नहीं, केवल निष्पक्षता की बात है । सूची बड़ी है यह बस बानगी है ।

Manufacturing History की बात करें तो वा क ई गिरोह ने जो किया है वह manufacturing history है । मुहम्मद कासिम ने पाकिस्तान की नींव डाली और अंग्रेजोने पाकिस्तान से मुल्क काटकर हिंदुस्तान पाकिस्तान अलग किए यह manufactured history है । जो कहीं लागू थी ही नहीं उस मनुस्मृति के नाम से छाती कूटना और कभी पाँच तो कभी साडेतीन हजार साल दलितों पर अत्याचार यह manufactured history है । यह भी सूची बड़ी है यह बस बानगी है ।

अब यह बताइये, मोहम्मद कासिम, घोरी, गजनवी, खिलजी, बाबर, अकबर, औरंगजेब,क्लाइव आदि लोगों के making history से हमारा अधिक नुकसान हुआ है या वा क ई गिरोह के manufacturing history से ?

Manufacturing History  का यह उदाहरण देखिये ।

लगभग एक साल पहले डॉ Tribhuwan Singh जी ने एक पोस्ट लगाई थी जहां कुछ कथित साहित्यकारों का लिखा हुआ एक ज्ञापन महामहिम राष्ट्रपति जी को भेजा गया था । ज्ञापन में कुछ नया नहीं था, वही बढ़ती हुई सांप्रदायिकता में सेक्युलरिजम की सांस घुटनेवाली बात थी । सब ने मिलकर मज़ाक उड़ाया उस पत्र का । मैंने कहा कि यह रेकॉर्ड बनाने की वामी कला का नमूना है । आज यह रेकॉर्ड पर जाएगा और आगे जा कर यही रेकॉर्ड बनेगा।

इस आखरी लाइन को जरा अलग तरीके से लिखता हूँ ।

आज यह रेकॉर्ड पर जाएगा और आगे जाकर यही एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ बनेगा । कल की पीढ़ी के लिए वही इतिहास होगा।

अब चूँकि सरकारी रेकॉर्ड संभाले जाते हैं, एक गलत बात इतिहास बनने जा रही है । और चूँकि इसका कोई और संस्था लिखित में इसी ढंग से प्रतिवाद नहीं कर रही है, रेकॉर्ड और पर्याय से इतिहास, इनके ही पक्ष का रहेगा।
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दादरी की जो भी reporting हुई..... जो भी रेकॉर्ड्स बने, अगर 2017 में दुबारा जांच न हुई तो यही इतिहास बन कर रहेगी।
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वामी, कसाई और ईसाई = वा क ई जानते हैं कि किसी का भविष्य बिगाड़ना हो तो उसका इतिहास बिगाड़ दो ।

हमारे ग्रंथालय जला दिये गए । सब "नामे" लिखे, लिखवाये तो किसने? आज लिखित रेकॉर्ड है तो वही है - क्या सच मानते हैं वे कि हम उनके लिखे इतिहास से सच की अपेक्षाकरें? लेकिन कुछ उपलब्ध है तो वही है ।

अंग्रेजोने हमारे इतिहास के नाम पर जो खेल किया है उसे हम अभी भी भुगत रहे हैं । 250 साल में 5000 साल के झूठ का बोज़ा हमारे पीठ पर लाद दिया फिरंगी ने जो अभीतक फसाद की जड़ बने हुए हैं । “वेदों में गोमांस का उल्लेख” उन्हीं का पकाया बीफ stew है । And we are still stewing in that.

उनके पीछे पीछे आए वामियों की सब से बडी जीत यह है कि स्वतंत्र भारत ने जो इतिहास के नाम पर सीखा वो वामियोने लिखा हुआ था। आज हर IAS की सोच इस कारण भ्रमित है क्योंकि उसके टेक्स्ट बुक्स वामियों के लिखे हुए थे ।

शायद आप को अब समझ में आया होगा ये manufacturing history वाला खेल । यह होती है History की History जो हमें पता नहीं होती। लेकिन जब आप इस वाक्य को ध्यान में लें कि "इतिहास वो शस्त्र है जिसके आघात से राष्ट्र की अगली पीढ़ियों को अपाहिज बनाया जा सकता है" तो शायद आप को इसका महत्व समझ में आयेगा।

वैसे वा क ई को और भी एक इल्म हासिल है । Manufacturing Hysteria to mould History....... उसपर विस्तार से अलग से .... यह बात तो समझ में आई न?

Anand Rajadhyaksha जी की कलम से दुबारा।

साभार: पवन त्रिपाठी

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