वैरं॑ विकृ॒त्यमा॑ना॒ पौत्रा॑द्यं विभा॒ज्यमा॑ना ॥ अथर्व १२.५.४.१
गौओं के काटने और उन के मांस को बांटने पर, घातक के कुलों में और गोरक्षा करनेवालों मे वैर उत्पन्न हो जाता है (समाज में वैर उत्पन्न हो जाता है ) . इस वैर का दुष्परिणाम गोहत्या करने वालों के पौत्रों तक को भोगना पड़ता है | यह वैर कहां तक जाता है, यह गोरक्षकों की गौ के प्रति श्रद्धा पर निर्भर है |
दे॑वहे॒तिर्ह्रि॒यमा॑णा॒ व्यृ॒द्धिर्हृ॒ता ॥ अथर्व १२.५.४.२
(गो) मांस के व्यापार का राष्ट्र के विद्वानों और दिव्य कोटि के लोगों को पता चलने पर समाज में हिंसा का वातावरण बनता है | गौओं के दूध की कमी और कृषि कर्म की कठिनाइयों के कारण राष्ट्र की ऋद्धि समृद्धि क्षीण हो जाती है |
पा॒प्माधि॑धी॒यमा॑ना॒ पारु॑ष्यमवधी॒यमा॑ना ॥ अथर्व १२.५.४.३
(गो) मांस का व्यापार समाजिक अशांति की पापवृत्ति को प्रकट करता है और गोमांस का प्रयोग हृदय की कठोरता को प्रकट करता है |
वि॒षं प्र॒यस्य॑न्ती त॒क्मा प्रय॑स्ता ॥ अथर्व १२.५.४.४
(गो) मांस पकाने के प्रयास विष रूप है और इन का प्रयोग कष्ट प्रद रोगादि ज्वर रूप है | ( बौद्ध ग्रंथ “सूतनिपात” के अनुसार माता पिता , भाई तथा अन्य सम्बंधियों के समान गौएं हमारी श्रेष्ठ सखा हैं | पूर्वकाल में केवल तीन ही रोग थे – इच्छा, भूख और क्रमिक ह्रास | परंतु पशुघात मांसाहर के कारण 98 रोग पैदा हो गए | )
साभार https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10211879813247921&id=1148666046
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