Thursday 9 March 2017

शान्ति और सुरक्षा का रास्ता:इतिहास

शान्ति और सुरक्षा का रास्ता:इतिहास

  युगों से ही भूत-प्रेत सारी दुनियां में मनुष्य के लिए डर,रहस्य और समस्याओं के कारण हैं।पूरे विश्व में अलग-अलग हिस्सो में भूत झाड़ने-उतारने और भगाने के लिए बहुत सारे तरीके आजमाए जाते हैं।चीन में 'ची,शक्ति है..ताओवाद तो अफ्रीका के कबीले 'ऊलू,..और बूशु पद्दति अपनाते हैं..."जुल्लु, यूरोप की मशहूर पद्दति है।सिद्द,शाबर मंत्र-ओझा-गुनिये-और तांत्रिक-पुजारी लगभग हर सभ्यता और सम्प्रदाय समुदाय में मान्य रूप में मौजूद हैं।
"एक्सटॉर्शन, रोमन चर्चेज से मान्यता प्राप्त पद्दति है..जो सारे पादरी 'देह,से भूत निकालने के लिए करते हैं।फिल्म-जगत ने इस विषय पर इतनी 'मूवी,बनाई है कि हाली-वुड को ही आप लगातार 1 साल में नही खत्म कर पाएंगे।हमारे भारत में तो गली-गली इस विषय के तांत्रिक-मांत्रिक-'विशेषज्ञ, मौजूद हैं...थोड़ा भी चूके तो घर-बिकवा दें।
  प्रेत उतारने के अपनी धार्मिक-स्थानीय मान्यताओं,विश्वासों के अनुसार तरह-तरह के मन्त्र-श्लोक-वर्सेज,आयतें, होती है।जिनको काफी पहले से उपयोग में लाया जाता रहा है।अमूमन वह कोई बुजुर्ग जानता होता है।मरने से पूर्व अपने चेले को दे जाता है।
कभी-कभी वह प्राचीन भाषा में होता है,कभी स्थानीय भाषा और बोली में।
उनको अपनी तरह से सिद्द कर लिया जाता है।फिर 'पीड़ित, पर विभिन्न रिवाजो-कर्म-कांडो के हिसाब से प्रयोग किया जाता है।
अमूमन मरीज ठीक होते देखे गए हैं।
वैसे तो सैकड़ो मन्त्र रच लिए जाते हैं   किन्तु बख्तरिया,तुर्क से सूडान तक पश्चिम एशिया में 'एक मन्त्र,, वहां के ओझाओं और गुनियो के द्वारा भूतों-जिन्नों और जिन्नातो-प्रेतों को भगाने के लिए प्रयोग किया जाता है ''भाग-जिन्न-जिन्नात भाग..चंगेजी आया।,,
गुनिया स्थानीय भाषा में गरज-गरज कई बार बोलता हैऔर बड़े-बड़े भूत भाग जाते हैं।
हे हे हे हे...नाम सुन कर सूसू उतर आये।

यह 'चंगेज, बौद्ध था।बड़ा भयानक बुद्धिष्ट,,।
उसके 'इलख़ानी'साम्राज्य में बहुत से धर्मों के प्रति सहानुभूति रखा जाता था लेकिन इनमें बौद्ध और ईसाई धर्म को ही विशेष स्वीकृति हासिल थी।उस समय मुस्लिम शासक या खलीफा दुश्मनी, ऐयाशी और कत्लेआम में ही लिप्त थे।चंगेज़ खान ने ख्वारिज़्म के शाह से "अपने बौद्ध धर्म की तरफ से दोस्ती का हाथ बढाने के उद्देश्य से एक राजनयिक दल भेजा,...मगर इसे ख्वारिज़्म के शाह ...ने कट्टरता की मूर्खता मे उस ने उन सभी 400 बुद्ध भिक्क्षुओ को  जासूसी का इल्जाम लगाकर मरवा दिया।...यह बड़ी जघन्य हत्याये थी, क्योंकि वे इस्लाम का पालन करने वाले नही थे।ध्यान रहे वामी और मुस्लिम इतिहास-कार इस पूरे घटनाक्रम से "भिक्षु,शब्द उड़ाने की कोशिश करते हैं।पर उनकी समस्या ही यह है की म्ंगोलियन रिकार्ड मे यह मौजूद है।

......चंगेज़ ख़ान ने जब सुना के उस के "दार्शनिक दल,,की हत्या कर दी गयी है।कहते हैं उनमे से कई के व्यक्तिगत संपर्क मे था और आध्यात्मिक शिक्षाए भी लेता था।उसके गुरु भी उन्ही में थे।
उससे पूर्व उसने बौद्ध राज्याओ के दमन की कहानिया सुनी थी।इस घटना से उसे बोध हो गया।उस ने शपथ ले कर कहा कि अब एक भी मुस्लिम मुल्क और मुसलमानो को नही छोड़ूंगा और इस तरह मंगोल सेना हमले के लिये निकल पड़ी,.....उस के बाद पूरी दुनिया ने देखा के किस तरह मुसलमानो का क़त्ले आम हुआ.....सबसे गजब की बात वे खूंख्वार लोग बौद्ध थे....वही बौद्ध जो शांति,अहिंसा,सत्य,अस्तेय और अपरिग्रह का प्रणेता रहा है......उसने अपने सामने इस्लाम का खौफनाक मंजर महसूस किया।उसने देखा कि पूरे पश्चिम एशिया से इस्लाम की वजह से 'बौध्द धर्म,समापन के कगार पर पहुँच गया है...तो उसने बौध्द इलाको का एक-संगठन खड़ा किया।जिसे 'इस्लामिक इतिहासकार,, ''कबीलों का संगठन,, कहकर झुठलाने की कोशिश करते हैं।
चंगेज और उसके वंशजो की इस्लाम से आजिजी और प्रतिक्रिया ही थी कि वह केवल एक ही समुदाय पर आक्रमण करता,मस्जिदे तोड़ता,और तबाह कर देता।केवल मुस्लिम इलाको पर ही उसने आक्रमण किये।......आप इसको ऐसे समझे कि अपने 14 बड़े आक्रमणों में वह  अफगान से मुड़ते वक्त एक बार भी हिंदुस्तान की तरफ न मुड़ा।

इस्लाम के हाथों पश्चिम-एशिया का बहुत बड़ा हिस्सा खोने के बाद बौध्द राज्यो का बड़ा झटका लगा था।
'वे,अन्य सभी मामलो में अब तक अहिंसक थे...किन्तु इस झटके से वे कट्टर हो उठे।
  हिन्दुओ की तुलना में सौभाग्य से बौद्ध राज्य अपनी शान्ति और सुरक्षा का रास्ता जल्दी समझ गए।बुध्द का अनुशासन उनकी प्रकृति में था....इस्लाम से धम्म के बचाव का तरीका उन्होंने बड़ी शीघ्रता से अपना लिया...
उहोने अपने को संगठित किया और
जबर्दस्त प्रतिक्रिया दी।""एक मारोगे तो छः मारूँगा का स्थाई रेशियो बना लिया।,,
इस मामले में 12 वीं ईस्वी का बनाया सिध्दान्त वे आज तक अपना रहे हैं।
बौद्दों के संगठित होकर "कट्टर प्रतिक्रिया,, मिलने के बाद इस्लामी जेहादी कभी पूर्वी एशिया की तरफ मुंह भी नही करते थे।
यहां तक की 'तैमूरी,सेनाये उधर की तरफ न मुड़कर केवल पश्चिम एशिया,भारत और यूरोप की तरफ मार-काट करने गयी।

कभी आपने सोचा बंगाल तक जीतने के बाद भी किसी भी सुलतान की हिम्मत नेपाल,तिब्बत पर आक्रमण की क्यों नही पड़ी???
अकबर की सेनाएं 'भैरहवां, से आगे क्यों नही गई??

सुनिये..!

  ईस्वी सन 1337-38 में कट्टर मुस्लिम सुल्तान 'मुहम्मद बिन तुगलक, ने इस्लाम का नेतृत्व पाने और दबदबा बढाने के लिए "बौध्द चीन, पर आक्रमण की रणनीति बनाई।क्योकि उस इलाके को दारुल-ए-हरब माना जाता था।जो इस्लाम के अंतर्गत नही आ पाया था।उसे दारुल-ए-इस्लाम में बदलने का पाक मज़हबी कार्य उसे पूरा करने को सूझा।इससे उसका रसूख-दबदबा इस्लामिक जगत में बढ़ जाता।

   उसने 5 लाख से अधिक सेना इकट्ठी की।कहते हैं कि उसकी योजना का पता लगते ही दूर-दूर देशो तक के जेहादी आ मिले।दुनियां फतह करने।
बरसात बीतते ही इस सेना ने कराजल के रास्ते आक्रमण किया।

  उस समय चीन पर 'तोगन तिमूर,मंगोल का शासन था।वह कट्टर बौध्द था।मंगोल-तिब्बती और दूर-दूर तक बौध्द वहां लड़ने आये।इस्लामी सेना हार गई।आदत के अनुसार हार के बाद भागने लगी।तिब्बत,चीन और मंगोल तीनो राज्यो के इतिहासकारो ने राजकीय इतिहास में दर्ज किया है कि 'बौध्द,सेनाओं ने घेर कर बिना कोई दया दिखाये 'एक-एक जेहादी,, का सर कलम कर दिया।
केवल तीन सैनिक वापस पहुंचे।
यह रक्त-पात युगों तक याद किया जाता रहा।कौमे जान गई इसमें बहुत ज्यादा खोने का खतरा है।
बाद के सारे मुस्लिम इतिहासकारो ने इसे झुठलाने पर पूरा जोर लगा दिया।
क्योकि उन्हें हिन्दुओ पर शासन के लिये खुद को अजेय दिखाना होता था।
   चूंकीं 4 लाख सेनाओं के इकट्ठे होकर आगे बढ़ने का/गायब होने का रिकार्ड मौजूद है तो उन्होंने कहा कि यह खुरासान-विजय की योजना थी जो सुलतान द्वारा बन्द कर दी गयी थी।बिला-वजह??
इब्न-बतूता जैसे इतिहासकार ने भी इस मामले में घुमा-फिरा कर बात कही है।यह इबनबतूता इसकी तरफ से चीन में कुछ सन्देश लेकर गया था।
""बौध्द मंगोलों,, का यह मामला केवल यही नही रुका ''वे,इतने गुस्से में थे की  'तर्मा-शिरी,,नामक बौध्द मंचूरियन सेनापति के नेतृत्व में मुल्तान-लाहौर को बर्बाद करता हुआ दिल्ली तक चढ़ आये...उसने सारे मस्जिद और सीमाई इस्लामी चिन्ह तहस-नहस कर दिए...तुगलक ने उसे बहुत बड़ी रकम घूस दी तब वह लौटा।....इस बात की पुष्टि मुस्लिम इतिहासकारो ने की है।

    इस आक्रमण ने उन्हें बौद्द-राज्यो से न टकराने की लंबे कालावधि का सबक दिया...फिर वे कभी उधर आँख उठाकर देखने की हिम्मत भी न जुटा सके..।बाद में जा-जा कर बस गए अलग बात है किन्तु आक्रमण की हिम्मत न जुटा पाये।

यह मुस्लिम इतिहासकारों का बहुत बड़ा साजिशी झूठ है।
इस्लाम बौद्ध-मत की लाश पर ही फला-फूला था....वे प्रतिहिंसा से भरे थे....ऐसा कदापि न करते..न ही कोई आवश्यकता थी।
छठी सातवीं ईस्वी शताब्दी से पहले
अरब के अधिकाँश इलाके,ट्रांस-आक्सियाना,ईराक,पूरी की पूरी पूर्वी एशिया,पश्चिम एशिया के अधिकांश हिस्से,यूरेशिया के देश कजाक,उज्बेकिस्तान सभी बौद्ध थे..आज वे इस्लामिक हैं।
इस्लाम की तलवार इन्ही अहिंसक बौद्दों की कमजोरी से फैली।यह कमजोरी सामाजिक बनावट और मानसिक(आत्मशक्ति) दोनों प्रकार की थी।
  ''historical area of what is modern day Xinjiang consisted of the distinct areas of the Tarim Basin and Dzungaria, and was originally populated by Indo-European Tocharian and Iranic Saka peoples who practiced the Buddhist religion. The area was subjected to Turkification and Islamification at the hands of invading Turkic Muslims.।,,,''Victor H. Mair।,,
बौद्ध शासन के  क्षेत्र के दौरान इस्लाम से आसपास के क्षेत्रो में एक लंबा युद्ध हुआ।यह युद्दह 966 तक चला जिसमे खोटान और काशगर क्षेतरो के लिए  एक लंबे युद्ध के बीच ensued में khotan विजय.तक चला। Qutayba ibn Muslim in 715 attacked Kashgar...!!!

कहते है इस्लाम का विस्तार ही 'बुद्धिस्ट राज्यो, की लाश पर हुआ था।

कुछ सौ सालो बाद बौद्दों की इसी हार की प्रतिक्रिया से उपजा था चंगेज खां,...कुबलई खान और उसकी तीन पीढ़ियों द्वारा मुसलमानों की क्रूरता पूर्वक हत्याएं...यह उन्होंने मुस्लिमो से ही सीखा था।....वह एक कट्टर बौध्द था,जिसने 12 वीं सती में इस्लाम और अरब-तुर्क साम्राज्य की जड़े हिला दी थी।हजारो कत्लों के अलावा इस्लामिक आक्रांताओं की भांति उसने भी उनके हजारो मस्जिदे जलाई।
मुझे लगता है उसके बारे में क्रूरता की अतिरेक से भरी इमेज मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखी है।असल में इस मामले में शुरुआत से ही 'इस्लामिक संगठन, मजबूत, हैं।
दरअसल मध्यकालीन दुनियां की 568 किताबो में 558 इतिहास की किताबें मुस्लिमो की लिखी ही बची हैं।
दुसरो की इतिहास व अन्य पुस्तके तो वे जला देते थे।
उनके दूरगामी उद्देश्य आप खुद समझिये!""इतिहासकार इस्लाम की जेहाद का एक रणनीतिक अंग होते हैं।,,

उन्होंने भारत में बचे-खुचे बौद्धों( जिनका कोई प्रवक्ता या सांगठनिक ढांचा नही  था)पर अनर्गल साजिशी बात गढ़ी थी कि उन्होंने मुस्लिम आकान्ताओ को बुलाया।

'बौध्द,इस्लाम से किस कदर सजग रहता है उसका उदाहरण इससे लगा सकते हैं कि 14 हवीं शताब्दी के बाद बौध्द देशो ने इस्लाम को अपने इलाको से निकाल बाहर किया।जिस भी बौध्द इलाके पर इस्लाम का आक्रमण हुआ सभी बौध्द देशो के राजे मिलकर लड़ते थे..हराकर सभी को मार देते..तब जाकर इस्लामिक आक्रमण थमे..1202 से लेकर 1650 तक इस प्रकार के कुल 4 सौ से अधिक युद्द "बौध्द-इस्लामिक्स, में हुए हैं सब में बौध्द ही जीते।पूर्व एशियाई देशों के इतिहास में इन आक्रमनों के बारे में तत्थ्यों के साथ पढ़ाया भी जाता है।....आप पूछेंगे 'इस्लामिक इतिहास, में इसका स्थान क्यों नही है!...असल में 'वे,हारो का इतिहास नही लिखते...हे हे हे हे।

   आप ये मत समझ बैठिएगा कि चीन,शिनजियांग और पूर्वी एशिया और यूरोप में इस्लाम कभी जेहादी जीत के सहारे पहुंचा।एक बड़ा झटका खा कर ""बुद्धिष्ठ देशो,, ने इसे ठीक से सीख लिया था।वे सजग रहते थे और जैसे का तैसा व्यवहार करते थे।कई युद्ध-नियुद्ध कलाये उसी दौरान जन्मी।जुग्त्सू,कराटे,कुङ्क्फू जैसी युद्ध कलाएं॥!उसी मे से बारूद और तोप भी निकला।
  एड़ी चोटी लगाने के बाद भी जब बुद्धिष्ठ इलाको से "आक्रान्ता, किसी भी तरह नही जीत सके तो उन्होंने दूसरा रास्ता अपनाया।..अफगान और किर्गिस्तान.....काशगर के रास्ते 'सामूहिक घुसपैठ,, करके जनसँख्या बढाने की कोशिश की....300 सालो तक लगातार यह घुसपैठ और जनसँख्या बिलकुल ठीक वैसे ही हुई जैसे आज बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत में होता है.......बंगाल और असम का वर्तमान उदाहरण बिलकुल उसी तर्ज पर।
   शिनजियांग प्रांत में धीरे-धीरे बढ़त बनाई और हम पांच हमारे 25 के सहारे अन्य कौमो को निकाल बाहर करने की कोशिश की।अब चीन उनसे ठीक से निपट रहा है।17 वी शती में मंचूरिया में जैसे ही जनसँख्या 60 प्रतिशत पार हुई,उत्पात सहनशक्ति से बाहर हुआ.॥आप चाहें तो खुद उईगुर इतिहास पढ़ लें।
"अली अर्सलान,, के साथ वाले युद्द चैप्टर विशेष तौर पर पढ़ें।

.....सब एक साथ लड़े... उन्होंने अपने यहां से निकाल बाहर किया और पूर्णत: खाली करवा लिया।पूर्वी एशिया के इतिहास इस तरह के सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा से भरे पड़े हैं।उन्होंने कभी अपने राज्यो से निकल कर किसी पर आक्रमण करके कब्जा नही किया लेकिन आक्रान्ताओ को किसी भी तरह नही बख्शा जो भी उनकी तरफ देखता वे जड़-मूल सहित तबाह कर देते।इन मामलो में 'क्षमाँ,, शब्द खत्म कर दिया गया।

    जापान,थाईलैंड,चीन,बर्मा,वियतनाम,कोरिया,(दोनों)कंबोडिया व् पूर्वी एशिया के अधिकाँश बौध्द बाहुल्य हिस्से में यह कानून अभी कुछ दिनों पूर्व तक था।चीन-जापान उस थ्योरी को आज भी पालन करते है।वे नाम,वेशभूषा,भाषा,पूजा-पद्दति और धार्मिक स्थल के बारे में कट्टरता से अपने सांस्कृतिक-राष्ट्रीयता के नियमो पर अडिग रहते है।विशेषकर आक्रांता सम्प्रदायो से सजग रहते हैं।बाद में बर्मा ने जरूर ढील दी लेकिन 2010 के बाद 'बौध्द भिक्षु,विराथू,ने समस्या भांप ली और पूरे वर्मा से सभी आक्रांता समुदायों को निकाल बाहर किया था।
"रोहिंग्या मुसलमान,,..जिसे अब भारत झेल रहा है।

आपको पता है कई बौध्द देशो में हिन्दू-सनातन पद्दति के साधुओं-संतो को बसों,ट्रेनों में फ्री पास और रहने-खाने की व्यवस्था की जाती है।उनको सैकड़ो शासकीय सुविधाएं हैं।क्योंकि वे जानते है उनकी जड़ हिंदुत्व है।

कहते हैं जो समाज इतिहास से नही सीखता वह शिकार है।
सब नही लिखूंगा यह इतिहास है।खुद भी कुछ पढिये।

साभार : पवन त्रिपाठी
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