#शहीद_शब्द_का_अर्थ
आज भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की पुण्य तिथि पर यह लेख प्रस्तुत करना पड़ा, क्योंकि आज के दिन को शहीद दिवस बोला जाता है। आइए जानते है शहीद शब्द का अर्थ
हो सके तो एक शेयर कर देना।
अपने राष्ट्र अथवा निजी धर्म के लिए प्राण न्योछावर करने वाले को ‘शहीद ‘ एवं राष्ट्र / हिन्दू धर्म के लिए बलिदान को ‘ शहादत ‘ शब्द का बार बार उपयोग हिन्दू करते आए है ।
वास्तविक अर्थ ------‘ शहादत ‘ का अर्थ है –इस्लाम की साक्षी देना अथवा इस्लाम के लिए मृत्यु का स्वीकार करना । हिन्दू हुतात्मा को ‘ शहीद ‘ अथवा होतात्म्य को ‘ शहादत’ कहना हिन्दुओ की एक मिथ्या प्रकृति पड गई है ।
अनन्य अत्याचार सहन करते हुए जिस हिन्दू ने अपने प्राण देकर भी इस्लाम नहीं स्वीकारा वे ‘ शहीद ‘ नहीं है , हुतात्मा है ।
शहीद एवं शहादत शब्द अज्ञानता प्रगट करती है ,
जाने अनजाने में हमसे बहुत
बड़ी गलती हो गयी कृपया ये पढिये और समझये
शहीद और हुतात्मा में अंतर -
आज हमें इस इतिहास का स्मरण नहीं।
इसी कारण से किसी भी हौतात्म्य को 'शहादत"
और हुतात्मा को 'शहीद" कहने की लत हमें पड
गई है। यंत्रणाएं सहकर भी इस्लाम
का स्वीकार न करते हिंदू के रुप में मृत्यु
स्वीकारने वाले धर्मवीर हकीकतराय
को भी 'शहीद" कहा जाता है। इसी लत के कारण
धर्मवीर संभाजी (छावा) के बलिदान
को 'शहादत" कहने से भी हम दूर नहीं रह पाते।
इसी प्रकार से स्वतंत्रता के लिए लडी गई
लडाई में फांसी चढ़ गए हुतात्माओं
को भी 'शहीद" कहा जाता है। इस घोर अज्ञान
के कारण इन वीरों की अवहेलना होती है
इसका तनिक सा भी भान हिंदुओं को नहीं है।
कुरान भाष्य के अनुसार ''शहीद वह है
जो अल्लाह की राह में (यानी जिहाद करते हुए)
मारा जाए। उसे शहीद का लकब (उपाधि)
इसलिए दिया गया है कि वह इस्लाम
की सत्यता की गवाही (साक्ष्य) जान (प्राण)
दे कर पेश करता है। शहादत अत्यंत बुलंद
दर्जा है।"" (दअ्वतुल कुरान भाष्य खंड 1, पृ.
219) शहादत यानी अल्लाह के एकत्व और
मुहम्मद साहेब के पैगंबरत्व पर
श्रद्धा की साक्ष्य देना।
यह ठीक है कि जब तक हम इस विदेशी शब्द
'शहीद" का अर्थ कुरान भाष्यानुसार
क्या निकलता है के संबंध में अनभिज्ञ थे तब
तक इस शब्द को प्रयोग में लाते रहे परंतु, अब
जब हम इस शब्द के वास्तविक अर्थ से अवगत
हो गए हैं तो हमारे द्वारा अब 'शहीद" के स्थान
पर हमारे अपने 'हुतात्मा" शब्द को ही प्रयोग में
लाना उचित होगा। हुतात्मा का अर्थ होता है वह
जिसने किसी अच्छे श्रेष्ठ कार्य के लिए
अपना सर्वस्व होम कर दिया हो या अपने
प्राण तक भी न्योछावर कर दिए हों।
हुतात्मा शब्द वीर सावरकरजी का दिया हुआ है।
'हुतात्मा" शब्द सावरकरजी को अंदमान में रहते
अपने बंधु से बातचीत करते हुए सुझा था !
इस हुतात्मा शब्द की शक्ति तो देखिए
कि 26/11 का जिहादी कसाई कसाब के हाथ
को पकडने वाले पुलिसमेन तुकाराम ओंबले ने
मरणोपरांत भी उस कसाब का हाथ
नहीं छोडा और इस कारण वह कसाब भाग भी न
सका और पकडा गया। यह है
हुतात्मा की पकड। लेकिन खेद है कि हम आज
इस पवित्र शब्द को भूल विदेशी शब्द 'शहीद"
को गले से लगाए बैठे हैं और अनभिज्ञतावश
इसका प्रयोग धडल्ले से कर रहे हैं।
अंत में यही कहना है - सोच बदल लो नजारे बदल
जाएंगे, शहीद नहीं हुतात्मा कहिए सारे भाव बदल
जाएंगे। —
राष्ट्र के लिए प्राण त्याग करने वाले स्वातंत्र्य सेनानी , भगतसिंह ,खुदीराम बोज आदि तथा स्वधर्म के लिए प्राण देने वाले तेग बहादुर , गुरु गोविंदसिंह को ‘शहीद’ कहना हिदुओ के ध्यान बहार है । हुतात्मा एवं होतात्यम शब्द ही यथार्थ है।
#आवाज #यूँ दो की #उद्घोष बन #जाये
हर #बुजर्ग #अटल हर #जवान #बोस बन जाये
#इंकलाब की #आँधी चले हर #जगह
हर #एक #दबी #साँस #आक्रोश बन जाये।
जय हिन्द जय भारत
तीनो हुतात्माओं को शत शत नमन
#बलिदान_दिवस
साभार:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=432205157125948&id=100010094027252
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