अथर्व वेद 5.19: पृथिवी पर सुख शांति
ऋषि: - मयोभू:=पृथिवी पर सुख शांति, देवता: - ब्रह्मगवी: = ब्राह्मण की गौ – गौ के संदर्भ में गौ के बारे में उत्तम वेदाधारित ज्ञानवान –गो पालन एवं भिषक , पर्यावरण विशेषज्ञ की देख रेख में गौ
अ॑तिमा॒त्रम॑वर्धन्त॒ नोदि॑व॒ दिव॑मस्पृशन् । भृगुं॑ हिंसि॒त्वा सृञ्ज॑या वैतह॒व्याः परा॑भवन् ॥
AV5.19.1
(पौराणिक कथा के अनुसार प्रजापति ने अपना वीर्य अग्नि मे डाल दिया | अग्नि में विशेष रूप से परिपक्व होने पर वह वीर्य देह रूप में परिणत हुआ और अत्यंत तेजस्वी होने से भृगु कहलाया, इस प्रकार भृगु ऋषि को एक तपस्वी परिपक्व वेदों और गौ सेवा के ज्ञान का अवतार माना गया) परिपक्व वेदों के और गोसेवा के ज्ञान की उपेक्षा करने वालों ने अंतरिक्ष पर भी विजय पा कर अपना स्थान भले ही बना लिया हो , परंतु अंत में उन का सर्वनाश हो जाता है |
ये बृ॒हत्सा॑मानमाङ्गिर॒समार्प॑यन्ब्राह्म॒णं जनाः॑ । पेत्व॒स्तेषा॑मुभ॒याद॒मवि॑स्तो॒कान्या॑वयत् ॥
AV5.19.2
जिस समाज में परिपक्व वैदिक ज्ञान तथा शांतिमय वृत्ति वाले और गो सेवा को समर्पित जनों को कष्ट दिया जाता है, उस समाज का भविष्य प्रकृति द्वारा स्वयं ही नष्ट हो जाता है.
ये ब्रा॑ह्म॒णं प्र॒त्यष्ठी॑व॒न्ये वा॑स्मिञ्छु॒ल्कमी॑षि॒रे । अ॒स्नस्ते॒ मध्ये॑ कु॒ल्यायाः॒ केशा॒न्खाद॑न्त आसते ॥
AV5.19.3
जो (समाज , शासन) गो आधारित वैदिक सात्विक अहिंसक जीवन शैलि का अनादर करते हैं , इस के ज्ञान प्रसार प्रचार में बाधा पहुंचाते हैं , उस समाज में पारस्परिक का युद्ध खून बहता है और वह समाज अपने ही द्वारा उत्पन्न किए क्लेश को भोगता है |
ब्र॑ह्मग॒वी प॒च्यमा॑ना॒ याव॒त्साभि वि॒जङ्ग॑हे । तेजो॑ रा॒ष्ट्रस्य॒ निर्ह॑न्ति॒ न वी॒रो जा॑यते॒ वृषा॑ ॥
AV5.19.4
जिस समाज में सताए हुए दुखी वेदज्ञ विद्वान और गौ इधर उधर असहाय से घूमते हैं वह समाज राष्ट्र के तेज का हनन करते हैं , ऐसे राष्ट्र में सुख समृद्धि और विजय दिलाने वाली उत्तम संतान जन्म नहीं लेती |
क्रू॒रम॑स्या आ॒शस॑नं तृ॒ष्टं पि॑शि॒तम॑स्यते । क्षी॒रं यद॑स्याः पी॒यते॒ तद्वै पि॒तृषु॒ किल्बि॑षम् ॥
AV5.19.5
गौ की हत्या बड़ा निर्दयता पूर्ण क्रूर काम है | इस का मांस भयंकर तीक्ष्ण बाणों के समान राक्षसी रोगोत्पादक होने के कारण फैंक दिया जाता है | (खाना नहीं चाहिए) | सताइ हुइ गाय का दूध पीने वालों में विनाषकारी पापी तामसिक मानसिकता उत्पन्न करता है |
उ॒ग्रो राजा॒ मन्य॑मानो ब्राह्म॒णं यो जिघ॑त्सति । परा॒ तत्सि॑च्यते रा॒ष्ट्रं ब्रा॑ह्म॒णो यत्र॑ जी॒यते॑ ॥
AV5.19.6
जिस राष्ट्र में राजा गौ , विद्वानों के परामर्श को , मूक प्रजा की आवाज़ को अभिमानी हो कर अपनी मनमानी करता है , जहां बुद्धि जीवी दुखी रहते हैं , वह राष्ट्र नष्ट हो जाता है |
अ॒ष्टाप॑दी चतुर॒क्षी चतुः॑श्रोत्रा॒ चतु॑र्हनुः । द्व्या॑स्या॒ द्विजि॑ह्वा भू॒त्वा सा रा॒ष्ट्रमव॑ धूनुते ब्रह्म॒ज्यस्य॑ ॥
। । AV5.19.7
हत्या की गई अथवा चुराई गई गौ ब्रह्मघाती राष्ट्र को प्रेतात्मा बन कर द्विगुणी शक्ति से समस्त राष्ट्र को पीड़ित कर के कम्पा डालती है |
तद्वै रा॒ष्ट्रमा स्र॑वति॒ नावं॑ भि॒न्नामि॑वोद॒कम् । ब्र॒ह्माणं॒ यत्र॒ हिंस॑न्ति॒ तद्रा॒ष्ट्रं ह॑न्ति दु॒छुना॑ ॥
AV5.19.8
जिस राष्ट्र में बुद्धि जीवी को नष्ट कर दिया जाता है,वह दुर्गति को प्राप्त होता है और दुखों के शोक से नष्ट हो जाता है, जैसे नीचे से टूटी हुई नाव में पानी आ कर उसे डुबो देता है |
तं वृ॒क्षा अप॑ सेधन्ति छा॒यां नो॒ मोप॑ गा॒ इति॑ । यो ब्रा॑ह्म॒णस्य॒ सद्धन॑म॒भि ना॑रद॒ मन्य॑ते ॥
AV5.19.9
जो राजा शुभाचरण से कमाए –प्रजा और समाज के - धन को अभिमान में आकर छीन लेते हैं उन्हें आश्रय लेने के लिए वृक्षों की छाया भी नहीं मिलती |
वि॒षमे॒तद्दे॒वकृ॑तं॒ राजा॒ वरु॑णो ऽब्रवीत् । न ब्रा॑ह्म॒णस्य॒ गां ज॒ग्ध्वा रा॒स्त्रे जा॑गार॒ कश्च॒न ॥
AV5.19.10
शुभाचरण से प्राप्त धन देवताओं की आराधना –दिव्य आचरण के व्यवहार- से प्राप्त होता है अत: औरों के लिए विष रूप है | बुद्धिजीवी की ,भूमि,गौ,धन, वृत्ति तथा वाणी को हड़प कर राष्ट्र में कोई भी जीता जागता नहीं रह सकता |
नवै॒व ता न॑व॒तयो॒ या भूमि॒र्व्य॑धूनुत । प्र॒जां हिं॑सि॒त्वा ब्राह्म॑णीमसंभ॒व्यं परा॑भवन् ॥
AV5.19.11
प्रजा की हिंसा करने वाले सेंकड़ों को ‘ब्रह्मगवी’ – बुद्धिजनों और प्रजा के श्राप ने धूल में मिला दिया |
साभार:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10211879644003690&id=1148666046
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.