Saturday, 25 March 2017

विश्व विजेता हिन्दू सम्राट ललितादित्य, (राज्यकाल 431-467 ई)

©Copyright हिन्दू शेरनी मनीषा सिंह
जय श्री राम गुरुजनों को प्रणाम करते हुए एक नया इतिहास की खोज निकाल के लायी हूँ उसिपर लिखी हूँ
मनीषा सिंह की कलम से-:
मैंने इससे पूर्व भी ललितादित्य जिन्हें मुक्तापिड़ के नाम से भी जाने जाते हैं कश्मीर शासक महाराज उदयादित्य के पुत्र थे महाराज ललितादित्य छत्तीस वर्ष तक शासन किया एवं पांचवी सताब्दी के कश्मीर के सबसे शक्तिशाली राजपूत सम्राट थे । इनके बारे में पोस्ट की थी परन्तु वोह लेख शोधपूर्ण ना होने की वजह से हटा दिया गया एवं , इतिहासविदुर इतिहास के महाग्यता पंडित कोटा वेंकटचेलाम जी द्वारा लिखित किताब Chronology of Kashmir Reconstructed, नीलमत पुराण एक प्राचीन ग्रन्थ (६ठी से ८वीं शताब्दी का) है जिसमें कश्मीर के इतिहास, भूगोल, धर्म एवं लोकगाथाओं के बारे में बहुत सारी जानकारी है एवं कल्हण राजतरंगिणी इन सभी पुस्तकों से शोधपूर्ण अनुसंधान से पुनर्लेखन कर के आपलोगों के समक्ष रख रही हूँ ।

कई भाई एवं मात्री-पितृ समान गुरुजन सवाल करते हैं मैं इतिहास पे रूचि क्यों रखती हूँ और ऐसे ऐसे इतिहास कहा से लिख के लाती हूँ । मेरा उत्तर हैं बचपन से मेरे दिमाग में एक बात बहुत बड़ा प्रश्न छोड़ दिया मैं बचपन में छठी कक्षा में एक बहुत भद्दा इतिहास पढ़ी थी विद्यालय में पूरा किताब इतिहास का जिसे हिस्ट्री एंड सिविक्स (history and civics) कहते हैं यह किताब करीब 100 पन्ने का था पुरे पन्ने में अकबर , औरंगजेब की इतिहास लिखे थे बस जो की औरंगजेब अकबर का नाम आया तो इनके साथ शिवाजी महाराज एवं महाराणा प्रताप जी का भी नाम आगया मैं उन्हें अध्यन करने की कोशिसे की परन्तु मैं तब छोटी थी ख़ास पैसे नहीं मिलते थे घर से तो मैं अपने सहेली के घर जाती थी उसके पास कंप्यूटर था वहा से मैंने शिवाजी महाराज के बारे में उस वक़्त तात्या निकली थी और उसे रोज एक घंटा उस सहेली के घर जाकर कॉपी में लिखा करती थी कंप्यूटर से देखकर उस समय छठी कक्षा में एहसास हुआ हम आजाद नहीं गुलाम हैं क्योंकि इतिहास में लुटेरा आक्रमणकारियों को भारतवर्ष का नायक बना दिया मेरे पास आज भी वह नोटबुक हैं मेरा मन कभी नहीं स्वीकारा की हम भारतवासियों पर कोई 1200 साल राज कर सकता हैं और यह प्रश्नचिन्ह जो बचपन से था इसी ने मुझे खोजकर्ता बना दिया इतिहास का और कुछ भी हो जाये परन्तु मैं यह कदापि ना मानी थी ना मानूंगी की हमारे भारतवर्ष को कोई गुलाम बना सकता हैं !!
वास्तव में आज गुलाम हैं बहुराष्ट्रीय कंपनी , इतिहास में आक्रमणकारियों को नायक सिद्ध कर युवाओ को अँधेरे में धकेल दिया , गौ माता के खून से भारत को अपवित्र करना , किसान एवं जवानों का मरना , अंग्रेजो की कानून , अंग्रेजो की शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजो की व्यव्स्था वास्तव में अब हम घुलाम हैं जो गोर अंग्रेज़ नहीं कर पाए वह यह काले अंग्रेज़ ७० साल से कर रहे हैं ।
भारत की इतिहास की पुस्तकों में ऐसा पढाया जाता है कि वहां से लेकर वहां तक उस मुगल, तुगलक, खिलजी या किसी मुस्लिम राजा का साम्राज्य था, ये सब उन इतिहासकारों द्वारा लिखा गया है जो सलीमशाही जूतियाँ चाट चाट कर अपनी जीभ को ही कालीन बना चुके हैं… इतनी जूतियाँ चाटी हैं इन्होने कि चाट चाट कर विदेशियों का इतिहास चमका डाला है l
राजपूत कर्कोटक नागवंशी दिग्विजयी सम्राट ललितादित्य मुक्तापीढ़ जिनके काल में भारत रूस तक फ़ैल गया था !!
विजीयते पुण्यबलैर्बर्यत्तु न शस्त्रिणम
परलोकात ततो भीतिर्यस्मिन् निवसतां परम्।।
वहां (कश्मीर) पर शस्त्रों से नहीं केवल पुण्य बल द्वारा ही विजय प्राप्त की जा सकती है। वहां के निवासी केवल परलोक से भयभीत होते हैं न कि शस्त्रधारियों से। - (कल्हणकृत राजतरंगिणी, प्रथम तरंग, श्लोक 39)
इतिहासकार कल्हण ने मां भारती के शीर्ष कश्मीर की गौरवमयी क्षात्र परंपरा और अजेयशक्ति पर गर्व किया है। विश्व में मस्तक ऊंचा करके चार हजार वर्षों तक स्वाभिमानपूर्वक स्वतंत्रता का भोग कश्मीर ने अपने बाहुबल पर किया है। इस धरती के शूरवीरों ने कभी विदेशी आक्रमणकारियों और उनके शस्त्रों के सम्मुख मस्तक नहीं झुकाए थे। इस पुण्य धरती के रणघोष सारे संसार ने सुने हैं। यहां के विश्वविजेता सेनानायकों के युद्धाभिमानों का लोहा समस्त विश्व ने माना है।
रणबांकुरों की भूमि अनेक शताब्दियों तक इस वीरभूमि के रणबांकुरों ने विदेशों से आने वाली घोर रक्तपिपासु एवं अजेय कहलाने वाली जातियों और कबीलों के जबरदस्त हमलों को अपनी तलवारों की नोक पर रोका है। इस भूमि पर जहां अध्यात्म के ऊंचे शिखरों का निर्माण हुआ, वहीं इसके पुत्रों ने वीरभोग्या वसुंधरा जैसे क्षात्रभाव को अपने जीवन का आवश्यक अंग भी बनाया। संस्कृत के अनेक प्राचीन ग्रंथों में कश्मीर के इस वैभव के दर्शन किए जा सकते हैं।
सम्राट ललितादित्य हमारे लिए एक ऐसा ही नाम है जो सिकंदर से अधिक महान और पराक्रमी शासक था।
ललितादित्य अथवा मुक्तापीड (राज्यकाल 431-467 ई) कश्मीर के कर्कोटक नागवंशी वंश के हिन्दू सम्राट थे जिन्हें भारतवर्ष का Alexander कहा जाता है, । उनके काल में कश्मीर का विस्तार मध्य एशिया से लेकर  रूस,पीकिंग तक पहुंच गया । उन्होने यवन आक्रान्ताओं को सफलतापूर्वक दबाया तथा चीनी सेनाओं को भी पीछे धकेला।
कश्मीर के इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठों पर ‘कर्कोटक वंश’ का 600वर्ष का राज्यकाल स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है २५२ – ८५२ (252-852 A.D) ।
इस वंश के राजाओं ने हमलावरों को अपनी तलवार की नोक पर कई वर्षों तक रोके रखा था। कर्कोटक वंश की माताएं अपने बच्चों को रामायण और महाभारत की कथाएं सुनाकर राष्ट्रवाद की प्रचंड आग से उद्भासित करती थीं। यज्ञोपवीत धारण के साथ शस्त्र धारण के समारोह भी होते थे, जिनमें माताएं अपने पुत्रों के मस्तक पर खून का तिलक लगाकर मातृभूमि और धर्म की रक्षा की सौगंध दिलाती थीं ।

इससे कश्मीरियों की दिग्विजयी मनोवृत्ति का परिचय मिलता है। चीन , अरब, मिस्र, मैसिडोनिया देशों तक जाकर अपनी तलवार के जौहर दिखाने की दृढ़ इच्छा और चीन जैसे देशों के साथ सैन्य संधि जैसी कूटनीतिज्ञता का आभास भी दृष्टिगोचर होता है। उन्होने आक्रान्ताओं को सफलतापूर्वक दबाया तथा चीन सैनिकों को भी पीछे धकेला।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीढ़ का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उनके छत्तीस वर्ष का राज्य उनके सफल सैनिक अभियानों, स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः पर आधारित जीवन प्रणाली, अद्भुत कला कौशल और विश्व विजेता बनने की चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है।
उनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में चीन और रूस,पीकिंग तक फैला था। उन्होने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया। मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण मध्यकालीन युग के दौरान हुआ था जो सूर्य भगवान को समर्पित है। कर्कोटक नागवंशी राजपूत  राजा ललितादित्य ने इस मंदिर का निर्माण एक छोटे से शहर अनंतनाग के पास एक पठार के ऊपर किया था।
ललितादित्य ने दक्षिण की महत्वपूर्ण विजयों के पश्चात अपना ध्यान उत्तर की तरफ लगाया जिससे उनका साम्राज्य काराकोरम पर्वत शृंखला के सूदूरवर्ती कोने तक जा पहुँचा।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उसका छत्तीस वर्ष का राज्य उसके सफल सैनिक अभियानों, उसके अद्भुत कला-कौशल-प्रेम और विश्व विजेता बनने की उसकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है। ललितादित्य ने रूस,पीकिंग को भी जीता और 12 वर्ष के पश्चात् कश्मीर लौटा।
कश्मीर उस समय सबसे शक्तिशाली राज्य था। उत्तर में तिब्बत से लेकर द्वारिका और उड़ीसा के सागर तट और दक्षिण तक, पूर्व में बंगाल, पश्चिम में विदिशा और मध्य एशिया तक कश्मीर का राज्य फैला हुआ था जिसकी राजधानी प्रकरसेन नगर थी। ललितादित्य की सेना की पदचाप अरण्यक (ईरान) और रूस,पीकिंग तक पहुंच गई थी । २८ से अधिक हिन्दू सम्राटो ने विश्व विजय किये पर वहा के लोगों की प्राचीन संस्कृति को नष्ठ नहीं किये ना उनके धर्म इत्यादि को नष्ठ नहीं किया जितने भी विश्व विजय सम्राट हुए उन सभी ने विश्व विजय किया एवं वहा के प्रजा को एक अच्छी जीवन प्रदान किया शिक्षित , आरोग्य एवं विकाशील बनया वनिर्ज्य व्यवसाय के लिए विश्व विजय करते थे एवं जिस राष्ट्र को विजय करते थे वहा व्यवसाय एवं प्रजाओ के उन्नति के लिए कार्य करते थे वही इस्लाम जब जब हिन्दू राष्ट्र पर आक्रमण किया लूट , बलात्कार , मंदिर मठो को ध्वस्त किया एवं नागरिको पर अत्याचार किया । सम्राट ललितादित्य अथवा मुक्तापिड़ द्वारा छोटे बड़े सभी युद्ध मिलाकर 350 से अधिक युद्ध लड़ने का लिपि दर्ज हैं जिसमे से कुछ ख़ास युद्ध आपके समक्ष रखूंगी ।
(राज्यकाल 431-467 ई)

१) सन 436 (ईस्वी) में चीन ने आक्रमण किया था हरिवर्ष पर (उत्तरी तिब्बत तथा दक्षिणी चीन का समीपवर्ती भूखंड जान पड़ता था) ज्हाव चेंग (Zhaocheng) राजवंश के राजा फेंग होंग बहुत ही क्रूर एवं कपटी राजा था अपने साम्राज्य विस्तार के लिए अपने ही प्रजाओं को मौत के घाट उतार देता था एवं उसका नज़र भारतवर्ष के धन सम्पदा पर था इसलिए सेना लेकर आक्रमण किया था भारतवर्ष पर सम्राट ललितादित्य ने परास्त कर मृत्युलोक पहुँचा दिया एवं चीन राज्य की राजधानी चांग आन , लुओयांग , बीजिंग , पूर्वी चीन सागर क्षेत्र का दूसरा सब से बड़ा आर्थिक केंद्र था जो पूरी तरह से सम्राट ललितादित्य कर्कोटक ने अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर भगवा परचम लहराया था सम्राट ललितादित्य ने चीन में कई हरी मंदिर बनवाए थे चीन इस विषय का उल्लेख विस्तारित तांग, खंड की किताब एवं चीनी इतिहास की रूपरेखा बो-यांग द्वारा लिखा गया हैं।
चीन के अन्य राज्यों के राजा ने सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड के साथ सैनिक संधि किया जिसमे चीनी राजा ने आत्मसमर्पण करते हुये यह संधि किया जब जब भारत पर आक्रमण होगा चीन सम्राट सैनिक भेज कर सहायता करेगा एवं उनके साम्राज्य में अन्य चीनी राजा कभी दखल नहीं देंगे चीन के अन्य राज्य जो ललितादित्य के साम्राज्य सूचि में सम्मिलित किया गया हैं उन राज्यों में व्यापर करने की अनुमति माँगा था जिसके बदले चीन कर (tax) देंगे सम्राट ललितादित्य को यह सब उस संधि में लिखा था एवं इसका प्रमाण चीन के एक राज्य वंश ‘ता-आंग’ के सरकारी उल्लेखों में मिलता है। Reference-: The Sixteen Kingdoms Author-: Zheng Yin

सम्राट ललितादित्य का यूरोप विजय अभियान-:

1) सन 439 (ईस्वी) में लड़ें गये सबसे लम्बा युद्ध था जिसे “Battle Of Caucasus” कॉकस या कौकसस जो की स्पेन का राजधानी थी प्राचीनकाल में जहाँ सम्राट ललितादित्य ने थियोडोरिक प्रथम को परास्त कर ललितादित्य ने कॉकस या कौकसस , स्पेन, दमास्कस पर भगवा परचम लहराया था । इस तरह से सम्राट ललितादित्य कर्कोटक ने लगातार 18 युद्ध  लड़े  थे  बाल्टी साम्राज्य,  थियोडोसियाँ साम्राज्य, के साथ । सम्राट ललितादित्य से युद्ध में परास्त होने के बाद यवनों ने सम्राट ललितादित्य के साथ संधि कर स्पेन साम्राज्य अरब , सीसिली (sicily),मेसोपोटामिया, ग्रेटर अर्मेनिआ, कैरौअन (Kairouan) (वर्तमान में इसे तुनिशिया देश के नाम से जाने जाते हैं ) तुर्क , कजाखस्तान , मोरक्को , अफ्रीका , पर्शिया एवं अनेक देश सामिल थे ये 72 प्रतिशत यवन साम्राज्य का भूभाग एवं पूरी अरब सागर , तिग्रिस , नील नदी पर सम्राट ललितादित्य ने भगवा ध्वज लहराया था –
Reference-: Historia Gothorum Page 89 Author-: Jordanes

2) सन 452 (ईस्वी) पूर्वी यूरोप विजय करने निकले थे रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय  प्राप्त किया  बाईज़न्टाइन साम्राज्य के राजा व्हॅलेंटिनियन तृतीय के साथ युद्ध की व्याखान मिलता हैं इन्हें हराकर सम्राट ललितादित्य ने क़ुस्तुंतुनिया, रूस पर कब्ज़ा किया आठवी सदी तक क़ुस्तुंतुनिया (कोंस्तान्तिनोपाल) राजधानी था यूरोप का । इसके उपरांत डुक पोलिश राजा को परास्त कर पोलिश (पोलैंड) विजय कर भगवा झंडा लहरा था । सम्राट ललितादित्य ने रूस के साथ साथ बॉस्निया के अधीन अन्य यूरोपी देशो को अपने विजय अभियान में सम्मिलित कर साम्राज्य को यूरोप तक फैलाया था एवं इसके उपरांत सम्राट ललितादित्य मुक्तापिड़ ने पश्चिम और दक्षिण में क्रोएशिया पूर्व में सर्बिया और दक्षिण में मोंटेनेग्रो उत्तरपूर्वी यूरोप अल्बानिया उत्तर में कोसोवो पूर्व में भूतपूर्व यूगोस्लाविया और दक्षिण में यूनान तक सफलतापूर्वक सैन्य अभियान कर विश्व विजयता की उपाधि हासिल कर लिया था ।

ललितादित्य विश्व विजयी होकर लगभग 12 वर्ष के पश्चात् कश्मीर लौटा एवं तीन साल बाद अंतिम सांस लिया कश्मीर में ।
अंततः इनके शौर्य और पराक्रम को भूलने का नतीजा हुआ कश्मीर में आज एक भी कश्मीरी हिन्दू कश्मीर में नहीं रह पाए अगर कश्मीरी हिन्दू अपने पूर्वज को एक बार के लिए पढ़ लिए आज यह दुर्दशा नहीं होता कश्मीरी पंडितो का होकर रहता कश्मीर ।

इन्होंने भारतवर्ष में घुसने का प्रयास करने वाले हमलावरों को भी खदेड़ा था भारत से और इतिहासकार आरसी मजूमदार के अनुसार ललितादित्य की सेना की पदचाप अरबो का पीछा करती हुई अरण्यक (ईरान) तक पहुंच गई थी।

कश्मीर के इस नागवंशी राजपूत कर्कोटक शाखा (टाक) महान राजा के बारे में अधिकांश लोगो को जानकारी ही नही है ।
न्यूज़ चैनलो पर डिबेट में पीडीपी के प्रवक्ता फ़िरदौस टाक जब घाटी में इस्लामिक विचारधारा का बचाव करते हैं और दबे शब्दों में आतंकी घटनाओ का भी समर्थन करते हैं तो उन्हें शायद अपने यशस्वी पूर्वज ललितादित्य मुक्तपीड की कीर्ति का तनिक भी भान न होगा !!!!!!

संदर्भ-:
1) राजतरंगिणी कल्हण के अलावा जिन किताबो से सहायता लिया हैं

2) पंडित कोटा वेंकटचेलाम जी द्वारा लिखित किताब Chronology of Kashmir Reconstructed,
3) नीलमत पुराण
4) Historia Gothorum Page 89 Author-: Jordanes
5) The Sixteen Kingdoms Author-: Zheng Yin

साभार https://m.facebook.com/photo.php?fbid=1805662463088928&id=100009355754237&set=a.1415367162118462.1073741828.100009355754237

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