Daily life Agenda
RV 1-125
ऋषि: -कक्षीवान , दीर्घतमा, औशिज= कुशल , दूरदर्शी मेधावी. = Skillful, Far thinking, Intellectual.
देवता;- स्वनयस्य दानस्तुति = स्वप्रेरित दान और स्तुति मय जीवन= Self motivated leading a life of dedication.
प्राता रत्नं प्रातारित्वा दधाति तं चिकित्वान् प्रतिगृह्या नि धत्ते !तेन प्रजां वर्धय्मान आयु रायस्पोषेण सचते सुवीरः !! ऋ1.125.1
सूर्य प्रात: आ कर सब लोगों को रत्न देता है. बुद्धिमान उस रत्न की महत्ता को जान कर उसे लेते हैं और अपने पास रखते हैं. उस से मनुष्य के आयु और सन्तान की वृद्धि होती है. स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होते हैं. ( भौतिक स्तर पर प्रात: कालीन सूर्य की किरणों के विशेष प्रभाव से मानव शरीर और समस्त जीव जंतु वनस्पति में पुष्टिदायक, औषधीय तत्वों जैसे मानव शरीरमें Vitamin D का प्रभाव स्पष्ट होता है )
सुगुरसत्सुहिरण्यः स्वश्वो बृहदस्मै वय इन्द्रो दधाति |
यस्त्वायन्तं वसुना प्रातरित्वो मुक्षीजयेव पदिमुत्सिनाति || ऋ1.125.2
जो मनुष्य सबेरे उठ कर किसी याचक ;सहायता मांगने वाले की धन आदि से सहायता करते हैं, वह समाज मे लोक प्रिय स्थान पाते हैं. उत्साह से जीवन व्यतीत करते हैं, सुख समृद्धि ऐश्वर्य के साधन प्राप्त करते हैं.
प्रातकाल से ही जो अपनी गौ इत्यादि पारदर्शिता से प्राप्त सत्य साधनों और अपने श्रम से कार्य करता है वह समृद्धि को जैसे रस्सी से अपने लिए बांध लेता है.
आयमद्य सुकृतं प्रातरिच्छन्निष्टेः पुत्रं वसुमता रथेन |
अंशोः सुतं पायय मत्सरस्य क्षयद्वीरं वर्धय सूनृताभिः || ऋ1.125.3
प्रातकाल से ही अपने समृद्धि के साधनों को आनंद की इच्छा से गृहस्थाश्रम यज्ञ मे प्रवृत्त हो कर ऐसी संतान का पालन करूं जिस को माता के स्तन पान से उत्तम वाणि सत्यभाषण के संस्कार प्राप्त हों
उप क्षरन्ति सिन्धवो मयोभुव ईजानं च यक्ष्यमाणं च धेनवः |
पृणन्तं च पपुरिं च श्रवस्यवो घृतस्य धारा उप यन्ति विश्वतः ||ऋ1.125.4
प्रातः काल उठ कर जो लोग यज्ञादि नित्यकर्मों मे लग जाते हैं, उन के लिए जीवन में धन धान्य सुख की नदियां बह चलती हैं. इस को अंग्रेज़ी मे कहते हैं –Early to bed and early to rise makes a man healthy wealthy and wise. इसी लिए विदेशों में शीत काल में Day light saving time की भी व्यवस्था की जाती है.
त्वं त्योभिरा गहि वाजेभिर्दुहितर्दिव: | अस्मे रयि नि धारय || RV1.30.22
उषा-. प्रात:कालीन सुर्य के बारे में कहा है कि “ वह धन और अन्न के साथ जीवन में आती है |
नाकस्य पृष्ठे अधि तिष्ठति श्रितो यः पृणाति स ह देवेषु गच्छति
तस्मा आपो घृतमर्षन्ति सिन्धवस्तस्मा इयं दक्षिणा पिन्वते सदा ||ऋ1.125.5
ऐसा जन अपने आश्रितों को धन धान्य से पूर्ण करता है. मानो वह स्वर्ग में रहता है. उस के लिए बहने वाले जल तेजस्वी होते हैं, पृथ्वी भरपूर अन्न देती है.
दक्षिणावतामिदिमानि चित्रा दक्षिणावतां दिवि सूर्यासः |
दक्षिणावन्तो अमृतं भजन्ते दक्षिणावन्तः प्र तिरन्त आयुः ||ऋ1.125.6
प्रातः काल से ही सूर्य के आशीर्वाद पाने से , उद्यमशील लोग ही सुंदर समृद्धियां पाते हैं, दीर्घायु होते हैं संसार मे अमरत्व पाते हैं.
मा पृणन्तो दुरितमेन आरन मा जारिषुः सूरयः सुव्रतासः |
अन्यस्तेषां परिधिरस्तु कश्चिद्पृणन्तमभि सं यंतु शोक!!
ऋ 1.125.6
इस प्रकार अपना अपना सामाजिक दायित्व जैसे ब्राह्मणत्व धारण करने वाले विद्या उत्तम शिक्षा , क्षत्रिय न्यायानुकूल प्रजा को अभय दान, वैष्य कृषि व्यापार शूद्र सेवा से धन धान्य सेवा का दान करते हैं वे पूर्ण आयु को प्राप्त कर के इस जन्म और दूसरे जन्म में भी आनन्द को भोगते हैं.
Courtesy:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10211743398237631&id=1148666046
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.