हमारे आधुनिक समाज की जो अवस्था है, अथर्व वेद के अनुसार वह गोहत्या और वेद वाणी की उपेक्षा के कारण है |
41. अग्निः क्रव्याद्भूत्वा ब्रह्मगवी ब्रह्मज्यं प्रविश्यात्ति । ।AV12.5.41
गोरक्षकों और वेदज्ञों के जीवन को हानि पहुंचाने वालों में श्मशान की शवाग्नि घुस कर उन को खा जाती है |
42. सर्वास्याङ्गा पर्वा मूलानि वृश्चति । । AV12.5.42
गौ और वेद ज्ञान का ह्रास समाज की जड़ों को नष्ट कर देता है |
43. छिनत्त्यस्य पितृबन्धु परा भावयति मातृबन्धु । । AV12.5.43
माता पिता और बन्धु जनों से पारिवारिक सम्बंध भावनाओं से रहित हो जाते हैं | ( पारिवारिक प्रेम और सम्बंधों का ह्रास आधुनिक समाज में स्पष्ट देखा जाता है )
44. विवाहां ज्ञातीन्त्सर्वानपि क्षापयति ब्रह्मगवी ब्रह्मज्यस्य क्षत्रियेणापुनर्दीयमाना । । AV12.5.44
विवाह का महत्व क्षीण हो जाता है परिणाम, स्वरूप संतान का आचरण ठीक न होने पर भविष्य में उत्तम समाज का निर्माण नहीं हो पाता | ( आने वाली भावी पीढ़ी में योन आचरण और ग्रहस्थ आश्रम का बढ़ता विनाश इसी बात का द्योतक है )
45. अवास्तुं एनं अस्वगं अप्रजसं करोत्यपरापरणो भवति क्षीयते । । AV12.5.45
समाज में व्यक्तिगत घर और सम्पत्ति के साधन नष्ट होने लगते हैं | पालन पोषण के साधन क्षीण हो जाते हैं | अनाथ बच्चे और बिना घर बार के लोग दिखाई देते हैं |
46. य एवं विदुषो ब्राह्मणस्य क्षत्रियो गां आदत्ते । । AV12.5.46
जब विद्वान, गौ और वेद ज्ञान समाज से छिन जाता है |
47. क्षिप्रं वै तस्याहनने गृध्राः कुर्वत ऐलबं । । AV12.5.47
तब (देश की रक्षा करते हुए मारे जाने वाले) क्षत्रियों का दाह संस्कारकरने वाला भी कोइ नहीं रहता , उन के शरीर को खाने के लिए गीध, चील इत्यादि ही इकट्ठे होते हैं |
48. क्षिप्रं वै तस्यादहनं परि नृत्यन्ति केशिनीराघ्नानाः पाणिनोरसि कुर्वाणाः पापं ऐलबं । । AV12.5.48
यह निश्चित है , कि शीघ्र ही उन (वीर देश पर बलिदान होने वालों ) के निधन पर आह स्थान क आस पास खुले केशों वाली हाथ से छाती पीटती हुई स्त्रियां विलाप करती हुई होती हैं |
49. क्षिप्रं वै तस्य वास्तुषु वृकाः कुर्वत ऐलबं । । AV12.5.49
शीघ्र ही उन क्षत्रिय राजाओं के देश में एक दूसरे से लड़ने और चिल्लाने वाले भेड़ियों से भरा समाज बन जाता है | निश्चय ही उन राजाओं के महलों में जंगली जानवर निवास करने लग जाते हैं |
50. क्षिप्रं वै तस्य पृछन्ति यत्तदासी३दिदं नु ता३दिति । । AV12.5.50
शीघ्र ही उस प्रदेश में प्रजा केवल अपने अतीत के क्षत्रिय राजाओं का इतिहास याद करने लगती है |
51. छिन्ध्या छिन्धि प्र छिन्ध्यपि क्षापय क्षापय । । AV12.5.51
जिसे ध्यान कर के सब ओर मार काट मार काट होने लगती है |
साभार: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10211973286024682&id=1148666046
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.