बाबरी मस्जिद विवाद और वामपंथी फरेब
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले ने विवादित स्थल पर मंदिर होने के शोधपूर्ण वैज्ञानिक निष्कर्षों की पुष्टि तो की ही थी, साथ ही साथ मस्जिद-कमिटी की ओर से गवाह के तौर पर वामपंथी इतिहासकार इरफ़ान हबीब की अगुवाई में पेश हुए देश के तमाम वामपंथी इतिहासकारों के फरेब को भी न्यायालय ने उजागर किया था ।
न्यायालय को यह टिप्पणी करनी पडी थी कि इन इतिहासकारों ने अपने रवैये से उलझाव, विवाद, और सम्प्रदायों में तनाव पैदा करने की कोशिश की और इनका विषय-ज्ञान भी छिछला है । 'क्रॉस एग्जामिनेशन' (cross examination) में पकड़े गए इनके फरेबों के दृष्टांत आपको हैरत में डाल देंगे :-
(1) वामपंथी इतिहासकार #प्रोफ़ेसर_मंडल ने यह स्वीकारा कि खुदाई का वर्णन करती उनकी पुस्तक दरअसल उन्होंने बिना अयोध्या गए ही लिख दी थी ।
(2) वामपंथी इतिहासकार #सुशील_श्रीवास्तव ने यह स्वीकार किया कि प्रमाण के तौर पर पेश की गयी उनकी पुस्तक में संदर्भ के तौर पर दिए पुस्तकों का उल्लेख उन्होंने बिना पढ़े ही कर दिया है ।
(3) जेएनयू की इतिहास-प्रोफ़ेसर #सुप्रिया_वर्मा ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने खुदाई से संदर्भित #राडार_सर्वे की रिपोर्ट को पढ़े बगैर ही रिपोर्ट के विरोध में गवाही दे दी थी l
(4) अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर #जया_मेनन ने यह स्वीकारा कि वह तो खुदाई स्थल पर गयी ही नहीं थी लेकिन यह गवाही दे दी थी कि मंदिर के खंभे बाद में वहां रखे गए थे l
(5) #एक्सपर्ट के तौर पर उपस्थित वामपंथी #सुविरा_जायसवाल जब 'क्रोस एग्जामिनेशन' में पकड़ी गयीं तब उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें मुद्दे पर कोई ‘एक्सपर्ट’ ज्ञान नहीं है; जो भी है वो सिर्फ #अखबारी_खबरों के आधार पर ही है ।
(6) पुरात्व्वेत्ता वामपंथी #शीरीन_रत्नाकर ने सवाल-जवाब में ये स्वीकारा कि दरअसल उन्हें कोई #फील्ड_नॉलेज है ही नहीं ।
(7) एक्सपर्ट #प्रोफ़ेसर_मंडल ने यह भी स्वीकारा था “मुझे बाबर के विषय में इसके अलावा कि "वो सोलहवीं सदी का एक शासक था" और कुछ ज्ञान नहीं है । न्यायधीश ने यह सुन कर कहा था कि इनके यह बयान विषय सम्बंधित इनके #छिछले_ज्ञान को प्रदर्शित करते है ।
(8) वामपंथी #सूरजभान मध्यकालीन इतिहासकार के तौर पर गवाही दे रहे थे पर 'क्रॉस एग्जामिनेशन' में ये तथ्य सामने आया कि वे तो इतिहासकार थे ही नहीं, मात्र पुरातत्ववेत्ता थे ।
(9) #सूरजभान ने य। भी स्वीकारा कि डी एन झा और आर एस शर्मा के साथ लिखी उनकी पुस्तिका “हिस्टोरियंस रिपोर्ट टू द नेशन” (Historian's Report To The Nation" दरअसलद खुदाई की रपट पडे बगैर ही दबाव में केवल छै हफ्ते में ही लिख दी गयी थी ।
(10) वामपंथी #शिरीन_मौसवी ने क्रॉस एग्जामिनेशन में यह स्वीकार किया कि उनका पहले का ये कहना सही नहीं है कि राम-जन्मस्थली का ज़िक्र मध्यकालीन इतिहास में नहीं है ।
दृष्टान्तों की सूची और लम्बी है पर विडंबना तो यह है कि लाज-हया को ताक पर रख कर वामपंथी इतिहासकार #रोमिला_थापर ने इन्हीं फरेबी वामपंथी इतिहासकारों व अन्य वामपंथियों का नेतृत्व करते हुए न्यायालय के इसी फैसले के खिलाफ लम्बे लम्बे पर्चे भी लिख डाले थे पर शर्म इन्हें आती भी है क्या ?
(सन्दर्भ: Allahabad High court verdict dated 30 September 2010.)
साभार: #पारिजात_सिन्हा
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