भारतीय संस्कृति भाषा और परम्परा पाश्चात्य सभ्यता से कितनी अधिक विकसित, महान और उच्च है, इस का एक उदाहरण पारिवारिक सम्बंधियों के नाम जहं हमारे यहां चाचा चाची, ताउ ताइ, मामा मामी होते हैं वे सब पाश्चात्य सभ्यता में अंकल आंटी होते हैं | केवल मनुष्यों में ही नहीं गौ परिवार के लिए हमारी शब्दावली कितनी वैकसित थी इसे देखिए !
I. गौपालन पाणिनि के अनुसार ( लगभग 2500 वर्षपूर्व काल में).
a) गौ पारिभाषिक शब्दावली
• उपसर्या – (उपसर्या काल्या प्रजने- त्रिहायनी माहेयी ) - तीन वर्ष पहले युवा गौ प्रजनन के लिए तैयार
• बेहत – (गर्भ पात हो जाने वाली )
• अद्यश्वीना – प्रवय्या ( एक दो दिन में ब्याहने वाली गौ) –
• उपसर – ( पहला बच्चा )
• गृष्टि – ( पहली बार ब्याही गाय )
• महागृष्टि- नैत्यिकी – ( एक ब्यांत से लगभग दूसरे ब्यांत तक दूध देने वाली गौ)
• धेनु ( दूध देती हुइ गौ )
• बष्कयणी – बाखड़ी - बच्चा देने के ६ से ७ महीने बाद कम मात्रा में पुष्ट दूध देने वाली गाय
b) बैल पारिभाशिक शब्दावली और प्रसिद्ध नस्लें –
( वत्सोक्षाश्वर्षभेभ्यष्च तनुत्वे –पा 5.3.91, )
• वत्स – पुरुष बछडा
• वात्सक –बछड़ों का समूह
• वत्स शाला- बछड़ों का बाड़ा
• शकृत्करि – अतृणाद, दूध पीने वाला बछडा
• प्रासङ्ग्य – पुरुष बछडा
• दित्यवाह – दो वर्ष उम्र वाला बछडा जिसे हल में जोता जा सकता है.
• वृषभ – प्रजनन के लिए तैयार बैल
• आर्षभ्य - चतुर गोपालक द्वारा वृषभ बनाने के लिए चयन किए गए उत्तम बछड़े. आर्षभ्य का दुग्धाहार- आरम्भमें दो थनों का दूध दिया जाता है. .
• जातोक्ष -कुछ बड़ा होने पर अन्त में “मुखामेल/मुन्हछुट्ट “ गौ का पूरा दूध पीनी की छूट.
• महोक्ष –पूर्णकाकुत् - जब उस की गर्दन पर टाट लोटने लगे तब पूर्ण यौवनवस्था का प्रतीक.
• वृद्धोक्ष – यौवन बीत जाने पर ,
• ऋषभतर – असमर्थ ऋषभ
Courtesy: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10211851463179187&id=1148666046
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