Monday, 20 March 2017

Food science according to RigVeda

Food science according to Rigved–
Dry heat roasted grain Fermented diet
Good Food RV3.52
ऋषि: गाथिनो विश्वामित्र:  । देवता: इन्द्र:  ।  छंद: त्रिष्टुप्,1-4 गायत्री, 6 जगती ।
सूक्त विषय – महर्षि  दयानंद के अनुसार; इंद्र स्तुति प्रार्थनादि विद्या, भोजन विद्या
सात्विक शाकाहारी आहार में अनाज का बड़ा महत्व होता हैं. भारतीय  परम्परा में अनाज को सुखा भून कर सत्तू, आंच पर सेक कर आटे  की रोटी , और  खमीर  उठा कर इडली दोसा , भटूरे, नान इत्यादि इसी श्रेणी मे आते  हैं. ऋग्बेद के इस सूत्र के अनुसार इस प्रकार के  आहार से  स्वास्थ, पौष्टिकता और मानसिक उत्साह  बना रहता है. आलस्य रहित जाग्रित अवस्था में मनुष्य काम करने में इन्द्र के गुण प्राप्त करता है.  आयुर्वेद के अनुसार भी यही अनुमोदित आदेश हैं
1.धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनम् । इन्द्र प्रातर्जुषस्व न:  ।।RV 3.52.1
महर्षि दयानंद पदार्थ:- हे (इन्द्र) ऐश्वर्य के धारण करनेवाले ! आप जैसे (प्रातः) प्रातःकाल में (धानावन्तम्) बहुत भूंजे हुए यव विद्यमान जिसके उस (करम्भिणम्) बहुत पुरुषार्थ अर्थात् परिश्रम से शुद्ध किये गये दधि आदि पदार्थों से युक्त (अपूपवन्तम्) उत्तम पूवा विद्यमान जिसके उस (उक्थिनम्) बहुत कहने योग्य वेद के स्तोत्र विद्यमान जिसके उसका (प्रातः) प्रातःकाल सेवन करते हो वैसे (नः) हम लोगों का (जुषस्व) सेवन करो ॥१॥
महर्षि दयानंद भावार्थ:- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अर्थी जन ऐश्वर्य वाले से याचना करता है वैसे ही राजा जन राजधर्म जानने के लिये श्रेष्ठ यथार्थवक्ता विद्वानों से याचना करे ॥१॥
व्यावहारिक अर्थ:- Morning meal Breakfast consisting of roasted grains (such as barley , Chickpea, Corn, Pulses singly or mixed together as per taste) ground in to a flour , then  mixed with curd and  fermented with a good yeast culture starter obtained from far or near and is well talked of, to provide the vigorous nutrition (to start the day) is fit for Indra. ( In a way South Indian dishes of Idli and Dosa can be seen as breakfast meals in this Vedic tradition)
Sattu is a grounded roasted powder of soaked pulses and cereals. It is consumed along with fruit slices, gur or milk. Green chili, lemon juice and salt can be added to add flavor.
The commonest form of sattu is grounded roasted black gram or chana. Other common variety is grounded roasted black gram with barley.
Originally, sattu was made of seven Anaja (7 cereals, millets and pulses). The seven ingredients are maize and barley (cereals), black gram, pigeon gram or Arhar, green pea, khesari daal and kulath daal (pulses).
Sattu is a high fiber diet with low sugar producing properties. It is a cooling and refreshing fast food with anti diabetic and anti–obesity properties.
It is a full breakfast, mid day or lunch meal and has minerals and vitamins.
Sattu drink can be sweetened by adding gur or honey, sour by adding lemon and salted by adding black or rock salt. Roasting is one of the best forms of cooking. Sattu is both a fast food and a summer fast soft drink but healthy.

सत्तू (भुने जौ, चने,मक्का, दालों  का आटा) और किसी बहु चर्चित से समीप से अथवा दूर से प्राप्त, जामन से जमाया  गया दही,  प्रात: कालीन  पौष्टिक आहार  इंद्र के लिए उपयुक्त है. 
(करम्भ Fermented food is considered the healthiest by modern nutrition science also. के बारे में वैज्ञानिक उपदेश यजुर्वेद में इस प्रकार से मिलता है. “ प्रघासिनो हवामहे मरुतश्च रिशादस: ।  करम्भेण सुजोषस: ।। यजु 3।44” –
महर्षि दयानंद पदार्थ:-
महर्षि दयानंद भावार्थ:-
व्यावहारिक अर्थ:-
प्रघासिनो Voracious eaters of (cooked) food हवामहे- we exult in glorifying मरुतश्च-the maruts the microorganisms रिशादस:-destroyers of enemies --killers of pathogens by antibodies to    create health giving probiotics करम्भेण-by mixture of curd with roasted barley/oat flour --Yeast as starter सजोषस:-with vigour-)
 

2.पुरोळाशं पचत्यं जुषस्वेन्द्रा गुरस्व च । तुभ्यं हव्यानि सिस्रते ।।RV 3.52.2
महर्षि दयानंद पदार्थ:- हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्यो के भोगनेवाले ! आप (पचत्यम्) उत्तमप्रकार पाकयुक्त (पुरोळशम्) उत्तम संस्कारों से उत्पन्न किये गये अन्न विशेष का (जुषस्व) सेवन करिये तब (गुरस्व) उद्यम करो और जिससे (तुभ्यम्) आपके लिये (हव्यानि) हवन करने योग्य पदार्थों को (सिस्रते) प्राप्त हों ॥२॥
महर्षि दयानंद भावार्थ:- हे राजन् ! आप रोगनाशक और बुद्धि के बढ़ानेवाले अन्नपान का भोग कर तथा रोग रहित होकर निरन्तर उद्यम को करो जिससे आपको संपूर्ण सुख प्राप्त होवें ॥२॥
व्यावहारिक अर्थ:- Well cooked rich food preparations are fit for offering to Gods, and then should be partaken. (This tradition is seen in performing of बलिवैश्वदेव यज्ञ  and also the offering of all well prepared tasty dishes first to Gods for भोग and then only the food is considered fit for humans to partake.
(भगवान कृष्ण  के लिए  56 भोग is a very famous tradition that has preserved Indian culinary expertise over the centuries. )

Dining Ambience
3.पुरोळाशं च नो घसो जोषयासे गिरश्च न: । वधूयुरिव योषणाम् ।।RV3.52.3
महर्षि दयानंद पदार्थ:- हे राजन् ! आप (नः) हम लोगों के (पुरोळाशम्) प्रथम देने के योग्य का (घसः) भक्षण करो और हम लोगों के लिये भक्षण कराओ (च) और (योषणाम्) अपनी स्त्री को (वधूयुरिव) अपनी स्त्री विषयिणी इच्छा करनेवाले के सदृश (नः) हम लोगों की (जोषयासे) सेवा करो (च) और हम लोग आपकी (गिरः) वाणियों का (जोषयेम) सेवन करैं ॥३॥
महर्षि दयानंद भावार्थ:- इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। राजा और प्रजाजन आपस के ऐश्वर्य्य को अपना ही समझें और जैसे स्त्री की कामना करनेवाला पुरुष प्रिया स्त्री को प्राप्त होकर आनन्दित होता है वैसे ही राजा धर्म करनेवाली प्रजाओं को प्राप्त कर निरन्तर प्रसन्न होवें ॥३॥
व्यावहारिक अर्थ:- The food offered before you, should be accompanied by pleasant ambience consisting of good conversation and homely atmosphere as prevails at festive occasion of a wedding reception. (Excellent ambience is a very famous management practice in all of the best catering and dining halls) 
उत्तम भोजन प्रस्तुत हो, भोजन के स्थान पर प्रीति पूर्वक सुख दायक एक नव विवाहिता के प्रीति भोज के स्वागत जैसा वातावरण हो .

4.पुरोळाशं सनश्रुत प्रात:सावे जुषस्व न: । इन्द्र क्रतुर्हि ते बृहन् ।।RV 3.52.4
महर्षि दयानंद पदार्थ:- हे (सनश्रुत) सत्य और असत्य के विचार कर्त्ताओं से उत्तम कृत्य सुना जिसने ऐसे (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्य से युक्त (हि) जिससे (ते) आपकी (क्रतुः) बुद्धि वा कर्म्म (बृहन्) बड़ा है तिससे आप (प्रातःसावे) जो प्रातःकाल में किया जाय उसमें (नः) हम लोगों के (पुरोडाशम्) उत्तम प्रकार संस्कार युक्त अन्न विशेष का (जुषस्व) सेवन करो ॥४॥
महर्षि दयानंद भावार्थ:- मनुष्यों को चाहिये कि जिन पुरुषों में जैसी विद्या और शीलता होवे वैसी ही उनपर उत्तम कृपा करें ॥४॥
व्यावहारिक अर्थ:- हे (इन्द्र) प्रतापयुक्त ! आप (माध्यन्दिनस्य) मध्य दिन में होनेवाले (सवनस्य) कर्म विशेष के मध्य में जो (धानाः) भूंजे हुए अन्न और (चारुम्) भक्षण करने योग्य सुन्दर (पुरोडाशम्) अन्न विशेष का आप (इह) इस उत्तम कर्म में (कृष्व) संग्रह कीजिये और (यत्) जो (वृषायमाणः) बल को करनेवाला (तूर्ण्यर्थः) शीघ्र है प्रयोजन जिसका वह (जरिता) आपका सेवाकारी और (स्तोता) प्रशंसा करनेवाला (उप) समीप में (गीर्भिः) वाणियों से (प्र, उप) समीप में (ईट्टे) ऐश्वर्य्यवान् हो वह आपके सत्कार करने योग्य होवे ॥५॥
Take guidance from experienced learned persons (nutrition experts) to start your day by eating breakfast that promotes health and leaves you with an active frame of my mind. ‘Breakfast should be the King of meals’ – is a very famous saying.
विद्वत्जनों की सलाह से प्रात: काल  ऐसा पौष्टिक नाश्ता करो  जो बुद्धि और उत्साह  वर्धक हो. (सुस्ती न लाए )

5.माध्यंदिनस्य सवनस्य धाना: पुरोळाशमिन्द्र कृष्वेह चारुम् ।
प्र यत् स्तोता जरिता तूर्ण्यर्थो वृषायमाण उप गीर्भिरीट्टे  ।।RV 3.52.5
महर्षि दयानंद पदार्थ:- हे (इन्द्र) प्रतापयुक्त ! आप (माध्यन्दिनस्य) मध्य दिन में होनेवाले (सवनस्य) कर्म विशेष के मध्य में जो (धानाः) भूंजे हुए अन्न और (चारुम्) भक्षण करने योग्य सुन्दर (पुरोडाशम्) अन्न विशेष का आप (इह) इस उत्तम कर्म में (कृष्व) संग्रह कीजिये और (यत्) जो (वृषायमाणः) बल को करनेवाला (तूर्ण्यर्थः) शीघ्र है प्रयोजन जिसका वह (जरिता) आपका सेवाकारी और (स्तोता) प्रशंसा करनेवाला (उप) समीप में (गीर्भिः) वाणियों से (प्र, उप) समीप में (ईट्टे) ऐश्वर्य्यवान् हो वह आपके सत्कार करने योग्य होवे ॥५॥
महर्षि दयानंद भावार्थ:- जो राजा के जन ऋत्विजों के सदृश राज्य की वृद्धि करैं उनको राजा सत्कार से प्रसन्न करे ॥५॥
व्यावहारिक अर्थ:- Lunch should be light, not heavy to digest, and should consist of roasted grains made in to especially delicious preparations. And these should be consumed by chewing well  in to a liquid form for being easily digestible to provide you with good health and make one a pleasant personality in society.– At lunch time one is likely  to be at work place  and is also expected to be agile in actions and alert in mental activities. While actively engaged in work and thus needs to be not only in good health but also alert.
.-  (In case of eating of fast eating and eating not well cooked and unwholesome food, indigestion leads to bad health and dyspepsia and deprives one of being a peasant company.) 
दोपहर के भोजन में ठीक से भुने हए अन्न के स्वादिष्ट व्यंजन और अल्पाहार होना चाहिए.  जिन्हें  खूब चबा कर खाना चाहिए. स्वस्थ और चैतन्य रहें (काम के समय) नींद न आ रही हो .(कहावत है कि  अन्न को खूब  चबा चबा कर जल की तरह पीओ और जल को  धीरे धीरे खावो. )  जिस से अपच न हो. डकारें लेते हुए तथा दुर्गंधित अपान वायु के कारण  समाज में बैठ कर अच्छी संगती न हो.   

6.तृतीये धाना: सवने पुरुष्टुत पुरोळाशमाहुतं मामहस्व न:  ।
ऋभुमन्तं वाजवन्तं त्वा कवे प्रयस्वन्त उप शिक्षेम धीतिभि:  ।।RV 3.52.6

महर्षि दयानंद पदार्थ:- हे (पुरुष्टुत) बहुतों से प्रशंसित (कवे) विद्वान् पुरुष ! (प्रयस्वन्तः) प्रयत्न करते हुए हम लोग (धीतिभिः) अंगुलियों से दिखाये गये वचनार्थों से (तृतीये) तीन की पूर्त्तिकरनेवाले (सवने) सायंकाल में करने योग्य कर्म में (पुरोळाशम्) उत्तम संस्कारयुक्त अन्न विशेष और (धानाः) अग्नि से भूंजे गये अन्न विशेषों के तुल्य (ऋभुमन्तम्) श्रेष्ठ बुद्धिमानों से युक्त (वाजवन्तम्) शुष्क अन्न विशेष विद्यमान जिसके उस (आहुतम्) पुकारे गये (त्वा) आपको (उप, शिक्षेम) शिक्षा देवैं वह आप (नः) हम लोगों का (मामहस्व) अत्यन्त सत्कार करिये ॥६॥
महर्षि दयानंद भावार्थ:- जैसे विद्वान् यज्ञ करनेवाले यजमानों के लिये यज्ञ कृत्य की शिक्षा देते हैं वैसे ही संपूर्ण विद्याओं का हस्त आदि क्रियाओं से प्रत्यक्ष अर्थात् अभ्यास करके अन्यजनों के लिये अध्यापक लोग प्रत्यक्ष करावें ॥६॥
व्यावहारिक अर्थ:- सायं काल में बहुतों से प्रशंसित अत्यंत सत्कार के योग्य गुण लिए भुने हुए धान और  उत्तम शिक्षित बुद्धि से प्रेरित  (ऋभुमन्तं ) सूर्य के किरणों से उपचारित (वाजवन्तं) शुष्क अन्न विशेष जो अत्यंत पौष्टिक होता है उस का प्रथम यज्ञाग्नि  में आहुति दें और पश्चात आहार में उस का सेवन करें.
(प्राचीन परम्परा में  पर्वतीय क्षेत्रों में जहां शीत काल  में धूप सेवन करने के लिए कम मिलती है  ग्रीष्म काल  में फलों  सबज़ियों को  धूप  मे सुखा कर रखते  हैं  और इच्छानुसार  उन को  आहार  में शीत  काल  में लाते  हैं. काश्मीर  की गुच्छी तो विश्व में प्रसिद्ध एक बहुमूल्य  खाद्य  पदार्थ  है.  आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा यह  पाया गया  है कि मशरूम को धूप  में सुखाने से उस में विटामिन डी की मात्रा इतनी बढ़  जाती  है कि वैज्ञानिकों ने इसे एक  विटामिन डी  का बम  बताया- Mushroom when dried in SUN becomes literally a BOMB of vitamin D- प्राचीन भारत  की जीवन शैली के पीछे इसी प्रकार  के  वैज्ञानिक रहस्य  छिपें हैं , जिन का हमारे  ऋषियों ने वेदों में  ज्ञान मानव के लिए दिया था. समय के चलते भारतीय  जीवन दर्शन में यह सब ज्ञान प्रयोग में आता रहा.परंतु वेदों  के स्वाध्याय की परम्परा के  लोप हो जाने से भारतीय  जीवन पद्धति के  मूल में  क्या वैज्ञानिक रहस्य थे इस का ज्ञान नहीं रहा. और  पाश्चात्य  शिक्षित लोग भारतीय  जीवन शैली को एक अंधविश्वास  पर आधारित पिछड़ा  मान कर विदेशी जीवन शैली का आचरण  करने लगे हैं. )  

7.पूषण्वते ते चकृमा करम्भं हरिवते हर्यश्वाय धाना:  ।
अपूपमध्दि सगणो मरुद्भि: सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्  ।।RV 3.52.7
महर्षि दयानंद पदार्थ:- हे (शूर) दुष्ट पुरुष के नाशकर्त्ता ! जैसे (वृत्रहा) धन से युक्त विद्वान् पुरुष (पूषण्वते) पुष्टि करनेवाले विद्यमान हैं जिसके उस (हरिवते) उत्तम घोड़े आदि से युक्त के तथा (हर्य्यश्वाय) हरणशील और शीघ्र चालवाले घोड़े वा अग्नि आदि विद्यमान हैं जिसके उस (ते) आपके लिये (करम्भम्) दधि आदि से युक्त भोजन करने के पदार्थ विशेष और (धानाः) भूंजे हुए अन्न तथा (अपूपम्) पुआ को देवे उसको (सगणः) समूह के सहित वर्त्तमान आप (मरुद्भिः) उत्तम मनुष्यों के साथ (अद्धि) भक्षण कीजिये और (सोमम्) उत्तम ओषधि के रस को (पिब) पान कीजिये और वैसे ही हम लोग आपके लिये (चकृम) करें ॥७॥
महर्षि दयानंद भावार्थ:- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्या नम्रता से युक्त हैं वे श्रेष्ठ राजा के लिये उत्तम पदार्थों को देकर इसका निरन्तर सत्कार करें और वे राजा से भी सर्वदा सत्कार के योग्य हैं ॥७॥
व्यावहारिक अर्थ:- उत्तम पौष्टिकता के लिए उत्तम अश्व जैसी शक्ति के लिए सत्तू में खमीर उठा कर पुआ –चीला -दोसा  बनाएं .यह सगणो मरुद्भि सूक्ष्माणुओ probiotic द्वारा शूरवीर और विद्वान सब विघ्न  बाधाओं  पर विजय  प्राप्त करने  में सक्षम  बनाता है.

8.प्रति धाना भरत तूयमस्मै पुरोळाशं वीरतमाय नृणाम् ।
         दिवेदिवे सदृशीरिन्द्र तुभ्यं वर्धन्तु त्वा सोमपेयाय धृष्णो  ।।RV 3.52.8
         महर्षि दयानंद पदार्थ:- हे (धृष्णो) वाणी में चतुर (इन्द्र) दुष्टों के समूह के नाश करनेवाले ! जो (सदृशीः) तुल्य स्वरूपवाली सेना (दिवेदिवे) प्रतिदिन (नृणाम्) अग्रणी पुरुषों के मध्य में (वीरतमाय) अत्यन्त श्रेष्ठ वीर पुरुष (सोमपेयाय) पान किया सोम के रस का जिसने उन आपके लिये (वर्द्धन्तु) वृद्धि को प्राप्त हों और जो विद्वान् लोग (त्वा) आपके लिये वृद्धि करें उनकी आप वृद्धि करो और हे विद्वानों ! आप लोग (अस्मै) इसके लिये (धानाः) भूंजे हुए अन्न और (पुरोळाशम्) उत्तमप्रकार संस्कार युक्त अन्नविशेष और जो कि (तूयम्) शीघ्र सुखकारक उसको (प्रतिभरत) पूर्ण कीजिये ॥८॥
महर्षि दयानंद भावार्थ:- सम्पूर्ण राजजन और प्रजा के जन राज्य की वृद्धि के लिये सम्पूर्ण पदार्थों को इकट्ठे करें उनसे उत्तम प्रकार परीक्षित वीर सेनाओं को करके और दुष्ट पुरुषों का पराजय और श्रेष्ठ पुरुषों का विजय करके प्रतिदिन आनन्द करना चाहिये ॥८॥
व्यावहारिक अर्थ:-सब जीवों के लिए भुने जौ –सत्तू इत्यादि का सात्विक आहार यज्ञ शेष के रूप में सर्वदा
        उपलब्ध रहे अर्थात ( सब को पहल खिला कर जो बचे उसी  का सेवन करें)  . इस प्रकार का आहार जो  सोम की वृद्धि करता है वह  सात्विक  आहार ही है, जो  शरीर को  शक्ति  प्रदान  करता है ,सात्विक  आहार द्वारा उत्पन्न सात्विक  वृत्ति ही शत्रुओं विघ्न  बाधाओं  पर  इन्द्र  के समान सदैव विजयी होने  की क्षमता प्रदान करता है.

Courtesy:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10211828945656263&id=1148666046

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