Monday, 20 March 2017

गौ हत्या का दण्ड तथा परिणाम

गौ हत्या
अ॒घवि॑षा नि॒पत॑न्ती॒ तमो॒ निप॑तिता ॥  अथर्व  १२.५.३.१५

गो रक्षक लोग गौ के हत्यारे को विष दे कर मार डालें | जब तक हत्यारे के  अरोप सिद्ध नहीं हो जाता और विष का प्रबंध नहीं होता, उस गौ हत्यारे को एक अंधेरी कोठरी में बंद रखना चाहिए | ( आचार्य विश्वनाथ विद्यालंकार के अथर्व वेद भाष्य पर आधारित )

अ॑नु॒गछ॑न्ती प्रा॒णानुप॑ दासयति ब्रह्मग॒वी ब्र॑ह्म॒ज्यस्य॑ ॥  अथर्व  १२.५.३.१६

ब्रह्मगवी - गो और वेदों  की वाणी- विद्वान जनों के प्रसार पचार करने वालों शत्रु  के घातकों  को तो दण्ड दे कर मार दिया गया , गौ भी मर गई | परंतु मृत ब्रह्मगवी हत्या करने वाले का पीछा करती है  और पुनर्जन्म लेने पर उस गो हत्या करने वाले के प्राणों को नष्ट कर देती है  | समाज के भविष्य को भी नष्ट कर डालती है |

वैरं॑ विकृ॒त्यमा॑ना॒ पौत्रा॑द्यं विभा॒ज्यमा॑ना ॥   अथर्व  १२.५.२८

गौओं के काटने और उन के मांस को बांटने पर, घातक के कुलों में और गोरक्षा करनेवालों मे वैर उत्पन्न हो जाता है  (समाज में वैर उत्पन्न हो जाता है ) . इस वैर  का दुष्परिणाम गोहत्या करने वालों के  पौत्रों तक को भोगना पड़ता है | यह वैर कहां तक जाता है, यह गोरक्षकों की गौ के प्रति श्रद्धा पर निर्भर है |

   दे॑वहे॒तिर्ह्रि॒यमा॑णा॒ व्यृ॒द्धिर्हृ॒ता ॥ अथर्व १२.५.२९

(गो) मांस के व्यापार का राष्ट्र के विद्वानों और दिव्य कोटि के लोगों को पता चलने पर समाज में हिंसा का वातावरण बनता है | गौओं के दूध की कमी और कृषि कर्म की कठिनाइयों के कारण राष्ट्र की ऋद्धि समृद्धि क्षीण हो जाती है |

  पा॒प्माधि॑धी॒यमा॑ना॒ पारु॑ष्यमवधी॒यमा॑ना ॥  अथर्व  १२.५.३०

(गो) मांस का  व्यापार समाजिक अशांति की  पापवृत्ति को प्रकट करता है और गोमांस का प्रयोग हृदय की कठोरता को प्रकट करता है |

वि॒षं प्र॒यस्य॑न्ती त॒क्मा प्रय॑स्ता ॥   अथर्व  १२.५.३१

(गो)  मांस पकाने के  प्रयास  विष रूप है और इन का प्रयोग  कष्ट प्रद रोगादि ज्वर रूप है | ( बौद्ध ग्रंथ “सूतनिपात” के अनुसार माता पिता , भाई तथा अन्य सम्बंधियों के समान गौएं हमारी श्रेष्ठ सखा हैं  | पूर्वकाल में केवल तीन ही रोग थे  – इच्छा, भूख और क्रमिक ह्रास | परंतु पशुघात मांसाहर के कारण 98 रोग पैदा हो गए | )

अ॒घं प्र॒च्यमा॑ना दु॒ष्वप्न्यं॑ प॒क्वा ॥ अथर्व  १२.५.३२

(गौ) मांसको पकाना पाप है | गोमांस का पका कर प्रयोग जीवन को दु:स्वनों जैसा दुखदायी बना देता है |

मू॑ल॒बर्ह॑णी पर्याक्रि॒यमा॑णा॒ क्षितिः॑ प॒र्याकृ॑ता ॥ अथर्व  १२.५.३३

(गो)मांस का प्रयोग यक्षमा जैसे अनुवांशिक रोगों से भावी संतानों की जड़ काट देता है |

असं॑ज्ञा ग॒न्धेन॒ शुगु॑द्ध्रि॒यमा॑णाशीवि॒ष उद्धृ॑ता ॥ अथर्व १२.५.३४

(गो) मांस सेवन करने वालों में अज्ञता – मूढ़मति-  मोटी अकल होती  हैं | पकते मांस की गंध का परिणाम शोक - निराशा - उत्पन्न करके विष समान है |

अभू॑तिरुपह्रि॒यमा॑णा॒ परा॑भूति॒रुप॑हृता ॥   अथर्व १२.५.३५

(गो) मांसाहार के प्रोत्साहन से शारीरिक तेज नष्ट हो जाता है | और समाज में रोग बढ़ते हैं |

  श॒र्वः क्रु॒द्धः पि॒श्यमा॑ना॒ शिमि॑दा पिशि॒ता ॥  अथर्व १२.५.३६

(गो) मांस के सेवन से क्रोध  वृत्ति और हिंसक भावना  बढ़ते हैं |

अव॑र्तिर॒श्यमा॑ना॒ निरृ॑तिरशि॒ता ॥  अथर्व  १२.५.३७

(गो) मांस सेवन से (अवित:) दरिद्रता पैदा होती है जिस से कष्ट बढ़ते है |     

   अ॑शि॒ता लो॒काच्छि॑नत्ति ब्रह्मग॒वी ब्र॑ह्म॒ज्यम॒स्माच्चा॒मुष्मा॑च्च ॥    अथर्व  १२.५.३८

गो जाति का स्वामी परमेश्वर है |  (ब्रह्मज्यम्‌) गो की रक्षा करने वाले को  हानि  पहुंचाने वाले का स्वयं सर्वनाश हो जाता है | 

तस्या॑ आ॒हन॑नं कृ॒त्या मे॒निरा॒शस॑नं वल॒ग ऊब॑ध्यम् ॥   अथर्व  १२.५.३९

गौ  हत्या से  दुष्परिणाम के  अनेक अदृष्य कारण होते हैं  जिन्हें एक कृत्या के  सन्हारक रूप से देखा जाता है |

अ॑स्व॒गता॒ परि॑ह्णुता ॥   अथर्व  १२.५.४०

चुराई गौ से लाभ नहीं होता

  अ॒ग्निः क्र॒व्याद्भू॒त्वा ब्र॑ह्मग॒वी ब्र॑ह्म॒ज्यं प्र॒विश्या॑त्ति ॥   अथर्व  १२.५.४१

गोरक्षकों और वेदज्ञों के जीवन को  हानि पहुंचाने वालों में श्मशान की शवाग्नि   घुस कर उन को खा जाती है | 

सर्वा॒स्याङ्गा॒ पर्वा॒ मूला॑नि वृश्चति ॥ अथर्व  १२.५.४२

गौ और वेद ज्ञान का ह्रास समाज की जड़ों को नष्ट कर देता है |

छि॒नत्त्य॑स्य पितृब॒न्धु परा॑ भावयति मातृब॒न्धु ॥  अथर्व  १२.५.४३

माता पिता और बन्धु जनों से पारिवारिक सम्बंध भावनाओं से रहित हो जाते हैं  |

वि॑वा॒हां ज्ञा॒तीन्त्सर्वा॒नपि॑ क्षापयति ब्रह्मग॒वी ब्र॑ह्म॒ज्यस्य॑ क्ष॒त्रिये॒णापु॑नर्दीयमाना ॥ ॥  अथर्व १२.५.४४

विवाह का महत्व क्षीण हो जाता है परिणाम, स्वरूप संतान का आचरण ठीक न होने पर भविष्य में  उत्तम समाज का निर्माण नहीं हो पाता | 

अ॑वा॒स्तुमे॑न॒मस्व॑ग॒मप्र॑जसं करोत्यपरापर॒णो भ॑वति क्षी॒यते॑ ॥ अथर्व १२.५.४५

समाज में व्यक्तिगत घर और सम्पत्ति के साधन नष्ट होने लगते हैं  | पालन पोषण  के साधन क्षीण हो जाते हैं |  अनाथ बच्चे और बिना घर बार के लोग दिखाई देते  हैं |

य ए॒वं वि॒दुषो॑ ब्राह्म॒णस्य॑ क्ष॒त्रियो॒ गामा॑द॒त्ते ॥     अथर्व १२.५.४६

जब विद्वान,  गौ और वेद  ज्ञान समाज से छिन जाता है  |

क्षिप्रं वै तस्याहनने गृध्राः कुर्वत ऐलबम् ॥ अथर्व  १२.५.४७

तब (देश की रक्षा करते हुए मारे जाने वाले) क्षत्रियों का दाह संस्कारकरने वाला भी कोइ नहीं रहता , उन के शरीर को खाने के लिए गीध ही इकट्ठे होते हैं |

क्षि॒प्रं वै तस्या॒दह॑नं॒ परि॑ नृत्यन्ति के॒शिनी॑राघ्ना॒नाः पा॒णिनोर॑सि कुर्वा॒णाः पा॒पमै॑ल॒बम् ॥   अथर्व  १२.५.४८

यह निश्चित है , कि शीघ्र  ही उन (वीर देश पर बलिदान होने वालों ) के निधन पर दाह स्थान क  आस पास खुले केशों वाली हाथ से छाती पीटती हुई स्त्रियां  विलाप करती हुई होती हैं |

क्षि॒प्रं वै तस्य॒ वास्तु॑षु॒ वृकाः॑ कुर्वत अैल॒बम् ॥ अथर्व  १२.५.४९

शीघ्र ही उन क्षत्रिय राजाओं के देश में एक दूसरे से लड़ने और चिल्लाने वाले भेड़ियों से भरा समाज बन जाता है | निश्चय ही उन राजाओं के महलों में जंगली जानवर  निवास  करने लग जाते  हैं |

क्षि॒प्रं वै तस्य॑ पृछन्ति॒ यत्तदासी॑३दि॒दं नु ता३दिति॑ ॥   अथर्व  १२.५.५०

शीघ्र ही उस प्रदेश में प्रजा केवल अपने अतीत के क्षत्रिय राजाओं का इतिहास याद करने लगती है |

छि॒न्ध्या छि॑न्धि॒ प्र छि॒न्ध्यपि॑ क्षापय क्षा॒पय॑ ॥  अथर्व १२.५.५१

जिसे ध्यान कर के सब ओर मार काट मार काट होने लगती है |

आ॒ददा॑नमाङ्गिरसि ब्रह्म॒ज्यमुप॑ दासय ॥    अथर्व  १२.५.५२

(इस लिए) अंत में ब्रह्मगवी , गोमाता,  गोरक्षा  और वैदिक  ज्ञान का क्षय करने वाले तत्वों पर ब्रह्मज्ञानी विजय पाते हैं   | ( गौ और वेदों की रक्षा करने वाले आर्य विश्व विजयी होते हैं )

  वै॑श्वदे॒वी ह्यु॑१च्यसे॑ कृ॒त्या कूल्ब॑ज॒मावृ॑ता ॥  अथर्व  १२.५.५३

( हे  गोमाता) तुम  वैश्वदेवी सब विद्वानों का हित करने वाली  कही जाती हो | तुम्हारे आशीर्वाद से मिलने वाले प्रसाद की उपेक्षा करना अथवा  न ग्रहण करना इतना ही हानि कारक है जितना  अपने किनारों को तोड़ कर विध्वंसकारी नदी में आई  बाढ़ का | 

ओष॑न्ती स॒मोष॑न्ती॒ ब्रह्म॑णो॒ वज्रः॑ ॥  अथर्व  १२.५.५४

जो सब को समान रूप से जला कर भस्म  कर देने वाले दैवीय वज्र के समान  है |

  क्षु॒रप॑विर्मृ॒त्युर्भू॒त्वा वि धा॑व॒ त्वम् ॥  अथर्व  १२.५.५५

गो और वेद ज्ञान के रक्षकों  तुम विविध रूप से सक्षम हो  कर शीघ्रता से अपना दायित्व निभाओ |

आ द॑त्से जिन॒तां वर्च॑ इ॒ष्टं पू॒र्तं चा॒शिषः॑ ॥   अथर्व  १२.५.५६

गौ जाति को हानि पहुंचाने वाले समाज से उन का वर्चस्व , सब योजनाओं के सिद्ध होने के सफल होने और इच्छाओं की पूर्ति और आशीर्वाद छिन जाते  हैं  |

  अदाय॑ जी॒तं जी॒ताय॑ लो॒के॑३ ऽमुष्मि॒न्प्र य॑छसि ॥ अथर्व  १२.५५७

गौ और वैदिक संस्कृति को हानि पहुंचाने वाले तत्वों  को भविष्य में विजयी गो और वेद पालकों के अधीन हो जाना पड़ता है | (कृण्वंतोविश्वमार्यम)

  अघ्न्ये॑ पद॒वीर्भ॑व ब्राह्म॒णस्या॒भिश॑स्त्या ॥  अथर्व  १२.५.५८

गौ और वेदों का प्रकाश करने वाले ब्रह्मचारियों की प्रतिष्ठा हो |

मे॒निः श॑र॒व्या॑ भवा॒घाद॒घवि॑षा भव ॥    अथर्व  १२.५.५९

वेद निंदक शत्रुओं के पाप के पापाचार के विरुद्ध  (ब्रह्मगवी) गौ और वेद  ज्ञान से महान घातक विषैला  एवं वज्र समान सैन्य बल  हो | 

अघ्न्ये॒ प्र शिरो॑ जहि ब्रह्म॒ज्यस्य॑ कृ॒ताग॑सो देवपी॒योर॑रा॒धसः॑ ॥   अथर्व १२.५.६०

गौ और वेद ज्ञान के प्रति हिंसा करनेवालों को यथावत दण्ड मिले |

त्वया॒ प्रमू॑र्णं मृदि॒तम॒ग्निर्द॑हतु दु॒श्चित॑म् ॥   अथर्व  १२.५.६१

गौ और वेद  विरोधी दुराचारियों को न्याय और शासन व्यवस्था जला कर भस्म कर दे |

वृ॒श्च प्र वृ॑श्च॒ सं वृ॑श्च॒ दह॒ प्र द॑ह॒ सं द॑ह ॥   अथर्व  १२.५.६२

शाब्दिक अर्थ – गौ और वेदों के प्रति हिंसा करने वालों को (वृष्च प्र विश्च ) काट डाल चीर डाल , (सं वृश्च) फाड़ डाल (दह सं दह ) फूंक दे भस्म कर दे | भावार्थ – धर्मात्मा लोग अधर्मियों का नाश करने में सर्वदा उद्यत रहें |

ब्र॑ह्म॒ज्यं दे॑व्यघ्न्य॒ आ मूला॑दनु॒संद॑ह ॥  अथर्व  १२.५.६३
यथाया॑द्यमसाद॒नात्पा॑पलो॒कान्प॑रा॒वतः॑ ॥   अथर्व  १२.५.६४

राजा को उचित है कि वेद  व्यवस्था के अनुसार अधर्मी गौ और वेद और ज्ञान के घातक दोषियों को बहुत दूर कारावास  (कालापानी) में रखें  |

ए॒वा त्वं दे॑व्यघ्न्ये ब्रह्म॒ज्यस्य॑ कृ॒ताग॑सो देवपी॒योर॑रा॒धसः॑ ॥   अथर्व १२.५.६५
वज्रे॑ण श॒तप॑र्वणा ती॒क्ष्णेन॑ क्षु॒रभृ॑ष्टिना ॥   अथर्व१२.५.६६
प्र स्क॒न्धान्प्र शिरो॑ जहि ॥   अथर्व  १२.५.६७

गौ और वेद ज्ञान  के  अनुयायी जनों –ब्राह्मणों की हिंसा करने वाले पापियों देवताओं की अराधना न करने और हिंसा करने  वाले  जनों को शासन को प्रचण्ड दण्ड देवे |

लोमा॑न्यस्य॒ सं छि॑न्धि॒ त्वच॑मस्य॒ वि वे॑ष्टय ॥  अथर्व  १२.५.६८
मां॒सान्य॑स्य शातय॒ स्नावा॑न्यस्य॒ सं वृ॑ह ॥    अथर्व  १२.५.६९
  अस्थी॑न्यस्य पीडय म॒ज्जान॑मस्य॒ निर्ज॑हि ॥  अथर्व १२.५.७०
  सर्वा॒स्याङ्गा॒ पर्वा॑णि॒ वि श्र॑थय ॥  अथर्व  १२.५.७१

नीति निपुण धर्मज्ञ राजा वेद मार्ग पर चल कर वेद विमुख अत्याचारी लोगों को विविध प्रकार के प्रचण्ड दण्ड देवे |

साभार:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10211879904290197&id=1148666046

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