AV19.55 रायस्पोषप्राप्ति To be Prosperous & Wealthy
ऋषि-भृगु =तेजस्वी तपस्वी वाणप्रस्थी , देवता: -अग्नि: , छंद – त्रिष्टुप्
Do the duty of a Citizen
1. रात्रिंरात्रिं अप्रयातं भरन्तोऽश्वायेव तिष्ठते घासं अस्मै ।
रायस्पोषेण सं इषा मदन्तो मा ते अग्ने प्रतिवेशा रिषाम । ।AV19.55.1
जैसे प्रतिदिन बिना नागा अपने घोड़े के लिए हम घास लाते हैं, उसी प्रकार समाज के सदस्य के नाते (राष्ट्र के यज्ञ में ) अपनी आहुती देते हुए हम उत्तम अन्न, धन, पोषण प्राप्त करते हुए, (अराजक तत्वों से ) सुरक्षित रहें ।
2. या ते वसोर्वात इषुः सा त एषा तया नो मृड ।
रायस्पोषेण सं इषा मदन्तो मा ते अग्ने प्रतिवेशा रिषाम । ।AV19.55.2
हमारे आवास का वातावरण शुद्ध हो समाज के सदस्य के नाते (राष्ट्र के यज्ञ में ) अपनी आहुती देते हुए हम उत्तम अन्न, धन, पोषण प्राप्त करते हुए, (अराजक तत्वों से ) सुरक्षित रहें ।
3. सायंसायं गृहपतिर्नो अग्निः प्रातःप्रातः स्ॐअनसस्य दाता ।
वसोर्वसोर्वसुदान एधि वयं त्वेन्धानास्तन्वं पुषेम । ।AV19.55.3
सायं काल से आरम्भ किया गया प्रतिदिन सायं प्रात: किया गए अग्निहोत्र यज्ञ (न: गृहपति) में डाली गइ (ऋतु अनुसार समग्री की) आहुतियां हमारे पर्यावरण की रक्षक, (सौमनस्य दाता) मानसिक प्रसन्नता देने वाली ,(वसोर्वसोर्वसुदान) हमारे निवास के साधनभूत सब वस्तुओं रूपि धन देने वाली हों और समाज के लिए (तन्वं पुषेम) (निरोगता से) तनों को पुष्ट करने वाली हों।
4. प्रातःप्रातर्गृहपतिर्नो अग्निः सायंसायं स्ॐअनसस्य दाता ।
वसोर्वसोर्वसुदान एधीन्धानास्त्वा शतंहिमा ऋधेम । ।AV19.55.4
प्रतिदिन प्रात: सायं किए गए अग्निहोत्र यज्ञ (न: गृहपति) में डाली गइ (ऋतु अनुसार समग्री की) आहुतियां हमारे पर्यावरण की रक्षक, (सौमनस्य दाता) मानसिक प्रसन्नता देने वाली हों , (वसोर्वसोर्वसुदान) हमारे निवास के साधनभूत सब वस्तुओं रूपि धन देने वाली हों और हम शतायुको प्राप्त करें
5. अपश्चा दग्धान्नस्य भूयासं ।
अन्नादायान्नपतये रुद्राय नमो अग्नये ।
सभ्यः सभां मे पाहि ये च सभ्याः सभासदः । ।AV19.55.5
( कुछ लोग यह समझतेहैं कि अग्निहोत्र मे घृत और अन्नादि की आहुति का जल कर नष्ट हो जाते हैं ) मैं अग्नि होत्र में घृत और अन्न की आहुति देने में (अपाश्च) पीछे ना रहूं (भूयासम्) परंतु मैं खूब ही अग्निहोत्र करूं। अग्निहोत्र तो (अन्नदायापतये रुद्राय ) पर्जन्यों से मेघ द्वारा और अन्न के उत्पादन में कृषि की हानि करने वाले कीट,कृमियों को नष्ट कर के अन्न उत्पादन मे वृद्धि करता है। अत: (सभ्य: ) हमारे समाज में सब सदा अग्निहोत्र करने वाले हों । (मे सभां पाहि च सभ्यां: सभासद:) और जैसा मेरा संरक्षण हो ऐसा सारे समाज का भी संरक्षण हो.
6. त्वां इन्द्रा पुरुहूत विश्वं आयुर्व्यश्नवन् ।
अहरहर्बलिं इत्ते हरन्तोऽश्वायेव तिष्ठते घासं अग्ने । ।AV19.55.6
इस प्रकार तुम सब जन विश्व में इन्द्र के आदर्श निरंतर अपने लक्ष्य की ओर पूर्ण रूप से समर्पित आस्था और तपस्वी व्यक्तित्व के व्यवहार से (मानसिक और शारीरिक दृष्टि से ) रोगरहित स्वस्थ दीर्घायु समाज का निर्माण अवश्य कर सकते हो, जैसे एक स्वस्थ पुष्ट और बलशील अश्व को प्रति दिन उत्तम आहार में उत्तम घास खिला कर प्राप्त करते हो.
Courtesy:
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