रोगमुक्त भारत और पर्यावरण की सुरक्षा पूर्ण गो हत्या प्रतिबं से ही सम्भव
गो हत्या और मांसाहार –पर पूर्ण प्रतिबन्ध - विश्व के बढ़ते हुए तापमान का इलाज है
लगातार पर्यावण की क्षति से होने वाले तापमान के बढ़ने से उत्पन्न परिस्थितियों जो इस पृथ्वी पर ध्रुवी क्षेत्रों के हिम खंड पिघल जाने पर समुद्र जल का स्तर बढ़ने के कारण आवासीय क्षेत्रों की भूमि लगातार जल मग्न हो कर कम होती जा रही है |
भारत वर्ष का 6100 किलोमीटर लम्बा समुद्र तट है | बड़े नगर मुम्बइ और चेन्नइ अधिक जनसंख्या वाले नगर बढ़ते तापमान से विशेष रूप से प्रभावित होते हैं | NEERI के अनुसंधान के अनुसार पर्यावरण की क्षति के प्रभाव से केवल मुम्बइ को 2050 तक 35 लाख करोड़ के आर्थिक नुकसान का अनुमान है | तापमान 1.62 डिग्री बढ़ा है और समुद्र का जल स्तर प्रति वर्ष 2.4 मिलीमीटर बढ़ा है |
हुगली नदी और गङ्गा के डेल्टा पर बसे कलकत्ता नगर की तो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत गम्भीर परिस्थिति है | क्योंकि यह नगर समुद्र तट से केवल 1 मीटर ऊपर है | बहुत सा नगर तो कछार की भराइ से बना है (साल्ट लेक सिटी )| सर्दियों और वर्षा ऋतु में अब कोलकता में तापमान अधिक होता है | समुद्र के जल स्तर के बढ़ने से , भूमि स्खलन से समुद्र का नम्कीन जल 100 किलोमीटरतक के तटीयप्रदेश के जल को प्रभावित करता है | स्वच्छ पेय जल की समस्या गम्भीर रूप धारण कर रही है | 1. जिस के फलस्वरूप प्राकृतिक आपदाएं जैसे cloud burst से अचानक अत्यधिक वर्षा से आवागमन के साधन जन जीवन अस्त व्यस्त, महामारियों के रोग , मकानों का गिरना होता जाता है | जो किसी भी सरकार के बस का नहीं है |
बढ़ते तापमान और हुमस (ह्युमिडिटी) श्वास के संक्रामक रोग एलर्जी , भिन्न भिन्न प्रकार के फ्लू, एस्थमा ,फेफड़ों के रोग,मलेरिया ,दूषित जल के कारण के आंत्रशोध, डायरिआ, हेपेटाइटिस जैसे असाध्यरोग आज भी बढ़ते दिखाइ दे रहे हैं , वे और भयानक रूप ले लेंगे | बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण कर्मचारियों की अनुपस्थिति से देश के उत्पादन की ही नहीं व्यक्तिगत आमदनी की भी हानि होगी | बीमारियों के बढ़ते खर्च, चिकित्सालयों की लगातार कमी खान पान की सब वस्तुओं की बढ़ती कीमतों पर जनता के असंतोष और कठिनाइ के लिए कोई भी उपाय कर पाने में सब सरकारें अपने को असमर्थ पा रही हैं |
मीडिया विशेषज्ञ इन सब के लिए राजनीति की शतरंग खेल रहे हैं | उन सब के विचारप्रचार में इस सब के लिए मोदी जी की सरकार ज़िम्मेवार है | असली बात पर्यावरण संरक्षण की बात और हम सब का दायित्व क्या है यह कोइ क्यों नहीं करता ?
पृथ्वी पर तापमान बढ़ने से कृषि द्वारा खाद्य उत्पादन कठिन हो जाने पर मानव जीवन के खाद्य सुरक्षा भी कठिन हो जाएगी |
सब से प्रथम तो मांसाहार और गोहत्या पर पूर्ण रोक ही लगानी पड़ेगी |
कोइ भी खाद्य पदार्थ बिना जल और ऊर्जा के उत्पन्न और ग्रहण नहीं किया जा सकता | सब खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में परोक्ष रूप में जितना जल लगता है उस का वैज्ञानिक दृष्टि से अनुमान लगाया जाता है , वह उस खाद्यपदार्थ की उपलभ्ध्ता का पद्चिह्न (Footprint) कहलाता है | अमेरिका के एक विश्लेषण के आधार पर निम्न तालिका प्रस्तुत है | इस से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भविष्य में पृथ्वी पर मनुष्य की खाद्य सुरक्षा खाद्य को ध्यान में रखते हुए शाकाहार को प्रोत्साहन देना होगा |
इसी वैज्ञानिक दृष्टि से प्राचीन भारत में मांसाहार वर्जनीय माना जाता था |
निम्न तालिका से यह स्पष्ट है की भारतवर्ष में कि मांसाहार विशेष तौर पर गोमांस पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए |
Water & Energy Footprints of Food items as per American Study
खाद्य पदार्थ उपलबधता में परोक्ष जल और ऊर्जा की आवश्यकता
Sl.No.
क्रमांक
1 Kg Food Item
1 किलो खाद्य पदार्थ
Liters
Water required
जल की आवश्यकता
लीटर में
KWh
Energy Required
ऊर्जा की आवश्यकता
किलोवाट घंटों में
1
Lettuce लेटस सलाद
130 L
Nil
2
Potatoes आलू
250 L
Nil
3
Apples सेब
700 L
3.7
4
Corn Maize मक्का भुट्टा
900 L
0.95
5
Milk दूध
1,100 L
1.6
6
Ground Nuts मूंगफली
3,100 L
Nil
7
Eggs अण्डे
3,300 L
8.8
8
Chicken मुर्गी
3,900 L
9.7
9
Pork सूअर का मांस
4,800 L
28
10
Cheese चीज़
5,000 L
15
11
Olive Oil ओलिव आयल
14,500 L
Nil
13
Beef गो मांस
15,500 L
69
साभार: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10211901354466438&id=1148666046
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.